हिमांशु त्यागी को मैं कॉलेज के दिनों से ही एक अच्छे संवेदनशील अभिनेता के रूप में जानता रहा हूँ। उन्होंने जेएनयू से इतिहास में शोध किया है और एक नागरिक के नाते से स्पष्टता से अपने विचार रखते हैं। आज उनकी कविता पढ़िए- मॉडरेटर
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नहीं
अब ये बातें नहीं होंगी
कि आज किसने किसको मारा
क्यों मारा …किसके नाम पर मारा
और ये पागल भीड़ क्यों अचानक उठ खड़ी हुई है
लोगों को मारने के लिए
क्योंकि मरना मारना नया नहीं है
बात ये होगी
कि उन्होंने भी तो मारा
तो अब ये जो हो रहा है वो कहाँ कुछ गलत है
सही तो है सब
तो मरने दो …मारने दो …
अब मरने मारने की बात भी मत करो
क्योंकि जब उन्होंने मारा
तो कहाँ थे तुम
अब हम मार रहे हैं …
तो क्यों बोल रहे हो …
और बोलोगे
तो हम चुप कहाँ रहेंगे …
हम तुम्हारी आवाज़ को दबा देंगे
साबित कर देंगे
अन्याय हम नहीं
तुम कर रहे हो
ये बोल कर
कि नफरत के बोल बोलने से कभी कुछ बोलने सुनने को कहाँ बाकी रहेगा
बस खून बहेगा
उसी के तो प्यासे हैं हम
इतने सालो से
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