Home / Featured / सचिन देव शर्मा का यात्रावृत्तांत  ‘दी सिटी ऑफ़ डेस्टिनी’

सचिन देव शर्मा का यात्रावृत्तांत  ‘दी सिटी ऑफ़ डेस्टिनी’

सचिन देव शर्मा एक जर्मन बहुराष्ट्रीय कम्पनी में अधिकारी हैं। यात्रा करते हैं और यात्राओं पर लिखते हैं। उनका यह लेख विशाखापत्तनम यात्रा का वृत्तांत है। पढ़िएगा- मॉडरेटर

=======

विशाखापत्तनम एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही शहर को समझने की कवायद शुरू कर दी। एयरपोर्ट से होटेल पहुँचने तक शहर की कुछ झलकियों को कैमरे में कैद कर लिया। “दी सिटी ऑफ़ डेस्टिनी”, “दी सिटी ऑफ़ ज्वेल” , “दी गोवा ऑफ़ ईस्ट कोस्ट” माने विशाखापत्तनम, शायद मेरी डेस्टिनी ही मुझे यहाँ तक लाई थी। शहर इतना साफ़ और सुन्दर है कि यहीं बस जाने का मन कर गया। ये शहर धरती, पहाड़ और समुंदर की एक शानदार रिट्रीट है। सिम्हाचलम पर्वत इस शहर की प्राचीनता का गवाह है और बंगाल की खाड़ी के किनारे बने पोर्ट ने इस शहर को पहचान दी है। शहर में दाख़िल होते ही सिम्हाचलम पर्वत गर्व से अपना सीना चौड़ा कर आपका स्वागत करता है। शहर का वो बड़ा क्रासिंग जो उस पर बन रहे फ्लाईओवर के बोझ से कुछ दबा हुआ, कुछ परेशान सा दिखता है, इस उम्मीद में है कि आने वाले समय में वो फ्लाईओवर उसकी सुंदरता को बढ़ाएगा और उस पर पड़ रहे बोझ को काफी हद तक कम कर देगा, वो क्रासिंग इसलिए ही अभी सारी परेशानियां झेलने के लिए तैयार है। आगे आने वाला शहर का वो इलाका जो किसी दूसरे शहर के इलाके जैसा ही लगता है वो है मर्रिपलेम, जिस रोड पर हमारी टैक्सी दौड़ रही है दुकानों के साइनबोर्ड्स पर उस रोड का नाम लिखा है मर्रिपलेम मेन रोड, भीड़भाड़ बहुत ज़्यादा नहीं दिखती, दूसरे शहर के मुकाबले जो फर्क दिख रहा है वो ये कि दोनों तरफ की सर्विस रोड को मेन ट्रैफिक वाली सड़क से लोहे की ग्रिल लगा कर सेपरेट किया गया है।

उसके बाद कंचारपालेम इलाके से गुज़रते हैं उससे आगे जाने पर बाएं हाथ पर एक मंदिर है, अभी ठीक से याद नहीं लेकिन भगवान विष्णु या भगवान वरहा नरसिंह की बड़ी सी तस्वीर मंदिर के बाहर रोड़ पर लगी है, तब मैंने फोटो लेने की कोशिश की थी, फ़ोटो धुंधला आया, इस रोड पर दुकानें नहीं दिख रहीं थी। उसके बाद आने वाला रास्ता साफ सुथरा था, लिपे-पुते डिवाइडर, फुटपाथ और सड़क के दोनों ओर पिस्ता हरे रंग की बॉउंड्री वाल पर गहरे हरे रंग से बने पत्ते, ये बाउंड्री वाल एक कृत्रिम जंगल का आभास भी कराती है। दाएं और बाएं दोनों तरफ की बाउंड्री वाल के पीछे हरी भरी झाड़ियाँ और पेड़, उस पुरे इलाके को एक ऐसी सीनरी में बदल देते हैं जो मन को बहुत सुहाती है। दाएं बाउंड्री वाल के पीछे कुछ गुलाबी क्वार्टर भी दिख रहे हैं मानों झाड़ियों में गुलाब के कुछ फूल खिले हों। कुछ और सुन्दर चौराहे, चौराहों पर लगे बुत, सड़क के किनारे लगे वो बड़े-बड़े पेड़ जो उस सड़क को लगभग एक हरी-भरी गुफ़ा में बदल देते हैं जब ऐसे इलाकों से निकलते हुए अपने होटेल की ओर बढ़ रहे हैं तो विशाखापत्तनम आने के अपने फ़ैसले पर फूले नहीं समाता हूँ लेकिन शहर का ये मिज़ाज बदलने का नाम नहीं ले रहा, शहर शांत है लेकिन साथ ही साथ आधुनिक भी।

