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हृषीकेश सुलभ के शीघ्र प्रकाश्य उपन्यास ‘अग्निलीक’ का अंश

हृषीकेश सुलभ हिंदी के उन चुनिंदा लेखकों में हैं जो लोक और शास्त्र दोनों में सिद्ध हैं। उनका पहला उपन्यास ‘अग्निलीक’ प्रकाशित होने वाल है। यह उपन्यास घाघरा नदी के आसपास के गाँवों के इतिहास-वर्तमान की कथा के बहाने बिहार की बदलती जातीय-राजनीतिक संरचना की कथा कहता है। उनकी कहानियों की तरह ही इस उपन्यास की स्त्रियाँ बदलाव की धुरी की तरह। बहुत दिनों बाद एक ऐसा उपन्यास पढ़ा जो लगभग महाकाव्यात्मक संभावनाओं वाला है। फ़िलहाल आप अंश पढ़िए- मॉडरेटर

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सरपंच अकरम अंसारी झूमते-झामते अपने घर पहुँचे। रेशमा के अंतःपुर से निकले तो पैदल ही थे, पर निकलते ही देवली बाज़ार में किसी युवक की मोटर सायकिल के पीछे लद कर अपने दरवाज़े तक पहुँचे। उनके फूफीज़ाद भाई, दोस्त और ड्राइवर मुन्ने मियाँ बेचैनी से उनका इंतज़ार कर रहे थे। दाँत पीसते हुए मुन्ने बोले, ‘’सारे जवार में हड़कम्प मचा है और तुम मौज मनाने में लगे हो।‘’‘‘

     ‘‘’’आजकल हमारी मौज से तुम्हारी छाती बहुत फटने लगी है मुन्ने।‘’ सरपंच ने जवाब दिया।

     ‘‘’’जब गरदन में फँसरी लगेगी तब पता चलेगा तुमको!’’ मुन्ने कुढ़ते हुए बोले।

     ‘‘’’बहुत लबर-लबर बतियाने लगे हो आजकल।‘’ सरपंच अकरम अंसारी ने पहले तो मुन्ने मियाँ को डपट दिया। फिर हालात को समझ मुलायम हुए और बोले, ‘’हम कौन क्राइम किए हैं कि हमारे गरदन में फँसरी लगेगी? मडर का मामला है, इसमें सरपंच का कौन काम? पुलिस जाने और मुखिया जाने।‘’‘‘

     ‘‘ ‘’तुम ग़ायब रहोगे तो पुलिस को शक-शुबहा नहीं होगा?’’ मुन्ने मियाँ ने फिर उनकी कमान कसी।

     ‘‘ ‘’कानून कम पादो। समझे…..? पुलिस को काहे शक-शुबहा होगा?’’ सरपंच के क्रोध का पारा आसमान छू रहा था।

     ‘‘’’तुम्हारे पंचायत में मडर हो जाए और तुम घर-दुआर-गाँव छोड़ कर……’’‘‘

     ‘‘ ‘’अरे तो हम कौन दिल्ली-बम्बई गए थे।……बुला काहे नहीं लिये?’’ चीख़े अकरम अंसारी।

     ‘‘ ‘’तुमको पहिले ही कह चुके हैं कि हम उस मुँहज़ोर औरत के दुआर पर नहीं जाएँगे तुमको खोजने।‘’ मुन्ने आज अकरम अंसारी की बात सुनने को तैयार नहीं थे।

     ‘‘ ‘’हो गया…. हो गया। तकरीर मत झाड़ो। बंद करो अब। समझ रहे हैं तुम्हरा गुस्सा। तुमको असल चिढ़ मेरे वहाँ रहने से है।…. बकलोल नहीं हैं हम। सब बूझते-समझते हैं मुन्ने मियाँ। ऐसी ख़राब औरत भी ना है कि तुम उससे घिनाओ।‘’ अकरम अंसारी का मिज़ाज ऊपर-नीचे हो रहा था। वह अभी न तो मुन्ने की तक़रीर सुनना चाहते थे और न उनसे उलझना चाहते थे।

