रेडियो की प्रसिद्ध एंकर ममता सिंह की कहानियां हम सब पढ़ते रहे हैं. हाल में ही राजपाल एंड संज प्रकाशन से उनकी कहानियों का पहला संकलन आया है ‘राग मारवा’, उसी को सन्दर्भ बनाकर युवा लेखक पीयूष द्विवेदी ने उनसे एक बातचीत की. आपके लिए- मॉडरेटर
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सवाल – आपका पहला कहानी-संग्रह ‘राग मारवा’ अभी ही आया है, इसकी कहानियों के विषय में कुछ बताइये।
ममता – कहानी संग्रह ‘राग मारवा’ में कुल 11 कहानियां हैं। सभी अलग विषय की कहानियां हैं….जैसे कहानी ‘आखिरी कॉन्ट्रैक्ट’ सांप्रदायिकता और घर की तलाश पर आधारित है। उस कहानी में इस बात का तनाव है कि एक हिंदू लड़की मुस्लिम लड़के से शादी करती है। उसे एक अच्छी सोसाइटी में घर इसलिए नहीं मिलता है क्योंकि वो एक मुसलमान की बीवी है। ‘पहल’ में छपी इस कहानी का पाठ भी मैंने मुंबई में एक आयोजन में किया था। ‘राग मारवा’ एक रिटायर्ड गायिका के संघर्ष की दास्तान है, जिसे उसके परिवार वाले पैसे कमाने की मशीन बना डालते हैं। इसी तरह “गुलाबी दुपट्टे वाली औरत” कहानी एक स्त्री के कोख के कारोबार पर आधारित है। कहानी ‘जनरल टिकट’ एक ऐसी महत्वाकांक्षी लड़की की कहानी है, जिसके आगे बढ़ने में परिवार तमाम तरह के विरोध करता है। उसके बावजूद वह अपनी मंजिल तक पहुंचती है। इसी तरह अन्य कहानियां भी हैं जो समाज के कुछ ज्वलंत मुद्दों को उकेरती हैं।
सवाल – आप लिख काफी समय से रही हैं, सो ऐसा नहीं लगता कि पहली किताब आने में कुछ देर हो गयी?
ममता – मुझे लगता है हर चीज का एक समय निर्धारित होता है। मेरे पास लिखने के अलावा गृहस्थी और दफ्तर की भी जिम्मेदारियां हैं, इसलिए कहानियों का अंबार नहीं लगा पाई।
सवाल – आप रेडियो की एक लोकप्रिय उद्घोषिका हैं, कार्य के दायित्वों के बीच लेखन के लिए समय निकालना कैसे हो पाता है?
ममता – बहुत चुनौतीपूर्ण होता है वक्त निकाल पाना। वक्त निकालती नहीं बल्कि वक्त चुराती हूँ। फिर होता है लिखना। जिस वक्त सब लोग सो रहे होते हैं, मेरी कलम चल रही होती है, जब लोग बैठकर हंसी-ठट्ठे के साथ गपशप कर रहे होते हैं…..मैं उस वक्त लिख रही होती हूँ। राह चलते, गाना सुनते हुए, किसी से बात करते हुए, कहीं किसी पर्यटन स्थल पर वग़ैरह….. इन तमाम हालात में अपनी कहानी के किरदार को जीती और पकाती हूँ और जैसे ही थोड़ा वक्त मिलता है, वैसे ही फटाफट लिख डालती हूँ कहानी। कहानी कई टुकड़ों में पूरी होती है, एक सिटिंग में लिखना मेरे लिए मुमकिन नहीं होता। उसके बाद उसमें सुधार करना और अगले ड्राफ्ट तैयार करना। कुल मिलाकर बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।
सवाल – आपकी कहानियों की प्रेरणा?
ममता – रोज़मर्रा की ज़िंदगी से मिलती है। समाज की कुछ घटनाओं से भी, अपने आस पास के लोगों के जीवन के यथार्थ से भी। आंखें खुली रखनी पड़ती हैं बस।
सवाल – आपकी कहानियों के विषय बड़े यथार्थपरक लगते हैं, लेकिन इनमें कल्पना और सच्चाई के बीच का अनुपात कितना है?
