हरि मृदुल संवेदनशील कवि और कथाकार हैं। छपने छपाने से ज़रा दूरी बरतते हैं लेकिन लिखने से नहीं। जीवन के छोटे छोटे अनुभवों को बड़े रूपक में बदलने में दक्ष हैं। बानगी के तौर पर यह कहानी पढ़िए-
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फु ऽऽ स्स…
मुझे पता था कि यही होना है! इसीलिए मैं चाहता था कि हसु खुद यह पैकेट खोले। हालांकि उसने कोशिश तो पूरी की थी, लेकिन वह खोल नहीं पाया।
‘ऐेसे खोलो, ऐसे’, मैंने इस काम से बचने का आखिरी प्रयत्न किया। परंतु हसु से पैकेट नहीं खुला। आखिरकार उसने मेरे हाथों में थमा दिया।
‘पापा खोल दो ना, आप ऐसा क्या करते हो?’ हसु चिढ़़ गया।
‘अब तेरा यही ड्रामा रहेगा। अपनी मम्मी को दे ना,’ मैंने चालाकी दिखाने का फिर से प्रयास किया।
चूकि नेहा पानी की बोतल खरीदने के लिए पर्स में छुट्टे रुपए ढूंढ़ रही थी, सो वह भी झुंझला पड़़ी — ‘कमाल है, बच्चे का इतना सा काम करने में भी आलस आ रहा है। मैं तो इसे पूरा दिन संभालती हूं। खोलिए पैकेट।’ मैं कोई जवाब देता, वह पानी की बोतल खरीदने जा चुकी थी।
‘ला, हसु बेटा। आज पूरे दिन पापा को ऐसे ही तंग करना हां’, यह कहते हुए मैंने पैकेट का एक कोना दांतों से दबाकर फाड़़ा और हसु को दे दिया।
फु ऽऽ स्स…।
हवा निकलने की आवाज सुनाई तो नहीं दी। परंतु पैकेट जिस तरह तत्काल पिचक गया, उससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता था कि हवा कुछ ऐसे ही निकली होगी – फुऽऽ स्स…।
इधर फुऽऽ स्स…, उधर हसु का चीखना शुरू और फिर रोना।
‘अब क्या हो गया?’ मैं हसु से भी ज्यादा जोर से चीखा।
‘मेरे वेफर कहां गए? इतना बड़़ा पैकेट है, इतने कम वेफर। मुझे यह नहीं चाहिए। दूसरा लाओ।’ कुल मिलाकर हसु की नौटंकी शुरू।
मुझे पता था कि यही होना है, इसीलिए मैं चाहता था कि हसु खुद यह पैकैट खोले।
यूं खरीदते समय मैंने उसी से यह पैकेट छंटवाया था कि अपनी पसंद का लो और अपने हाथ से लो। बाद में कोई रोना-चिल्लाना न हो।
लेकिन फिर वही तमाशा।
दो दिन पहले भी ऐसा ही हुआ था…।
शाम के समय घूमने निकले ही थे कि गली के मोड़़ पर हसु की नजर ‘निशा जनरल स्टोर ’ पर सौ- दो सौ की संख्या में लटकाए वेफर्स के पैकेटों पर पड़़ गई थी।
हसु स्टोर के सामने अड़़ गया।
‘चाहिए
चाहिए तो चाहिए’
रोना शुरू।
ले भाई ले। अब तो चुप कर।
परंतु यह चुप्पी दो मिनट भी बरकरार नहीं रह सकी। यही सब हुआ। पैकेट नहीं खुला, तो मुझे दे दिया खोलने। मुझ से भी आसानी से नहीं खुला। मैंने दांतों से दबा कर एक कोने से फाड़़ा।
फुऽऽ स्स…।
वेफर का पैकेट पिचक कर तिहाई रह गया।
हसु का रोना शुरू। इतना कम कैसे हो गया? मुझे यह नहीं चाहिए, दूसरा चाहिए।
मैं हसु को किसी भी विधि यह समझाने में नाकाम रहा कि इसमें हवा भरी थी, जो पैकेट खोलते ही फु ऽऽ स्स… हो गई। अंदर इतने ही वेफर थे। लेकिन हसु को मेरी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसे लग रहा था कि मैं उसे फुसला रहा हूं।
‘मुझे दूसरा पैकेट चाहिए ’ जोर-जोर से रोना शुरू।
दूसरा पैकेट खरीदकर देना ही पड़़ा।
फिर वही खोलने की कसरत। मैंने कहा — इस बार मैं नहीं खोलूंगा, खुद खोलो। लेकिन काफी कोशिश के बावजूद हसु से पैकेट नहीं खुला। उसने फिर मुझे पकड़़ा दिया— प्लीज पापा । इस बार भी मैंने दांत से ही पैकेट का एक कोना फाड़़ा। पैकेट को फिर से पिचकना ही था, पिचक गया। हसु दोबारा रोता, उससे पहले ही मैंने उसे समझाना शुरू कर दिया।
‘बिट्टू, यह पंद्रह रुपये का जरूर है, लेकिन इसमें पांच रुपये की हवा भरी होती है और पांच रुपये की यह पैक करने वाली चमकीली पन्नी होती है। लगाओ हिसाब। पांच और पांच, दस। बचे पांच रुपए, सो इतने के वेफर।’
हसु को इन सब बातों से कोई मतलब नहीं था। जवाब में उसने ‘हां हूं’ भी नहीं किया। वेफर का एक पैकेट वह खत्म कर चुका था और अब दूसरे का नंबर लग गया था। मांगने पर अपनी मां को तो उसने दो-चार वेफर पकड़़ाए, परंतु मुझे देते समय उसकी नीयत डोल गई। साफ मुकर गया।
आज फिर वही सिचुएशन।
‘आज तो मैं इसे वेफर का दूसरा पैकेट कतई नहीं दिलवाने वाला’, मैंने भी जिद पकड़़ ली। मैंने एक बार फिर हसु को समझाया कि पंद्रह रुपए के पैकेट में पांच रुपए की हवा होती है, पांच रुपए का रंग-बिरंगा रैपर और पांच रुपए के वेफर। चार साल के हसु ने फिर इस हिसाब को समझने की जरूरत महसूस नहीं की।
उसे तो वेफर का एक पैकेट और चाहिए था।
‘चाहिए
चाहिए तो चाहिए’
रोना शुरू।
लेकिन मुझे नहीं खरीदवाना। इस बार मैंने उसके रोने की कोई परवाह नहीं की। वह काफी देर तक रोता रहा।
नेहा ने जब उसके कान में फुसफुसाते हुए कोई वादा किया, तभी वह चुप हुआ। ‘कट्टी ’ सबसे छोटी उंगली दिखाई और बिना मेरी ओर देखे और बात किए अपनी मां का हाथ पकड़़ चलने लगा। अब वह मगन है।
मुझे पता है कि इस उम्र के बच्चे यह सब करते ही हैं, परंतु मैं वेफर के पैकेट का पांच-पांच-पांच का हिसाब लगा-लगाकर परेशान हो उठा हूं। पांच रुपए की वह हवा, जो पैकेट खोलते ही फुस्स हो जाती है। पांच रुपए का चमचमाता रैपर, जो दोबारा किसी काम नहीं आता। बचे पांच रुपए के वेफर । परंतु क्या इन वेफर्स की कीमत भी पांच रुपए है? इतने वेफर तो एक आलू से ही बन जाएंगे।
‘क्या इतने वेफर एक आलू से ही नहीं बन जाएंगे? ’मैंने नेहा से पूछा
‘कितने वेफर?’
‘अरे, एक पैकेट भर और कितने !!’ वह कोई जवाब देती कि मैं सीधा रसोईघर में गया और एक मंझले साइज का आलू उठा लाया।
कट कट कट कट।
छिलका निकाल कर सत्रह बारीक स्लाइस बना चुका था कुछ ही मिनटों में। एकदम वेफर के आकार के।
‘इतनी सारी देशी-विदेशी कंपनियों का अब क्या होगा?’ नेहा ने बड़़ा चुभता हुआ व्यंग्य किया।
‘लेकिन सोचने की बात तो है ही कि जब एक आलू में जरा सी मेहनत से इतने वेफर तैयार हो सकते हैं, तो फिर हम ठगे क्यों जा रहे हैं?’ मैं उत्तेजित था। इतना कि मेरी आवाज काफी ऊंची हो गई थी।
‘हां, आप ठीक कह रहे हैं। अब हम घर में वेफर बनाया करेंगे। आज ही ढेर सारे आलू खरीद लाइए। आप आलू कतरते जाना और मैं उन्हें तलती जाऊंगी। फिर आसपास की दुकानों में सप्लाई करेंगे। जल्द ही हर दुकान में हमारे ही वेफर होंगे। बहुत जल्द हम अपनी कंपनी भी शुरू कर देंगे। इसके बाद हम एमडीएच मसाले के बूढ़े मालिक तरह घिसी हुई आवाज में टीवी पर विज्ञापन देंगे – घर के बने हुए लज्जतदार वेफर…। है ना … है ना…।’
नेहा का एक सांस में उपहास के इतने सारे वाक्य बोल जाना मुझे बहुत नागवार गुजरा, लेकिन उसकी इन बातों का मैंने कोई जवाब देना उचित नहीं समझा। ‘तू तू मैं मैं’ होने की पूरी गुंजाइश थी।
शायद नेहा मेरे मन की ताड़़ गई थी। वह जल्दी चाय बनाकर ले आई।
‘सरदर्द शुरू हो गया होगा, ठीक हो जाएगा।’ मेरे हाथ में कप थमा वह अपनी चाय सुड़़ुप-सुड़़ुप कर पीने लगी। मैंने चुप्पी साधे रखी और चुपचाप चाय पीने लगा। थोड़़ी देर बाद रात का खाना खाया और बिस्तर पर पड़़ गए। आमतौर पर शनिवार के दिन हम देर में सोते हैं, परंतु आज गप्पें मारने की स्थितियां नहीं थीं।
पांच रुपए की हवा। पांच रुपए का रैपर। पांच रुपए के वेफर। पंद्रह रुपयों में कितने आलू?
एक किलो आलू।
एक किलो आलू में कितने वेफर?
कमाल है। मैंने फूऽऽ… की आवाज के साथ एक जोरदार सांस छोड़़ी। नेहा सोई नहीं थी, लेकिन उसने इस आवाज से नींद टूट जाने जैसा नाटक किया। हसु सचमुच सो चुका था। मीठी नींद में था।
‘नींद नहीं आ रही? वेफर बन रहे होंगे।’ नेहा मुस्करा रही थी।
‘अभी तो बात आलुओं तक ही अटकी है। ’
‘पेड़़ों से तोड़़ रहे होंगे?’
‘पेड़ों से?’
इस समय मेरा मूड ठीक था। मैं भी कुछ बोलता कि हसु हम दोनों को पूरी तरह चौंकाते हुए बोल उठा— ‘पापा! वेफर दिलवा दो ना।’
वह कोई सपना देख रहा था। हम दोनों हो… हो… हो… कर हंसने लगे। हो… हो… हो…।
‘पापा गुडमॉर्निंग’
हसु मुझे उठा रहा था।
उसके हाथ में पैकेट था, जिसमें से वेफर निकाल कर वह कड़ – कड़़ की आवाज के साथ खा रहा था। तो नेहा ने कल शाम हसु के कान में फुसफुसाते हुए यही वादा किया था ! मैं आंख मलते हुए उठा, लेकिन कुछ कहा नहीं।
‘गुड मॉर्निंग हसु, वेरी वेरी गुडमॅार्निंग।’
बाथरूम गया।
दांत मांजे।
नहाया-धोया।
नेहा चाय ले आई। हसु वेफर ले आया। पापा आपके लिए। संडे है, इसलिए चाय के साथ वेफर का नाश्ता।
… कमाल है!
संडे को मेरा अनिवार्य काम रहता है सब्जी लाने का। हरी – हरी सब्जियां। ताजी सब्जियां। साथ में आलू, प्याज, टमाटर, गोभी… भी।
आलू।
हाथ में बड़़ा सा थैला, जुबान पर बड़़ा सा आलू।
आ ऽऽ लू लू लू लू लू …।
जैसे कोई सीटी बजाता है सी सी सी… , वैसे ही मैं भी आलू बोल रहा था। शायद राह चलते कई लोगों ने मुझे यह सब करते देखा होगा।
आलू को लेकर कल से दिमाग में कुछ न कुछ चल रहा है।
आलू के वेफर। मात्र एक आलू में एक पैकेट भर वेफर।
यही चल रहा है दिमाग में। फिर-फिर यही।
रुटीन सब्जियां तो हिसाब से ही खरीदी हैं, लेकिन आलू? पांच गुना ज्यादा खरीद लिए हैं। बड़़े- बड़़े आलू।
वेफर के आलू!
‘इतने आलू? ’ नेहा लगभग गुर्राई है। क्या आलूवालों की हड़़ताल होनेवाली है? क्या करेंगे इतने आलुओं का ?’
‘वेफर बनाएंगे।’
‘वेफर बनाएंगे?’
‘अजीब खुरापात चल पड़़ी है दिमाग में। ऐसे कैसे वेफर बनाएंगे?’
‘ट्राइ करते हैं। समझ लो एक प्रक्टिकल। मुझे पागलपन का दौरा थोड़़े ही पड़़ा है। मन में सूझा, तो सोचा कि चलो करके देख लिया जाए। मुझे लगता है कि मजाक ही मजाक में किसी निष्कर्ष तक भी पहुंच सकते हैं।’
‘कैसा निष्कर्ष?’
‘यही कि एक आलू में कितने वेफर बन जाते हैं…।’
नेहा कुढ़़ गई थी। दरअसल किचन में आलुओं लिए जगह नहीं हो पा रही थी।
मैंने अपना काम शुरू कर दिया। सब्जी खरीदकर लौटते समय मैं ‘ओम नमकीन एंड स्वीट्स’गया। जाते ही मैंने आधा किलो मिठाई खरीदी। थोड़़ी देर खड़़ा रहा। वेफर्स के भाव पूछे। फिर वेफर्स को गौर से निहारता रहा। कोने में कारीगर के पास गया। फिर एक-दो वेफर टेस्ट करने के लिए मांग लिए।
‘बड़े करारे हैं जी। नामी कंपनियों के टक्कर के हैं। बस चमकीले रैपर्स में पैक करने की देर है,’ मैंने कारीगर से कहा।
कारीगर ने कहा, ‘ ना जी, हमारे वेफर बिना चमकदार रैपर्स के ही खूब बिकते हैं। एकदम टंच माल बनाते हैं जी।’
‘इतने करारे कैसे बना लेते हैं जी?’
बातों-बातों में वेफर बनाने की पूरी विधि समझ ली थी। मैंने उससे पूछा, ‘ घर में भी तो आसानी से बन सकते हैं ना? मैं आज ट्राइ करता हूं।’ कारीगर ने मेरी बात को मजाक समझा। जवाब में वह सिर्फ हंसा।
जिस समय मैं ‘ओम नमकीन एंड स्वीट्स’ के कारीगर से यह सब पूछ रहा था, वह कच्चे केले के चिप्स तैयार कर रहा था। उसने कहा,‘आधा किलो चिप्स भी ले जाइए। मैंने कहा, ‘वेफर कौन खाएगा, जिन्हें आज मैं सचमुच घर में बनाने वाला हूं।’ उसने फिर मेरी बात को मजाक समझा। मेरे दुकान से निकलने तक वह इसी बात पर हंसता रहा।
बड़़ा आसान काम। बारीक स्लाइस बनाओ और फिर इन्हें नमक के पानी में डाल कर तत्काल निकाल लो। कड़ाही में तलने लायक तेल गरम करो। फिर उन्हें इस तेल में तलने के लिए डाल दो। आवाज होगी चड़़ चड़़ चड़़। घबराने की कोई बात नहीं। इसके तत्काल बाद इन्हें निकाल लो। बस, हो गया।
मैं ‘जगदंबा गृहवस्तु भंडार ’ से स्लाइस बनाने की मशीन भी खरीद लाया था।
नेहा तो जैसे तमाशा देख रही थी। हसु भी आ गया।
कड़ाही। तेल। थाल में आलू के स्लाइस। पूरी तैयारी थी। नहीं आ रही थी मुझे, तो बस तलने की तरकीब।
इसके लिए भी मैंने एक तरकीब सोच ली। कारीगर से बात करने चक्कर में मुझे जो बेमतलब आधा किलो मिठाई खरीदनी पड़़ी थी, उसे मैंने नेहा के हाथ में थमा दिया।
‘बड़़ा धांसू मुहूर्त निकाला है। देखो हसु, तुम्हारे पापा वेफर की फैक्ट्री शुरू करने वाले हैं। यह उसी की मिठाई है’, नेहा ने एक बार फिर धारदार व्यंग्य किया। लेकिन इसके बाद मैंने नेहा से उसी हक के साथ मदद मांगी, जिस तरह रिश्वत देने के बाद कोई आदमी मुखर हो उठता है। फिर भी उसने मुंह बिचका दिया। हद है।
हसु जरूर बोला, ‘मैं करूं मदद?’
मैंने जवाब दिया, ‘तुम तो खाने में मदद करो। पहले मिठाई खाओ और थोड़़ी देर बाद फिर घर के बने कुरकुरे करारे वेफर। आहा।’
हसु के हमउम्र नन्हे दोस्त आ गए, तो वह उनके साथ घर के बाहर खेलने चला गया। मैंने नेहा से एक बार फिर सहायता की गुहार लगाई, परंतु उसका दिल न पसीजा। वह यह कह कर कपड़़े धोने बैठ गई, ‘कल से भिगाए हैं, आपके चक्कर में सड़ जाएंगे।’
मैंने भी जिद पकड़़ ली थी। काम में लग गया।
गैस चूल्हे के ऊपर कड़ाही। कड़़ाही में खौलता तेल। तेल में आलू के स्लाइस। चड़़ चड़़ चड़़ चड़़।
करछुल से पलटने तक स्लाइस जल गए। काले पड़़ गए।
दूसरी बार भी ऐसा ही। तीसरी बार भी।
‘प्लीज, नेहा मेरी मदद कर दो। प्लीज। प्लीज।’
इस बार नेहा का दिल पसीज गया।
बड़़ी कुशलता से नेहा ने वेफर बनाने शुरू कर दिए, परंतु कुछ ज्यादा ही कड़़क। कुछ ज्यादा ही नमक। कुछ ज्यादा ही बेडौल।
हमने आखिरी कोशिश की।
इस बार नेहा ने अपनी पाक कला का संधा हुआ इस्तेमाल किया।
अब की बार कड़़ाही से निकले वेफर काफी हद तक बंद पैकेट के वेफर जैसे ही लग रहे थे। स्वाद में। गंध में। रूप-रंग में।
मैंने एक वेफर नेहा के मुंह में डाल दिया और एक अपने। नेहा ने बेमन से चबाया। मैंने कहा, ‘कुरमुरे करारे वेफर। आहा।’
‘वेफर्स की फैक्ट्री खोल लें?’ नेहा ने एक बार फिर खिंचाई करने की कोशिश की।
‘निष्कर्ष तो निकल ही आया।’ मेरा एकदम कूल जवाब था।
‘कैसा निष्कर्ष?’
‘यही कि एक आलू में कितने वेफर बनते हैं’
नेहा फिर कुढ़़ गई। उसने एक बार फिर किचन में भरे आलुओं की ओर मुंह बनाते हुए नजर मारी।
हसु आ गया था। मैंने उससे कहा, ‘बिट्टू,मेरी मदद करोगे?’
‘बोलिए पापा’
‘कुरकुरे करारे वेफर खा जाओ’
‘आहा’ हसु ने कहा।
मुझे डर था कि वह जल्द ही आक्थू ऽऽ कहने वाला है। लेकिन जब उसने पहला वेफर मुंह में डाला, तो उसकी प्रतिक्रिया अप्रत्याशित रूप से आश्चर्य में डालनेवाली थी – वॉव।
वह सुबह खरीदे वेफर्स का खाली हो गया चमकीला पैकेट ले आया। उसने इसमें ऊपर तक घर में बनाए वेफर भर दिए और बोला, ‘पंद्रह रुपये के वेफर। न पांच रुपये की हवा, न पांच रुपये का रैपर।’
मैंने हसु को जोरदार थैंक्यू कहा।
नेहा एक बार फिर कुढ़़ गई।
किचन में आलुओं का ढेर था।
दो-चार आलुओं ने तो रातभर में ही अंखुए भी निकाल लिए थे।
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संपर्क : हरि मृदुल
बी-601, बिल्डिंग नं.- 90, शुभांगन- 2 को.हा.सो.लि.
पूनम सागर कॉम्पलेक्स, मीरा रोड (पू.), थाणे- 401107
email – harimridul@gmail.com
मो. 09867011482
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हरी मृदुल की कहानी आलू समाज में हावी होते बाजारवाद पर करारा प्रहार है।
एक संक्षिप्त ताने बाने में बुनी गई बेहद रोचक कहानी
हरि मृदुल जिस तरह अपनी कविताओं में जीवन की कहानी कहते हैं ठीक वैसे ही “आलू” कहानी में भी कविता बार-बार झलक जाती है। यह कहानी पढ़ते हुए सोचता रहा कि हम सब 5 रुपए के वेफर, 5 रुपए की हवा और बाकी 5 रुपए के चमकीले पैकेट का बँटवारा अच्छी तरह समझते हैं लेकिन आसपास बिखरी इन विडंबनाओं की संवेनशील अभिव्यक्ति जिस सरलता के साथ हरि मृदुल के पास दिखती है अन्यत्र नहीं मिलती…
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Sherri Shepherd has moved from to – with the help of Hertz – where she will star in her very
own talk show, titled Sherri, filling a time slot vacated by Wendy Williams.And the 55-year-old star has talked to DailyMail.com
exclusively about what her plans are for her new program, which kicks off in September.One of the things she stressed is that there will be no mean jabs and she
will certainly be celebrity friendly as she would like to land
some A-list guests like and Meryl Streep.
‘I’m about joy,’ she shared. New town, new show, new interview: Sherri
Shepherd has moved from Los Angeles to New York City where she will
star in her very own talk show, titled Sherri, filling a time slot vacated by troubled
Wendy Williams; seen with a Hertz truck on Monday
Hello NYC! And the 55-year-old star has talked to DailyMail.com about
what her plans are for her new program which kicks off in September.
Here she is seen moving boxes into her new NYC padSherri
talked to DailyMail.com after Hertz helped her make the big
movie east. They even put her face and name on the side of the vans
while helping her fill her new NYC pad with her
items.As far as the show, which will air on FOX Television Stations and broadcasters nationwide,
she is going to make is positive. RELATED ARTICLES
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‘Let’s be clear, I’m not a mean person at all!’ she shared.’I’m all about positive energy.
I’m about joy. I’m about kindness and laughter. Anyone that knows me will tell you just that,’
Sherri told DailyMail.com.’And that’s what my talk show
will embody.
Why would it be anything but that? As a celebrity myself,
I know what it’s like to not feel safe appearing on a show or hoping
a host doesn’t try to have a gotcha-moment with
you. It will be a celebrity-friendly zone on Sherri.’
She wants these ladies to show up: The funny girl hopes to land Meryl Streep, left,
and Oprah, right with Stedman Graham, as guestsHer dream guest is Michelle Obama.’And
of course, she can bring the guy that she is married to
that ran our country too!’ joked the star.’You know I want Oprah!
Who wouldn’t? I would so love to sit opposite of Meryl Streep!
And you know I have a crush on Regé-Jean Page, he has to come,
‘ she noted.’And Trevor Noah, he’s a priority too.
I’d love to do a duet with Pat Benatar. And I must celebrate the living legend that is actress Marla Gibbs—that
queen deserves her flowers.’And she is happy to take on the role of
talk show host: ‘I couldn’t be more excited to join the genre that has given us names like Oprah Winfrey, Phil Donahue, Sally Jesse Raphael,
Rolonda Watts, Montell Williams and Ricki Lake.
I hope to make the impact those titans of talk
have made when Sherri premieres live on September 12.
I’m grateful!’ She had the time slot before: Wendy Williams had
the time slot before Will they do the show?
She may be able to land the Kardashians and Jenners; Khloe
and Kylie seen here Talking on the post of talk show host is a challenge, but she is happy
to take it on: ‘I tell everyone to run towards the thing that scares you, move in the direction of the things that challenge you.’So far she does not feel pressure to dazzle
after fan favorite Wendy left the network.’I only feel pressure
to go out there and be authentically Sherri,’ said the stand up comedienne.’I put
pressure on myself to make sure I’m bringing my best self each time I step onto that set. Making sure I can offer people one-hour of joy,
laughter and inspiration is the only thing I’m worried about. ‘And I’m confident that I’ve got a great team
at Debmar-Mercury helping me achieve that goal
each day.’As far as work stress and anxiety, she looks to a higher
power to help her. Good times:
Sherri had fun working with Hertz.
On Monday, Shepherd surprised customers
at the Hertz location on 126 W 55th St, when she returned the Hertz Truck
she rented to move her belongings east as she relocated to NYC for
her new show’My faith is the center of all things.
When work gets stressful, when I get in my head and
second-guess myself; I stop and pray,’ said Sherri.’Prayer centers me.
It gets me back on track. And I’ve surrounded myself with
some folks that can tell when I need some extra muscle
and they’ll grab me and pray when I’m not strong enough to pray for myself. ‘Sometimes it takes a village to make this
magic, but I’ve been blessed with a God-loving village that holds
me down.’ And she is excited to get back to the busy pace of New York, a city she knows
well after living there for nine years while
doing The View and starring in Cinderella on Broadway.’I’ve got to say, there’s no matching the energy of The
Big Apple,’ said the talent.’I’m really excited myself and so is my son Jeffrey, because he gets to now hangout with his friends here that he could only
talk to on FaceTime while we lived on the West Coast.
What better place for him to find his independence as a young man than New York
City!’ Silly star: While she was at Hertz, she
surprised customers by giving them special Hertz rewards along with items that don’t
fit in her new NYC homeThis all feels familiar to her as she shot a pilot for a
talk show back in 2005.’I think it was
for my own show.
It didn’t get picked up. That was before I even landed The View.
When I left The View, I told everyone that would
listen that I wanted my own talk show,’ she shared.
‘I came close in 2019, but the timing wasn’t right. The star
worked with Hertz during her move which she said she loved:
‘I just had to move from L.A.
to New York to host my new talk show SHERRI and I’m so grateful to Hertz for not only helping me get all
of my stuff across country. ‘But I’m extra excited because they
had my face on the moving truck. You never really expect to see your face on a moving truck
and I’ve got to say, it’s kind of a thrill.’Sherri had fun working with Hertz. On Monday,
Shepherd surprised customers at the Hertz location on 126 W 55th St,
when she returned the Hertz Truck she rented to move her
belongings east as she relocated to NYC for her new show.While she was at Hertz, she surprised customers by giving them
special Hertz rewards along with items that don’t fit in her
new NYC home. Hello Manhattan: She is excited to get
back to the busy pace of New York, a city she knows well
after living there for nine years while doing The View
and starring in Cinderella on BroadwayShe also said,
‘This is a part of Hertz’s Let’s Go campaign and it fits so
perfectly with my life because I’m a huge believer in the idea of Let’s Go!—I
tell everyone to run towards the thing that scares you, move in the direction of the things
that challenge you.
That’s what I’m doing with my new talk show.’ Shepherd can currently be seen in the HBO
MAX series Sex Lives of College Girls; and recently co-starred in the Lifetime movie Imperfect High.She
co-starred in the Netflix hit comedy series Mr.
Iglesias; and as a recurring guest star on ABC’s”Call Your Mother. A NYC fan: ‘I’ve got to say, there’s no matching the energy of The Big Apple,’ said the talent.
‘I’m really excited myself and so is my son Jeffrey, because he gets to now hangout with his friends here that he could only talk to on FaceTime while we lived on the West Coast.’ Seen in NYC on Monday
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