     ‘‘’’जहन्नुम है हरामज़ादी। औरत तो है ही नहीं। ……मरदमार है।‘’ मुन्ने बिफर उठे।

     ‘‘’’अब चलो भी। ………शमशेरवा साला रात में अकेले निकला काहे था!……..समझ में नहीं आ रहा कि ऐसी ग़लती किया काहे! ……..सुने हैं कि रेत दिया है सब।‘’ अकरम ने कहा।

     ‘‘’’ख़ाली रेता ही नहीं है, ……..दोनों हाथ का लुलुहा काट दिया है। …..एक गोड़ के जाँघ पर और दूसरे गोड़ के फिल्ली पर काटा है। फिल्ली लटक गई है। कसाई का करेजा भी काँप जाए ऐसे मारा है सालों ने।‘’‘मुन्ने मियाँ के चेहरे पर अवसाद और क्रोध की गहरी छायाएँ आ-जा रही थीं।

     ‘‘’’मुखिया थे?’’ पूछा सरपंच अकरम अंसारी ने।

     ‘‘’’मुखिया भी लापता हैं।‘’‘‘

     ‘‘’’पटना धर लिया होगा।‘’‘‘

     ‘‘‘’लोग कह रहे हैं कि परसों से ही नहीं हैं गाँव में। समधियाना गए हैं।‘’‘‘

     सरपंच अकरम अंसारी की बोलेरो गाड़ी जब मौक़ा-ए-वारदात पर पहुँची, पुलिस बजरंगी डोम का मनावन करने में लगी थी। साम-दाम-दंड-भेद सब अपना कर दारोगा थक चुका था, पर बजरंगी था कि बिना दारू के लाश उठाकर ठेला पर लादने को तैयार नहीं था और पुलिस एक पाई खरचने को तैयार नहीं थी। सरपंच के आते ही माहौल में थोड़ी हलचल हुई। दारोगा बोला, ‘’का महराज? आप लोग तो गजबे हैं! मुखिया-सरपंच दोनों फरार। वकुआ हुए बारह घन्टे बीत गए और आप लोगों का कोई पता-ठिकाना नहीं है। ……इस गाँव का डोम साला इतना मुँहजोर है कि पुलिस-परसासन की बात सुनने के लिए तैयार नहीं। पकड़ के ठेल दें तो आपही लोग करेजा कूटने लगिएगा कि सिडीयुल कास्ट पर पुलिस अत्याचार कर रही है।‘’‘‘

     ‘‘’’का रे बजरंगी? का बात है?’’ सरपंच ने बजरंगी से पूछा।

     ‘‘’’कुछो नहीं मलिकार। बिना पाउच मारे लहास उठेगा भला!’’‘‘

     ‘‘’’अरे! सरकारी काम दारू पी कर करेगा?’’ सरपंच ने आँखें तरेरते हुए कहा।

     ‘‘’’हजूर! हम कवनो सरकारी साहेब तो हैं नहीं कि आँख नचाए…., जीभ हिलाए, …….काम खतम। लहास उठाने के लिए कठकरेज बनना पड़ता है। ……बिना दारू के करेजा में बूता आयेगा भला!’’‘बजरंगी अपने रंग में था। जान रहा था कि ज़रा भी नरम हुआ कि चढ़ बैठेंगे सरपंच साहेब।

     ‘‘जाओ, अच्छेलाल के पास। हमारा नाम लेना। हवा-बयार माफ़िक जाओ और पाउच मार के लौटो।…. साले, चिखना के फेर में मत पड़ना।‘’ सरपंच ने रपेटते हुए कहा।

     हलवाही से छूटे बैल की तरह कलाली की ओर भागा बजरंगी।

     सरपंच अकरम अंसारी के पहुँचने के बाद देवली के लोग भी धीरे-धीरे  सिमट कर लाश के पास आ गए थे। इस बीच कोई जाकर सूरत पाँड़े के घर से प्लास्टिक वाली कुर्सियाँ उठा लाया था। थानेदार और सरपंच भुतहे पाकड़ वृक्ष के नीचे बैठे थे। लाश दो मरियल सिपाहियों, मनरौली और देवली के चौकीदारों के हवाले थी।

     ‘‘’’मुखियाजी नहीं दिख रहे हैं! …….ख़बर नहीं है क्या?’’ सरपंच अकरम अंसारी ने पूछा।