फिर से दोनों ओर की बाउंड्री वाल पर बनी पेन्टिंग्स जो विशाखापत्तनम की संस्कृति, इतिहास, विरासतों को कहीं ना कहीं दर्शा रही हैं उसके बाद एक लंबे फ्लाईओवर को पार कर एक सुंदर व आधुनिक इलाके में प्रवेश करते हैं जहाँ बड़े बड़े शोरूम्स हैं, ईमारते हैं, मॉल हैं, पता चलता है यह इलाका है वाल्टेयर अपलैंडस, यह नाम विशाखापत्तनम के ब्रिटिश उपनिवैशिक कनेक्शन को बहुत खूबसूरती से दर्शाता है। ब्रिटिश कॉल में यहाँ पर वाल्टेयर रेलवे डिवीज़न की नींव पड़ी थी। “वाल्टेयर”, केवल एक नाम मुझे मन ही मन उस ज़माने की तस्वीर बनाने पर विवश करता है जो शायद विशाखापत्तनम की ब्रिटिश उपनिवैशिक समय की रही होगी। तस्वीर बनाता हूँ और मिटा देता हूँ, ठीक से बन नहीं पा रही, या तो कल्पना की कमी है या फिर उसमें भरे जाने वाले रंगों की। कुछ आगे चल कर एक चौराहे पर दिखती है दिल्ली के कनॉट प्लेस जैसी एक तिकोनी इमारत। आगे चलने पर दिखते हैं बड़े-बड़े चौराहे, चौराहों के बीच बने हरी भरी घास के छोटे-छोटे पार्क, जहाँ बने हैं डायनासोर के प्रतिरूप। कुछ ही और दूर जाकर एक यू टर्न लेने के बाद हम पहुंच जाते हैं अपनी मंज़िल “द पार्क विशाखापत्तनम”।

जब इस शहर को टटोलने निकला तो पाया कि इस शहर ने अपने अंदर बहुत सी कहानियों को संजोया हुआ है फिर चाहे वो पौराणिक कथाएं हो या इतिहास के पन्नों से निकली कहानियाँ, देश की नींव में विशाखापत्तनम के योगदान के किस्से हो या स्थापत्य कला में इसके स्थान की बातें। इस शहर की प्राचीनता को समझने की कुंजी कहीं इसके नाम में ही छुपी है, राधा की प्रिय सखी, कृष्ण की मुख्य आठ गोपियाँ में से एक विशाखा देवी का वो प्राचीन मंदिर जो आज कहीं समुन्दर की गहराइयों में छुपा है, इस शहर के नाम के मूल में है लेकिन शहर की आधुनिक पहचान है इसका पोर्ट सिटी होना और पौराणिक रूप से जाना जाता है सिम्हाचलम मंदिर के लिए, नैवल बेस तो है ही।

एक ऐसा शहर जिसने अपनी ज़िम्मेदारी को बहुत बहादुरी के साथ बखूबी निभाया है, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान विशाखापत्तनम की सामरिक भौगोलिक स्थिति के कारण ही पर्ल हारबर से लौटते हुए जापान के विमान वाहक युद्धपोत ने विशाखापत्तनम पोर्ट से लगभग बीस किलोमीटर समुन्दर के अंदर बेडा डाल विशाखापत्तनम का बर्मा से संपर्क ख़त्म करने के लिए भारतीय सेना के सामरिक ठिकानों पर गोलाबारी की और साथ ही ब्रिटेन के छह जंगी व व्यापारिक जहाज़ों को तबाह कर दिया। 1965 इंडो – पाक युद्ध की विभीषिका को भी झेला है इस शहर ने लेकिन अपने जख्मों के दर्द को ताकत बना बदला लिया अपने दर्द का 1971 इंडो – पाक युद्ध में गाज़ी नाम की उस पाकिस्तानी पनडुब्बी को अपने जाबांज़ आईएनएस राजपूत द्वारा तहस -नहस कर जिस पर वो बहुत इतराया करता था, जिसने दुस्साहस किया था हमारे आईएनएस विक्रांत पर अपनी गिद्ध दृष्टि डालने का। विशाखा म्यूजियम नाम है, राम कृष्ण बीच के सामने एक पुराने डच बंगले में बने उस अजायबघर का जहाँ पर रखे गाज़ी के अवशेष आज भी अपनी बदकिस्मती पर रो रहे हैं और पछता रहे हैं अपने दुस्साहस पर। अजायबघर में रखा वो टूटा हुआ नारियल जिसको किसी तरह से जोड़ कर संजोया गया है, गवाह है उस समय का जब आधुनिक भारत बन रहा था, जब पंडित नेहरू ने देश की स्वतंत्रता के बाद बने पहले समुद्री जहाज एस एस जल उषा का लोकार्पण किया था 1948 में। अजायबघर में रखा बॉम्ब का वो शैल चीख़-चीख़ कर बता रहा है द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान की उस बर्बरता के बारे में जिसका शिकार हुआ था विशाखापत्तनम। यह अजायबघर बताता है कलिंग-आंध्र माने ओडिशा और आंध्र के उस मिले-जुले भूभाग की संस्कृति के बारे में  जो विज़ियनगरम के पूर्व शासकों द्वारा प्रयोग किए हथियार, पेंटिंग्स , पांडुलिपियां, सिक्के, पोशाक, आभूषण तथा बर्तन के द्वारा वहाँ दर्शाए गई है।

विशाखापत्तनम आकर पता चला कि आदमी ही की तरह रिटायर हो जाते हैं युद्धपोत और विमान, 1971 के इंडो-पाक युद्ध में अरब सागर में लगातार दुश्मन पर पैनी निग़ाह बनाए रखने वाली और पानी के अंदर माइंस बिछाने का काम बखूबी करने वाली सबमरीन आईएनएस कुरसुरा रिटायर तो हो गई लेकिन फिर भी आतुर दिखती है अपना पराकर्म दिखाने के लिए पूरी आन,बान, शान के साथ समुन्दर के तट पर एक म्यूजियम बन। पानी का जहाज़ तो बहुत लोग देख पाते हैं और उस पर यात्रा भी कर पाते हैं लेकिन यदि कोई आम आदमी पनडुब्बी देखने और उसके बारे में जानने की चाहत रखता है तो 22 टॉरपेडोस या उसकी जगह 44 विस्फोटक माइंस को ले जाने की क्षमता रखने वाली देश की पाँचवी पनडुब्बी आईएनएस कुरसुरा ही किसी आम आदमी के लिए एक मात्र विकल्प है। 75 नौसैनिकों के दल को समुन्दर में अपने साथ तीन सौ मीटर तक नीचे उतर जाने की क्षमता रखने वाली यह 91 मीटर लंबी, 7. 5 मीटर चौड़ी व् 6 मीटर ड्राफ्ट वाली सबमरीन जब पूरी तरह पानी में डूब कर चलती है तब अधिकतम रफ़्तार होती है 9 नॉटिकल माइल्स मतलब लगभग 17 किलोमीटर प्रति घंटा। पनडुब्बी के अंदर बने सात कम्पार्टमेंट्स से कहीं-कहीं झुक कर गुज़रने में किसी गुफ़ा के संकरे रास्ते का आभास होता है। नौसैनिक दल के रहने, खाने-पीने और आराम करने के लिए पनडुब्बी में बने विशेष केबिन्स के साथ-साथ पनडुब्बी के अंदर जाकर उसके कम्प्लीकेटेड सिस्टम को देखना किसी सुखद आश्चर्य से कम नहीं।

