
ईरानी शार्ट फिल्म ‘फ्रोज़ेन रोज’ पर सैयद एस. तौहीद की टिप्पणी- मॉडरेटर
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इंसान दुनिया में जिस किसी को मोहब्बत में जान से ज्यादा अजीज बना लेता है परवरदिगार उसे उस जैसा बना दिया करता है. खुदा की दूसरी दुनिया के बाशिंदों को इंतज़ार करने वाली रूहें कहना चाहिए. इंसान की भी आखिरी ख्वाहिश शायद यह रहती होगी कि मर कर वहीं जाएगा जहां उसके अजीज सबकुछ छोड़ चले गए.आज के बाजरीकृत जहान में लोग मरने बाद जान-पहचान अथवा अजीज लोगों सका सामना करने से डरने लगे हों .लेकिन जिस्म फानी मिट जाने बाद रूह वहीँ जाएगी. खुदा सबकी सुनेगा व सबका इंसाफ करेगा .रूहानी मुहब्बत से जुड़े धागे फना होकर जुट जाएंगे. मरने बाद परवरदिगार दोनों को फिर से मिला देगा. खुदा किसी को बहुत जल्द अपने पास बुला कर गुजर चुके लोगों के आखिरी जहान में भेज देता है. रुक्याह के अब्बू जंग पर से वापस नहीं आए. मासूम बच्ची यह कबूल नहीं कर सकी कि उसके पिता अब कभी नहीं वापस आएंगे.
पिता व पुत्री के सुंदर रिश्ते पर आधारित The Frozen Rose रूहानी मुहब्बत की बेमिसाल कहानी कहती है.मर कर रूहों को एक होने का रुला देने वाला किस्सा बयान कर रही. जंग पर गए सिपाही अक्सर घरों का मुहं देख नहीं पाते. उनके बाद परिवार वालों की जिंदगी एक कठिन सफर की रहगुजर हो जाती है. रुक्याह को अपने अब्बू की वापसी का पूरा भरोसा था.
जंग पर जाने वाले सिपाहियों से भरी रेलगाडी जब कभी बस्ती से होकर गुजरती वहां `के बच्चे उनके लिए फूलों के गुच्छे लेकर आते.फूल से खुबसूरत बच्चे इन फूलों को कुछ रूपए के बदले फौजियों को बेच देते थे. फूलवाले बच्चों की कतार में रुक्याह सबसे आखिर में खड़ी रहा करती थी.रेलगाड़ी आने पर यह बच्चे अपने अपने गुच्छों के साथ इंतजार में वहीँ रहते. रेल रुकती तो खिडकियों पर यह सिपाही आते जिनके लिए फूलों के गुच्छे स्वागत कर रहे थे .
फूलवाले बच्चे उन्हें रंग बिरंगे फूल दे दिया करते .जितनी देर तक बाक़ी बच्चे वहां से चले नहीं जाते रुक्याह अपनी जगह पर खड़ी रहती.इन फौजियों में उसे अपने पिता की तलाश रहा करती थी. उसके अब्बू एक दिन वापस आएंगे इसी उम्मीद पर अरसे से फूल के गुच्छे लेकर आती रही. वो जंग पर जा रहे सिपाहियों को फूल जरुर देती लेकिन उसके बदले रुपए नहीं लेती थी. कुछ मीठा लेकर ही जहेनसीब हो जाया करती.
कहा जाता था कि जो कोई सिपाही रुक्याह से फूल लेता उसे जंग में शहीद होना नसीब होता. जंग पर जा रहे इन लोगों में जब उसे अब्बू नहीं नजर आते तो आखिर में किसी एक को फूल भेंट दे दिया करती. उससे मिले फूलों के सामने खरीदे फूल मायने नहीं रखते थे.वो जमीन फ़ेंक दिए जाते. जंग पर जा रहे इन मतवालों से उस प्यारी लड़की से एक प्रेरक नाता था. वो चाहती थी कि उसके अब्बू भी जंग पर बार बार जाएं लेकिन वो अब जिन्दा नहीं थे. वो इस कडवी हकीकत को दो बरस बाद भी कुबूल नहीं कर सकी..इसलिए अब भी गुच्छे लेकर रेलगाड़ी आने के वक्त पर चली आती. उसका दिल अपने प्यारे अब्बू से एकात्म कर चुका था. अम्मी के बताने पर भी उसका दिल उस तरफ से मुडा नहीं. एक मर्तबा वो आधी रात भी फूल लेकर रेलगाड़ी के इंतज़ार में जाने की जिद करने लगी . अम्मी को जब खबर लगी तो बहुत समझाया कि उसके अब्बू जंग में शहीद हो गए…खुदा की दूसरी दुनिया में चले गए. अब उनकी कभी नहीं वापसी होगी. अम्मी की बातों ने मासूम की आखों में आंसू भर दिए .
मां के मजबूर दिल को बिटिया की जिद माननी पड़ी .बर्फबारी होने वाली थी इसलिए सिर्फ आधे घंटे तक बाहर रहने का वक्त दिया. वो घर की खिड़की से बिटिया को देख रही थी ..बदकिस्मती से अम्मी की आंख लग गयी…इस बीच काफी वक्त गुजर चुका था. बाहर में बहुत तेज़ बर्फबारी हो रही थी. मां को होश आया…बिटिया की लिए पटरियों की तरफ बेदम दौड़ पड़ी. करीब पहुंच ऐसा कुछ देखा कि जिसे एक मां जीते जी कभी देखना तसव्वुर नहीं करेगी…. गुलाब सी नाजुक व खुबसूरत रुक्याह अब्बू की याद में शहीद हो चुकी थी..हमेशा के लिए अब्बू के पास चली गयी ! बर्फ की चादर में लिपटा एक गुलाब दुनिया से कूच कर गया…! खुदा ने दो लोगों को हमेशा के लिए मिला दिया…मगर किस तरह! परवरदिगार अब किसी को वक्त से पहले ना बुलाए शायद .