
मुसाफिर बैठा अपनी कविताओं में खरी-खरी कहने में यकीन रखते हैं. कभी विष्णु खरे ने उनको भारत का सर्वश्रेष्ठ दलित कवि था. उनके नए कविता संग्रह ‘विभीषण का दुःख’ से कुछ कविताएँ पढ़िए- मॉडरेटर
1.
सुख का दुःख
वह एक अदद दुःख को
चाहता था चूमना
इधर सुख की बारंबारता थी सघन इतनी
उसके जीवन में
कि एक दुखी इंसान की तरह परेशान था वह
सुख के बार-बार आ गले लगने से
2.
डर, देह और दिमाग
डरना
पहले दिमाग में आता है
फिर देह में
3.
काया
निडर की काया
कंचन की होती है
डरे की कांच
कंचन और कांच
दोनों पिघलते हैं
एक आकार पाने को
पाने को एक रूप!
4.
सच की मिर्ची
तय है कि राम कृष्ण झूठ है
अल्लाह ईश्वर झूठ है
सारे देवतावादी वितान झूठे फैले हैं
मगर
झूठ को झूठ कह तो
उन्हें सच की मिर्ची लगती है
5
जातमुखी मुकरी
वे मन मैले
शुद्धि पवित्रता के सिद्ध व्यापारी
अशुद्ध व्यवहार में पगे खिलाड़ी
भारी बसे उनमें
कथनी करनी का अंतर
राखे संग अपने कपट निरंतर टनटनाटन
क्या सखि बनिया, ना सखि पवित्तर बामन
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प्रकाशन: द मार्जिनलाइज्ड पब्लिकेशन
मूल्य- 130 रुपये
शुक्रिया प्रभात भाई ‘जानकी पुल’ के मंच से मेरे काव्य संग्रह से अपने ब्लॉग के पाठकों का परिचय कराने के लिए।