Home / Featured / विहाग वैभव की कविता ‘चाय पर शत्रु -सैनिक’

विहाग वैभव की कविता ‘चाय पर शत्रु -सैनिक’

2018 का भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार युवा कवि विहाग वैभव को देने की घोषणा हुई है। उनकी वह पुरस्कृत कविता यहाँ प्रस्तुत है।यह निर्णय इस वर्ष के निर्णायक प्रतिष्ठित कवि अरुण कमल ने लिया है। उन्होंने कहा है कि यह कविता ‘वृत्तान्त शैली का व्यवहार करती हुई दो पात्रों के निजी सुख-सन्ताप की मार्फ़त युद्धोन्माद, घृणा और अनर्गल हिंसा की भर्त्सना करती है तथा मनुष्य होने और बने रहने की पवित्र आकांक्षा को रेखांकित करती है।’
श्री विहाग वैभव बनारस में शोध छात्र है तथा अभी इनका कोई कविता संग्रह प्रकाशित नहीं है, लेकिन अनेक पत्र, पत्रिकाओं में अनेक कविताएँ प्रकाशित हैं।
पुरस्कार रज़ा फ़ाउण्डेशन द्वारा आयोजित वार्षिक समारोह ‘युवा-2019’ के अवसर पर 11 अक्टूबर-2019 को प्रदान किया जायेगा।
चाय पर शत्रु -सैनिक
 
_______________________
 
 
उस शाम हमारे बीच किसी युद्ध का रिश्ता नही था
मैंने उसे पुकार दिया –
आओ भीतर चले आओ बेधड़क
अपनी बंदूक और असलहे वहीं बाहर रख दो
आस-पड़ोस के बच्चे खेलेंगें उससे
यह बंदूकों के भविष्य के लिए अच्छा होगा
 
 
वह एक बहादुर सैनिक की तरह
मेरे सामने की कुर्सी पर आ बैठा
और मेरे आग्रह पर होंठों को चाय का स्वाद भेंट किया
 
 
मैंने कहा –
कहो कहाँ से शुरुआत करें ?
 
 
उसने एक गहरी साँस ली , जैसे वह बेहद थका हुआ हो
और बोला – उसके बारे में कुछ बताओ
 
 
मैंने उसके चेहरे पर एक भय लटका हुआ पाया
पर नजरअंदाज किया और बोला –
 
 
उसका नाम समसारा है
उसकी बातें मजबूत इरादों से भरी होती हैं
उसकी आँखों में महान करुणा का अथाह जल छलकता रहता है
जब भी मैं उसे देखता हूँ
मुझे अपने पेशे से घृणा होने लगती है
 
 
वह जिंदगी के हर लम्हे में इतनी मुलायम होती है कि
जब भी धूप भरे छत पर वह निकल जाती है नंगे पाँव
तो सूरज को गुदगुदी होने लगती है
धूप खिलखिलाने लगता है
वह दुनिया की सबसे खूबसूरत पत्नियों में से एक है
 
 
मैंने उससे पलट पूछा
और तुम्हारी अपनी के बारे में कुछ बताओ ..
वह अचकचा सा गया और उदास भी हुआ
उसने कुछ शब्दों को जोड़ने की कोशिश की –
 
 
मैं उसका नाम नहीं लेना चाहता
वह बेहद बेहूदा औरत है और बदचलन भी
जीवन का दूसरा युद्ध जीतकर जब मैं घर लौटा था
तब मैंनें पाया कि मैं उसे हार गया हूँ
वह किसी अनजाने मर्द की बाँहों में थी
यह दृश्य देखकर मेरे जंग के घाव में अचानक दर्द उठने लगा
मैं हारा हुआ और हताश महसूस करने लगा
मेरी आत्मा किसी अदृश्य आग में झुलसने लगी
युद्ध अचानक मुझे अच्छा लगने लगा था
 
 
मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और और बोला –
नहीं मेरे दुश्मन , ऐसे तो ठीक नहीं है
ऐसे तो वह बदचलन नहीं हो जाती
जैसे तुम्हारे सैनिक होने के लिए युद्ध जरूरी है
वैसे ही उसके स्त्री होने के लिए वह अनजाना लड़का
 
 
उसने मेरे तर्क के आगे समर्पण कर दिया
और किसी भारी दुख से सिर झुका लिया
 
 
मैंने विषय बदल दिया ताकि उसके सीने में
जो एक जहरीली गोली अभी घुसी है
उसका कोई काट मिले –
 
 
मैं तो विकल्पहीनता की राह चलते यहाँ पहुँचा
पर तुम सैनिक कैसे बने ?
क्या तुम बचपन से देशभक्त थे ?
 
 
वह इस मुलाकात में पहली बार हँसा
मेरे इस देशभक्त वाले प्रश्न पर
और स्मृतियों को टटोलते हुए बोला –
 
 
मैं एक रोज भूख से बेहाल अपने शहर में भटक रहा था
तभी उधर से कुछ सिपाही गुजरे
उन्होंने मुझे कुछ अच्छे खाने और पहनने का लालच दिया
और अपने साथ उठा ले गए
 
 
उन्होंने मुझे हत्या करने का प्रशिक्षण दिया
हत्यारा बनाया
हमला करने का प्रशिक्षण दिया
आततायी बनाया
उन्होनें बताया कि कैसे मैं तुम्हारे जैसे दुश्मनों का सिर
उनके धड़ से उतार लूँ
पर मेरा मन दया और करुणा से न भरने पाए
 
 
उन्होंने मेरे चेहरे पर खून पोत दिया
कहा कि यही तुम्हारी आत्मा का रंग है
मेरे कानों में हृदयविदारक चीख भर दी
कहा कि यही तुम्हारे कर्तव्यों की आवाज है
मेरी पुतलियों पर टाँग दिया लाशों से पटी युद्ध-भूमि
और कहा कि यही तुम्हारी आँखों का आदर्श दृश्य है
उन्होंने मुझे क्रूर होने में ही मेरे अस्तित्व की जानकारी दी
 
 
यह सब कहते हुए वह लगभग रो रहा था
आवाज में संयम लाते हुए उसने मुझसे पूछा –
और तुम किसके लिए लड़ते हो ?
 
 
मैं इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था
पर खुद को स्थिर और मजबूत करते हुए कहा –
 
 
हम दोनों अपने राजा की हवश के लिए लड़ते हैं
हम लड़ते हैं क्यों कि हमें लड़ना ही सिखाया गया है
हम लड़ते हैं कि लड़ना हमारा रोजगार है
 
 
उसने हल्की मुस्कान के साथ मेरी बात को पूरा किया –
दुनिया का हर सैनिक इसी लिए लड़ता है मेरे भाई
 
 
वह चाय के लिए शुक्रिया कहते हुए उठा
और दरवाजे का रुख किया
उसे अपने बंदूक का खयाल न रहा
या शायद वह जानबूझकर वहाँ छोड़ गया
बच्चों के खिलौनों के लिए
बंदूकों के भविष्य के लिए
 
 
उसने आखिरी बार मुड़कर देखा तब मैंनें कहा –
मैं तुम्हें कल युद्ध में मार दूँगा
वह मुस्कुराया और जवाब दिया –
यही तो हमें सिखाया गया है ।
 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

विश्व रंगमंच दिवस विशेष

आज विश्व रंगमंच दिवस है। आज पढ़िए कवि-नाट्य समीक्षक मंजरी श्रीवास्तव का यह लेख जो …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *