Home / Featured / फ़िराक़ गोरखपुरी की कहानी ‘रैन बसेरा’

फ़िराक़ गोरखपुरी की कहानी ‘रैन बसेरा’

उर्दू के मशहूर शायर फ़िराक गोरखपुरी की शायरी के बारे में किसी को बताने की ज़रूरत नहीं, सब जानते हैं कि वे किस पाए के शायर थे. उनको अपनी शायरी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिला था. लेकिन यह कम लोग जानते हैं कि उन्होंने कुछ कहानियां भी लिखी थीं. ‘स्वदेश’ नामक पत्रिका में तो उनकी कहानियां प्रेमचंद की कहानियों के साथ छपती थीं. उनकी एक दुर्लभ कहानी मिली तो सोचा कि उनकी पुण्यतिथि पर साझा की जाए। – जानकी पुल.

(१)

चुन-चुन कंकड महल उठाया लोग कहें घर मेरा

ना घर मेरा ना घर तेरा चिड़िया रैन बसेरा.

बाबू शारदाप्रसाद मिर्ज़ापुर के प्रसिद्ध वकील और रईस थे. जायदाद काफी थी और वकालत भी खूब चली हुई थी. लेकिन जायदाद कर्जे से लदी हुई थी और वकालत की सारी कमाई उड़ ही जाती थी. बड़े हंसमुख, मनचले, शौक़ीन और उदार आदमी थे. दावत, मुजरा, नाच-रंग, शराब-कबाब, रियासत का पूरा ठाठ उनके यहाँ देखने में आता था. खर्च करने में उनकी स्त्री उनसे कम न थी. लेकिन वह सात्विक वृत्ति की थी. उनका बड़ा लड़का प्रभातकुसुम बहुत सुन्दर और सुकुमार था. उसका स्वभाव भी बड़ा कोमल और सुन्दर था.

वकील साहब के एक गहरे मित्र मौलवी खुदायार खां थे. वह एक कब्रिस्तान में एक गिरे पड़े मकान में रहते थे. मकान का काफी हिस्सा ढह गया था. उसमें रहकर वे मृतक आत्माओं के कल्याण के लिए(जो प्रायः मौलवी साहब के ही मारे हुए थे क्योंकि मौलवी साहब कुछ हिकमत भी करते थे.) उनकी कब्रों पर फातिहा और कुरानशरीफ पढ़ा करते थे. यह इनका पेशा था पर गुज़ारा नहीं होता था. इससे तो उनके रोज़मर्रा के खर्चे, खिजाब, पान-पत्ते का ही खर्च मुश्किल से निकलता था. वकील साहब से उनकी गाढ़ी दोस्ती थी. रोज शाम को उनके यहाँ जाते बैठते, किस्से, चुटकुले, लतीफे सुनते और एक से एक नए नुस्खे भी उनके लिए तैयार करा देते.

एक दिन शाम को मौलवी साहब घूमते हुए वकील साहब के यहाँ निकल गए. वकील साहब होश में भी थे और मस्त भी थे. उनकी आँखों में एक नशा भी है जो कई बोतल शराब के नशे से बढ़कर है. अपने दोस्त को देखते ही खिल गए. बोले, “आइये मौलवी साहब, आपको देखकर रूह ताजा हो गई. मैं आपकी राह देख रहा था.

खुदायार खां- कहिये आज तो आप बहुत खुश मालूम हो रहे हैं, क्या बात है?

वकील साहब- राजा मह्शों और सेठ गुलाबचंद के बीच मुकदमा दायर हो गया. सेठ जी की तरफ से मैं वकील हूँ. डेढ़ सौ रुपये रोज फीस तय हुई है. मैं दो सौ से कम न लेता पर पुरानी राह राम है, दस लाख मूल्य की जायदाद है. कहो अब भी मारना चाहते हो.

खुदायार खां- खैर, मरना जीना तो अल्लाह के हाथ है पर खबर अच्छी सुनाई. अब मुँह मीठा कीजिये. क्या बक गया. मैं कहता था, क्या मुआमिला है, रात, एक दिन मुझे ख्वाब में नज़र आया, उसने कहा उठो, तुमको बहिश्त की सिर करवा लायें. मैं उनके साथ चल दिया. वहां देखता हूँ कि एक चांदी का महल है. जहाँ परियों का नाच हो रहा है. ज़न्नत की शराब के दौर चल रहे हैं. हूरें गा रही हैं और रूहें झूम रही हैं. वहां एक अजब आलम था. न दिन था न रात थी. जब मेरी आँख खुली तब मैं हैरान था कि आखिर इस ख्वाब का मतलब क्या है. अब पता चला…

वकील साहब- यानी?

खुदायार खां- यानी यह कि हज़ारों रुपये माहवार की आमदनी से गुलछर्रे तो उडेंगे ही लेकिन इस सिलसिले में आप एक बढ़िया मकान भी बनवा डालें जो आसमान से बातें करे और शान शौकत में उस चांदी के महल से कम न हो जो रात में मुझे नज़र पड़ा था.

वकील साहब- भाई, हो बड़े बेढब आदमी. तुम्हें भी अँधेरे में बड़ी दूर की सूझी- ज़मीन आसमान का छोर मिला दिया. खबर भी है, जैसा मकान आप कहते हैं लाखों लग जायेंगे.

खुदायार खां- तो कमी क्या है? अकेले एक सेठ गुलाबचंद ही तो नहीं हैं. आप खुदा का नाम लेकर काम छेड़ दीजिए.

दूसरे दिन मौलवी साहब उस कब्रिस्तान के पास ले गए जहाँ एक बाग भी था, ज़मीन काफी थी, वह बिकाऊ थी, पसंद हो गई और भावभीत भी उसकी पक्की हो गई.

(२)

जिस दिन वकील साहब के मकान की नींव पड़ी उस दिन बड़ी धूम रही. बाग में एक बड़ा शामियाना ताना गया. मिर्ज़ापुर के बहुत से वकील, राईस, हुक्काम और साधारण लोग जमा हुए. उसी समय एक मुसलमान फ़कीर एक फटा कम्बल बदन पर डाले उधर से गुज़रा. वह यही गाता हुआ चला जा रहा था-

चुन चुन कंकड़ महल उठाया लोग कहें घर मेरा

ना घर तेरा ना घर मेरा चिड़िया रैन बसेरा.

उनकी स्त्री ने उस फ़कीर को भी बुलवाया और वह भी परिचित था. उसे खाने के लिए दिया गया और वकील साहब ने मकान बनवाने का दास्ताँ कह सुनाया. फ़कीर ने कहा- हाँ बेटा, बनवाओ. खल्के खुदा दुआ देगी और तुम्हारा अहसान मानेगी. इस दुआ से वकील साहब बड़े खुश हुए और फ़ौरन एक नया कम्बल उस फ़कीर को दिलवाया. आगे चलकर उस फ़कीर ने उस कम्बल को एक दूसरे दरिद्र फ़कीर को दे दिया. उसकी स्त्री ने उसे फिर बुलवाया क्योंकि फ़कीर की दुआ कुछ खटक गई थी. उन्होंने पूछा- साईं साहब का यह मकान हमारी संतान के काम आएगा? फ़कीर ने कहा- बेटी ज़रूर आएगा. तू बड़ी धर्मात्मा है. वह बड़ी प्रसन्न हुई- फिर उसे खाना मिला और कुछ रूपया भी. वह रूपया गरीबों को बांटता आगे बढ़ गया.

मकान बन गया. रूपया पानी की तरह बहाया गया. बड़ा आलीशान मकान तैयार हुआ. उसकी सजावट के लिए कलकत्ते और बम्बई से सामान आने लगे. मिर्ज़ापुर में उस टक्कर का कोई भी मकान नहीं था. गृह-प्रवेश के दिन खूब धूम मची थी. ऐसा जलसा कभी नहीं हुआ था. पर खर्च इतना लंबा-चौड़ा था कि फीस के अलावा सेठ गुलाबचंद से कई हज़ार क़र्ज़ लेने पड़े. केवल दो वर्ष उस मकान में वकील साहब को आये हुए थे कि एक दिन रात को मछली खाई और शराब भी कुछ ज्यादा पी गए. मछली कुछ सडी हुई थी, ज़हर हो गई, सारे बदन में ज़हर मिल गया. तबियत बेहद खराब हो गई. किसी का किया कुछ न हुआ. ज़हर अपना काम कर चुका था और सुबह होते-होते बाबू शारदाप्रसाद का शरीरांत हो गया. घर में, सारे शहर में कोहराम मच गया.

(३)

वकील साहब के मरते ही उनका परिवार मुसीबतों में फंस गया. उनका लड़का प्रभातकुसुम बनारस के क्वींस कॉलेज में पढता था. मौलवी खुदायार खां की नई बीवी से भी एक लड़का था. वह भी बनारस के उसी कॉलेज में पढता था. उसका भी खर्च वकील साहब के ही ऊपर था. मरने के बाद इसका तो खर्च बिलकुल बंद हो गया. वह वहां से वापस बुला लिया गया. लेकिन प्रभातकुसुम कुछ दिन और कॉलेज में रहा और किसी तरह बीए पास कर लिया. पर और आगे नहीं पढ़ सका.

बीए पास करने के बाद प्रभात ने कोर्ट ऑफ लॉर्ड्स में नौकरी १००/- रुपये पर कर ली. महाजनों का सूद बढ़ रहा था. वह किसी तरह माता का और छोटी बहनों का खर्च चलाता था. इसका भी विवाह ३ वर्ष पहले तय हो गया था. पर वकील साहब के मरने के बाद वह भी रुक गया और प्रभात अविवाहित ही रहा. सेठ गुलाबचंद का क़र्ज़ अभी तक बाकी था. उसका केवल मकान भर शेष रह गया था.

किस्मत की बात देखिये. वकील साहब के मरते ही खुदायार खां पर भी मुसीबत आई. शहर में ताऊन आया. बीवी बीमार पड़ी और एक ही दिन में जाती रही. मौलवी साहब को बड़ा ही दुःख हुआ. पर मौलवी साहब का भाग्य एक बार फिर चमक उठा. एक दिन रात को कब्रिस्तान में एक आदमी आया और एक गड्ढा खोदा और कमर से कुछ निकालकर उसमें रखकर चला गया. मौलवी साहब उठे और फावड़ा से उसे खोदा जिसमें दो-तीन थैलियाँ मिलीं- जिसमें कुछ रुपयों के पुलिंदे, कुछ अशर्फियाँ थीं. कुल पैंतीस हज़ार की रकम थी. चुपके से सब जाकर एक पुराने बाक्स में रखा और खुदा का शुक्र करने लगे. जिस कब्र की जड़ में यह दौलत मिली थी वह उसकी बीवी की कब्र थी. कहने लगे- बड़ी अक्लमंद, बड़ी भाग्यहीन औरत थी. बात यह थी कि जिस आदमी ने यह धन छिपा कर रखा था वह कोकीन छिपकर बेचता था. पुलिस को खबर हो गई यह जानकारी देने वाली थी कि इसका इन्हें पता चल गया और रात में ही सारा माल और कई सेर कोकीन छिपकर यहाँ रखे थे. अब क्या था मौलवी साहब की तकदीर खुल गई. दूसरे दिन अपने घर में एक बड़ी दावत की, बीवी की बरसी मनाई. एक माह बाद अपने लड़के को विलायत बैरिस्टरी पढ़ने के लिए भेज दिया.

इधर बाबू शारदाप्रसाद के घर की दशा दिन-प्रतिदिन खराब होती गई. सेठ का रूपया न अदा कर सके. मुकदमा चला और मकान से भी हाथ धोना पड़ा. प्रभात की दो बहनों का विवाह वकील साहब की स्त्री ने अपने जेवर बेचकर कर दिया. प्रभात का भी दो-चार सौ रूपया इसी में खर्च गया. अब बड़ी विकट परिस्थिति थी. बाबू शारदाप्रसाद के घर का नीलाम था. सैकड़ों लोग जमा थे. खुदायार खां भी मौजूद था, उसका लड़का बैरिस्टरी पास करके आया था- उसे एक बंगले की ज़रूरत थी. कुछ लोग संकोचवश बोली नहीं बोलते थे. पहली बोली १८ हज़ार की मौलवी खुदायार खां की थी और उसी पर मकान नीलाम हो गया.

दूसरे दिन प्रभातकुसुम ने एक दूसरा छोटा सा मकान किराये पर तय किया और दो ठेले मंगाकर घर का सामान भेजने लगा. उसकी माँ ने भी संतोष कर लिया था. वह सामन बाँध-बाँध कर बाहर भिजवा रही थी. उधर मौलवी खुदायार खां उनका लड़का और उनकी नई बीवी अदालत में १८ हज़ार रुपये जमाकर एक मोटर पर सवार मकान पर कब्ज़ा करने आ रहे थे. सामान तो ज्यादा था नहीं. कुछ उनके लड़के का सामान था वह पहले से ही वहां रहता था. इधर मोटर पर जिसे खुदायार खां का लड़का चला रहा था. ये लोग आ रहे थे उधर कलक्टर साहब की मोटर आ रही थी. उनकी मोटर देखकर ये लोग इतना घबडाये कि मोटर घुमाई तो वह सीधे एक खंदक में जा गिरी. मोटर चूर-चूर हो गई और तीनों वहीं जलकर मर गए.

यह घटना बाबू शारदाप्रसाद के मकान के पास ही हुई. प्रभातकुसुम को भी यह खबर उसी वक्त मिली जब वे सब सदा के लिए उस घर को छोड़ रहे थे. दो-एक आदमी ने राय दी कि आज दूसरे मकान में मत जाओ. प्रभात और उसकी माँ उस दिन रुक गए.

तीनों लाशों को कुछ मुसलमानों ने जाकर उसी रात को उसी कब्रिस्तान में गाड़ दिया. जिसमें मौलवी खुदायार खां रहते थे. १८ हज़ार के बदले १८ फीट ज़मीन तीनों के लिए काफी हुई.

(४)

मौलवी खुदायार खां के तो कोई वारिस था नहीं. उनके लड़के की बीवी के घर के लोग थे. वह दूसरे जिले में रहने लगे थे. जब उनको खबर मिली तब वह आये और मकान बेचना चाह. कोई ग्राहक न मिला. मगर कोर्ट ऑफ लॉर्ड्स की ज़रूरत थी. दाम के दाम पर उसने खरीद लिया.

प्रभात को मकान से नहीं निअलना पड़ा पर मकान में दफ्तर आ गया. कोर्ट ऑफ लॉर्ड्स का अफसर प्रभात को मानता था. उसने उसी मकान में पिछले भाग में क्वार्टर्स दे दिया. दो-तीन कमरे थे, आँगन था उसी में माँ-बेटे रहने लगे. इसी तरह पांच-छः साल बीत गए. सरकारी इंतज़ाम बदला. कोर्ट ऑफ लॉर्ड्स का दफ्तर बनारस उठ गया. इसी बीच में प्रभात की तनख्वाह ढाई सौ रुपये हो गई थी. दस-बारह वर्ष नौकरी कर चुका था. उसने इस्तीफा दे दिया. उसके तीन-चार हज़ार रुपये प्रोविडेंट फंद में जमा थे. और सोलह-सत्रह हज़ार उसने बचाया था. इस्तीफा देने के बाद जब कोर्ट ऑफ लॉर्ड्स ने उस मकान को बेचा तो उसे मोल ले लिया.

लेकिन प्रभात मकान के खास हिस्से में जाकर नहीं रहा. वह बहुत कुछ दुनिया का हाल देख चुका था. वह जीवन का अर्थ समझ गया था. उसकी माँ को भी वहीं रहना पसंद था. बाबू शारदाप्रसाद ने मकान के इस भाग को मेहमानों के ठहरने के लिए बनवाया था. मकान में प्रभात ने एक अनाथालय खोला, जिसमें कई जिले के लड़के, लड़कियां जिनका इस दुनिया में कहीं ठिकाना नहीं था शरण पाते थे.

अनाथालय का काम अच्छी तरह चल रहा है. सैकड़ों बालक, बालिकाएं शिल्प साहित्य और धर्म की शिक्षा पा रहे हैं और वह स्थान पहले से कहीं अधिक सुहावना, हराभरा और बसा हुआ मालूम हो रहा है. उसका नाम प्रभात ने रैन-बसेरा रखा है.

कभी-कभी अब भी वह फ़कीर जो इस मकान की नीव पड़ने के दिन जाता हुआ उधर से गुज़रा था, वह कब्रिस्तान में मृत आत्माओं की कब्रों पर दुआएं करता नज़र आता है और वही गाना अक्सर किसी कब्र पर बैठकर गाता है:

चुन चुन कंकड़ महल बनाया लोग कहें घर मेरा

ना घर मेरा ना घर तेरा चिड़िया रैन-बसेरा.

वाणी प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक ‘नौ रत्न’ से साभार.

==============================

दुर्लभ किताबों के PDF के लिए जानकी पुल को telegram पर सब्सक्राइब करें

https://t.me/jankipul

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

एडिनबरा के भूमिगत भूत: मनीषा कुलश्रेष्ठ

प्रसिद्ध लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ का गद्य बहुत सम्मोहक होता है। इस यात्रा वृत्तांत में तो …

4 comments

  1. Very good post! We are linking to this great article on our site.
    Keep up the good writing.

  2. फिराक गोरखपुरी जी के लेखन का जवाब नहीं है…
    शानदार और बेहतरीन रचना है ….

  3. So sharp, so real, so goodSomething new I’m excited aboutOutroDreams only occur when you’re sleeping

  4. And they make me believe in who you areWhen you decide on somethingYou act swiftly

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *