Home / Featured / गर फ़िरदौस बर-रू-ए-ज़मीं अस्त/ हमीं अस्त ओ हमीं अस्त ओ हमीं अस्त

गर फ़िरदौस बर-रू-ए-ज़मीं अस्त/ हमीं अस्त ओ हमीं अस्त ओ हमीं अस्त

प्रदीपिका सारस्वत के लेखन से कौन परिचित नहीं है। उन्होंने किंडल पर ईबुक के रूप में ‘गर फ़िरदौस’ किताब प्रकाशित की, जो कश्मीर की पृष्ठभूमि पर है। किताब कीअच्छी चर्चा भी हो रही है। उसका एक अंश पढ़िए, एक क़िस्सा पढ़िए- मॉडरेटर

==============================

हमज़ा नाम था उसका, तीन महीने पहले ही इधर आया था। ठीक-ठाक ट्रेनिंग के बाद भेजा गया था उसे। बाद में उसने यह भी बताया था कि वो सुल्तान आबाद से था, स्वात घाटी से। इस से पहले पेशावर के एक स्कूल में चपरासी का काम करता था। उसे पता था कि गोली लगने पर क्या करना है। उसके बस्ते में सामान था। शौक़त उसकी हिदायतों के मुताबिक़ काम करता गया और गोली ज़ख़्म से बाहर निकाल दी गई। उसे साफ करने के बाद मरहम पट्टी भी कर दी गई। शौक़त को रात वहीं रुकना पड़ा था। ज़ख़्म भरने तक हमज़ा भी वहीं रहने वाला था। सुबह शौक़त से कहा गया कि वो एक सिम कार्ड का इंतज़ाम करे। ये काम इतना भी आसान नहीं था। सिमकार्ड को आसानी से ट्रेस किया जा सकता था। लेकिन शौक़त को काम दिया गया था, सो उसे करना ही था। अब तक गाँव के जमातियों को भी खबर लग चुकी थी कि एक पाकिस्तानी मुजाहिद गाँव में ठहरा है। उन्होंने भी शौक़त को बुला भेजा। घर पर माहौल अलग ग़मगीन था। कोई आपस में बात ही नहीं कर पा रहा था। खाने पर लोग साथ बैठते ज़रूर, पर चुपचाप खाकर उठ जाते। बस बीवी ने कई बार रात को उसे कुरेदने की कोशिश की थी कि आखिर मसला क्या है। शौक़त ने हर बार टाल दिया। जमात के लोगों की उससे ख़ास बनती नहीं थी। वो अब परेशान कर रहे थे। न तो वो लोग मुजाहिद को अपनी देखभाल में ले रहे थे, और ना ही शौक़त को अपना काम करने दे रहे थे। उसे बार-बार पूछताछ के लिए बुलाया जा रहा था। उसे कई बार ये भी लगा था कि उसपर नज़र रखी जा रही है। घबराकर उसने अपनी पहचान के एक एसआइ को फ़ोन कर दिया, कहा कि वो उससे मिल कर कुछ बताना चाहता था। फ़ोन पर सब कुछ बताना ठीक नहीं होता। लेकिन एसआइ उस वक्त अपने तमाम कामों में फँसा था। उसने शौक़त की बात को तवज्जो नहीं दी। फिर एक दिन जमात वालों ने मुजाहिद के साथियों से राब्ता कर, उसे वापस पहुँचा दिया था। बात धीरे-धीरे पुरानी पड़ गई। लेकिन खत्म नहीं हुई। इसके बाद कुछ मुजाहिद बार-बार गाँव आने लगे। शौक़त से उन्होंने ठीक-ठाक पहचान कर ली थी। सर्दियों के दिनों में उनके ठहरने, खाने के इंतज़ाम से लेकर चीज़ें लाने-ले जाने, कहीं खबर पहुँचाने जैसे काम भी अब शौक़त से कराए जाने लगे थे। इस बात पर जमातियों में ग़ुस्सा था।