समुन्दर तट के दूसरी ओर बना टीयू 142 एम एयरक्राफ्ट म्यूजियम सबमरीन म्यूजियम के साथ मिल नौसेना के इतिहास को सहेज कर रखने की एक मिली जुली कोशिश में लगा है। हवाई जहाज़ का “ब्लैक बॉक्स” ब्लैक नहीं बल्कि नारंगी रंग का होता है और “ब्लैक बॉक्स” बॉक्स नहीं बल्कि एक गोला होता है यह बात यहीं आकर पता चली।  इस जहाज़ की कहानी और कारनामें दोनों ही अपने आप में एक मिसाल है। एक रशियन एरोनॉटिकल इंजीनियर अन्द्रेई टुपोलेव के  हवाई यंत्रों से इश्क़ का नतीज़ा था यह टोही और एंटी सबमरीन लड़ाकू विमान । 1909 में यूनिवर्सिटी में पढ़ते-पढ़ते ही उन्हें एरोनॉटिक्स से प्यार हो गया और अपना गुरु बनाया प्रसिद्ध रशियन वैज्ञानिक निकोले जहुकोव्स्की को। इस जहाज़ के कारनामें ऐसे हैं कि सुनकर रोंगटे खड़े हो जाएं, इस लड़ाकू जहाज़ ने श्रीलंका में भारतीय सेना के पीस ऑपरेशन्स व 1988 में मालद्वीप में ऑपेरशन कैक्टस के दौरान मालद्वीप के तत्कालीन राष्ट्रपति गयूम की सरकार के तख्तापलट की तमाम कोशिशों को नाकाम करने में अहम भूमिका निभाई थी।

ऐसा अनोखा शहर जहाँ ईस्टर्न घाट्स की पहाड़ियाँ दूर तक फैली हैं, समुन्दर अपनी सभी हदों को पार कर लेना चाहता है, ऐसे शहर का विहंगम दृश्य देखनी की चाहत हमें कैलासगिरि ले गई। इसे चाहत कहूं या लालच, समझ नहीं आता लेकिन देखना तो था। विशाखापत्तनम में लगभग 570 फीट ऊँची कैलासगिरि हिल्स पर तक़रीबन 380 एकड़ में विकसित किया गया “कैलासगिरी पार्क” शहर को दिया गया एक नायाब तोहफ़ा है। यहाँ पर केबल कार में बैठ हवा में उड़ने का मज़ा है और ऊपर जाते-जाते शहर, सड़क और समंदर का विहंगम नज़ारा देखने का भी। पार्क में प्रवेश करते ही दर्शन होते हैं 40 फ़ीट ऊँची विशालकाय भगवान शिव व् माँ पार्वती की सफ़ेद प्रतिमा के, मानो भोले बाबा अपनी अर्धांगनी के साथ साक्षात् विराजमान हैं कैलास पर्वत पर। एक ऊँचे चबूतरे पर विशाल प्रतिमा तक पहुँचने के लिए दोनों तरफ बनी चमकदार रेलिंग वाली सीढ़ियां और दोनों सीढ़यों के बीच लगी सीढ़ीनुमा फुलवारी, यह नज़ारा किसी भी पर्यटक को विस्मित कर देना वाला है। यूँ तो लगता है कि ट्रेन का सफ़र झंझट है लेकिन पार्क के चारों ओर टॉय ट्रेन से घूमने का विकल्प अच्छा लगा। हमारे कोच का अटेंडेंट भी मज़ेदार था, मन भर कर फ़ोटो लिए थे उसने हमारे। ट्रेन में बैठ कभी संकरी झाड़ियों से गुज़रते और कभी ट्रेन से पार्क में बनी कलाकृतियों को निहारते और कभी वादियों में खो जाते।