ममता – हर कहानी यूं तो काल्पनिक होती है तभी तो उसे ‘फिक्शन’ कहते हैं ना …लेकिन कहानी सिर्फ कल्पना के धरातल पर बुनी हो, उसमें यथार्थ का पुट ना हो तो कहानी आपको उतनी अपील नहीं करती। उतनी अपनी-सी नहीं लगती। इसलिए कल्पना के साथ-साथ यथार्थ का पुट होना बहुत जरूरी है। जो हमने देखा हो, भोगा हो – वो हो तो कहानी दमदार हो जाती है। और मैं कल्पना, संवेदना और यथार्थ में सामंजस्य बिठाने की कोशिश करती हूँ।
सवाल – आपकी कहानी है – ‘आख़िरी कॉन्ट्रैक्ट’। इसमें आपने मुस्लिमों को घर न मिलने की कठिनाई को रेखांकित किया है, किन्तु क्या आपको नहीं लगता कि इस संकट के लिए काफी हद तक मुसलमान ही जिम्मेदार हैं?
ममता – मुझे नहीं लगता किसी संकट के लिए कोई क़ौम जिम्मेदार होती है। किसी मुसीबत के पीछे किसी संप्रदाय का हाथ होता है। हर संप्रदाय में, हर जाति-धर्म में, हर तरह के लोग होते हैं – बुरे और अच्छे ….कुछ गिने-चुने व्यक्तियों के कारण पूरी कौम को बदनाम करना ठीक नहीं होता। असल में कौम की बजाय प्रवृत्तियों की शिनाख्त ज़रूरी है। एक व्यक्ति जो ना मुस्लिम है, ना हिंदू है, ना सिख है, ना ईसाई है, वह सिर्फ एक बेहतर इंसान है। उसे घर खरीदने में किस तरह की जद्दोजहद करनी होती है– यह कहानी ‘आखिरी कॉन्ट्रैक्ट’ का मर्म है। मैंने दिखाया है कि किस तरह सांप्रदायिकता की आग किसी के सपनों को कुचल डालती है।
सवाल – आपके प्रिय लेखक और लेखिकाएं कौन हैं? नए और पुराने सभी तरह के नाम बता सकती हैं।
ममता – सबसे मुश्किल सवाल यही है, किसका नाम लूं और किसका छोड़ूँ …पुराने दौर के तमाम कालजयी लेखक-लेखिकाएं हैं, जिन्हें पढ़-पढ़ कर हमारा बचपन गुजरा है, वह सब हमारे प्रिय लेखक रहे हैं। कबीर सूर तुलसी जायसी, इन्हें स्कूल के पाठ्यक्रम में पढ़ा। जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद, निराला, महादेवी वर्मा, अज्ञेय, निर्मल वर्मा, इसके बाद मन्नू भंडारी, कृष्णा सोबती, ममता कालिया, मृदुला गर्ग, अलका सरावगी, नासिरा शर्मा, धीरेंद्र अस्थाना, उदय प्रकाश, अखिलेश, प्रियंवद….बहुत लंबी फेहरिश्त है। सबके नाम यहां कैसे लूं। पर हां बहुत पढ़ती हूँ- सबको पढ़ती हूँ।
सवाल – कोई ऐसे लेखक-लेखिका जिनके लेखन ने आपको प्रेरित या प्रभावित किया हो?
ममता – निर्मल वर्मा को जब भी पढ़ती हूँ तो चकित होती हूँ। उनका लेखन हमेशा तिलिस्मी सा लगता है। उनके कुछ शब्द और वाक्यों को नोटबुक में नोट भी कर लेती हूँ….. दुबारा पढ़ने के लिए। निर्मल वर्मा जब पहाड़ों का ज़िक्र करते हैं तो भीतर बर्फ की सी ठंडक महसूस होती है, इतना ज्यादा वह प्रभावित करते हैं। उनके शब्द-चित्र को हम बाक़ायदा जीते है। उनकी कहानियों के किरदार के साथ साथ हम हंसते और रोते हैं। ये एक लेखक की बड़ी सफलता है। बाक़ी सभी वरिष्ठ लेखकों को पढ़ कर कुछ न कुछ सीखती हूँ।