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उन्नीसवीं शताब्दी ‘स्त्री दर्पण’ और स्त्री शिक्षा

सुरेश कुमार 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और 20 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में स्त्रियों से जुड़े विषयों पर लगातार लिखते रहे हैं। उनका शोध भी इसी काल पर है। इस लेख में उन्होंने 19 वीं शताब्दी के सातवें दशक में प्रकाशित पुस्तक ‘स्त्री दर्पण’ पर लिखा है। यह बताया है कि किस तरह लेखक माधव प्रसाद ने स्त्रियों की शिक्षा के महत्व को बताने के लिए इस पुस्तक की रचना की थी। बहुत उपयोगी लेख-

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 19वीं सदी के सातवें दशक में ‘स्त्री दर्पण’ नामक की एक किताब लखनऊ के मुंशी नवल किशोर प्रेस से प्रकाशित हुई थी। इस किताब के लेखक एक्स्ट्रासिस्टेंट कमिश्नर ज़िला सुल्तानपुर मुल्क अवध पंडित माधव प्रसाद थे। यह किताब कब प्रकाशित हुई इसकी जानकारी मुझे नहीं है लेकिन सन् 1879 में इस किताब का दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ था। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यह किताब अपने समय में काफी मशहूर हुई होगी। पंडित माधव प्रसाद ने यह किताब स्त्रियों की शिक्षा के वास्ते बड़ी ही सुगम और सरल भाषा में बनाई थी। दरअसल इसी समय गर्वमेन्ट ने स्त्रियों की शिक्षा पर बल देना शुरु किया था। सरकार का कहना था कि स्त्रियों का पढ़ना-लिखना बेहद आवश्यक और जरुरी है। पंड़ित माधव प्रसाद ने तत्कालीन सरकार की महत्वकांक्षी योजना की पूर्ति के लिए यह किताब बनाई थी। लेखक का कहना था कि आजकल के उच्च कुलीन लोग स्त्रियों का पढ़ना अच्छी नज़र से नहीं देखते हैं। लेखक का तर्क था कि स्त्रियों को पढ़ने-लिखने की आवश्यकता इसलिए है कि वे अपने जीवन का बंदोबस्त ठीक-ठाक से कर सकें। जब तक बालक पाठशाला नहीं जाते तब तक स्त्रियाँ अपने बच्चों को घर ही शिक्षा दे सकती हैं। लेखक ने प्राचीन स्त्रियों के उदाहरण देकर बताता है कि हमारे देश में स्त्रियों की शिक्षा का उचित प्रबंध था। माधव प्रसाद गांधारी आदि स्त्रियों का प्रमाण देकर कहा कि प्रचीन काल में बहुत सारी स्त्रियाँ पंडिता और विदुषी थी जिनकी चर्चा भारतीय साहित्य में मिलती है। लेखक ने उच्च कुलीन जनों से अपील की कि वे अपनी कन्याओं के वास्ते उचित शिक्षा का प्रबंध करें। और, अपनी कन्याओं को पढ़ाने के लिए आगे आयें। माधव प्रसाद का यह भी कहना था कि जो मनुष्य स्त्रियों की शिक्षा व्यवस्था पर विचार नहीं करते उनसे बड़ा बुद्धिहीन कोई दूसरा नहीं है। 19वीं सदी के इस लेखक का कहना था कि स्त्रियाँ शरीरिक तौर पर भले ही पुरुषों जैसी बलवान न हो लेकिन बुद्धि बल के स्तर पर स्त्रियाँ पुरुषों से किसी मामले में कम नहीं है। लेखक इस बात पर आश्चर्य प्रकट करता है कि पुरुष इस बुद्धि के बल पर पंडित, शिक्षक और वैद्य बन जाता है लेकिन स्त्रियाँ अपना समय कहानी सुनने या गुड़ियों का खेल खेलने में व्यतीत कर बेहुनर बन जाती है। पंडित माधव प्रसाद स्त्रियों को शिक्षा का महत्व बताने के लिए महारानी विक्टोरिया का प्रमाण देकर बताया कि छोटे  से परिवार में जन्म लेने वाली शाहजादी महारानी विक्टोरियों ने शिक्षा हासिल करके केवल गृहस्थ का नहीं अपितु समस्त देश का सम्राज्य संभाल रखा है।

  माधव प्रसाद ने ‘स्त्री दर्पण’ किताब वर्तालाप और किस्सा शैली में लिखी थी। इस किताब में परमेश्वरी और सरस्वती नामक दो बहनों की कहानी है। परमेश्वरी, सरस्वती की बड़ी बहन है। दिलचस्प बात यह है कि दोनों बहनों का विवाह भी एक ही घर में क्रमशः बड़े और छोटे भाई के साथ होता है। ‘स्त्री दर्पण’ के पहले भाग में परमेश्वरी की और दूसरे हिस्से में सरस्वती की कहानी है। माधव प्रसाद ने सरस्वती के बहाने यह दिखाने की चेष्टा की है कि शिक्षा के अभाव में परमेश्वरी का जीवन कैसे बिगड़ जाता है। सरस्वती शिक्षा के अभाव में परिवार और समाज को ठीक से समझ नहीं पाती है। लेखक का कहना है कि ऐसा वह शिक्षा के अभाव में करती है। परमेश्वरी अपने पति पर दबाव बनाती है कि वह अपने माता-पिता से अलग होकर उसके साथ रहे। परमेश्वरी का पति गृह कलह को टालने के लिए अपने माता-पिता से अलग होकर एक किराए के मकान में रहने लगता है। इतने पर भी परमेश्वरी गृह का कोई कार्य नहीं करती है। यहाँ तक वह खाना भी बाहर से मांगवाकर खाती है। इससे गृह की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है। लेखक ने यह दिखाया है कि अनपढ़ स्त्रियों से कैसे दूतनी, साधु और फेरी वाले उनका धन ठग लेते हैं। लेखक का निष्कर्ष है कि यदि परमेश्वरी को उचित शिक्षा मिली होती तो वह अपने वह अपने जीवन और परिवार का बंदोबस्त ठीक से करती और पति की कमाई दूतनी और फेरी वालों पर नहीं गवाती।

पंडित माधव प्रसाद ने सरस्वती की कहानी के बहाने स्त्री शिक्षा की उपयोगिता बताई है। लेखक कहता है जब परमेश्वरी अपना समय खेल-खूद में व्यतीत करती थी, उसी समय सरस्वती शिक्षा पर ध्यान देती थी। लेखक ने सरस्वती को घरेलू माडल में फिट होने वाली एक आदर्श महिला के तौर पर पेश किया है। सरस्वती का विवाह उसी घर में अम्बिकादत्त से हुआ, जिस घर में परमेश्वरी का विवाह हुआ था। सरस्वती अपने गृह का संचालन बड़ी कुशलता से करती है। वह अपने पति की कमाई को फ़िज़ूलख़र्ची में नहीं बल्कि परिवार के बंदोबस्त में लगाती है। लेखक ने दिखाया है कि सरस्वती अपने सास की सेवा टहल बड़ी लगन से करती है। वह पास-पड़ोस की स्त्रियों को अपने घर में फ़जूल का वक्त भी बिताने नहीं देती है। पंडित माधव प्रसाद ने अपनी किताब में इस तरह अनपढ़ और पढ़ी लिखी स्त्रियों में फर्क बताने का काम किया था। सरस्वती के इस से व्यवहार से परिवार के सभी लोग खुश रहते हैं। पंडित माधव प्रसाद ने सरस्वती का चरित्र एक आदर्शवादी बेटी और एक आदर्शवादी बहू के रुप में प्रस्तुत किया। और, स्त्रियों को सरस्वती की कथा के बहाने स्त्री शिक्षा का महत्व बताया। यदि पंडित माधव प्रसाद सरस्वती को आदर्शवादी कन्या के तौर पर प्रस्तुत नहीं करते तो उच्च कुलीन के लोग अपनी कन्याओं को शिक्षा को दिलवाने के लिये राजी नहीं होते। पंडित माधव प्रसाद ने उच्च कुलीन लोगों के भीतर स्त्री शिक्षा को लेकर जो भ्रम और शंकाए थी उनको दूर करने का काम अपनी पुस्तक ‘स्त्रीदर्पण’ में करते दिखाई देते हैं। इस लेखक का कहना था कि स्त्रियाँ शिक्षा पाने से बिगड़ती नहीं बल्कि सद् और समझदार बनती हैं। इसलिए उच्चकुलीन वर्ग अपनी कन्याओं को बिना हिचक और शंका के बगैर शिक्षा दिलाने का कार्य करें। 19वीं सदी के उत्तरार्ध में लेखकों का पहला लक्ष्य यह था कि किसी तरह स्त्रियों में शिक्षा की ललक पैदा की जाए। ऐसा उनको इसलिए भी करना पड़ा था यदि लेखक स्त्री शिक्षा को गृहकार्य तक सीमित न करते तो बहुत सारे लोग स्त्री शिक्षा के विरोध में खड़े हो जाते और अपनी कन्याओं को स्कूल में पढ़ाने के लिए राजी नहीं होते। क्योंकि उस समय का समाज स्त्री शिक्षा को बड़ी शंका की दृष्टि से देखता था। जब स्त्री शिक्षा पर लोग बात तक करना पंसन्द नहीं करते थे ऐसे माहौल में पंडित माधव प्रसाद ने स्त्री शिक्षा की न सिर्फ वकालत की बल्कि स्त्री शिक्षा के पक्ष में वातावरण तैयार करने में अहम भूमिका निभाई थी।

[लेखक हिंदी नवजागरणर के गहन अध्येता है। आजकल इलाहाबाद में रहते है। इनसे 8009824098 पर संपर्क किया जा सकता है।]

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