विशाखापत्तनम के अस्तित्व को सिम्हाचलम पर्वत से अलग कर नहीं देखा जा सकता और सिम्हाचलम पर्वत की पहचान जुड़ी है सिम्हाचलम मंदिर से यानि श्री वराह लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर से, भगवान विष्णु के प्रमुख मंदिरों में से एक है यह और वैष्णव सम्प्रदाय की आस्था का एक प्रमुख केंद्र भी। सिम्हाचलम पर्वत पर एक हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है यह मंदिर। मंदिर में लगे हुए शिलालेखों से इसकी प्राचीनता के बारे में कुछ अंदाज़ा लगाया जा सकता है। चोला वंश के शासक कुलोत्तुंगा द्वारा लगाया गया सबसे पुराना शिलालेख ग्यारहवीं शताब्दी का है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने अपने वराह अवतार और अपने नरसिंह अवतार में क्रमशः हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप का वध कर भक्त प्रहलाद की रक्षा की और प्रहलाद की प्रार्थना पर वराह और नरसिंह अवतार के सयुंक्त रूप में वहीं पर एक प्रतिमा के रूप में विराजमान हो गए, ऐसा भी माना जाता कि जैसे-जैसे समय बीतता गया मंदिर का क्षय होता गया और प्रतिमा धरती में विलुप्त हो गई। कालांतर में एक बार चंद्रवंशी राजा पुरुरवा उर्वशी नामक अप्सरा के साथ सिम्हाचलम में भ्रमण के लिए गए तो उर्वशी को स्वप्न में वहाँ पर धरती में भगवान की दबी हुई मूर्ति होने के बारे में ज्ञात हुआ। राजा पुरुरवा ने प्रतिमा को बाहर निकलवाया लेकिन बहुत ढूंढने के बाद भी प्रतिमा के पैर ना मिलने से वो चिंतित थे तभी किसी दैवीय आवाज़ ने उन्हें बताया कि भगवान की प्रतिमा अपने इस रूप में भी अपने भक्तों को मोक्ष प्रदान करने में सक्षम है। दैवीय शक्ति ने उर्वशी को स्वप्न में यह निर्देश दिया कि प्रतिमा को अक्षय तृतीया के अलावा हमेशा चंदन का लेप लगाकर रखा जाए। चंदन का लेप लगाकर रखने से प्रतिमा शिव लिंग की भांति दिखती है। हर अक्षय तृतीया को चंदनोत्सवम के दौरान चंदन के लेप को हटाया जाता है और केवल बारह घंटे के लिए भगवान के निजरूप के दर्शन भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं।

ओड़िया, चालुक्य व चोला स्थापत्य शैली में बने भगवान वराह लक्ष्मी नरसिम्हा के इस अतिविशाल मंदिर में तीन बाहरी बरामदे व पाँच गेट हैं। मंदिर एक रथ की संरचना लिए है। मंदिर के वर्गाकार गर्भगृह व् गर्भगृह के आगे के बरामदे के ऊपर पिरामिड आकर की छत है। बरामदे के आगे सोलह स्तंभों का मुखमंडपम है। मंदिर में 96 स्तंभों का एक कल्याण मंडप भी है जो विवाह आदि कार्यक्रमों के लिए प्रयोग में आता है । ऐसा विश्वास किया जाता है कि मंदिर में लगे कप्पास्थम्बम को जो भक्त शुद्ध मन से भुजाओं में भरकर कोई मुराद मांगता है तो उसकी मुराद पूरी होती है। मंदिर परिसर के पास ही प्राकृतिक झरने को  गंगाधर कहा जाता है ऐसा माना जाता है कि जो भक्त झरने में स्नान करता है उसके सब पाप धुल जाते हैं और बीमारियाँ भी ठीक हो जाती हैं। मंदिर परिसर में ही वराह पुष्करणी नामक तालाब है और ऐसा विश्वास है कि भगवान वैंकटेश्वर ने स्वयं इस तालाब में स्नान किया था।

सिम्हाचलम मंदिर में दर्शन कर ना जाने क्यों यात्रा का उद्देश्य पूरा होता मालूम पड़ रहा था, इस यात्रा ने देश, धर्म ,इतिहास, प्रकृति जैसे यात्रा के कई पहलुओं को जानने-समझने का अवसर दिया था। समुन्दर की बैचैनी को महसूस किया था मैंने इस यात्रा में और पहाड़ों की निश्चलता को भी। ऐसी यात्राएँ कम ही होती हैं जो आपकी सभी हसरतों को पूरा करती हैं, ऐसी ही थी विशाखापत्तनम की ये यात्रा। किसी ने इस शहर को ठीक ही नाम दिया है…. “दी सिटी ऑफ़ डेस्टिनी”

– सचिन देव शर्मा

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

‘वर्षावास’ की काव्यात्मक समीक्षा

‘वर्षावास‘ अविनाश मिश्र का नवीनतम उपन्यास है । नवीनतम कहते हुए प्रकाशन वर्ष का ही …

5 comments

  1. सुदंर धारा प्रवाह लेखन
    यात्रा की हर तरह से मनोरम झलकिंयॉं दिखाता सा लगा
    💐💐

  2. Do you have a spam issue on this blog; I also am a
    blogger, and I was wondering your situation; many of us have created
    some nice methods and we are looking to swap techniques with other folks, please
    shoot me an e-mail if interested.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *