
जानकी पुल के ‘कविता शुक्रवार’ में इस बार संगीता गुंदेचा की कविताएं और गौंड शैली की चित्रकार रोशनी व्याम के चित्र।
संगीता गुन्देचा का जन्म नवंबर 1974 में मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक नगरी उज्जयिनी में हुआ। संगीता की कई
पुस्तकें प्रकाशित हैं, जिनमें सूर्यप्रकाशन मन्दिर, बीकानेर से प्रकाशित ‘एकान्त का मानचित्र’ अनूठा संग्रह है, जिसमें उनकी कविताएँ और कहानियाँ एकसाथ संग्रहीत हैं। इसके अलावा संस्कृत-प्राकृत कविताओं के हिन्दी अनुवाद की पुस्तक ‘उदाहरण काव्य’ और जापानी कवि शुन्तारो तानीकावा की कविताओं के हिन्दी लेखक उदयन वाजपेयी के साथ अनुवाद की पुस्तक ‘मटमैली स्मृति में प्रशान्त समुद्र’ शामिल हैं। संगीता गुन्देचा ने समकालीन रंगकर्म में नाट्यशास्त्र की उपस्थिति को रेखांकित करते हुए सर्वश्री कावालम नारायण पणिक्कर, हबीब तनवीर और रतन थियाम जैसे महान रंगकर्मियों पर ‘नाट्यदर्शन’ जैसी कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं हैं।
उन्होंने वत्सराज के प्रहसन ‘हास्यचूड़ामणि’ का और रंगकर्मी, कोलकाता के लिए पिछले वर्ष सुप्रसिद्ध युवा रंगनिर्देशक पियाल भट्टाचार्य के साथ कालिदास की रचना ‘मेघदूतम्’ का संयुक्त निर्देशन किया है।
संगीता गुन्देचा को भारत सरकार के संस्कृति मंन्त्रालय की कनिष्ठ अध्येतावृत्ति और उच्च अध्ययन केन्द्र नान्त (फ्राँस) की अध्येतावृत्तियाँ मिली हैं।
हाल ही में ‘रज़ा पुस्तक माला’ के अन्तर्गत संगीता गुन्देचा के सम्पादन में सूफी तबस्सुम की उर्दू नज़्मों के हिन्दी अनुवाद की पुस्तक ‘टोट-बटोट’ राजकमल प्रकाशन से आयी है।
उन्हें भोज पुरुस्कार, कला साधना सम्मान, संस्कृत भूषण और कृष्ण बलदेव वैद फैलोशिप आदि सम्मान मिले हैं।
पढ़ते हैं उनकी कविताएं।
संगीता गुंदेचा इन दिनों रज़ा फ़ाउण्डेशन की साहित्य, कला और सभ्यता पर केन्द्रित हिन्दी की अति महत्वपूर्ण पत्रिका ‘समास’ (सम्पादक-उदयन वाजपेयी) में सम्पादन सहयोग कर रही हैं और साथ ही केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपाल में संस्कृत की सहायक आचार्या हैं।
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कविता शुक्रवार द्वारा आयोजित स्त्री पर्व की यह अंतिम प्रस्तुति है। इसके सफल प्रस्तुति के लिए संपादक राकेश श्रीमाल के साथ साथ सभी कवयित्रियों, चित्रकारों का आभार। साथ ही उनका भी आभार जिन्होंने इस प्रस्तुति की सराहना की- प्रभात रंजन

भरी धूप में एक पत्ता टूटकर गिरता है
वाक्य से बहकर दूर चला जाता है, तुम्हारे नाम का पहला अक्षर
क्या तुम मेरी गोद डहरिया के लाल फूलों से भर दोगे ?
बोला: तुम वृक्ष की टहनियाँ हो जाओ
मैं एक-एक कर सारे बनफूल सजा देता हूँ
पारिजात के फूलों-सी झरती हैं-
परछाई
सखि! गयी थी मैं तो घाट पर
गुलाबी रंग और स्पर्श उसका
बूँद-बूँद हर अंग को नहलाया
फूल चढ़ाये तुम्हारी देह पर
चले गये निठुर तुम किस घाट!
प्रेम के कई अर्थ होते हैं,
मृत्यु के कई अर्थ होते हैं
पुनर्जन्म के कई अर्थ होते हैं
संयोग के कई अर्थ होते हैं
मेरी अँगुलियों के पोर-पोर में रक्खा है;
हे जगन्नाथ स्वामी! नयन पथ गामी
सामर्थ्य कहाँ भर सकूँ इनमें कोई-
तुम्हारी काया पर उतर आया है सुबह का उजास
कहवाघर में बैठकर सड़क पार करते बूढ़े को देख
छँट जाता है रात्रि का अवसाद
तुम्हारे चप्पू अन्धकार से बने थे
तुम्हारी नाव और तुम्हारा समुद्र
जिसे पार करना था वह कुछ नहीं था
एक प्रलय तुम्हारी काया को पलट देता है
एक प्रलय तुम्हारी काया को पलट देता है
एक प्रलय तुम्हारी काया को पलट देता है
इस तरह अपनी देह बदलती है कविता
जाने क्यूँ तूफान में डगमगाती हैं लहरें
न जाने क्यूँ लहरों में डगमगाता है समुद्र
चन्द्रमा की नाव में पड़ती परछाईं ज़रा भी
(‘इकी मास का’ जापानी भाषा का वाक्य है, जिसका अर्थ है, ‘क्या तुम कहीं जा रहे हो ?’)
हृदय को अपनी घड़ी बनाने से चूकता नहीं
ऋतुएँ अपने घेरों से बाहर छिटक आयी हैं
पूरी दुनिया उसकी चपेट में आ जाती है
जब अवसाद में ढलने लगती है सुन्दरता
किनारे पर खड़ी बगुली की परछाईं से
पीले पत्ते पर पड़ी लाल लकीर
आकाश में कटोरे-सा चन्द्रमा
प्रतीक्षा में आकुल चिड़िया
अमलतास की डाल पर
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रोशनी व्याम : गोंड चित्र-शैली में प्रयोगशील कलाकार
— राकेश श्रीमाल
मध्यप्रदेश का मंडला ऐसा क्षेत्र है, जहाँ गोंड जनजाति बहुतायत से बसती है। गोंड जनजाति का इतिहास तकरीबन 1400 वर्ष पुराना है। इनकी एक उपजाति परधान जाति है। ये लोग चित्रकला में परंपरागत रूप से पारंगत होते हैं। रोशनी व्याम उसी जनजाति की हैं और वे उसी चित्र-परम्परा का युवतर प्रतिनिधित्व करती हैं, जिसे गोंड चित्र शैली से जाना जाता है।
इन लोगो का मानना है कि सुंदर चित्र अच्छे सौभाग्य के जन्मदाता होते हैं। नदी, पहाड़, पेड़-पौधे, जीव-जंतु, चट्टान इनके चित्रों के विषय होते हैं। उनके लिए चित्र बनाना कोई विशिष्ट काम नहीं है। चित्र उनकी जीवन-शैली और उनकी संस्कृति का अविभाज्य हिस्सा होते हैं। वे न केवल अपने घर की दीवारों, बल्कि घर के फर्श पर भी चित्रकारी करते हैं। यह उनके रहन-सहन और जीवन-दृष्टि की सौंदर्य अनुभूति को व्यक्त करता है। चित्र-रचना उनके धार्मिक अनुष्ठानों, भिन्न उत्सवों और पर्वो का जरूरी अंग है। वे भित्तीचित्रण और तलचित्रण के साथ कागज पर भी चित्र उकेरते हैं। वे प्रायः पीसे हुए चावल के लेप, पीली मिट्टी, गेरु और अन्य प्राकृतिक रंगों से चित्र बनाते हैं। लेकिन इधर बहुत समय से वे बाजार में मिलने वाले रंगों का उपयोग भी करने लगे हैं।
पहले गोंडवाना राज्य या रियासत हुआ करती थी। जहाँ की भाषा गोंडी थी। गोंडी धर्म-दर्शन के मुताबिक गोंडी भाषा की उत्पत्ति उनके आराध्य देव शम्भू सेक के डमरू से हुई है। जिसे गोएनदाणी वाणी या गोंड़वाणी कहा जाता है। इसकी अपनी लिपि है और व्याकरण भी। मंडला जिले के रामनगर किले के निकट बड़ादेव की पूजा स्थली गोंड जनजाति के लिए एक तीर्थस्थल की तरह ही महत्वपूर्ण है। वहाँ एक अखंड धूनी प्रज्ज्वलित रहती है। उस परिसर में एक सीढ़ी है, जो सीधे आकाश की तरफ जाती है। इन सीढ़ियों पर रोज दीप जलाए जाते हैं। लोक-मान्यता है कि वह सीढ़ी सीधे स्वर्ग की ओर जाती है, इसलिए उसे स्वर्ग सीढ़ी कहा जाता है। यह ईश्वर को धरती से जोड़ने का उनका आध्यात्मिक विश्वास है। जिन बड़ादेव की पूजा-अर्चना यहाँ की जाती है, वे सृजन करने वाली शक्ति के देव हैं। वे कई देवों और ग्राम देवताओं को मानते हैं। दूल्हा दुल्ही देव विवाह-सूत्र में बांधने वाले देवता हैं, तो पंडा पंडिन देव रोग-दोष का निवारण करने वाले देव हैं। बूड़ादेव उनके पुरखे या कुलदेवता होते हैं। ग्राम देवता के रूप में खेरमाई (ग्राम की माता), ठाकुर देव या खीला मुठवा (ग्राम सीमा की पहरेदारी करने वाले देव) और ऐसे ही लोगो की सुरक्षा, फसलों की सुरक्षा, जानवरों, बीमारियों और वर्षा के लिए अलग-अलग ग्राम देवता होते हैं। इन देवों को बकरे और मुर्गे की बलि चढ़ाई जाती है। इनका कोई भी त्योहार, पर्व या अनुष्ठान मद्यपान के बिना पूरा नहीं होता।
गोंड जनजाति के इस पूरे परिदृश्य से जीवन में व्याप्त उनकी संस्कृति को, उनके रहन-सहन और उनकी जीवन-शैली को समझा जा सकता है। रोशनी व्याम इन्ही सब परिवेश और लोक-संस्कृति से आई हैं।
वे भी मध्यप्रदेश के मंडला जिले से ताल्लुक रखती हैं। गोंड चित्रकला के प्रतिष्ठित चित्रकार दम्पत्ति श्रीमती दुर्गाबाई व्याम एवं सुभाष व्याम की वे बेटी हैं तथा विश्वप्रसिद्ध गोंड चित्रकार जनगढ़ सिंह श्याम की भतीजी हैं। जनगढ़ सिंह श्याम गोंड कला के पितृपुरुष माने जाते हैं। इन सबको चित्रकारी करते देख, रोशनी ने 5 वर्ष की आयु से ही चित्रकारी करना शुरू कर दिया था। रोशनी ने बारह वर्ष की उम्र में अपने चित्रों की पहली प्रदर्शनी लगा दी थी। रोशनी उन चंद गोंड कलाकारों में हैं, जिन्होंने बेहतर तालीम हासिल की। रोशनी ने बंगलूर के निफ्ट से टेक्सटाइल डिजाइनर का कोर्स किया और कहीं नॉकरी करने की अपेक्षा उन्होंने स्वतंत्र चित्रकारी को चुना। कई बड़ी गैलरियों में रोशनी की एकल प्रदर्शनियां आयोजित हो चुकी हैं। उनका काम देश विदेश में सराहा गया है। रोशनी ने कई पुस्तकों में चित्रात्मक सहयोग किया है , खासकर बाल साहित्य और आवरण चित्रांकन में। उनके द्वारा तैयार की गयी पुस्तकों में “भीमायन” सराहनीय है। रोशनी की नवीनतम कृति एक पुस्तक “ओवर एंड अंडरग्राउंड, इन पेरिस एंड मुम्बई” है। रोशनी पारंपरिक कथा वाचन (जो उन्हें अपनी माँ से विरासत में मिली है) में भी दिलचस्पी रखती हैं। रोशनी पारंपरिक गोंड चित्रकला “ढ़िगना” और अपनी माँ द्वारा चित्रित विशेष महुआ शैली, जो गहनों पर बनायी जाने वाली आकृतियों से है, को बड़े कैनवास पर लाने में प्रयासरत हैं।
निफ़्ट के टेक्सटाइल डिज़ाइन में प्रशिक्षण ने रोशनी की कला और सोच को निखारा है और उसे एक नया माध्यम भी दिया है। वे गोंड कला को डिजिटल माध्यम पर भी लाने की इच्छा रखती हैं।
रोशनी कहती हैं कि- “एक कलाकार की कला को किसी रूढ़िवादी दायरे में सीमित करना उचित नहीं है। एक चित्रकार की पहचान केवल उसकी जनजाति, शैली या माध्यम न होकर व्यापक होनी चाहिये। यह चित्रकारी, कहानी कथन , गुदना, भित्तिचित्रों से आगे एक समावेशी जीवनशैली के रूप में सामने आना चाहिए।”
वे अपनी शैलीगत विशेषताओं के साथ काम करते हुए अपनी रचनात्मकता को प्रयोगशील बनाने से परहेज नहीं करती हैं। यही कारण है कि उनके बहुत सारे काम गोंड चित्र शैली में होते हुए भी अपने विषय से अलग प्रभाव छोड़ते हैं। यह कहना, कि वे गोंड चित्रकला की समकालीन कलाकार हैं, अतिश्योक्ति नहीं होगी। फिलहाल इन दिनों वे भोपाल के एलाइंस फ्रांसिस की एक दीवार पर गोंड शैली में एक भित्ति चित्र बना रही हैं।
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राकेश श्रीमाल (सम्पादक, कविता शुक्रवार)
कवि और कला समीक्षक। कई कला-पत्रिकाओं का सम्पादन, जिनमें ‘कलावार्ता’, ‘क’ और ‘ताना-बाना’ प्रमुख हैं। पुस्तक समीक्षा की पत्रिका ‘पुस्तक-वार्ता’ के संस्थापक सम्पादक।
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सारी कविताएँ बहुत सुन्दर हैं। वे हमें समृद्ध करती हैं और अपने सौंदर्यबोध से चमत्कार उत्पन्न करती हैं । बहुत बहुत धन्यवाद जानकी पुल इतनी अद्भुत कविताएँ पढ़वाने के लिए ।
समकालीन समय में जिस संवेदना के साथ संगीताजी कविता लिख रही हैं, उस तरह की कवितायें कम हैं….उनकी कवितायें पढ़ना समृद्ध होना है.
सुन्दर कविताएँ
संगीता गुंदेचा जी की कविताएँ वृहतर फलक पर वार्तालाप करती है अपने आप से भी और बाहर की दुनिया से भी | आपकी कविताएँ निरन्तरता में प्रश्न उपस्थित करती हुई उत्तर की तलाश में आगे बढती है | आपकी रचना यात्रा इहलोक से परलोक का गमन है जिसकी राह में ‘संयोग’ भी है और ‘अनुष्टान’ भी |