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धर्म या धर्मग्रन्थ गलत नहीं होता बल्कि उसकी व्याख्याएं गलत होती हैं

पाकिस्तान के लेखक अकबर आगा के उपन्यास ‘द फ़तवा गर्ल’ पर यह टिप्पणी लिखी है तेज़पुर विश्वविद्यालय, असम की शोध छात्रा प्रीति प्रकाश ने- मॉडरेटर

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जिन्दगी में बाज़ दफा ऐसा होता है कि कोई बेशकीमती सी चीज अनायास ही हाथ लग जाती है| “ द फतवा गर्ल” किताब मुझे यूं ही अनायास मिल गयी| लाइब्रेरी में किताबें ढूंढते ढूँढते एक किताब के कवर पर एक तस्वीर दिखी – किसी लडकी के टुकड़े टुकड़े टूटने की तस्वीर| किताब पर नाम दर्ज था- “ द फतवा गर्ल”| किताब अंग्रेजी भाषा में लिखी गयी है| लेखक- अकबर आगा है| अकबर आगा ने पकिस्तान विदेश सेवा में काम किया है और मेक्सिको में कुछ वर्षो तक अध्यापन भी किया है| कुछ नया, एक नए नजरिये से देखने की ख्वाहिश ने मुझे मजबूर किया कि मैं उस किताब को पढूं|
द फतवा गर्ल” अमीना की कहानी है| अमीना जिसमे वो तमाम खूबियाँ हैं जिसकी उम्मीद किसी पढी लिखी और होनहार मुसलमान लडकी से की जा सकती है| वो तरक्कीपसंद है तो तहबीजदार और संजीदा भी | अमीना मोटर साइकिल चलाना सीखती है, वाक् कुशल है, देश दुनिया के हालात से वाकिफ है और बेहतरी की कोशिश भी करती है| अमीना, पाकिस्तान में होने वाले आत्मघाती हमलो से परेशान है| उसे महसूस होता है कि जेहाद के नाम पर लोगो को बरगलाया जाता है और उनसे वो नाजायज काम कराये जाते हैं जो कुफ्र है| वो एक तरीका ढूंढती है कि अगर किसी तरह इमाम को राजी कर लिया जाये जो “suiside bombing” के खिलाफ फतवा जारी कर दे तो ऐसे हमले रुक जायेंगे| इसी कोशिश के लिए अमीना को एक नाम मिलता है – फतवा गर्ल| फतवा याने वो हुक्म जो इस्लाम से जुड़े किसी मसले पर कुरआन और हदीस की रोशनी में जारी किया जाता है| पैगम्बर मोहम्मद ने इस्लाम के हिसाब से जिस तरह से अपना जीवन व्यतीत किया उसकी जो प्रमाणिक मिसालें हैं उन्हें हदीस कहते हैं|
कहते हैं धर्म या धर्मग्रन्थ गलत नहीं होता बल्कि उसकी व्याख्याएं गलत होती है| अमीना उस गलत व्याख्या को ठीक करने की कोशिश करती है पर बुरी तरह असफल होती है| पूरा उपन्यास सही और गलत के बीच चुनाव के ताने बाने के बीच बुना गया है| अंत कुछ ऐसा होता है कि कभी “ आत्मघाती हमलो” के खिलाफ फतवे जारी करवाने की कोशिश करने वाली अमीना खुद ऐसा उलझती है कि ऐसी ही एक घटना को अंजाम देती है और मर जाती है| उपन्यास में अमीना का मरना कई सवाल खड़े करता है| ये सवाल मजहब पर हैं, जेहाद पर है, शिया सुन्नी मसले पर है, इस्लाम में बूरी तरह से घर कर चूँकि बुराइयों पर है और सबसे बढ़कर इंसान होने की वाजिब वजह पर है| उमर जो इस उपन्यास में कथा का सूत्रधार है सुन्नी मुसलमान है और इसलिए तमाम काबिलियित और आपसी दोस्ती के बावजूद शिया मुसलमान अमीना से निकाह नहीं कर सकता| लेकिन रफ़ी जिससे अमीना निकाह करती है वह तो कुछ और ही निकलता है| कहानी में पकिस्तान द्वारा किया गया नाभिकीय परीक्षण है, अमेरिका के प्रति पाकिस्तानी अवाम की बेवजह की दिलचस्पी है, तालिबान और अलकायदा की करतूते हैं, और इन सबके बीच आधुनिकता की तरफ धीरे धीरे कदम बढ़ा रहा युवा वर्ग है|
उपन्यास में एक जगह पर उमर कहता है कि आज तक हम एक ढंग की चूहेदानी नहीं बना पाये लेकिन एटॉमिक बम बनाकर अपनी पीठ थपथपाते हैं| हमारे घरो में पानी नहीं है, हम एक कीबोर्ड या माउस तक नहीं बना पाते लेकिन ये हमारे लिए कोई समस्या नहीं है| भारत की तरफ हमारी नफरत हमें अमन से जंग की तरफ, खुशहाली से गरीबी की तरफ मोडती है पर हमें इसका जरा भी अफ़सोस नहीं की हमारे बजट का एक बड़ा हिस्सा हथियारों, बमों और गोलियों पर खर्च हो रहा है|
कुछ ऐसे ही ख्यालात अमीना के भी हैं| वो अक्सर कहती है कि जिस आसानी से हम आँखे मूंदे अपने धर्म को मानते है अगर उतनी आसानी से खुद की और खुद के करतूतों की खिल्ली उड़ा पाते तो तस्वीर कुछ दूसरी ही होती| आज ह्यूमर को धर्म से ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत है|