इस सब से बचकर एक बार शौक़त शहर में अपनी पुफी के घर रहने चला गया था। शहर मतलब श्रीनगर। उन्हीं दिनों उसे एसआइ मीर का फ़ोन आया था। उसने पूछा था कि पिछली बार वो क्या बताना चाहता था। शौक़त ने सब बता दिया। फिर उस दिन के बाद शौक़त की ज़िंदगी कभी पहले जैसी नहीं हो सकी थी। तब से कार्गो आने-जाने का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वो अब बदस्तूर जारी था। सिर्फ कार्गो ही नहीं, उसे जाने कहाँ-कहाँ जाना पड़ता था। कभी कंगन तो कभी वारपोरा, कभी पाम्पोर, कभी अहरबल। आज भी उसे वैसा ही फ़रमान जारी हुआ था। चित्रगाम जाना था। कोई नया लड़का एक्टिव हुआ था। उसे क्लियर करने का दबाव था ऊपर से। किसी अच्छे घर का लड़का था। दो सालों में वो तमाम मुजाहिदों से मिला था। ये बात उस पर अच्छी तरह साफ हो चुकी थी कि इन सब लड़कों को हथियार और हुकूक की लड़ाई की ये दुनिया बाहर से जितनी मर्दाना लगी थी, भीतर आने के बाद उन सब की आँखों से पट्टी उतर गई थी। फिर चाहे वो घाटी के लड़के हों या फिर उस पार वाले मेहमान। इंस्पेक्टर मीर इस बारे में एकदम सही कहता है, ‘इट्स नथिंग बट अ ग्लोरिफाइड मेस…’ शुरुआती दिनों में उसने एक दो बार कोशिश भी की थी कि ये लड़के सरेंडर कर दें। पर ऐसे मौक़े, उसके अपने लिए उल्टे पड़ गए थे। सरेंडर के बारे में बात करने का मतलब था मौत को दावत देना। वो लड़के चाहें तब भी ऐसा नहीं कर सकते थे। इस ग्लोरिफाइड मेस के भीतर कुछ भी ग्लोरियस नहीं था। जब भी वो इस सबके बारे में गहराई से सोचने की कोशिश करता, उसे घबराहट होने लगती थी। उसकी आँखों के सामने हमज़ा का सफ़ेद, मुर्दा चेहरा घूम जाता। उसी ने कहा था कि कुछ लोग वक्त से पहले मर जाया करते हैं। शौक़त का वास्ता अब अक्सर ही ऐसे लोगों से पड़ने लगा था।

हमज़ा शुरुआत में उसे ऐसा नहीं लगा था। गोली लगने के बाद जितनी हिम्मत और ज़र्फ के साथ उसने अपना घाव भरने का इंतज़ार किया था, शौक़त मन ही मन उसे सलाम करता। परदेसी मुल्क में कोई आखिर क्यों अपना सबकुछ छोड़कर अपनी जान हथेली पर लिए इस तरह फिरेगा। ये सवाल उसने कई बार पूछना चाहा था पर कभी हिम्मत नहीं हुई। दो जुम्मे रहा था हमज़ा उसके यहाँ, लेकिन मज़ाल क्या कि उसके चेहरे से मुस्कुराहट कभी गई हो। उसके बाद भी वो कई बार आया था। पहले शुक्रिया कहने। फिर बाद में बस यूँ ही। हमज़ा को एक अपनापा हो गया था उसके साथ। और शौक़त को भी उसके लिए फ़िक्र होती। एक बार चिलईकलान का वक्त था। बहुत बर्फ़ पड़ी थी। हमज़ा आया हुआ था। शाम को दोनों एक टिन के डब्बे में आग जलाकर बैठे बातें कर रहे थे। सर्दी इतनी थी कि फेरन के भीतर पड़ी काँगड़ी भी काफी नहीं मालूम हो रही थी। पाँव गर्म होते तो सीना ठंडा रह जाता, और सीना गर्म होता तो पाँव बर्फ़ हो जाते। हमज़ा को न जाने क्या सूझा। उसने उठकर अपने बस्ते में से एक ट्राँज़िस्टर निकाला, पैनासोनिक की छोटी-सी, पुरानी मशीन जिसके कोने झड़े हुए थे। शौक़त को लगा था कि शायद वो अपने मुल्क को याद कर रहा था। जब उसने रेडियो के पुर्ज़े को घुमाना शुरू किया तो किसी पाकिस्तानी स्टेशन पर नहीं रोका। पर विविध भारती पर रफ़ी की आवाज़ सुनकर उसकी अंगुलियाँ थम गई थीं। “मेरा खोया हुआ रंगीन नज़ारा दे दे…” गाना खत्म होने पर उसने रेडियो बंद कर दिया और फिर अपनी कहानी सुनाने लगा था।

पेशावर में एक लड़की से मोहब्बत थी उसकी। आम सी लड़की थी, कोई बहुत ख़ूबसूरत नहीं। बस उसकी आँखों में एक कच्चा सा हरा रंग था। कपड़े पर अच्छी बूटियाँ काढ़ती थी, सिलाई भी करती। अपने स्कूल की हैड मास्टरनी और बाकी मास्टरनियों के लिए उसके घर के चक्कर करते हुए, हमज़ा पसंद कर बैठा था उसे। उस लड़की के दिल में भी सीधे-सादे हमज़े की तस्वीर उतर गई थी। तब वो गाने खूब गाता था। रफ़ी और किशोर के गाने। हमज़े के माँ-बाप थे नहीं, मगर लड़की के माँ-बाप उससे बड़े ख़ुलूस से मिलते। उसका भाई अक्सर बाहर रहता। डेरा इस्माइल खान में काम था उसका। जब उसने हमज़े को अपने साथ काम करने की दावत दी थी, तो उसे निकाह की शहनाई सुनाई देने लगी थी। यहाँ आया तो पता चला कि काम क्या था। उसे बताय गया कि वो बहुत क़िस्मत वाला था, जो उसे ऐसा सवाब का काम करने मिल रहा था। बस एक गर्मियों के लिए उस पार जाना था। वापस आकर उसके लिए यहीं नौकरी का इंतज़ाम कर दिया जाएगा, और फिर उसकी ज़िंदगी आबाद। ट्रेनिंग के दौरान जब तकरीरें होतीं कि अल्लाह के काम के लिए उन्हें कैसे चौकस रहना है, कैसे अपनी निगाह मरकज़ी मक़ाम पर रखनी है, वो बूटियाँ काढ़ने वाली का चेहरा याद करता। उसका अल्लाह वहीं, उसकी हरी आँखों में जो था। पर अब उसे डर लगने लगा था। उसे अहसास हो गया था कि वो वापस लौट नहीं पाएगा। उस मुलाक़ात के हफ़्ते भर बाद शौक़त पता चला था कि हमज़ा मारा गया। वो उसकी लाश की तसदीक़ करने खुद गया था। उस दिन वो सफ़ेद चेहरा उसकी आँखों से भीतर घुस कर उसके सीने में चिमट गया था।

आज उसे जिस लड़के के लिए बुलाया गया था, वैसे लड़के कम आते हैं इस तरफ। फ़िरदौस नाम है उसका। आइआइटी पासआउट, मोटी तनख़्वाह वाली नौकरी। उसके चेहरे में कुछ तो ऐसा था कि शौक़त को हमज़ा याद आया था। फ़िरदौस कल ही तंज़ीम में शामिल हुआ था। फिर एक वीडियो अपलोड हुआ। सवेरे तक हर ज़ुबान पर उसी की बात थी। बोलता अच्छा है। साफ, कम अल्फ़ाज़ में और सीधे, सुनने वाले की आँखों में देखते हुए। उसने अपनी कहानी सुनाई थी। कि जब मीरवाइज़ मौलवी फ़ारूख के जनाज़े पर गोलियाँ चलीं, तो कैसे उसके दादा ने एक जवान लड़के को बचाने के लिए अपनी जान ख़तरे में डाल दी थी। सीने पर गोली खाई और दुनिया से कूच कर गए। तीन साल का पोता उन्हें कई दिनों तक ढ़ूँढता रहा। उसने अपने चाचा का ज़िक्र किया। कि बाप की मौत के बाद कैसे अठारह साल का लड़का मुजाहिद बनने पाकिस्तान चला गया। और जब लौटा तो साल भर मुश्किल से जी पाया। वो अपनी दादी पर गुज़रे अज़ाब पर रोया कि दादा और चाचा की मौत के बाद वो रो-रोकर अंधी हो गई थी। उसने अपने बचपन के बारे में बताया कि कैसे उन दिनों हर तरफ से बस गोलियों की आवाज़ आती थी। ज़रा भी कहीं तेज़ आवाज़ होती और घर का हर शख़्स डर कर नीचे झुक जाया करता था। उसने बताया कि अब्बू जी ने क्यों उसे कभी घर से बाहर खेलने नहीं जाने दिया। उन्हें क्यों ये डर था कि कहीं उनका एकलौता बेटा भी बंदूक़ न उठा लाए। और जब स्कूल के बाद वो दिल्ली पहुँचा तब उसे पहली बार पता चला कि बदन पर वर्दी और हाथों में बंदूक़ लिए लोग सबके लिए आम नहीं थे। डर और मौत के ये साये सिर्फ उसके ही मुल्क के हिस्से आए थे। हर बार उसने ज़ब्त किया। पर अब नहीं होता।

“रोज़ मुर्दे की तरह जीने से एक दिन सचमुच मर जाना बेहतर है। जानता हूँ, मेरी शेल्फ़ लाइफ़ आपके बटर के डब्बे से भी कम है, यही तो कहते हैं न अखबार वाले हम जैसों के बारे में। पर मेरे आगे अब कोई रास्ता नहीं। मैंने बहुत कोशिशें कीं इस क़ैद में जीना सीखने की। पर दम घुटता है यहाँ। घर के भीतर भी, बाहर भी। बाहर गया तब भी इस घुटन ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। हर रोज़ सुबह उठते ही मुझे याद आता था कि वो आज़ाद दुनिया मेरी नहीं है। मुझे लौट कर यहीं आना होगा, जहाँ मेरी मौजी रहती है। मैं आजतक नहीं जान पाया हूँ कि वो कैसे रहती है। लौट कर आया तो एक बार फिर कोशिश की। सोचा था कि छोटी-छोटी ख़ुशियाँ मिलकर इस बड़ी सी घुटन पर पर्दा डाल देंगी। पर मुझे फिर याद दिला दिया गया कि यहाँ सिर्फ एक ही एहसास बचता है, और हमारे हिस्से बस वही आना है। डर। हम जब भी कुछ और चाहने, कुछ और ढूँढ़ने की कोशिश करेंगे तो मुँह की खाएँगे, मार दिए जाएंगे…”

कुछ भी झूठ नहीं कहा था लड़के ने। शायद इसीलिए हर कोई उसके बयान में अपना सच देख दे रहा था। शौक़त रात को सोने से पहले उसी वीडियो के बारे में सोचता रहा था। उसे डर महसूस हो रहा था। सुबह जब चित्रगाम के लिए निकला तो कई बार घर वापस लौट जाने का दिल चाहा। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था उसके साथ। पिछले दो सालों में तमाम लड़कों को मरते देखा है। वो जानता है कि उसे ज़िंदा रहना है तो लाशें देखनी ही होंगी। वो यह भी जानता है कि इसके बावजूद भी कोई ज़रूरी नहीं कि उसे जीते रहने के लिए बहुत वक्त मिल जाए। हमज़े की मौत के बाद उसने खुद को साफ लहज़े में समझा लिया था कि यहाँ का निज़ाम ऐसे ही चलना है। बेवजह सोचने का मतलब है अपने ज़हन में कमज़ोरी को दावत देना। मौत को दावत देना। चित्रगाम में उसका सोर्स है। उसे मालूम होगा कि ये नया लड़का किन लोगों के साथ है।

पहुँचा, तो मालूम हुआ आज रात कुछ लोग उसके घर आकर ठहरने वाले थे। उन से खबर लग सकती थी कि फ़िरदौस किस तरफ था। आज रात उसे भी यहीं बैठना था। घर के सामने खूब धुँआ था। सर्दियों के लिए कोयले तैयार हो रहे थे। एक बच्ची अपनी गुड़िया के लिए रंगीन काग़ज़ की फ़्रॉक बना रही थी। उसकी माँ डाँट रही थी कि ऊपर सूखने को रखी अल और मिर्चियाँ उठा लाए। भीतर से एक लड़की और आई, घर के बग़ीचे में लगे टमाटर तोड़ने। कोई 18-19 की होगी, आँखों पर चश्मा, लड़कों जैसा फेरन पहना था, सामने ज़िपर, पीछे हुडी। सर पर कोई हिजाब नहीं था। पड़ोस के घर से तुंबकनाड़ी की आवाज़ आ रही थी। किसी की सगाई ठीक हुई थी। रात को आने वाले मेहमानों के लिए बिस्तर निकलवाकर ऊपर के हॉल में रख दिए गए थे। हॉल की एक खिड़की ठीक से बंद नहीं होती, पर अभी इतनी भी सर्दी नहीं थी कि बहुत परेशानी हो। चाय पीने बैठे तो टमाटर जैसे गालों वाला एक छोटा लड़का त्सचवोरो ले आया। शौक़त को अपना बेटा बहुत याद आया। चाय की प्यालियाँ ख़ाली करते हुए लड़के की तक़रीर का ज़िक्र हुआ। दोनों ने माना कि लड़का अच्छा बोलता है। पर इसके आगे बात उतनी ही कही गई जितनी भीतर के झूठ पर बाहर के सच का पर्दा खींचे रखती। शौक़त जानता था कि सामने वाला भी वहीं फँसा हुआ था जहाँ खुद उसका ज़मीर। मगर किसका कलेजा इतना सख़्त कि कमज़ोर दिखने की ज़हमत उठाए। लकीर के इस पार खड़े लोग अब चाह कर भी उस तरफ नहीं जा सकते थे।

रात को घर की सारी बत्तियाँ बुझ जाने के बाद वो लोग आए थे। चार लड़के। चार आम लड़के जो कहीं भी, किसी भी घर से हो सकते थे। मगर अब इनके पास घर नहीं थे। ये बस मेहमान थे, खुद अपने भी घरों में। इनका सामान पहले ही लाकर हॉल के साथ बने गुसलखाने में रखा जा चुका था। नीली डेनिम और बादामी जैकेट वाला लड़का, जो शायद कमाँडर था, आते ही गुसलखाने में गया। बाहर निकला तो जीनिमाज़ माँगा। उसे निमाज़ पढ़नी थी। बाकी लड़कों को उनके बिस्तर दिखाए जा चुके थे। खाने के लिए काफी इसरार किया गया, मगर लड़कों ने माना नहीं। घर के मालिक ने खिड़की के किनारे से जीनिमाज़ उठाया तो उसके नीचे रखी किताब फ़र्श पर गिर पड़ी। लैंप की रौशनी में किताब का नाम पढ़ा तो कोने में लगे बिस्तर में घुस चुके लड़के के बुझे हुए चेहरे पर थकी हुई सी मुस्कान उतर आई। लोलिता, व्लादिमिर नाबुकोव। किताब को किसी ख़रगोश के बच्चे की तरह हाथ में उठाते हुए उसने पूछा, “किसकी है?” मकान मालिक के चेहरे पर जल्दबाज़ी थी। पर थोड़ा ठहर कर बोला, ‘बेटी है मेरी, बस किताबों में सर घुसाए रहती है।’ उसे खुद अंग्रेज़ी नहीं आती थी लेकिन अंग्रेज़ी किताबें पढ़ने वाली बेटी पर उसका गुमान उसकी आवाज़ में छलक आया था। शौक़त ने मुस्कुराने वाले का चेहरा देखा। ‘तूने तो बहुत किताबें पढ़ी होंगी, जिगरा,’ उसने बिना सोचे सवाल किया। लड़के की मुस्कुराहट उदास हो गई। ‘ओ ग़ुलाम मोहम्मदा, चल अब सोने की तैयारी कर,’ साथ के बिस्तर में दाढ़ी वाले लड़के ने अपनी पीठ सीधी करते हुए कहा। ग़ुलाम मोहम्मदा चुप लेट गया। शौक़त का अंदाज़ा ठीक था। ग़ुलाम मोहम्मदा फ़िरदौस ही था।

शौक़त देर रात तक सबके सो जाने का इंतज़ार करता रहा। अब करना बस यही था कि इंस्पेक्टर मीर को इतत्ला कर दी जाए। उसका काम पूरा। किसी ने यह साफ नहीं किया था कि मेहमान कितने दिन रुकेंगे। हो सकता है उसके पास बस आज की ही रात हो। अगर वो खबर कर दे तो कितना वक्त लगेगा। घंटे भर में सब निपट जाएगा। कैंप पास ही था, और पुलिस स्टेशन भी। पर जैसे ही उसकी उँगलियाँ अपने पुराने ढंग के छोटे से फ़ोन से टकरातीं, उसकी साँसों की रफ़्तार बढ़ जाती। उसकी आँखों में गर्म नमी उतर आती। वो कमज़ोर पड़ रहा था। गला ऐसे सूखता हुआ लग रहा था कि मौला का दमा उसके अपने फेंफड़ों में घुस गया हो। उसने उठ कर पानी पिया। ग़ौर किया तो मालूम हुआ कि सामने गली में कुछ हलचल थी। खिड़की खोलकर देखा, दो रक्षक गाड़ियाँ दिखीं। शायद किसी और ने वो कर दिया था, जो शौक़त से नहीं हुआ था। कुछ ही देर में बाहर हलचल और बढ़ गई। गाँव को कॉर्डन कर दिया गया था। उसने मकान मालिक को आवाज़ दी। वो हॉल में नहीं था। नीचे जाने के लिए गया तो मालूम हुआ हॉल का दरवाज़ा बाहर की तरफ से बंद कर दिया गया था। शौक़त सब समझ गया। अब इन लड़कों के साथ वो भी फँस चुका था। लड़कों को आवाज़ देने से पहले उसने गुसलखाने में जाकर इंस्पेक्टर मीर को फ़ोन लगाया। कोई जवाब नहीं मिला। लड़कों का सामान खुला पड़ा था। सिर्फ दो बंदूक़ें और कुछ गोलियाँ बाकी थीं। तैयारी बहुत क़ायदे से की गई थी। शौक़त ने बाहर निकलने का कोई और रास्ता ढूँढने की कोशिश की। गुसलखाने की खिड़की बहुत छोटी थी। वहाँ से निकलना मुमकिन नहीं था। बाहर निकला तो लड़के जाग चुके थे। बस फ़िरदौस सोया पड़ा था। बाहर आवाज़ें काफी बढ़ गई थीं। सबकी नज़रें और कान खुली हुई खिड़की की तरफ थे। शौक़त को देखा तो कमांडर ने उसका गला पकड़ लिया। वो अपने बच्चे और क़ुरान की क़समें खाता रहा कि ये उसका काम नहीं था। बाहर लाउडस्पीकर पर ऐलान किया जा रहा था कि पुलिस जानती है कि ये लोग कहाँ छुपे हैं। उन्हें सरेंडर के लिए हथियार छोड़कर बाहर आने को कहा जा रहा था।

हथियार उनके पास नाम के ही बचे थे। बाहर जाने के दरवाज़े पहले ही बंद किए जा चुके थे। “खुदा के वास्ते सरेंडर कर दो। ऐसे मरने में कोई सवाब नहीं मिलेगा, जिगरा,” शौक़त ने कमांडर का हाथ पकड़ते हुए कहा। उसने हाथ झटक दिया। बाकी लड़के निकल कर भागने के रास्ते ढूँढ रहे थे। कोई रास्ता नहीं था। हॉल का दरवाज़ा गोली मारकर तोड़ा गया। मगर यहाँ से गोली की आवाज़ सुनते ही बाहर से गोलियों की बरसात होने लगी। गोलियाँ इधर से भी चलाई गईं। मगर कितनी? घर में नीचे कोई नहीं था। पुलिस को इत्तला देने से पहले घर ख़ाली किया जा चुका था। लड़के पीछे की तरफ के एक कमरे में जा छुपे। दाढ़ी वाले लड़के ने अपने पर्स से माँ-बाप की तस्वीर निकाल ली। वो किसी बच्चे की तरह सुबक रहा था। दूसरा निमाज़ के लिए झुक गया। कमाँडर अब भी देख रहा था कि शायद कहीं से बचने का रास्ता निकल आए। बस फ़िरदौस बुत की तरह कमरे के बीच खड़ा था। जब कोई रास्ता नज़र नहीं आया तो कमाँडर ने अपना फ़ोन निकाल कर दाढ़ी वाले लड़के को थमा दिया, “अम्मा को सलाम कह ले।” फ़िरदौस की भी बारी आई। उसने बात करने से इन्कार कर दिया। कमाँडर ने खुद ही उसकी माँ को फ़ोन लगाया।

बाहर अब गहमा-गहमी बढ़ चुकी थी। हिम्मत जुटाकर शौक़त ने सामने का दरवाज़ा खोला और बाहर निकला। पहली गोली पेट में लगी और दूसरी माथे पर। उसे कुछ भी कहने का मौक़ा नहीं मिला। रॉकेट लॉंचर तैयार था। तीसरा आरपीजी घर की ऊपरी मंज़िल में फटा। आस-पास सो रहे परिंदे शोर करते हुए उड़ गए। हमसायों के घरों की भेड़ें और गाएँ, बाड़ों से निकलकर भागने का रास्ता ढूँढने लगीं। कुछ देर के शोर के बाद सब थम गया। बस धूल,धुँए और आग का एक बादल था जो मलबे के ढेर को घेरे हुए था। लकड़ी और ईंटों के एक ढेर के नीचे फ़िरदौस को अपनी आँखों में बड़ी तेज़ हरकत महसूस हुई। एक नुकीला पत्थर उसके सीने में भीतर तक उतर गया था। उसने देखा कि वो झील में डूबता जा रहा था। उसके बदन को बर्फ़ के हलके-हलके फाहों ने ढँक लिया था। झील का पानी गाढ़ा हो रहा था। उसकी मुट्ठी अपने पायजामे की जेब में एक काग़ज़ के टुकड़े पर तंग हुई, और फिर ढीली पड़ गई।

