नामवर सिंह के निधन पर श्रद्धांजलि स्वरुप यह लेख नॉर्वे प्रवासी डॉक्टर-लेखक प्रवीण झा ने लिखा है- मॉडरेटर
================
नामवर सिंह जी पर लिखने बैठा तो घिघ्घी बँध गयी। यूँ हज़ार–दो हज़ार शब्द लिख डालना कोई बड़ी बात नहीं; लेकिन यह शब्द लिखे किनके लिए जा रहे हैं? शब्दों के पारखी के लिए। वह तो एक–एक शब्द को, वाक्य–संयोजन को, लेखन–विधा को, लेखन–काल को, इस पूरी ‘एनाटॉमी’ को परखेंगे। और फिर कहेंगे कि तुमने तो बिना पढ़े–जाने ही लिख डाला। नामवर सिंह को तुम कितना जानते हो? कितना पढ़ा? कितना सुना? बस तस्वीर देखी और भीड़ में श्रद्धांजलि देने आ गए? इसी पशो–पेश में सिकुड़ कर बैठ गया। फिर लगा कि अब भी कुछ नहीं बिगड़ा। नामवर सिंह को अब भी तो जाना जा सकता है। वह एक व्यक्ति से अधिक प्रतीक भी तो थे। यह नाम सुनते ही एक शब्द तो मन में कौंधता है– ‘लिटररी क्रिटिसिज़्म’। वांग्मय की भाषा अंग्रेज़ी न जाने कब बन गयी, कि पहले ऐसे मौकों पर अंग्रेज़ी शब्द ही मन में आता है।
यह बारीक अंतर है कि हम साहित्य को अपने स्वाद के हिसाब से चखते हैं या उसकी समालोचना करते हैं। जाहिर है कि एक बड़ा वर्ग तो साहित्य पर एक रोमांटिक नजर रखते हैं, लेकिन एक छोटा प्रतिशत तो जरूर होगा जो साहित्य पर विद्वतापूर्ण नजर भी रखता होगा। इस मंथन में ही कभी हजारी प्रसाद द्विवेदी हुए होंगे, तो कभी उसी घराने में नामवर सिंह हुए होंगे। आगे भी और लोग होंगे। कई लोगों को कहते सुना कि अगले नामवर सिंह नहीं होंगे। इस निराशा के साथ तो मैं श्रद्धांजलि न दे पाऊँगा। अगले नामवर सिंह जरूर होंगे। अभी शैशवावस्था में हों, और बात है।
दो पल के लिए अगर मैं ही इस कल्पनालोक में प्रवेश कर जाऊँ कि अगला नामवर सिंह मैं ही हो जाऊँ तो? मेरी उम्र में वह क्या करते होंगे? अब इस ‘मैं’ में इन पंक्तियों के लेखक और पाठक सभी सम्मिलित हो जाएँ और अपनी–अपनी कल्पनालोक बनाएँ। साठ–सत्तर का दशक होगा, चे गुवैरा की तस्वीरें कॉलेज़ों और छात्रावासों में लोकप्रिय होंगी। वामपंथ और समाजवाद का कॉकटेल साहित्य में भी उमड़ कर आता ही होगा। मेज पर उन किताबों के ढेर में कहीं खोया, अपनी कलम से कुछ निष्कर्ष लिख रहा होऊँगा। मनन कर रहा होऊँगा। पुराने प्रयोगों की खामियाँ निकाल रहा होऊँगा, और उन्हें यथा–तथा खारिज भी कर रहा होऊँगा। साहित्य के नए प्रतिमान गढ़ रहा होऊँगा। यह बड़ा ही असहज और वैज्ञानिक कार्य है। सैकड़ों लेख, कविताएँ, गल्प पढ़ लिए, उसे आत्मसात कर लिया और फिर उसकी एक समग्र दृष्टि बनाई। इससे बेहतर यह नहीं कि सैकड़ों कहानियाँ ही लिख लेते, खूब छपते, खूब पढ़े जाते? आखिर इस ‘लिटररी क्रिटिसिज़्म’ की जरूरत ही क्या है? इससे भाषा को मिला क्या?
समग्र (होलिस्टिक) दृष्टि की जरूरत सदा रहेगी ही। वरना भाषा भटक जाएगी। लोग कहेंगे कि पाठक ने फलाँ गद्य या कविता पढ़ ली, समीक्षा कर दी। एक नहीं, सौ पाठकों ने कर दी। अब इससे अधिक क्या समालोचना होगी? लेकिन यह तो एकल विश्लेषण है। एक दौर में कई तरह के साहित्य लिखे गए, पढ़े गए, समीक्षा किए गए; लेकिन अगर उनसे कोई पैटर्न बनता नहीं दिखा तो वह बिखर जाएँगे। या दिशा–हीन हो जाएँगे। आज के दौर में जब ‘नई वाली हिन्दी’ जैसे शब्द आए, या ‘हिंग्लिश’ लेखन आया, अथवा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधुनिक रूप–रेखा में पात्र गढ़े जाने लगे तो एक पैटर्न तो बनता दिख रहा है। लेकिन उनका वैज्ञानिक विश्लेषण नहीं हो रहा। उनकी एक सामूहिक व्याख्या नहीं हो रही। या हो भी रही है तो लेखकों और विश्लेषकों के मध्य मौखिक आयोजनों में हो रही है, जिसका निष्कर्ष समग्र रूप से नहीं रखा जा रहा।
एक और बात कि अब लोकतांत्रिक समाजवादी संरचना या जनकल्याण की चक्की पूँजीवाद से चलती है। और यह साहित्य में भी कमो–बेश प्रदर्शित होगा ही। इसलिए नयी पीढ़ी के नामवर सिंह नयी संरचना में ही जन्म लेंगे। एक ‘कोर्स करेक्शन’ या दिशा दिखाने की जरूरत तो अभी निश्चित तौर पर है, जो अंग्रेज़ी या अन्य भाषाओं में नियमित होती रही है। और साहित्य के नव–माध्यमों (सोशल मीडिया आदि) के आने से नए प्रयोग भी हो रहे हैं। विश्लेषण के माध्यम भी बढ़े हैं और समालोचना का वैश्विक रूप भी बदला है। इसलिए कहा कि नामवर सिंह एक व्यक्ति नहीं, एक प्रतीक या आवश्यक तत्व हैं जिनके बिना भाषा भटक जाएगी। मुझे विश्वास है कि हिन्दी के नामवर सिंह अवश्य लौटेंगे।
=================
दुर्लभ किताबों के PDF के लिए जानकी पुल को telegram पर सब्सक्राइब करें
5 comments
Pingback: buy hacked preloaded debit cards
Pingback: Online medicatie kopen zonder recept bij het beste Benu apotheek alternatief in Amsterdam Rotterdam Utrecht Den Haag Eindhoven Groningen Tilburg Almere Breda Nijmegen Noord-Holland Zuid-Holland Noord-Brabant Limburg Zeeland Online medicatie kopen zonder r
Pingback: find out this here
Pingback: https://www.kulturideaula.ch/fileadmin/images/Team/index.html
Pingback: บอลยูโร 2024