किताब में कुरआन की उन आयतों का जिक्र है जिसे अगर माना जाये तो दुनिया बेहतरीन हो जाये| मसलन ज्ञान प्राप्त करो, भले ही उसके लिए चीन जाना पड़े|
जो अनाथ हैं उनके लिए दया दिखाओ|
सारी फ़तेह से बड़ी होती है गुस्से पर फ़तेह हासिल करना|
जानवरों के प्रति भी दया रखो|
किसी लीडर के लिए ये ज्यादा बेहतर है की मुआफी देने वो गलती करे बजाय इसके कि वो सजा देने में गलती करे|
पर अच्छी बात यह है कि मजहब पर इतनी चर्चा के बाद भी किताब कहीं से बोझिल नहीं प्रतीत होती| पाठक को बांधे रखती है और मजबूर करती है कि वो कई जरूरी काम भी नजरअंदाज करके पढना पसंद करता है| किताब के अंत में अमीना, उमर के लिए एक सन्देश भेजती है जो कुछ इस तरह है-
“ If there is one fatwa that should be heard from every mosque and church, every temple and synagogue, it should be this: love one another as God has loved you”
“यदि कोई एक ऐसा फतवा हो जिसे हर मस्जिद हर गिरजे से जारी किया जाए तो वह होना चाहिए- “ एक दूसरे से मोहब्बत करो जैसे खुदा ने तुमसे किया है|” यह उपन्यास की आखिरी पंक्ति है लेकिन पूरा उपन्यास इसी एक भाव को बार बार व्यक्त करता है|”
यह वो सन्देश है जिसकी जरूरत सिर्फ उमर को नहीं बल्कि उन तमाम लोगो को है जो आज तक राजनीति और मजहब के मकडजाल में फंसे हुए खुद के खिलाफ खड़े हो जाते हैं|
एक और बात जो इस किताब को खास बनाती है वो है विवाह के बाद अमीना के जीवन में आने वाला बदलाव| कैसे एक आजादखयाल और बेबाक जिन्दगी जीने वाली अमीना धीरे धीरे खुद को मिटाती जाती है यह पाठक को दुखी तो करता है साथ ही उस प्रक्रिया का भी एहसास कराता है जिसमे शादी जीवन का हिस्सा नहीं बल्कि पूरा जीवन बन जाता है|
भाषा की दृष्टि से लेखक की लेखनी बड़ी सशक्त है| रफ़ी के घर में मकड़े के जाल से भरा कमरा सिर्फ एक कमरा नहीं रह जाता बल्कि मजहब का वह घिनौना रूप बन जाता है जिसके आगोश में सियासत अपने दांव खेलती है| चूहेदानी शब्द पाकिस्तानी आतंकवाद निरोधी कार्यक्रम को दर्शाता है और ऐसे तमाम प्रयोग लेखक ने किये हैं| लेखक ने विदेश सेवा में काम किया है इसका असर घटनाओं के प्रस्तुतिकरण में नजर आता है| विदेशी मसलो का पूरी वास्तविकता और स्पष्टता के साथ जिक्र मिलता है|
पूरी किताब एक नयी दुनिया से पाठक को रूबरू कराती है| एक ऐसी दुनिया जिसमे वो जी तो रहा है लेकिन जिसे वो ठीक से जानता भी नहीं| मजहब, सियासत, मोहब्बत, हकीकत जैसी तमाम बातें इस किताब में हैं जो इसे पठनीय बनाती है|

 
      

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