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

पुतिन की नफ़रत, एलेना का देशप्रेम

इस साल डाक्यूमेंट्री ‘20 डेज़ इन मारियुपोल’ को ऑस्कर दिया गया है। इसी बहाने रूसी …

21 comments

  1. Hi there everyone, it’s my first pay a visit at this website, and paragraph is actually fruitful for me,
    keep up posting these articles.

  2. wonderful issues altogether, you simply received a brand new reader.
    What may you recommend in regards to your submit that you simply made some days ago?

    Any sure?

  3. Hey, I think your website might be having browser compatibility issues.

    When I look at your blog in Safari, it looks fine but when opening in Internet Explorer,
    it has some overlapping. I just wanted to give
    you a quick heads up! Other then that, wonderful blog!

  4. You have made some decent points there. I checked on the internet for additional
    information about the issue and found most people will go along with your views on this site.

  5. Hello, after reading this amazing piece of writing i
    am as well glad to share my know-how here with friends.

  6. Great items from you, man. I’ve bear in mind your stuff prior to and you are just too fantastic.
    I really like what you’ve received right here, certainly
    like what you are saying and the best way through which you say it.
    You’re making it enjoyable and you continue to care for to keep
    it smart. I can’t wait to learn far more from you.
    This is really a great website.

  7. I’m not that much of a online reader to be honest but your sites really nice, keep it
    up! I’ll go ahead and bookmark your website to come back
    in the future. Cheers

  8. I think the admin of this site is in fact working hard for his site, because here every material
    is quality based data.

  9. Hi, I do think this is an excellent website.
    I stumbledupon it 😉 I may come back once again since I book marked it.
    Money and freedom is the best way to change, may you be rich and continue
    to guide other people.

  10. Hey I know this is off topic but I was wondering
    if you knew of any widgets I could add to my blog that automatically tweet
    my newest twitter updates. I’ve been looking for a plug-in like this
    for quite some time and was hoping maybe you would have some
    experience with something like this. Please let me know if you run into anything.
    I truly enjoy reading your blog and I look forward to your
    new updates.

  11. Hi, i think that i saw you visited my blog so i came
    to “return the favor”.I’m attempting to find things to improve my site!I suppose its
    ok to use some of your ideas!!

  12. Yes! Finally something about website.

  13. You really make it appear really easy together with your presentation but I
    find this matter to be actually one thing that I believe I would by no means understand.

    It kind of feels too complex and extremely wide for me.
    I’m having a look ahead to your subsequent post, I’ll try to
    get the hold of it!

  14. Hi there, for all time i used to check webpage posts here early in the dawn, because i enjoy to learn more and more.

  15. Have you ever considered about adding a little bit more than just your articles?
    I mean, what you say is important and everything. However just
    imagine if you added some great photos or videos to give your posts more,
    “pop”! Your content is excellent but with pics and clips,
    this blog could definitely be one of the very best in its field.

    Good blog!

  16. Hey There. I found your blog using msn. This is a really well written article.

    I will be sure to bookmark it and return to read more of your useful info.
    Thanks for the post. I’ll definitely return.

  17. Hey, I think your site might be having browser compatibility issues.
    When I look at your blog site in Safari, it looks fine but when opening in Internet Explorer, it has some overlapping.
    I just wanted to give you a quick heads up!
    Other then that, fantastic blog!

  18. Hi there it’s me, I am also visiting this
    web site regularly, this site is in fact good and the people
    are truly sharing fastidious thoughts.

  19. hey there and thank you for your information –
    I’ve definitely picked up something new from right here.
    I did however expertise a few technical points using this site, as
    I experienced to reload the web site many times previous to I could
    get it to load properly. I had been wondering if your hosting is OK?
    Not that I’m complaining, but sluggish loading instances times will very frequently affect your placement in google and could damage your quality score if advertising and marketing
    with Adwords. Well I’m adding this RSS to my email and could look out for a lot more of your respective
    exciting content. Ensure that you update this again very soon.

  1. Pingback: buy hashish online

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *