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त्रिपुरारि की कहानी ‘जिगोलो’

कुछ माह पहले युवा लेखक त्रिपुरारि का कहानी संग्रह आया है ‘नॉर्थ कैम्पस’। त्रिपुरारि की शायरी की तरह उनकी कहानियों में भी युवा जीवन की संवेदनाएँ हैं। वह आज के लेखक हैं। आज के युवा किस तरह सोचते हैं, उनकी लाइफ़ स्टाइल क्या है, उनकी कहानियों को पढ़ते हुए समझा जा सकता है। किताब का नाम नॉर्थ कैम्पस इसलिए है क्योंकि इसकी कहानियों की ज़मीन दिल्ली विश्वविद्यालय का नॉर्थ कैम्पस है। आप इसकी एक छोटी सी प्रतिनिधि कहानी पढ़िए- प्रभात रंजन

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यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट यूनियन का चुनाव होने वाला था। एक न्यूज़ चैनल के स्टूडियो में मुख़्तलिफ़ पार्टी की हिमायत करने वाले तक़रीबन 20 स्टूडेंट्स और 4 उम्मीदवार मौजूद थे। एडमिशन के दौरान होने वाली धांधली और दूसरे मौज़ूआत पर लाइव बहस होनी थी। दबी ज़बान में एक स्टूडेंट ने कहा—

“सुना है…चुनाव लड़ने के लिए कुछ ख़ास बिस्तरों से हो कर गुज़रना पड़ता है।”

“लड़कियों के मुआमले में तो सच है… मगर लड़के?”

—दूसरे ने जवाब के साथ ही एक सवाल पूछा।

“आई डोन्ट वान्ट एनी एक्सक्यूज़ इन बिटविन दि प्रोग्राम”

फ़्लोर मैनेजर ने चीफ कैमरा मैन सहित सभी को आगाह किया। कैमरा मैन अपनी जगह तैनात हो गए। सारे स्टूडेंट्स चुप हो गए। प्रोग्राम लाइव होने से कुछ ही सेकेंड्स पहले मश‘हूर’ एंकर ने चुटकी लेते हुए कहा—

“वैसे कितनी अजीब बात है न! एक सेलिब्रिटी एंकर, एक स्टूडेंट लीडर कम ‘जि—गो—लो’ का इंटरव्यू करने वाली है।”

“हाँ, अजीब बात तो है। मैं उन ज़ानूओं का मालिक हूँ, जिनका स्वाद शहर की सबसे अमीर और ताक़तवर औरत को भी मालूम है।”

“हम्म्म…इंट्रेस्टिंग”

“…जिसकी प्यास न सिर्फ़ यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर, बल्कि औरत के हक़ का परचम लहराने वाली औरत भी रखती है।”

—एंकर मुस्काती है।

“…जिसके साथ औरत सिर्फ़ औरत होती है। …किसी भी पेशा या मज़हब से उसका कोई तअल्लुक़ नहीं रह जाता।”

“तो इस लिस्ट में एक एंकर का नाम भी होना चाहिए।”

—दिल ही दिल में ये अजीब-सी बात सोचते हुए मश‘हूर’ एंकर ने कैमरा ऑन करने का इशारा किया।

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(यह कहानी ‘नॉर्थ कैम्पस’ कहानी-संग्रह से लिया गया है। नॉर्थ कैम्पस ई-बुक पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।)

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4 comments

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