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हिंदी की भूमंडलोत्तर कहानी के बहाने

दिनेश कर्नाटक लेखक हैं, अध्यापक हैं। हिंदी कहानी के सौ वर्ष और भूमंडलोत्तर कहानी पर उनकी एक किताब आई है। उसी किताब से यह लेख पढ़िए-

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भूमंडलोत्तर कहानीकारों के हिन्दी कथा परिदृश्य में सामने आने का समय बीसवीं सदी का अंतिम दशक है। यह समय देश में कई तरह की उठापटक तथा बदलावों का समय था। पंजाब में अस्सी के दशक में आतंकवाद का उदय हुआ। करीब एक दशक तक पंजाब आतंकवाद से जूझता रहा, जिसका असर देश के जन-जीवन पर भी पड़ता रहा। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद बड़े पैमाने पर सिख विरोधी दंगे भड़क उठे। 1989 में सोवियत संघ का विघटन वैश्विक स्तर पर एक बड़ी परिघटना थी, जिसके बाद दुनियाभर में बाजारीकरण की प्रक्रिया तेजी से चल पड़ी। वी.पी. सिंह ने 1989 में मंडल कमीशन की सिफारिश लागू की जिसके पश्चात देशभर में विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए। 1990 में भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा की। इसके द्वारा वे बड़े पैमाने पर लोगों का साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण करने में सफल हुए। 1984 में भाजपा के 02 सांसद थे-1989 में 85 तथा 1991 में उनकी संख्या बढ़कर 120 हो गई। 1990 में आतंकवाद की वजह से कश्मीर के करीब 3.5 लाख कश्मीरी पंडितों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा। उनकी अभी तक कश्मीर वापसी नहीं हो पाई है। जम्मू सहित देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे कश्मीरी पंडितों की संख्या फिलहाल 04 से 07 लाख के करीब मानी जाती है। 21 मई 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी तमिल अतिवाद की भेंट चढ़ गए।

नरसिंहा राव की सरकार ने 1991-92 में नई आर्थिक नीतियां लागू की, इन उदार तथा बाजार केन्द्रित नीतियों ने आगे जाकर देश के लोगों के जीवन पर गहरा असर डाला। 06 दिसम्बर 1992 को हिन्दू चरमपंथियों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को ढहा दिया। इस घटना ने हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द पर गहरा असर डाला। इसकी कीमत बांग्ला देश तथा पाकिस्तान के अल्पसंख्यक हिन्दुओं को चुकानी पड़ी। मंडल कमीशन की सिफ़ारिशों के बाद भारतीय राजनीति में आए बदलाव के कारण दक्षिण भारत के स्थानीय क्षत्रपों तरह उत्तर भारत में भी लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव तथा मायावती का उदय हुआ। राजीव गांधी के कार्यकाल में हुए बोफोर्स तोप घोटाले के बाद तेलगी, चारा आदि एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले सामने आने लगे। कांग्रेस के परंपरागत वोटों का जबरदस्त बंटवारा हुआ, जिसके कारण मिली-जुली सरकारों का दौर चल पड़ा।

देश बढ़ते जा रहे सांप्रदायिक धु्रवीकरण का परिणाम 27 फरवरी 2002 को गोधरा में हुए घटनाक्रम तथा उसकी प्रतिक्रिया में हुए गुजरात दंगों के रूप में सामने आया। पहले हिन्दू कारसेवकों से भरी बोगी में आग लगने से 59 लोग जलकर मर गये। बाद में भड़के दंगों में 1200 से अधिक लोग मारे गये, जिसमें अधिकांश लोग अल्पसंख्यक समुदाय के थे। इस घटना ने एक बार फिर से देश के साम्प्रदायिक सौहार्द को हिलाकर रख दिया। वैश्विकरण की प्रक्रिया का हिस्सा बनने के बाद देश में सूचना, संचार तथा परिवहन के क्षेत्र में अप्रत्याशित प्रगति हुई। परस्पर संपर्क तथा संवाद आसान होता चला गया। सैकड़ों की संख्या में देशी-विदेशी चैनलों, केबिल तथा डी.टू.एच. सेवाओं के आरंभ होने से टेलिविजन की पहुंच दूर-दराज के क्षेत्रों तक हो गई। शिक्षा का प्रसार होने के कारण हिन्दी क्षेत्र में हिन्दी माध्यम से पढ़ा-लिखा एक तबका तेजी से उभरा, जिसके कारण हिन्दी के अखबारों की पाठक संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। अंग्रेजी तथा दक्षिण भारत की भाषाओं के अखबारों को पीछे छोड़ते हुए हिन्दी के अखबारों का प्रसार शीर्ष स्थान पर पहुंच गया। दमित-शोषित वर्ग (मुख्यतः दलित, पिछड़े तथा स्त्रियां) एक शक्ति बनकर उभरे। इसी दौर में वैश्विकरण ने रोजगार के लिए निम्न मध्यम तथा मध्यम वर्ग के युवाओं को कस्बों तथा दूरस्थ क्षेत्रों से दिल्ली-मुम्बई पलायन करने के अलावा विकसित देशों में भी रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाए। गांवों तथा पिछड़े क्षेत्रों से पलायन काफी बढ़ा। नौकरी पेशा निम्न मध्यवर्ग ने बाजारीकरण तथा मुक्त बाजार का लाभ लेकर अपनी स्थिति को मजबूत किया। शिक्षा तथा स्वास्थ्य का तेजी से निजीकरण हुआ। आउटसोर्सिंग की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण रोजगार में अनिश्चितता बढ़ी। श्रमिक वर्ग के हितों की घोर उपेक्षा होने लगी। एक बड़ा वर्ग अभावों में जीने को अभीशप्त होने लगा। बड़ी संख्या में फिरकापरश्त ताकतों का उभरना-फैलना, वाम शक्तियों का हाशिए पर सिमटते जाना, धर्माेपदेशकों तथा धर्मगुरूओं का मजबूत होना, संयुक्त परिवार का टूटना, अकेलेपन तथा अलगाव का बढ़ना और सामंती शक्तियों (खाप) को राजनीतिक शह आदि को इस दौर की प्रवृत्तियों के रूप में देखा जा सकता है।

ओमा शर्मा इस समय को जटिलताओं का समय कहते हैं। उनके अनुसार -‘यह समय जटिलताओं का है जो व्यक्ति, परिवेश एवं अंतर्धाराओं के स्तर तक पसरी पड़ी है। आज का आदमी कई-कई प्रायः परस्पर विरोधी, जिंदगियां गुजारने को अभिशप्त हो रहा है। उसे पैसे की अथाह हवस है, पर मन का सुकून भी चाहिए, उसे शहर की सुख-सुविधाओं की आदत हो गई है, मगर गांव-देहात की तरोताजगी की कमी भी महसूस होती है, उसे विदेशी इत्र या संगीत पसंद आता है तो कहीं अपनी विरासत के अपरदन पर ग्लानि भी होती है, उसे पढ़ी-लिखी आधुनिका पत्नी भी चाहिए तो सेवा-शुश्रूवा करने वाली औरत भी; उसे छोटे परिवार की स्वच्छंदता-स्वायत्तता अच्छी लगती है तो संबंधों में ऊष्मा का भाव भी खटकता है, उसे कुछ विषिश्ट करने की ललक भी है, मगर साधारण जिन्दगी के तमाम सुखों को बटोरने की लिप्सा भी।

परिदृश्य

1996 में प्रगतिशील वसुधा के कहानी विषेशांक में प्रकाशित कैलाश वनवासी की चर्चित कहानी ‘बाजार में रामधन’ ने व्यापक रूप से कहानी समालोचकों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। इस कहानी ने बाजार के दबाव से मनुष्य के परंपरागत संबंधों में हो रहे बदलाव को बड़े ही यथार्थवादी ढंग से सामने रखा। इस कहानी के साथ ही हिन्दी कहानी के क्षेत्र में एक नई पीढ़ी के आने की आहट सुनाई देने लगी थी। पत्रिकाओं ने इस नई पीढ़ी को सामने लाने के लिए कहानी प्रतियोगिताएं, युवा कहानी विशेषांकों तथा नवलेखन अंकों का प्रकाशन आरंभ किया। बड़ी संख्या में देश के विभिन्न हिस्सों से नए कहानीकारों ने इन आयोजनों में भाग लिया। इससे उत्साहित होकर सभी पत्रिकाएं इस तरह के आयोजन करने लगी। युवा लेखकों की कहानियों पर लिखा जाने लगा। उनके कहानी-संग्रह प्रकाशित होने लगे। हिन्दी कहानी के क्षेत्र में इतने बड़े पैमाने पर हो रही यह गहमा-गहमी अनायास ही नई कहानी के दौर की याद दिला देती है, जब इसी तरह कहानी को लेकर विशेषांकों तथा चर्चा-परिचर्चा का दौर चला था।

युवा कहानीकारों को सामने लाने में वागर्थ, प्रगतिशल वसुधा, नया ज्ञानोदय, लमही, बया, पाखी, तद्भव, पहल, इंडिया टुडे साहित्य वार्षिकी, जनसत्ता-सबरंग, कथादेश तथा परिकथा आदि पत्रिकाओं तथा रवीन्द्र कालिया, अखिलेश, कमला प्रसाद, विजय राय, ज्ञानरंजन, अरूण पुरी, प्रभु चावला, गौरीनाथ, पे्रम भारद्वाज, हरिनारायण, शंकर तथा प्रभाष जोशी आदि संपादकों तथा भारत भारद्वाज, पुष्पपाल सिंह, सूरज पालीवाल, अजय वर्मा, रोहिणी अग्रवाल, शंभु गुप्त, पल्लव, वैभव सिंह, अर्चना वर्मा आदि आलोचकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

‘इंडिया टुडे-साहित्य वार्षिकी’ द्वारा 1997 में आयोजित ‘युवा कथाकार प्रतियोगिता’ में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली पंकज मित्र की कहानी ‘पड़ताल’ ने इस सिलसिले को और भी तेजी से आगे बढ़ाया। हंस ने फरवरी 2001 में ‘नई सदी का पहला बसंत’ विषेशांक प्रकाशित किया था, इसमें निलय उपाध्याय, जयंती तथा नीलाक्षी सिंह की कहानियां प्रकाशित हुई। जून 2001 में कथादेश के नवलेखन अंक ‘ताजा पीढ़ी: बहुलता का वृत्तांत’ में अल्पना मिश्र, सुभाश चंद्र कुशवाहा, महुआ माजी, कमल, रवि बुले, शशिभूषण द्विवेदी आदि पाठकों के सामने आए। इंडिया टुडे ने 2002 की साहित्य वार्षिकी ‘संभावनाओं के साक्ष्य’ में पहले ही सामने आ चुके कथाकारों नीलाक्षी सिंह, रवि बुले, प्रियदर्शन, सुभाश चंद्र कुशवाहा तथा अल्पना मिश्र को संभावना पूर्ण कहानीकारों के रूप में प्रस्तुत किया। जुलाई 2003 में ‘उत्तर प्रदेश’ के ‘संभावना’ विषेशांक में चरण सिंह पथिक, तरूण भटनागर, कविता, अभिषेक कश्यप, अंजली काजल आदि कहानीकारों की कहानियां प्रकाशित हुई। जुलाई 2004 में ‘कथादेश’ के नवलेखन अंक के माध्यम से अजय नावरिया, रश्मि कुमारी, पारमिता उनियाल, जेबा रशद तथा संजीव चंदन आदि कहानीकार सामने आए। अक्टू 2004 में वागर्थ के नवलेखन अंक चंदन पांडेय, विमलेश त्रिपाठी, दीपक श्रीवास्तव, मो0 आरिफ, कुणाल सिंह, मनोज कुमार पांडेय, पंकज सुबीर तथा राकेश मिश्रा की कहानियां प्रकाशित हुई। इसी वर्ष ‘राष्ट्रीय सहारा’ द्वारा आयोजित ‘राष्ट्रीय कहानी प्रतियोगिता’ में 1506 कहानियां सम्मिलित हुई, जो अपने आप में एक रिकार्ड है। इसमें प्रभात रंजन की ‘जानकी पुल’ प्रथम, ऋत्विक दास मित्र की ‘कुम्हड़े की मां’ द्वितीय तथा शशिभूषण द्विवेदी की ‘शिल्पहीन’ को तृतीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। इनके अतिरिक्त मनीष द्विवेद्वी, चमेली जुगरान, रतन कुमार सांभरिया आदि की कहानियां भी पुरस्कृत हुई। दिस0 2005 के कथादेश नवलेखन अंक में कैलाश वानखेड़े, नरेन्द्र अनिकेत तथा दिनेश कर्नाटक की कहानियां प्रकाशित हुई। हंस तथा कथाक्रम के ‘मुबारक पहला कदम’ तथा ‘कथा-दस्तक’ के माध्यम से भी मिथिलेश प्रियदर्शी, जयश्री राय, ज्योति कुमारी, कैलाश वानखेड़े, दिनेश कर्नाटक, सुशांत सुप्रिय, इंदिरा दांगी, उमाशंकर चौधरी, गीताश्री आदि कहानीकार सामने आए।

उपरोक्त पत्रिकाओं के अलावा कुछ महत्वपूर्ण पत्रिकाओं ने वृहत युवा पीढ़ी विशेषांकों का प्रकाशन किया। इन विशेषांकों के जरिए ही इस पीढ़ी के कहानीकारों की एक मुकम्मल पहचान बनी। मई तथा जून 2007 में ‘नया ज्ञानोदय’ ने युवा पीढ़ी विशेषांक एक तथा दो का प्रकाशन किया था, इसमें क्रमशः 24 व 15 कुल 39 कहानीकारों की कहानियां प्रकाशित हुई। प्रगतिशल वसुधा ने जयनंदन के संपादन में ‘समकालीन युवा कहानी विषेशांक’ के दो अंक अक्टू0-दिस0 2008 तथा जन0-मार्च 2009 प्रकाशित किए, जिनमें क्रमशः 16-16 कुल 32 कहानीकारों की कहानियां प्रकाशित हुई। परिकथा ने शंकर के संपादन में युवा कहानी के तीन अंक क्रमशः सित0-अक्टू0 2010, नव0-दिस0 2010 एवं मार्च-अप्रैल 2011 प्रकाशित किए इनमें क्रमशः 14, 16 तथा 21 कुल 51 कहानीकारों की कहानियां प्रकाशित हुई। जुलाई-सित0 2008 में शैलेन्द्र सागर के संपादन में कथाक्रम का एक विशेषांक ‘हिन्दी कहानी के युवा स्वर’ प्रकाशित हुआ। इसमें 20 कहानीकारों की कहानियां प्रकाशित की गई। अपै्रल-जून 2012 में सुशील सिद्धार्थ के संपादन में लमही का ‘कहानी-एकाग्र’ नाम से विशेषांक प्रकाशित हुआ। इसमें 23 कहानीकार प्रकाशित हुए।

उपरोक्त विशेषांकों में प्रकाशित महत्वपूर्ण कहानीकार जो लगातार रचनारत हैं, वे निम्नवत हैं-1. नीलाक्षी सिंह 2. रवि बुले 3. सुभाश चंद्र कुशवाहा 4. कैलाश वनवासी 5. मनीषा कुलश्रेष्ठ 6. पंकज मित्र 7. संजय कुदन 8. प्रभात रंजन 9. अनिल यादव 10. प्रत्यक्षा 11. कुणाल सिंह 12. चंदन पांडेय 13. तरूण भटनागर 14. दीपक श्रीवास्तव 15. वंदना राग 16. अल्पना मिश्र 17. मनोज कुमार पांडेय 18. राकेश मिश्र 19. पंखुरी सिन्हा 20. राजीव कुमार 21. पंकज सुबीर 22. दिनेश कर्नाटक 23. राजुला शाह 24. विमल चंद्र पांडेय 25. मो0 आरिफ 26. गीत चतुर्वेदी 27. शषिभूशण द्विवेद्वी 28. अनुज 29. अंजली काजल 30. कविता 31. रणेन्द्र 32. रणविजय सिंह सत्यकेतु 33. उमाषंकर चैधरी 34. ज्योति चावला 35. विमलेश त्रिपाठी 36. हरेप्रकाश उपाध्याय 37. पराग मांदले 38. आकांक्षा पारे 39. स्नोवा बार्नों 40. अजय नावरिया 41. मनीश द्विवेद्वी 42. योगिता यादव 43. चरण सिंह पथिक 44. पदमा शर्मा 45. राकेश बिहारी 46. प्रियदर्षन 47. पे्रम भारद्वाज 48. हरिओम 49. अरूण कुमार ‘असफल’ 50. हुस्न तबस्सुम ‘निहा’ 51. पे्रम रंजन अनिमेष 52. सत्यनारायण पटेल 53. जयश्री राय 54. रणीराम गढ़वाली 55. शेखर मल्लिक 56. विवेक मिश्र 57. कैलाश वानखेड़े 58. इंदिरा दांगी 59. महुआ माजी 60. कुसुम भट्ट 61. उर्मिला शिरीष 62. डाॅ0 स्वाति तिवारी 63. प्रदीप जिलवाने 64. गीताश्री 65. शर्मिला बोहरा जालान आदि।

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हिन्दी कहानी के सौ साल तथा भूमंडलोत्तर कहानी (आलोचना)

लेखक-दिनेश कर्नाटक

प्रकाशक: समय साक्ष्य, 15 फालतू लाइन, देहारादून-248 001

संपर्क-0135 2658894, 75792 43444

मूल्य-225/-       

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