      ‘‘’’अब आप न बताइएगा कि मुखियाजी काहे नहीं हैं। उल्टे हमसे पूछ रहे हैं कि….’’‘‘ दारोगा खीझा हुआ था। ‘’सुन तो रहे हैं कि समधियाना गए हैं …..पटना।‘’‘‘

     ‘‘’’इत्तिला कीजिए….. कि जल्दी पहुँचें। …..इतना भारी कांड हुआ है। समधियाना में बैठे रहने से थोड़े काम चलेगा।‘’ सरपंच अकरम अंसारी दारोगा को भड़काने की कोशिश कर रहे थे।

     ‘‘इस पंचायत के सरपंच आप, …….इस पंचायत के आदमी का मडर, ……आ मुखिया को हम खोजते फिरें? ……वाह! गजबे बतियाते हैं आप भी। अरे भाई आप लोग पुलिस-परसासन को खोजिएगा….. कि हम खोजेंगे आपको?’’ दारोगा की खीझ बढ़ रही थी और आवाज़ ऊँची हो रही थी। ‘’आए हैं तब से मोबाइल टीप रहे हैं। माबाइलो बंद कर दिए हैं मुखियाजी।‘’‘‘

     बजरंगी जिस गति से अच्छेलाल साह की कलाली पर गया था, उसी गति से वापस लौटा। इस बीच सरपंच ने ठेला वापस करवा कर अपने गाँव मनरौली से ट्रॉली सहित ट्रैक्टर मँगवाया। ट्रैक्टर की ट्रॉली में पटरा लगा कर लाश चढ़ाने के लिए ढाल बनाई गई। पाउच-पान के बाद बजरंगी का कर्त्तव्यबोध उफ़ान पर था। उसने अकेले घसीट कर लाश को ट्रैक्टर की ट्रॉली में लाद दिया। दारोगा ने शमशेर साँई की लाश को सिपाहियों और चौकीदारों के साथ विदा किया।

     देवली से सीवान का रास्ता हसनपुरा थाना होकर ही गुज़रता था। लाश को हसनपुरा थाना होते हुए काग़ज़ी कार्रवाई के बाद सीवान ज़िला अस्पताल पोस्टमार्टम के लिए जाना था। दारोगा ख़ुद सरपंच अकरम अंसारी के साथ बोलेरो पर बैठकर निकला। देवली पार करते ही बोलेरो ने ट्रैक्टर को पीछे छोड़ दिया। दारोगा ने सरपंच से पूछा, ‘’का सरपंच साहेब, ……अकेले-अकेले महकिएगा का?’’‘‘

     ‘‘’’आप देवली में काहे नहीं बोले? नहवा देते।‘’‘सरपंच अकरम अंसारी ने कहा, ‘’अब राहे-घाटे आपको थोड़े नहवाएँगे!’’‘‘

     ‘‘ ‘’मानिकपुर बाज़ार पर रोकते हैं गाड़ी। ……करमासी में भी मिल जाएगा।‘’ मुन्ने उत्साहित हो रहे थे।

     ‘‘’’पीछे से आ रहा है सब लाश लेकर, ……देखेगा सब तो का कहेगा?’’ सरपंच हिचकिचाए।

     ‘‘’’कवन मादरचोद कहेगा? …….मार के खलड़ी उधेड़ देंगे। …….करमासी ठीक रहेगा। मानिकपुर के लिए रास्ता बदलना पड़ेगा और वहाँ तरह-तरह के लोगों का जुटान रहता है। ……करमासी में रुक के फटा-फट मिजाज बना लेते हैं।‘’ बेचैन हो रहे दारोगा ने कहा।

     बोलेरो को करमासी बाज़ार से आगे निकाल कर रोक दिया मुन्ने मियाँ ने। उतर कर कलाली तक गए। कलाली वाला दारोगा और सरपंच की सेवा में चखना के साथ दारू लिये भागता हुआ आया। बोलेरो में बैठे-बैठे दारोगा और सरपंच ने गला तर किया। ….मिज़ाज बनाया और ट्रैक्टर के आने से पहले निकल गए।

     इसके पहले कि अकरम अंसारी के साथ दारोगा और लाश लिये हुए ट्रैक्टर हसनपुरा थाना पहुँचता वहाँ लोगों का हुजूम जमा हो चुका था। आसपास के गाँवों – अरजल, मानिकपुर, मेरहीं, कोल्हुआँ, कुम्हरौता, मधवापुर, महुअल, हँड़सर आदि से लोगों का ताँता लगा हुआ था। ट्रैक्टर अभी पीछे था। भीड़ देख कर दारोगा का सिर चकरा गया। अकरम अंसारी का नशा भी हिरन हो गया। भीड़ के बीच से किसी ने ‘शमशेर साँई ज़िन्दाबाद’‘का नारा उछाला और जवाब में जब भीड़ ने ‘’ज़िन्दाबाद-ज़िन्दाबाद’‘ की हुंकार भरी, दारोगा की देह में झुरझुरी भर गई। इस हुंकार की सरपंच अकरम अंसारी पर अलग प्रतिक्रिया हुई। वह बोलेरो से कूद कर, उसकी छत पर चढ़ने लगे। पहली कोशिश में पाँव फिसला, पर तब तक ड्राइविंग सीट से उतर कर मुन्ने मियाँ उनके पास आ चुके थे। मुन्ने मियाँ ने फिसलते अकरम अंसारी को उनके पिछुआड़े हाथ लगा कर सम्भाल लिया और ठेल-ठाल कर ऊपर चढ़ा दिया।

     सरपंच अकरम अंसारी ने हवा में हाथ लहराया। अकरम अंसारी को देख भीड़ में जोश की लहर दौड़ गई। अब अकरम अंसारी नारे लगा रहे थे और भीड़ साथ दे रही थी। शमशेर साँई ज़िन्दाबाद के अलावा हत्यारों को तत्काल गिरफ़्तार करने, सीबीआई से जाँच करवाने, कलक्टर को बुलाने और मुआवज़े की माँग के लिए नारे लग रहे थे।

     लाश पहुँची। पुलिस के लिए भीड़ को सम्भालना कठिन हो रहा था। थानाध्यक्ष गरभू पाँड़े ने दाँत पीसते हुए दारोगा से पूछा, ‘’भोंसड़ी के, बारात लेकर आने के लिए पाँच घन्टे से देवली में डेरा डाले हुए थे का? ……..हरामी साले, का कर रहे थे देवली में?’’‘‘

     दारोगा ने मौन रह कर थानाध्यक्ष के आशीर्वाद को ग्रहण किया। पर ? थानाध्यक्ष गरभू पाँड़े बदहवासी में दारोगा पर बरस रहा था। ‘’हिंया हमारी फट रही है तब से और तुम तीरथ कर रहे थे? ……..देवली में गंगाजल पी रहे थे? महकते हुए आ रहे हो! …….साले दंगा हुआ तो अपने भी जाओगे और हमको भी रसातल में ले जाओगे। …….कटुआ सब के मामले में नौकरी जाते देर नहीं लगती है। अब उजबक की तरह मुँह मत ताको। कागज-पत्तर दुरुस्त करो और लाश ले कर भागो सीवान। …..ई साले अकरमवा को तो हम बाद में नाथेंगे।‘’‘‘

     दारोगा के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। थानाध्यक्ष गरभू पाँड़े की ख्याति से पूरा ज़िला पुलिस परिचित थी। वह अपने कल-बल-छल से केवल अपराधियों को ही नहीं, अपने मातहतों तक का ख़ून पीने में माहिर था। दारोगा ने जवाब देने से बेहतर समझा कन्नी काट जाना। वह पुलिसिया दस्तावेज़ की तैयारी में लग गया।

     भीड़ की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी और नारों का शोर आसमान छू रहा था।

     हसनपुरा थाना की क्षमता सीमित थी। सिपाहियों की संख्या इतनी नहीं थी कि अगर भीड़ आक्रामक हो जाए तो उस पर क़ाबू किया जा सके। थानाध्यक्ष गरभू पाँड़े को लग रहा था कि अभी भी मामला हाथ में है। थोड़ा कस-बल दिखाया जाए, ……..थोड़ी हिकमत लगाई जाए तो इस बला को टाला जा सकता है, सो वह जुगत सोचने लगा। इस बीच भीड़ ट्रैक्टर के आगे छाती ताने खड़ी थी कि चाहे जो हो जाए लाश को चिराईघर नहीं जाने  दिया जाएगा। सरपंच अकरम अंसारी बोलेरो की छत पर सवार नारे लगवा रहे थे। तमाम कोशिशों के बावजूद वे दारोगा की सुनने को तैयार नहीं थे।

     थानाध्यक्ष गरभू पाँड़े ने एक सिपाही से सरपंच अकरम अंसारी के लिए संदेश भिजवाया। सिपाही ने बोलेरो की छत पर चढ़कर अकरम अंसारी के कान में मुँह सटा कर संदेश दिया। अकरम अंसारी ने भीड़ से कहा, ‘’कलक्टर साहब का फोन आया है। ……..हमसे बतियाना चाह रहे हैं। सुन कर आते हैं हम।‘’‘‘

     सरपंच अकरम अंसारी बोलेरो से नीचे उतरे और थाने के सहन में गँसी भीड़ के बीच राह बनाते हुए बरामदे की ओर बढ़ने लगे। इस बीच मुन्ने मियाँ ने अकरम अंसारी की जगह ले ली थी। अब मुन्ने मियाँ नारे लगवा रहे थे।

     अकरम अंसारी थाने का बरामदा पार कर भीतर पहुँचे। दाँत पीसते हुए मुस्कुराने और मुस्कुराते हुए गालियाँ उचारने में माहिर थानाध्यक्ष गरभू पाँड़े ने कहा, ‘’आइए सरपंच साहेब! ……कवन कसूरे नाराज़ हैं भाई? …..आइए…….आइए।‘’‘‘

     गरभू पाँड़े ने अपनी कुर्सी छोड़ कर उनका स्वागत किया। अकरम अंसारी कुछ सोचें-बोलें इसके पहले गरभू पाँड़े ने उन्हें अपने घेरे में ले लिया। दोनों बाँहें ऐंठ कर पीठ पर चढ़ा दी। पूछा, ‘’डाँड़ में कवन हथियार खोंसे हो?’’‘‘

     ‘‘’’पिस्तौल…..।‘’ अकरम घिघियाए।

     थानाध्यक्ष गरभू पाँड़े ने उनका दायाँ हाथ छोड़ते हुए कहा, ‘’निकालो।‘’‘‘

     अकरम अंसारी ने पिस्तौल निकाल कर थानाध्यक्ष की मेज़ पर रख दिया। तीन सिपाही अकरम अंसारी के आगे दीवार की तरह तने थे। पीछे अकरम अंसारी की पीठ से छाती सटाए थानाध्यक्ष डटा हुआ था। थानाध्यक्ष गरभू पाँड़े के इशारे पर एक सिपाही आगे बढ़ा और काग़ज़ से पिस्तौल की नली पकड़ते हुए उठाकर मेज़ के ड्राअर में बंद कर दिया। थानाध्यक्ष बोला, ‘’दारोगा ने रिपोट किया है कि वकुआ वाली जगह पर तुम्हारा असलाहा बरामद हुआ है। ……जाओ, लाश को सीवान तक पहुँचवाना और सीवान से लाकर कफ़न-दफ़न करवाना अब तुम्हारी जिम्मेवारी है। सब ठीक-ठाक हो जाए तो कल आकर ले जाना अपना फुटफुटिया।‘’‘‘

     सरपंच अकरम अंसारी जब तक कुछ समझें-बूझें पुलिसिया चक्रव्युह में घिर चुके थे और उनके गले में थानाध्यक्ष गरभू पाँड़े ने फंदा डाल दिया था।

     सरपंच अकरम अंसारी अपने लुटे-पिटे चेहरे और काँपते पाँवों के साथ बाहर निकले। इस बार एक सिपाही ने उन्हें ठेल कर बोलेरो की छत के ऊपर चढ़ाया। उन्होंने भीड़ को बताया कि कलक्टर साहब ने वादा किया है कि चौबीस घन्टे के भीतर हत्यारों को गिरफ़्तार कर लिया जाएगा। मुआवज़े और सीबीआई जाँच के लिए ऊपर के अधिकारियों को, …….होम मिनिस्ट्री को लिखा जा रहा है। पटना से ख़ुद डीजीपी साहब दौरे पर आ रहे हैं।

     लाश सीवान ज़िला अस्पताल के लिए रवाना हुई।

     धीरे-धीरे भीड़ थाना परिसर से निकल कर हसनपुरा बाज़ार में पसर गई। धूप नहीं थी। आसमान में बादल थे। काले और जल के बोझ से भारी, ….झुके हुए बादल। साँझ होते-होते बादलों के टूट कर बरसने के आसार थे।

     सरपंच अकरम अंसारी के साथ बोलेरो की अगली सीट पर बैठा दारोगा बुदबुदा रहा था। वह थानाध्यक्ष गरभू पाँड़े की महतारी-बहिन की ऐसी-तैसी कर रहा था। बोलेरो की तेज़ रफ़्तार से पीछे छूटती सड़क के किनारे खड़े शीशम के पेड़ों की क़तार को अकरम अंसारी मौन निहार रहे थे। मुन्ने मियाँ समझ नहीं पा रहे थे कि माज़रा क्या है! आख़िर हुआ क्या कि सरपंच उफनते दूध के झाग की तरह पझा गए!

( राजकमल प्रकाशन से सद्य: प्रकाशि‍त। )

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कथाकार-नाटककार-नाट्यसमीक्षक हृषीकेश सुलभ का जन्‍म 15 फ़रवरी, 1955 को बि‍हार के छपरा जनपद (अब सीवान जनपद) के लहेजी नामक गाँव में हुआ। आरम्‍भि‍क शि‍क्षा गाँव में हुई। आपकी कहानि‍याँ अग्रेज़ी सहि‍त वि‍भि‍न्‍न भारतीय भाषाओं में  अनूदि‍त-प्रकाशि‍त हो चुकी हैं। रंगमंच से गहरे जुड़ाव के कारण कथा-लेखन के साथ-साथ आप नाट्य-लेखन की ओर उन्‍मुख हुए। आपने भि‍खारी ठाकुर की प्रसि‍द्ध नाट्यशैली बि‍देसि‍या की नाट्य-युक्‍ति‍यों का आधुनि‍क हि‍न्‍दी रंगमंच के लि‍ए पहली बार अपने नाटकों में सृजनात्‍मक प्रयोग कि‍या। वि‍गत कई वर्षों से आप कथादेश मासि‍क में रंगमंच पर नि‍यमि‍त लेखन कर रहे हैं। आपकी प्रकाशि‍त कृति‍याँ हैं : कथा-संकलन तूती की आवाज़, जि‍समें तीन आरम्‍भि‍क कथा-संकलन पथरकट, वधस्‍थल से छलाँग और बँधा है काल शामि‍ल हैं। इसके अलावा कथा-संकलन वसंत के हत्‍यारे, हलंत और प्रति‍नि‍धि‍ कहानि‍याँ प्रकाशि‍त हैं। अमली, बटोही और धरती आबा तीन मौलि‍क नाटकों के साथ-साथ शूद्रक के वि‍श्‍वप्रसि‍द्ध संस्‍कृत नाटक मृच्‍छकटि‍कम् की पुनर्रचना माटीगाड़ी, फणीश्‍वरनाथ रेणु के उपन्‍यास मैला आँचल का नाट्यरूपान्‍तरण तथा रवीन्‍द्रनाथ टैगोर की कहानी दालि‍या पर आधारि‍त नाटक प्रकाशि‍त हैं। रंगमंच का जनतंत्र और रंग अरंग शीर्षक से नाट्य-चि‍न्‍तन की दो पुस्‍तकें प्रकाशि‍त हैं।

अग्‍नि‍लीक अपका पहला और अभी-अभी प्रकाशि‍त उपन्‍यास है।

 
      

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5 comments

  1. लाजवाब भाषा , कहन बेहद आकर्षक , आशा है कि सुलभ जी का उपन्यास काफी रुचिकर होगा और बदलते ग्रामीण परिवेश से अवगत करायेगा ।

    सुलभ जी को बधाई और जानकीपुल के प्रति आभार ।

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