प्रदीपिका सारस्वत बहुत अलग तरह का गद्य लिखती हैं। जीवन के अनुभव, सोच सब एकमेक करती हुई वह कुछ ऐसा रचती हैं जो हमें अपने दिल के क़रीब लगने लगता है। लम्बे समय बाद उन्होंने कहानी लिखी है। आप भी पढ़ सकते हैं-
================
अपने बारे में कुछ बताओ?
‘मैं सुंदरता से प्रेम करती हूँ। खुली आँखों से सपने देखती हूँ। यथास्थिति को चुनौती देने में विश्वास रखती हूँ। धारा के विपरीत तैरने को तैयार हूँ।’
सुंदर।
‘उतना भी नहीं।’
ऐसा क्यों कहती हो?
‘क्योंकि ये आसान नहीं है। क्योंकि हर दिन आपको इसका अभ्यास करना पड़ता है। और ऐसा करते हुए, आखिर में आप अकेले छूट जाते हैं।’ रुक कर वह हँसती है, फिर कहती है, ‘आप जान जाते हैं कि अकेलेपन की कोई शुरुआत, कोई अंत नहीं है।’
ये क्या कह दिया उसने।
ये मुश्किलें, यह अकेला छूट जाना ही तो है, जीवित रखता है. अकेले बैठे हुए जब तुम बहुत आकुल होते हो, तो तुम पर खिंचे आकुलता के उस काले आसमान पर नीरव सुखों की बिजलियाँ कोंधती हैं. कुछ ही क्षणों को खुलने वाली उन खिड़कियों में वह पूरा संसार होता है जिसे तुम पाना चाहते हो. पर जानते हो कि पाना संभव नहीं होगा. तुम स्वयं को दिलासा देते हो कि पाने की इच्छा के बने रहने में ही तो उसकी सुंदरता है. न तो पाना संभव होता है, न उस इच्छा का खत्म होना.
शहर में बहुत से फुट ओवर ब्रिज हैं जिसपर अनजान व्यक्तियों से मिलकर बातें की जा सकती हैं। जीवन से न जाने क्या कुछ चाहने वाले, बहुत से ऊबे हुए लोगों की तरह मैं भी वहाँ जाता हूँ। उस भीड़ में जिनसे वहाँ एक बार मिलता हूँ, उनसे दोबारा मिलना हो सके, ऐसा बहुत कम होता है। क्योंकि एक बार अंतरंगता के द्वार के समीप पहुँचते ही, परिचित जीवन की वह सारी ऊब जिससे बचकर हम पुल पर आते हैं, हमें फिर से घेर लेती है। और हम फिर भाग निकलते हैं। जीवन के उबाऊ खेलों में यह खेल भी जुड़ जाता है। पुराने परिचयों से भाग कर नया परिचय बनाना, और नए परिचय के पुराना पड़ते ही किसी नए की खोज में निकल जाना।
इन दिनों सारा शहर खामोश है। कहने को लोग अपने घरों में बंद हैं। दफ्तरों, दुकानों, फ़ैक्ट्रियों में कोई काम नहीं होता। कोई छूत की बीमारी फैली है। वैसी, जैसी पहले कभी नहीं फैली। फ़रमान है कि जो जहाँ है, वहाँ से न निकले। कहते हैं दुनिया रुक गई है, वैसे, जैसे पहले कभी नहीं रुकी। लेकिन इन पुलों पर लोगों का जाना नहीं रुकता, बल्कि और बढ़ गया है। और अधिक लोग अपने बंद घरों की घुटन को दूर करने के लिए इन पुलों पर आने लगे हैं। इन जादुई जगहों पर वे जो कुछ छोड़ जाने के लिए आते हैं, उसे और अधिक साथ लेकर लौट जाते हैं।
और हाँ, इन पुलों पर किसी राजा का कोई फ़रमान नहीं चलता।
मैं न जाने कितनी लड़कियों से यहाँ मिला हूँ। किसी ने अकेले छूट जाने के बारे में इस तरह से कभी कुछ नहीं कहा। जबकि मुझे लगा लगभग हर एक अकेले छूट जाने से इस तरह डरी हुई है कि कहीं रुकती ही नहीं। डरती है कि कहीं इधर कुछ देर रुक गई तो ‘वो’ कहीं और न चला जाए। ‘वो’ कौन है, कोई नहीं जानती। ये भी नहीं जानतीं कि वो मिल भी जाएगा तो उसके साथ वे करेंगी क्या? वे अपने बड़े-से कल्पनालोक को, जो सिर्फ चमकीले काग़ज़ों का बना है, उसके कंधों पर धर देना चाहती हैं, बिना यह जाने कि उन कंधों पर पहले से क्या-क्या रखा है।
फिर उसने कैसे जान लिया कि हमारा होना ही हमारा अकेला होना है। इतनी कम उम्र में इतना साफ देख लेना? कहाँ से आई होगी वो? कम समय में खूब दूर तक चली होगी।
उससे मिलने के बाद से ऐसा लगा है कि बहुत लंबे अरसे बाद किसी से मिला हूँ। वह चली गई है। मैं अब भी पुल पर खड़ा हूँ। ये पुल अलग तरह के होते हैं। इन पर खड़े होकर नीचे नहीं झाँका जा सकता। पुल के दोनों ओर इतनी ऊँची-ऊँची दीवारें हैं कि तुम नीचे देख ही नहीं सकते। तुम जान ही नहीं पाते कि नीचे के संसार में क्या हो रहा होगा। पुल के नीचे की ओर उतरती दोनों तरफ की सीढ़ियों पर बड़े-बड़े आरामगाह बने हुए हैं। यहाँ आने वाले जब ऊब कर थक जाते हैं, जो वे इन आरामगाहों में बैठते हैं।
आरामगाहों में सैकड़ों खिड़कियाँ हैं। जो संसार के दूर के कोनों तक खुलती हैं। इन खिड़कियों से झाँकते समय तुम्हें लगेगा कि तुम कितनी अलग-अलग चीज़ें देख रहे हो। पर मुझे विश्वास है कि अगर मैं उससे इन खिड़कियों के बारे में पूछूँगा तो वो कहेगी सब खिड़कियाँ एक सा दिखाती हैं।
मैं भी अब थक कर आरामगाह में आ बैठा हूँ। सामने एक खिड़की पर लोगों का बड़ा हुजूम दिखाई दे रहा है। हाथों में गठरियाँ, पोटलियाँ उठाए ये लोग किसी पुल के नीचे से गुज़र रहे हैं। वही पुल है शायद जिसपर अभी कुछ देर पहले मैं खड़ा हुआ था। लंबी भीड़ है, खत्म ही नहीं होती दिखती। साइकिलों पर, व्हील चेयर पर, पैदल, इतने लोग? कहाँ से आए हैं? कहाँ जा रहे हैं? इन्हें बीमारी से डर नहीं लगता? क्या ये बीमार हैं? या फिर ये बीमारी से बचने के लिए चल रहे हैं?
भीड़ में एक चेहरा जाना पहचाना सा दिख रहा है। इन बुज़ुर्ग को मैं जानता हूँ। कहीं तो देखा है इन्हें। ये तो बलराम बाबा हैं, सोसाइटी के बाहर वाली सड़क पर चाय का ठेला लगाते हैं, सुरसत्ती अम्मा के पति। सुरसत्ती अम्मा मेरी सोसाइटी में काम करती हैं, मेरे घर भी खाना बनाने आती हैं।।
कुछ हफ्ते बीते, जब बीमारी फैलनी शुरू हुई तो मैंने उन्हें काम पर आने से मना कर दिया था। आज सुबह ही सीढ़ियों पर मिली थीं। कुछ लोगों ने उन्हें फिर काम पर बुला लिया है। मुफ़्त का पैसा क्यों दिया जाए, और फिर खुद काम करना कितना मुश्किल है! रोज़ दो बार खाना बनाना, झाड़ू मारना, बर्तन माँजना। इतना करने के बाद कुछ और करने की हिम्मत ही नहीं बचती। तो फिर क्यों न उसी को करने दिया जाए, जिसे इस काम के पैसे मिलने हैं। और फिर सुरसत्ती अम्मा को मना कर दिया गया है कि वे लिफ्ट का इस्तेमाल ना करें। पेंसठ साल की सुरसत्ती अम्मा चौदहवीं मंज़िल की सीढ़ियों पर हाँफतीं मिली थीं।
पर खिड़की में बलराम बाबा के साथ अम्मा नहीं दिखतीं। उनके साथ एक पतली-दुबली औरत थी और दो छोटी-छोटी लड़कियाँ। चारों के हाथों में अपनी-अपनी ताकत के हिसाब से पोटलियाँ हैं। सबसे छोटी लड़की के हाथ में दरअसल पोटली नहीं, एक पिल्ला है। इसे भी पहचानता हूँ। सोसाइटी के बाहर रहने वाली काली कुतिया के पिल्लों में एक है। कल्लो, कल्लो नाम है उसका। सुरसत्ती अम्मा उसके बारे में बात करती हैं, बची हुई रोटियाँ उसके और पिल्लों के लिए ले जाती हैं। मैं अब और देर आराम करने की सूरत में नहीं हूँ।
मैं घर की ओर चल पड़ा हूँ।
धूप इतनी सफेद है कि गर्म चाँदनी का सा अहसास होता है. पश्चिम की तरफ आसमान पर सलेटी जाजिम बिछने लगी है. शहर की हवा इन दिनों साफ है, पर गर्म इतनी कि बदन को छूते ही जलाने लगती है. चलते हुए गर्दन पर पानी के छोटे-छोटे सोते फूट रहे हैं. कुछ कॉलर में जज़्ब हो जाते हैं तो कुछ फिसल कर सीने को सहलाने लगते हैं. जैसे इस तरह भीतर कुछ ठंडक पहुँच जाएगी.
मुझे सुरसत्ती अम्मा से मिलना है। न जाने क्यों मैं एक डर महसूस कर रहा हूँ। जैसे मुझसे कुछ छूट गया है, कुछ छूट जाने वाला है। घर की ओर जाते हुए भी मुझे लग रहा है कि मैं किसी उजाड़ मैदान की ओर बढ़ रहा हूँ, जहाँ हवा में उड़ने वाली धूल और सर कटे, सूखे पेड़ों के ठूँठों के सिवाय कुछ नहीं है। मुझे प्यास लग रही है। मुझे भूख भी लग रही है। एक-एक कदम चलना इतना कठिन हो रहा है। एकाएक मेरे सिर से एक लहर सी उठती है, तेज़ी से आँखों में उतरते हुए नाक में ठहर जाती है। जैसे मैं नदी में डूब रहा हूँ और पानी मेरी नाक से भीतर जाने लगा है।
न जाने कब से मैं सो रहा हूँ, बेहोशी की नींद में। आँख खुली है तो दरवाज़े पर बहुत शोर सुनाई दे रहा है। कोई ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा पीट रहा है। कई आवाज़ें सुनाई दे रही हैं। ‘पुलिस को फोन करो। और क्या कर सकते हैं ऐसे में।’ लग रहा है जैसे दरवाज़ा तोड़ ही देंगे। मैं सोचता हूँ कि मैं सपना देख रहा हूँ। लेकिन नहीं, मैं उठकर दरवाज़े की तरफ जाता हूँ। सचमुच दरवाज़ा तोड़ने की कोशिश हो रही है। दरवाज़े के पीछे चाभी टाँगने के बोर्ड से चाभियाँ नीचे गिर पड़ी हैं।
मैं चिल्लाकर उन्हें रोकना चाहता हूँ, पर मेरी आवाज़ कोई नहीं सुनता। मैं दरवाज़ा खोलता हूँ, उस तरफ से धक्का मार रहा लड़का लगभग मेरे ऊपर आ गिरता है। मास्क लगाए हुए लोगों की एक अच्छी ख़ासी भीड़ मेरे फ्लैट के सामने खड़ी है। पचास से तो क्या ही कम होंगे। पीछे कॉरिडोर में कुछ औरतें भी हैं। इनके छुपे हुए चेहरे इन्हें बीमारी से बचा सकते हैं? ये एक बेहिस भीड़ की तरह एक दूसरे से सटे जाते हैं।
पुलिस आ चुकी है, डॉक्टर भी है। पड़ोसियों को, आरडब्लूए के अधिकारियों को लग रहा है कि मैं बीमार हूँ। मैंने काफ़ी देर से दरवाज़ा नहीं खोला। मुझे कई फोन भी किए गए, पर कोई जवाब नहीं मिला। वे सब मेरे दरवाज़े पर चले आए। कुछ के हाथों में उनके कैमरे हैं। वे रिकॉर्ड रखना चाहते हैं कि सोसाइटी में एक दरवाज़ा तोड़कर मरीज़ को निकाला गया।
गहरी नींद मैं सोना मेरी नितांत निजी घटना है। पर छूत से फैलने वाली यह बीमारी को एक वैश्विक आपदा घोषित किया गया है। आपदा के समय में कुछ भी निजी नहीं रहता। नींद भी नहीं।
पुलिसवाले मुझे थाने ले जाना चाहते हैं। पर डॉक्टर मेरा परिचित है। मैं उन्हें बताता हूँ कि मैं बिलकुल स्वस्थ अनुभव कर रहा हूँ। डॉक्टर मेरा तापमान लेता है। मेरे भीतर बीमारी का कोई लक्षण नहीं है। वह कहता है कि यहाँ खड़े सभी लोगों की जाँच होनी चाहिए। एक-एक कर सब लोग चुपचाप अपने घरों की ओर निकलने लगते हैं। जाने से पहले डॉक्टर कहकर जाता है कि मैं घर पर ही रहूँ। मैं पुल के बारे में सोचने लगता हूँ। और सुरसत्ती अम्मा के बारे में।
सब चले गए हैं। मेरे फोन में आरडब्लूए वालों की काल्स हैं। सबसे पहला फोन सुरसत्ती अम्मा का है। मैं जल्दी से उन्हें फोन करता हूँ। बहुत दिनों से किसी को फोन करते समय ऐसी बेचैनी नहीं हुई है। सुरसत्ती अम्मा बताती हैं कि आज उन्होंने कटहल बनाया था। वे जानती हैं कि कटहल मुझे बहुत स्वाद लगता है। उन्हें फ़िक्र है कि इतने दिनों से मैं न जाने कैसे बना-खा रहा हूँ। वे डरते-डरते कह बताती हैं कि कुछ कटहल मेरे लिए रख दिया है। शाम को मिश्रा के यहाँ खाना बनाने जाएँगी तो लेती आएँगी, अगर मैं कहूँ तो।
मैं घड़ी देखता हूँ। तीन बज रहे हैं। कल शाम राजमा चावल बनाए थे, इंस्टेंट। उनके नकली ज़ायक़े से थक गया हूँ। कटोरा अब भी फ्रिज में पड़ा है। मैं कटहल खाना चाहता हूँ। अभी। भूख अचानक से बहुत तेज़ हो गई है, सिर में दर्द महसूस होने लगा है। दिमाग कुछ साफ-साफ काम नहीं करता। दरवाज़ा, भीड़, बीमारी, कटहल। मैं दरवाज़े का ताला लगाकर नीचे चल पड़ा हूँ।
मुझे नहीं पता सुरसत्ती अम्मा कहाँ रहती हैं। कौन बताएगा मुझे। नीचे कल्लों के दो पिल्ले घूम रहे हैं। ये बता सकते हैं। पर मैं उनसे नहीं पूछता। सोसाइटी के दाँई ओर एक पतली सी गली है। मैं उसी गली में जा रहा हूँ, धूल से अटी गली जिसके एक तरफ सोसाइटी चमचमाती हुई, सपाट, ऊँची दीवार है और दूसरी तरफ झाड़ियाँ। झाड़ियों के उस ओर दूसरी सोसाइटी की दीवार तक कुछ झोपड़ियाँ हैं, टीन की छतों और काली प्लास्टिक से ढँकी। पर कोई आदमी नहीं दिखता। सब सुनसान पड़ा है। नीले रंग के एक दरवाज़े के आगे काली कुतिया बैठी है। मुझे विश्वास है कि यहीं रहती हैं सुरसत्ती अम्मा।
देर तक वहीं खड़े रहने के बाद भी मैं दरवाज़ा नहीं खटखटा पाता। न जाने क्यों मैं रोना चाहता हूँ, हताशा से, गुस्से से, भूख से, किसी ऐसी अनुभूति से जिसका नाम में नहीं जानता।बहुत असहाय महसूस कर रहा हूँ। मैं रो पड़ता हूँ, जैसे बचपन में रोया करता था। ज़ोर-ज़ोर से। चेहरे को हाथों में छुपाए। कल्लो उठकर मेरे पास आ गई है, उसकी पूँछ हिल रही है। वह मेरे पाँव सूँघ रही है।
अम्मा मुझे देखकर हैरान नहीं होतीं। वो थोड़ी देर वहीं रुकने को कहती हैं, कहती हैं टिफ़िन लाकर देंगी। मैं उनके घर में भीतर चला जाता हूँ। बहुत नीची छत है, भीतर सीधा खड़ा नहीं हुआ जा सकता। ज़मीन को गोबर और मिट्टी से लीपा है। एक कोने में प्लास्टिक के दो तीन बड़े-बड़े ड्रम रखे हैं। शायद पानी है उनमें, या बाकी चीज़ें। दूसरे कोने में कुछ सूटकेस, बक्से और उनके ऊपर तह किए हुए बिस्तर। एक कोने में रसोई है, छोटे बड़े कुछ डिब्बे, टोकरियाँ। दीवार के सहारे एक दरी बिछी है। मैं उसी पर जा बैठा हूँ।
मैं अनुभव कर रहा हूँ कि पहाड़ों पर अपने गाँव में हूँ। अपने बचपन में। जीने को कितना ही चाहिए? मैं अब पहले की तरह रो नहीं रहा हूँ। पर भीतर बहुत कुछ हो रहा है। मैं उस सब को देख रहा हूँ। देख रहा हूँ कि मैं अपने भीतर कुछ ढूँढ रहा हूँ, जो मिल नहीं रहा है।
कभी कुछ खोना महसूस किया है? ऐसा लगता है जैसे भीतर कुछ बुझ गया है, कोई शून्य बन गया है भीतर जो चलती हुई साँस को अपनी तरफ खींचता जा रहा है और जीने के लिए हवा कम पड़ रही है. वरटेक्स। याद नहीं पड़ता कि जो खोया है उसके पास होने का सुख कैसा था. बस इतना याद रहता है कि उस सुख के बिना जीवन कितना अर्थहीन है. इतना अर्थहीन कि किसी और विषय की ओर जी नहीं जाता. सारी इंद्रियाँ बस उसी एक सुख की ओर लगी जाती हैं. उसी एक सुख के न होने का दुख दसों दिशाओं से तुम्हारी ओर ताकते संसार पर भारी पड़ जाता है.
मेरे हृदय में बर्फ के शहर हैं, बर्फ के घर जितनी छतों से बर्फ के नुकीले त्रिशंकु लटक रहे हैं. सर्दियों के मौसम में किसी ठंडे शहर की छतों पर गिरी बर्फ से बूँद-बूँद पिघलकर गिरता पानी जब ज़मीन से पहुँचने से पहले ही जम जाता है तो वैसे त्रिशंकु बनते हैं.
अम्मा ने स्टील की एक थाली में खाना लाकर रख दिया है। कटहल की सब्ज़ी, रोटियाँ और गुड़। मैं एक निवाला खाता हूँ और सारे त्रिशंकु पिघल कर बह जाना चाहते हैं।
अम्मा का एकलौता बेटा मुंबई से पैदल उनके गाँव जा पहुँचा है। बहुत बीमार है। उसकी बीवी बच्चे यहीं अम्मा और बाबा के पास रहते रहे हैं। उसकी बीमारी की खबर सुनने के बाद सब गाँव चले गए हैं। अम्मा नहीं जा सकतीं। कोई कमाएगा भी तो सही।
अब मुझसे इस झोपड़ी में नहीं रुका जा रहा है। कुछ देर पहले जो झोंपड़ा अपने गाँव का घर लगता था, अब वहाँ घुटन होने लगी है। इतनी मेहनत करती है अम्मा इस उमर में। न करें तो… न जाने क्या हो। मैं पुल पर लौट जाना चाहता हूँ। उसके पास। यह अकेलापन जानलेवा है।
ऐसा लगता है कि मैं एक मकान हूँ, पिछले बहुत से सालों में न जाने कितनी इच्छाओं की ईंटों और कोशिशों के गारे से बना। पर अब जैसे इस मकान पर कुदालें चलाई जा रही हैं। पुल के नीचे से गुज़र रहे वो पैदल मज़दूर अपने हाथों में अपनी कुदालें और फावड़े लिए मुझे थोड़ा-थोड़ा कर तोड़ रहे हैं। बहुत सा मलवा मेरे चारों ओर इकट्ठा होता जा रहा है। उस मलबे के ढेर पर एक तरफ बलराम बाबा चाय बना रहे हैं। सुरसत्ती अम्मा दूसरी तरफ रोटियाँ सेंक रही हैं।
मैं उठकर चला आया हूँ, बिना कुछ बोले। पुल पर वैसी ही भीड़ है। हाथों में तख्तियाँ लिए खड़े लोग। “मुझे घूमना बहुत पसंद है” या “मुझे कॉफी से ज़्यादा चाय पसंद है” या फिर “आइ नो अ ग्रेट डील अबाउट वाइन्स”। जितने लोग उतनी तरह की तख्तियाँ। यहाँ न तो चाय है, न कॉफ़ी और न ही वाइन। तब ये सब बातें किस लिए? यह सब छलावा-सा है।
मैं उससे मिलना चाहता हूँ, जो खुली आँखों से सपने देखती है, जो यथास्थिति को चुनौती देने को, धारा के विपरीत तैरने को तैयार है। पर वो यहाँ नहीं है। मैं जानता हूँ वो यहाँ नहीं हो सकती। यह समय यहाँ होने का नहीं है। मैं वापस लौटने लगता हूँ।
नीचे के आरामगाहों में भी कोई शाँति नहीं। बस शोर है। खिड़कियों पर डरावनी चीज़ें दिखती हैं। एक मरे हुए आदमी की आवाज़ में सुनता हूँ कि बीमारी के कारण इतनी बड़ी संख्या में मौतें हो चुकी हैं। बड़ी कंपनियाँ सब छोड़कर वेंटिलेटर बना रही हैं। क्या सब छोड़कर? दुनिया के सबसे अमीर लोग दुनिया को थाम देने वाली इस बीमारी से मानव की रक्षा करने के लिए वैक्सीन बना रहे हैं।
पर दुनिया अब भी चल रही है। सड़कों पर पैदल। बलराम बाबा अब दिखाई नहीं देते। लोगों के पाँव घायल हैं, वे भूखे हैं। कुछ खिड़कियों पर भूखों को खाना बाँटने वालों की तस्वीरें हैं। कुछ खिड़कियों पर इस सबसे अलग, ऊँचे-ऊँचे घरों के सँवरे हुए कोनों की तस्वीरें हैं, तरह-तरह के लज़ीज़ खानों की नुमाइश है। एक खिड़की में रेल की पटरी पर बिखरी हुई रोटियों की तस्वीर टँगी है।
एक ही कोण से किसी का उजला और काला चेहरा एक साथ कैसे देखा जा सकता है? यह नहीं होना चाहिए। मुझे उबकाई आ रही है।
“ये जो बीमारी है, एक प्रयोग है, एक परीक्षण,”आरामगाह से निकलते-निकलते मैं किसी को कहते सुनता हूँ।
उफ़! मैं नहीं जानता कि कहाँ जाऊँ। घर, जहाँ से भाग कर मैं पुल पर चला आता हूँ? पुल, जहाँ से भागकर मैं सुरसत्ती अम्मा को ढूँढने गया था। सब धुँधला होता जा रहा है। मैं फिर बेहोशी में उतर रहा हूँ। सब कुछ पानी में डूब रहा है। चमचमाती उँची- बहुत ऊँची इमारतें, जो अब खाली पड़ी हैं। घरों में बैठे, तस्वीरें उतारते लोग। खिड़कियाँ, सड़कें, सोसाइटीज़, शहर के सारे पुल… बहाव बहुत तेज़ है। बदन पर पानी का दबाव भी।
अब मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा। मेरा शरीर पानी में नीचे गिरता जा रहा है और किसी भी क्षण धरातल को छू सकता है।
एक हलकी सी आवाज़ और अब मैं ज़मीन पर हूँ।
यहाँ कोई शोर नहीं है।
सब खत्म हो जाने के बाद सब खत्म हो जाता है, वह सब जो देखा जा सकता है, सुना जा सकता है, छुआ जा सकता है, साँसों में उतारा जा सकता है, चख कर देखा जा सकता है। इन आख़िरी पलों में भी मैं बिलकुल अकेला हूँ। आख़िरी पल? शायद सब पहले ही खत्म हो चुका है।
सब खत्म होने के बाद भी कुछ आख़िरी हो सकता है क्या?
मैं एक आवाज़ सुन रहा हूँ। बाँसुरी की आवाज़। यह कानों से सुनाई नहीं देती, वरन महसूस होती है, किसी ऐसी इंद्रिय से, जिसके बारे में हमें कभी बताया नहीं गया। मेरे आस-पास एक सफ़ेद अँधेरा घिर आया है, जैसा बारिश के दिनों में पहाड़ पर घिर आया करता था।
वो मुझे अपने बारे में बता रही है।
‘मैं सुंदरता से प्रेम करती हूँ। खुली आँखों से सपने देखती हूँ। यथास्थिति को चुनौती देने में विश्वास रखती हूँ। मैं धारा के विपरीत तैरने को तैयार हूँ…’
===============
दुर्लभ किताबों के PDF के लिए जानकी पुल को telegram पर सब्सक्राइब करें
ये क्या लिख दिया प्रदीपिका जी..
शब्द की फिनिश हो गए हमारे
Hi, this weekend is pleasant in favor of me, because this moment i am
reading this fantastic informative article here at my house.
Hey just wanted to give you a brief heads up and let you know a few of
the images aren’t loading correctly. I’m not sure why
but I think its a linking issue. I’ve tried it in two different browsers
and both show the same results.
I visited various blogs but the audio feature for audio songs current at
this web page is actually superb.
Fascinating blog! Is your theme custom made or did you download it
from somewhere? A design like yours with a few simple adjustements would really make my blog stand out.
Please let me know where you got your design. Cheers
I’m truly enjoying the design and layout of your blog.
It’s a very easy on the eyes which makes it much more
enjoyable for me to come here and visit more often. Did you hire out a designer to
create your theme? Fantastic work!
Why users still make use of to read news papers when in this technological world all is
existing on web?
Hi there! This article couldn’t be written much better!
Looking at this post reminds me of my previous roommate!
He continually kept talking about this. I most certainly will forward this post to
him. Pretty sure he’s going to have a very good read. Thank
you for sharing!
constantly i used to read smaller articles or reviews which
as well clear their motive, and that is also happening with this paragraph which I am
reading now.
It’s amazing in favor of me to have a website,
which is helpful designed for my know-how. thanks admin
Great goods from you, man. I have understand your stuff previous to and you are just extremely wonderful.
I really like what you have acquired here, certainly like what
you are saying and the way in which you say it. You make it
enjoyable and you still care for to keep it smart.
I can’t wait to read far more from you. This is really a terrific website.
Terrific work! This is the type of information that are meant to be shared around the internet.
Shame on the search engines for no longer positioning
this put up higher! Come on over and seek advice from my site
. Thank you =)
Right away I am going to do my breakfast, afterward having my breakfast
coming yet again to read other news.
I got this web page from my friend who informed me regarding this web site and now this time I
am visiting this website and reading very informative articles at this time.
Excellent beat ! I would like to apprentice whilst you amend your web site, how
could i subscribe for a weblog website? The account aided me a applicable deal.
I have been tiny bit acquainted of this your broadcast
provided bright clear concept
I pay a visit everyday a few sites and information sites to read
posts, but this weblog offers quality based writing.
Your method of explaining all in this post is really good, all can simply be aware of it,
Thanks a lot.
Hi, I would like to subscribe for this website to obtain latest updates, thus where can i do it please assist.
I appreciate, result in I found exactly what I was having a look for.
You have ended my 4 day long hunt! God Bless you man. Have
a great day. Bye
Hi, I would like to subscribe for this web site to obtain latest updates, thus
where can i do it please help out.
Hi there! I could have sworn I’ve been to this blog before but after reading through some of the post I realized it’s new to me.
Nonetheless, I’m definitely happy I found it and I’ll be bookmarking and checking back frequently!
excellent points altogether, you just received a new reader.
What may you recommend about your post that you simply made a few days ago?
Any certain?
That is a great tip especially to those fresh to the blogosphere.
Simple but very accurate information… Appreciate your
sharing this one. A must read article!
hello there and thank you for your information – I’ve certainly picked
up something new from right here. I did however expertise
several technical points using this web site, since I
experienced to reload the site many times previous to I could get it to load correctly.
I had been wondering if your web hosting is OK? Not
that I am complaining, but sluggish loading instances times will often affect your placement in google and can damage
your high-quality score if advertising and marketing with Adwords.
Well I am adding this RSS to my email and could look out for a lot more
of your respective exciting content. Make sure you update this again very
soon.
This article is actually a nice one it assists new web users, who are
wishing for blogging.
Peculiar article, totally what I needed.
Hi there very nice blog!! Guy .. Excellent ..
Superb .. I’ll bookmark your site and take the feeds additionally?
I’m happy to seek out numerous useful information here in the submit, we need work out extra strategies in this regard,
thanks for sharing. . . . . .