मिथिलेश कुमार राय युवा लेखकों में जाना पहचाना नाम है। इनका उपन्यास ‘कोयला ईंजन’ शीघ्र प्रकाशित होने वाला है उसी का एक अंश पढ़िए-
========================
नहर वाले खेत की हरियाली
प्रभात खबर के दीपावली विशेषांक-2020 में प्रकाशित लेखक के शीघ्र प्रकाश्य उपन्यास ‘कोयला ईंजन’ का एक अंश
गेहूं के नन्हें पौधों के बीच उगे बथुआ का साग खोंटने में लड़की तल्लीन थी और हौले-हौले कोई गीत गुनगुना रही थी।
लड़का पेड़ की ओट में खड़ा था और उसे निहारे जा रहा था।
पता नहीं कैसे लड़की को यह आभास हो गया कि कोई उसके आस-पास है। वह इतनी तेजी से पीछे मुड़ी कि लड़का अकबका कर रह गया।
-क्या घूर रहे हो जी?
-मैं घूर नहीं रहा था।
-तब? तब क्या कर रहे थे? छुप-छुप कर क्या कर रहे थे तुम?
-वैसे ही।
-वैसे ही क्या! कोई काम-धाम नहीं है तुम्हारे पास जो अकेली लड़की को घूर रहे थे। आएं!
-मैं घूर नहीं रहा था।
-घर जाती हूं। बाप को बताती हूं। तब उनको बताना कि घूर नहीं रहे थे तो क्या कर रहे थे।
-रुको। सुनो तो।
लेकिन लड़की नहीं रूकी। वह तेज कदमों से जाती ही रही। एकबार भी पीछे मुड़कर नहीं देखी।
लड़का को यह अच्छा नहीं लगा। वह भी पलटकर बगीचे की ओर चलता रहा। लेकिन उसके दिल में एक कसक सी उठ रही थी। वह सोच रहा था कि अगर उसका लड़की से खूब बातें होती और रोज मुलाक़ातें होती तो उसके इस व्यवहार पर वह जरूर रूठ जाता। फिर कई दिनों तक रूठा ही रहता!
तभी उसे लड़की की धमकी याद आ गई। फिर वह यह सोचने लगा कि अगर उसने सचमुच अपने बाप से यह सब कह दिया तब क्या होगा। इस सोच से उसके चेहरे के भाव बदल गए। जहां पहले गुस्से का भाव था, वहां अब चिंता छा गई थी। लेकिन जल्दी ही उसने अपने को यह कहकर दिलासा दे दिया कि इसमें इसके खतरे तो रहते ही हैं। ऐसे डरने से काम नहीं चलेगा। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, उसके बाप मेरे बाप से शिकायत करेगा कि तेरे लड़के बिगड़ रहे हैं। संभाल लो। नहीं तो ठीक नहीं होगा। इसके बाद उसका बाप उस पर आग-बबूला हो जाएगा…बस्स!
तब तक उसने बगीचे की दूरी नाप ली थी। उसकी नजर कुछ बकरियों पर पड़ी। वह उसके खेत से गेहूं के पौधे नोंच रही थी। गुस्से में पहले तो उसने हट-हट कहा। फिर जिसकी बकरी थी, उसे खरी-खोटी सुनाने लगा।
दूर घास छील रही एक स्त्री तेज कदमों से आई और बकरियों को हुर्र-हुर्र की आवाज देकर परती खेत की तरफ हांकने लगी।
लड़के को कोई गीत याद आ गया था। वह उसे गुनगुनाते हुए नदी की तरफ बढ़ गया…
लड़की तेज कदमों से कुछ दूर तक चलती रही और फिर ठिठक गई। ठिठकने के बाद उसने धीरे से गर्दन घुमाकर पीछे देखा। लड़का चुपचाप पूरब की ओर मेड़ पर चला जा रहा था। उसे यह अच्छा नहीं लगा। उसे दुख हुआ। उसने सोच रखा था कि लड़का उसे जाते हुए देखता रहेगा। जब वह नजरों से ओझल हो जाएगा, तभी वह पलटेगा। लेकिन ऐसा कहां हुआ। उसने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि जो वह सोच रही है, उस तरह की कोई बात ही न हो।
अब जो वह चल रही थी, उसके कदमों में थकावट थी। धीरे-धीरे।
बाँसबाड़ी में उसने सोनम को देखा तो वह उस तरफ जानेवाली मेड़ पर मुड़ गई। दुपट्टे से बने खोइन्छा को वह अपने दाहिने हाथ में पकड़ी हुई थी। खेत लगभग सुनसान था। कहीं-कहीं इक्का-दुक्का ही लोग नजर आ रहे थे। इसलिए भी वह बेपरवाह थी।
सोनम ने उसे आते हुए देख लिया था। वहीं से खिलखिलाने लगी। एकांत में जब दो लड़कियां मिलतीं हैं तो जीभर कर खिलखिलातीं हैं। ऐसा लगता है कि जैसे वे एक जगह अपनी मुस्कुराहटों को संचित कर रखतीं हैं और मौका पाते ही उसे लुटाने लगती हैं।
सोनम मुस्कुरा रही थी। लेकिन लड़की ने अपने होंठों पर हंसी को नहीं आने दिया। यह सोनम को अच्छा न लगा। उसे मजाक सूझी। उसने कहा-क्या हुआ अंजु? बड़ी भकुआई हुई लग रही हो। किसी ने छेड़ दिया क्या। कही वह दिलो तो नहीं था!
-चोप्प! बनावटी गुस्से से यह कहती हुई वह वहीं मेड़ पर बैठ गई।
सोनम भी आकर उसकी बगल में बैठ गई। सांझ ढलने की बेला आ गई थी। जिस पंछी के पेट भर गए थे, वे बाँसबाड़ी में अपने घोंसले की तरफ बढ़ रही थीं। हल्का सा कुहासा छाने लगा था और निष्ठुर पछिया तेज बहने के संकेत दे रही थी। गेहूं और सरसों के बढ़ते पौधे डोल रहे थे। अगल-बगल कोई नहीं था। शांति थी। यह वातावरण उन्हें अच्छा लग रहा था।
-वह लड़का मुझे फिर घूर रहा था। सामने सरसों के एक हरे पौधे की तरफ देखते हुए अंजु ने कहा।
-कौन? दिलो?
-हां।
-अरे, उसे घूरना नहीं कहते पगली। निहारना कहते हैं।
अंजू ने सोनम की तरफ देखा। उसकी आंखें जगमगाने लगी थीं।
-और किसी को वह कहां देखता है। कहो, मुझे देखता है? लेकिन तुझे देखता है। क्यों देखता है, तुम समझो। तुम कोई दूध पीती बच्ची तो हो नहीं। तेरे ब्याह के लिए लड़के खोजे जा रहे हैं।
-उसे मुझे इस तरह नहीं देखना चाहिए। यह वाक्य कहते हुए अंजु की आंखों में डर उभर आया था।
-वह भी क्या करे बेचारा। दिल के हाथों मजबूर होगा।
-घर वाले को पता चलेगा तो लड़ाई-फसाद हो जाएगी। मैं बदनाम हो जाऊंगी।
-क्यों, दिलो तुमको अच्छा नहीं लगता है क्या? बोलो!
-मेरे अच्छा लगने से क्या होता है।
-किसके अच्छा लगने से होता है? घरवाले के? तो घरवाले से बात करो न।
-वे मुझे काट कर फेंक देंगे।
-हां। घरवाले तो काट के ही फेंक देंखे। लड़की होकर यह मजाल! अपनी पसंद बोलती है। मारो साली को।
-लड़कियों का जीवन अजीब होता है न। उन्नीस-बीस साल की उमर में जिसके साथ भी बांध दे, वहीं जिंदगी बीता देनी है। न यहां चू-चपड़ और न वहां चू-चपड़।
-ओय मूरख, दुनिया बदल गई है। लड़कियां अब वो नहीं रही जो हमारी दादी और मां हुआ करती थीं। अब तो…
-तुझे बिन्नी की याद नहीं है क्या? बेचारी पकड़ी गई थी और भारी फजीहत हुआ था। इतनी दूर शादी करवा दिया कि बेचारी को आने से पहले हजार बार सोचना पड़ता है।
सोनम को बिन्नी की याद आई तो उसका भी जोश ठंडा पड़ गया। उसने अंजु का हाथ पकड़कर उसे उठाया और कहा-चलो, घर चलते हैं। करम का लिखा भोगेंगे।
दोनों जब घर की ओर बढ़ रही थीं, ऐसा लग रहा था कि बहुत तेज दौड़ने के बाद थक गई हो। इसलिए हौले-हौले चल रही हो।
दिलो रात के आठ बजे घर लौटा। दरवाजे पर बनी बैठकी में उसके पिता बेचन बैजू से गप्पें लड़ा रहे थे। दिलो ने कनखी से उधर देखा। ढिबरी की रोशनी में दोनों जन आमने-सामने बैठे खेती-गृहस्थी की बातों में मग्न थे। बैजू खैनी लगा रहा था और पिता आठ दिन बाद गेहूं के पटवन और उसके बाद खाद डालने में होनेवाले खर्चे का हिसाब लगा रहे थे।
-इतने खर्चे के बाद उपजकर हाथ में क्या रह जाता है। सिर्फ खाने भर का अन्न! अगर हम अपनी भी मजूरी काट ले, तो वो भी नहीं बचेगा।
दिलो ने आंगन जाते-जाते सुना। यह पिता कह रहे थे।
-दो-चार बीघा खेती करनेवाले किसानों की दुनिया भर में यही स्थिति है। अपने ही खेतों में खटता है तो बदले में उसे दो वक्त की रोटी नसीब हो जाती है। क्या कीजियेगा। जब तक जान है, लगे रहेंगे। खेत पुरखे के छोड़े धरोहर हैं। उनसे मोह है। हमें कुछ और आता भी तो नहीं… बैजू की बात दिलो पूरा सुन नहीं पाया। वह आंगन पहुंच गया था।
उसने आंगन में जैसे ही पैर रखा, माई टकरा गई। देखते ही बोली-आ गए! लो, ये चाय दे आओ दरवाजे पर।
माई ने उसके दोनों हाथों में एक-एक गिलास थमा दिया और रसोई की तरफ मुड़ गई।
दिलो अब तक थोड़ा डरा हुआ था। वह सोच रहा था कि अगर अंजु ने अपने पिता से उसकी शिकायत कर दी होगी तो वह शिकायत उसके पिता तक आ गई होगी। फिर उसके घर पहुंचते ही पिता उस पर टूट पड़ेंगे। लेकिन अब वह सामान्य होने लगा था। उसे लग रहा था कि अंजु ने उसकी शिकायत नहीं की है। अगर शिकायत उसके घर तक आती तो माई चूल्हा बुता कर बैठी होती और उसे देखते ही छाती पीटने लगती…
दिलो जब बैठकी में चाय लेकर पहुंचा, बैजू खैनी रगड़ ही रहा था। शायद वे चाय का ही इंतज़ार कर रहे थे। उसने दोनों के सामने गिलास रख दिया।
दिलो को देखकर बैजू ने पूछा-बिजली गायब है। कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गया है?
-गड़बड़ क्या होगा। सारी बिजली शहर को उपलब्ध करा दी जाती है। किसी दिन दस लोग चलते और जेई को जुतियाते, तब बात बनती।
-अरे नहीं, वह बेचारा क्या करेगा। अब बैजू ने चाय का गिलास उठा लिया था। पहली चुस्की लेकर बोले-वह भी तो नौकर है न। जैसा आदेश मिलता है, वैसा करता है।
दिलो ने ध्यान दिया। पिता उसे गुर्राकर देख रहे थे। वह वहां से आंगन आ गया।
माई ओसारे पर बैठी चाय सुड़प रही थीं। बगल में एक और गिलास रखा हुआ था। वह उसी का था। मोढ़े पर बैठकर उसने भी अपना गिलास उठा लिया।
-अंधेरे में सब कितना अजीब लग रहा है न। माई बोली-लेकिन अभी भक्क से बिजली आ जायेगी तो लगेगा कि कुछ आ गया है!
दिलो ने कुछ नहीं कहा। वह चाय पीता रहा।
-खेत की तरफ भी गए थे? माई ने पूछा।
-हाँ।
-साग खोंटने वाली का झुंड गेहूं को रौंद तो नहीं रही थी?
-नहीं। कोई नहीं था।
माई तो उठकर चापानल के पास चली गई। लेकिन साग खोंटने वाली का जिक्र करके उसने उसे अंजु की याद दिला दी। उसने सोचा-कैसी लड़की है। कुछ नहीं समझती है। नाक पर हमेशा गुस्से को बिठाकर रखती है। क्या गुस्सैल लड़कियां बात को देर से समझती हैं!
दिलो अभी जगने के मूड में नहीं था। लेकिन माई भी न, झिंझोर कर रोज सवेरे जगा देती हैं। उसने आंखें खोली तो सामने माई को खड़ा पाया। वह कह रही थीं-कुहासे के कारण सुरुज देव दिखाई नहीं दे रहे हैं तो इसका क्या मतलब। मैं पिछले दो घंटे से जगी हुई हूं। तेरे पिता कब से कह रहे हैं कि दिलो को भी जगा दो। लेकिन मैं ही टालती रही कि लड़का देर रात तक मोबाइल टीपता रहता है। कुछ देर और सो लेने दो।
दिलो अनमने भाव से माई की बातें सुनते मोबाइल को ऑन करने लगा। जब मोबाइल ऑन हो गया, उसने घड़ी पर नजर डाली। देखा, सवा आठ बज गए हैं। उसे लगा, पिताजी जरूर आग-बबूला हुए होंगे…
उसने पूछा-पिताजी कहां गए?
-अभी गाय दूह कर निकले हैं। खेत की तरफ गए होंगे।
इसके बाद माई चाय लाने चली गईं। सवेरे जब उसकी आंखें खुलती हैं, माई उसके सामने एक गिलास पानी और एक कप चाय रख देती हैं। जब से वह गांव आया है, यह उनका रोज का नियम बन गया है। वह चाय और पानी लेकर आती हैं और उसे जगातीं हैं। पिता क्या कह रहे थे, यह कहती हैं और अपने काम में लग जाती हैं। इकलौता होने का सुख भी गजब होता है। पीठ पीछे पिता चाहे जो कह ले, लेकिन सामने से आजतक उन्होंने एकबार भी आंखें तरेर कर नहीं देखा है।
माई चाय और पानी लेकर आ गई। उसने कप और गिलास उसके सामने रख दिया और हिदायत दी-कान में मफलर लपेट लो। देखते नहीं, कुहासा कितना है।
उसने कान से मफलर लपेट लिया और एक घूंट पानी से कुल्ला करने के बाद शेष सारा पी गया। माई आंगन की और चली गईं।
मोबाइल में नेट ऑन करके वह धीरे-धीरे चाय पीने लगा। उसने वाट्सएप खोला तो उसके गांव के ग्रुप में एक मैसेज था-इंदु का घर बड़ा जीर्ण-शीर्ण है। हमें उसके लिए कुछ करना चाहिए।
यह कौशल का पोस्ट था। ग्रुप का एडमिन वही था। इस ग्रुप में सिर्फ गांव के ही लोग थे। जो गांव में रहते थे वे और जो गांव से बाहर परदेश में रहते थे, वे भी। दिलो ने देखा, कौशल के पोस्ट पर अभी तक किसी और ने कुछ भी नहीं लिखा था। चाय पीते हुए उसने यह सोचा कि अगर यही मैसेज किसी धार्मिक आयोजन से संबंधित होता तो अब तक कई रिप्लाई आ चुके होते। खैर। वह वाट्सएप्प बंद कर फेसबुक पर आ गया।
अब तक उसकी चाय भी खत्म हो गई थी। वह फिर लेट गया और छाती तक रजाई खींचकर मोबाइल के बटन से खेलने लगा।
वह यह याद करने लगा कि उसने रात में सपने में क्या देखा था। उसे लग रहा था कि उसने सपने में कुछ देखा था। कुछ अच्छा सा दृश्य। लेकिन उसे वह याद नहीं आ रहा था। उसे बस इतना ही याद आया कि रात को एकबार उसे ऐसा लगा था कि वह खिलखिलाया है। फिर कोई गीत बुदबुदाने लगा था। लेकिन वह किस बात पर हंसा था और कौन सा गीत गुनगुनाने लगा था, यह सब उसे याद नहीं आया।
अंत में उसने यह सोचकर सोचना बंद कर दिया कि शायद सपने में अंजु आई होगी और वह उसके साथ बात कर रहा होगा। उससे बात करते हुए ही वह खिलखिलाने लगा होगा और उसी खुशी में कोई गीत गाने लग गया होगा। गीत से उसे यह याद आया कि दुनिया के अधिकतर गीत प्रेम को आधार बनाकर ही गढ़े गए हैं। फिर वह यह सोचने लगा कि गीत शायद इसलिए इतने प्यारे होते हैं क्योंकि वे प्रेम में पगे होते हैं। तभी तो, कोई भी इंसान हो, मन प्रसन्न होते ही कोई न कोई गीत बुदबुदाने लग जाता है। भले उनका सुर कैसा भी हो।
फिर उसने यह सोचा कि चलो, वास्तव में न सही, अंजु उसके सपने में तो आती है! अंजु के बारे में सोचकर उसके दिल में एक कसक सी उठी। कैसी लड़की है। उसमें दिमाग नाम की कोई चीज है कि नहीं, कुछ पता ही नहीं चलता है। पिछले तीन साल से निहार रहा हूं और वह कहती है कि तुम मुझे घूरते क्यों रहते हो!
पगली! सोचते-सोचते उसके होंठों पर एक मीठी सी मुस्कान नृत्य करने लगी-घूरने और निहारने में कोई फर्क ही नहीं समझती है! मेरी आंखों की तरफ कभी गौर से देखे तब पता चले! निरी मूरख भी तो नहीं है। छैला कह रहा था कि इंटर करने के बाद अब ग्रेजुएशन कर रही है। हद्द है। पढ़ी-लिखी है, तब भी!
फिर उसने जैसे खुद को दिलासा दिया-लड़कियां होती ही ऐसी हैं। वे अपने जज्बात को काबू में रखना जानतीं हैं। वे झट से हां नहीं कहती हैं। जब इंतज़ार पूरा पक जाता है, तब वे अपनी आंख दिखातीं हैं कि देखो, इसमें तो कब से तुम्हारे लिए प्यार भरा हुआ था। मेरा दिल तो उस दिन से सिर्फ तुम्हारे लिए ही धड़क रहा है…
-सुनो।
दिलो के सोच को ब्रेक लग गया। माई थीं।
-उस टोले तक चले जाओ। राजिंदर बाबू के यहां।
-काहे? राजिंदर का नाम सुनते ही वह चौंक उठा था।
-कल आये थे। सेम देखकर बोले कि हमको इसकी सब्जी बहुत पसंद है। तो तेरे बाबूजी ने तोड़कर उसे सेर भर दे दिया था। कह रहे थे कि कभी दिलो को भेज देना, फूल गोभी बढ़िया निकला है।
-तुमने कल उसको सेम दिया और आज मैं उसके यहां फूल गोभी लेने चला जाऊं? मुझसे नहीं होगा।
-यही एक बड़ी विचित्र बात है तुझ में। तुम दूसरे ढंग से सोचने लगते हो। इसका मतलब यह नहीं है कि हम सेम के बदले गोभी मांगने जा रहे हैं। गांव की यही संस्कृति है। यहां मिल-बांट कर खाने की परंपरा है। देखते नहीं, लोग कैसे अधिकार से न सिर्फ मांगते हैं बल्कि कई बार हाथ बढ़ाकर तोड़ भी लेते हैं।
राजिंदर के यहां जाने के नाम पर ही दिलो के दिल की धड़कन बढ़ गई थी। वहां जाएगा तो एक झलक अंजु को भी देख सकेगा…आह!
लेकिन प्रत्यक्ष में वह मुंह बनाकर यह कह रहा था-अब वह जमाना नहीं रह गया है माई। लोग चीजें मुफ्त में बांटना नहीं चाहते। उससे मुनाफा कमाना चाहते हैं।
-ठीक है। तुम जो कह रहे हो, वही ठीक है। लेकिन जाओ और कहना कि पिताजी ने गोभी के लिए कहा है। इतना कहते ही वे तुम्हें गोभी तोड़कर झोले में दे देंगे। तुम सिर्फ लेते आना।
माई अब आदेशात्मक स्वर में कहने लगी थीं-उसका गोभी बिना खाद और कीटनाशक वाला है। इसलिए तेरे पिताजी को वो पसंद है। वरना बाजार का तो वे मुंह में लेना तक पसंद नहीं करते।
-अच्छा-अच्छा। जाता हूं। दिलो ने यह कहते हुए यह प्रकट नहीं होने दिया कि उसका बस चले तो वह उड़ कर वहां पहुंच जाए।
माई जब आंगन चली गई, दिलो ने भी बिछावन छोड़ दिया। अब उसे जल्दी से तैयार होना था। उसने सोचा, लुंगी पहनकर वह वहां नहीं जाएगा। पायजामा पहन लेगा। उसने बैठकी से बाहर मौसम पर निगाह मारी। कुहासा छंट रहा था। मौसम खुल रहा था। लगता था कि एक-आध घंटे में धूप निकल आएगी। उसने मोबाइल स्क्रीन पर नजर मारी। पौने नौ बजे रहे थे।
घर से निकलते-निकलते दस बज गए। अब मौसम भी साफ हो गया था। सूरज पूरा तो नहीं लेकिन निकलने को आतुर दिख रहा था। दिलो ने साइकिल में पैडल मारने से पहले एकबार पूरब की ओर देखा। ऊपर। लगा कि सूरज पर्दे के पीछे से झांक रहा हो। जैसे एक बच्चा खेलता है, वैसे ही। कभी पर्दे के पीछे से एक पल के लिए पूरा का पूरा बाहर आ जाता और दूसरे ही पल बिलकुल छिप जाता। वह मुस्कुराया। अभी सूरज अपना मुंह पर्दे के पीछे से थोड़ा सा दिखा रहा था। उसने सोचा-मौसम को इस धूप-खेल में जरूर मजा आ रहा होगा!
उसने पैडल मारी। साइकिल चल पड़ी। आगे हैंडल में एक झोला लटक रहा था। निकलने से पहले जब वह तैयार हो रहा था, एक क्षण को उसे लज्जा भी आई थी कि कैसा तो लगता है। गोभी लाने जाना। लेकिन अंजु को एक नजर देख लेने के लोभ ने उस एक क्षण के शरम को परे धकेल दिया था। फिर तो वह कोई मीठा सा गीत गुनगुनाते हुए तैयार होने लगा था।
रात को पहने सारे गर्म कपड़े उसने निकाल दिया था और पायजामा पहन लिया था। उसने एक बार काले रंग का जैकेट पहनकर देखा। लेकिन उसे वह अच्छा नहीं लगा। फिर उसने उसे उतार कर स्वेटर पहन लिया था। उसने न तो कनटोप लगाया न ही गले में मफलर बांधा। जब माई ने उसे आईने के सामने दो-तीन बार खड़े होते हुए देखा तो हंस कर कहने लगी-ससुराल जा रहे हो क्या! यही दक्षिणवारी टोले तक तो जाना है।
माई के इस कथन पर दिलो झेंप गया था और बिना कुछ कहे आंगन से साइकिल निकालने लगा था। साइकिल की हैंडल से माई ने झोला पहले ही लटका दिया था।
चलते हुए दिलो की नजर इंदु के घर पर पड़ी तो उसने साइकिल की गति कुछ धीमी कर दी। इंदु का फूस का पुराना घर एक ओर गिरा जा रहा था। उसने गौर से देखा। घर आम के एक पेड़ के सहारे टिका हुआ था और दूर से देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे कि घर वृक्ष के तने पर अपनी पीठ टिकाकर बैठा हो। लेकिन सच यह था कि फूस का वह जर्जर घर वृक्ष के मजबूत कंधे के कारण ही बचा हुआ था। नहीं तो कब का धड़ाम हो चुका होता।
दिलो ने सोचा- वह कौशल से इस बारे में जरूर बात करेगा। गांव में कई मंदिरों और धार्मिक आयोजनों के नाम पर चंदे के रूप में लाखों जमा किये गए हैं। क्या एक गरीब के गृह-निर्माण के लिए लोग चंदे न देंगे! दिलो को विश्वास था कि जरूर देंगे। फिर उसने साइकिल को सामान्य गति में राजिंदर के घर की ओर बढ़ा दिया।
उसका घर ज्यों-ज्यों नजदीक आता जा रहा था, उसके दिल की धुकधुकी बढ़ती जा रही थी। उसने लाख अपने आप को संयत करने की कोशिश की, लेकिन उसकी धुकधुकी में कोई कमी नहीं आई। इस बात पर उसने कई बार गौर किया कि जब भी वह अंजु के नजदीक आता है, उसे निहारने लगता है, धुकधुकी बढ़ जाती है। ऐसा तभी क्यों होता है, यह वह आजतक नहीं जान पाया।
दरवाजे के पास आकर उसने साइकिल रोक दी। दरवाजे पर आम का एक विशाल पेड़ था और पेड़ के नीचे एक नाद रखी हुई थी। नाद के पास दो खूंटे गड़े हुए थे और एक खूंटे से गाय बंधी हुई थी। दूसरा खूंटा खाली था। उसने देखा, गाय का बच्चा उससे बहुत दूर बंधा हुआ था और नीचे रखे बांस के पत्ते को धीरे-धीरे टुंग रहा था।
उसने तीन-चार मिनट तक इंतजार किया। लेकिन दरवाजे पर अंदर से कोई नहीं आया। उसने सोचा कि साइकिल को सड़क से दरवाजे पर ले जाया जाए और दो-तीन बार घंटी के टुनटुन को बजा दिया जाए।
उसने ऐसा ही किया।
दो-तीन बार लगातार घंटी बजाकर वह थम गया और आंगन से दरवाजे की ओर आनेवाले रास्ते की ओर देखने लगा।
चहलकदमी हुई। ओह! उसका दिल हठात एकबार जोर से ‘धक्क’ कर उठा। अंदर से अंजु निकली थी।
लेकिन जैसे ही उसकी नजर दिलो पर पड़ी, वह आगे बढ़ती हुई हठात रुक गई। उसने एक पल को उसे देखा, दिलो की आंखें उसे ही देख रही थीं, फिर वह अंदर चली गई।
दिलो ने अपने आप को संयत किया और साइकिल से उतर गया। उसने साइकिल को स्टैंड पर खड़ा कर दिया और गाय के बच्चे के पास आकर उसे पुचकारने लगा। बड़ा प्यारा बच्चा था। पूरा काले रंग का। माथे पर सफेद धारियां थीं।
तभी आंगन से छह-सात साल की एक बच्ची आई और कहने लगी- नाना-नानी नहीं हैं। नानी गांव गए हैं। शाम को आएंगे।
एक पल को तो दिलो को कुछ समझ में नहीं आया कि वह क्या करे। लेकिन जल्दी ही उसका दिमाग काम करने लगा। उसने बच्ची से पूछा- क्या नाम है बाबू?
-गुड़िया। उसने तुरंत जवाब दिया।
-पढ़ती-लिखती भी हो कि दिनभर खेलती ही रहती हो?
-अभी पढ़ नहीं पाती हूं। अंजु दीदी मुझे लिखना सीखा रही हैं।
गुड़िया के इस जवाब पर लगा कि खिड़की के पास कोई हंसा है। यह अंजु की हंसी है। वह पहचान गया। उसने गुड़िया से मसखरी किया-जब दीदी तुम्हें लिखना सिखाती है तब पिटाई भी करती हैं?
-हां। कभी-कभी।
-ओहो। दिलो ने झूठमूठ का दुखी चेहरा बनाते हुए कहा-दीदी से पूछो कि पिताजी ने फूल गोभी देने के लिए भी कहा है? दिलो को?
गुड़िया दौड़कर अंदर चली गई। जब वह कुछ देर बाद लौटी तो कहने लगी कि दीदी ने कहा है कि आप झोला लेकर सब्जी के खेत में आ जाइए
दिलो का दिल बाग-बाग हो उठा। अब धुकधुकी भी नहीं रह गई थी। लेकिन कुछ हो रहा था। यह क्या हो रहा था, दिलो यह नहीं समझ पाया। लेकिन प्रत्यक्ष में उसने गुड़िया से यह पूछा कि सब्जी का खेत किधर है? मैं कैसे जाऊं?
यहीं तो है। गुड़िया ने एक ओर इशारा करते हुए कहा-मैं जानती हूं।
अरे वाह! दिलो ने हैंडल से झोला निकाल लिया और कहा-मुझे वहां तक पहुंचा दो गुड़िया।
-चलिए।
दिलो हाथ में झोला लिए गुड़िया के पीछे-पीछे चल पड़ा।
सब्जी के खेत तक पहुंचने में उसे दो मिनट लगे। उसने देखा, अंजु हंसिया लिए पहले ही खेत आ गई थी और चुन-चुन कर फूल गोभी काट रही थी।
-दीदी, मैं एक गाजर उखाड़ लूं? गुड़िया फुर्र से अंजु के पास पहुंच गई।
-नहीं। अंजु ने उससे यह कहने के तुरंत बाद फिर यह कहा कि जाओ, एक उखाड़ लो।
गुड़िया गाजर के क्यारियों के पास चली गई। गाजर की क्यारियां आलू के खेतों के पास ही थी।
-ज्यादा मत काट लेना। साहस करके दिलो ने यह शब्द जानबूझ कर कहा-छोटा सा झोला लाया हूं।
-इतनी सी अकल है। अंजु बोली।
-ओ। अब समझा।
-क्या? अंजु ने सिर उठाया और दिलो को देखने लगा। दोनों की आंखें टकरा गईं। एक ही पल में अंजु झेंप गई और उसने अपनी नजरें नीची कर ली।
-यही कि तुममें अकल है और तुम बातों को समझ जाती हो। उसे लगा आज मौका है तो साहस करके दिल की कुछ बातें कर ही लेता हूं। तीन साल से मन में बहुत सारी बातें दबी हुई हैं।
लेकिन अंजु ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह गोभी काटती रही। उसके फूल को परखती रही।
-कल तो कह रही थी कि अपने बाप को जाकर कह दूंगी। बोली क्यों नहीं।
-नहीं बोली।
-क्यों।
-मेरा मन।
-वाह रे मन!
-झोले में लेकर देखो, हो गया कि अभी और काटूं।
दिलो ने गोभी के ढेर की तरफ देखते हुए कहा-दिल तो तुम्हारा बहुत बड़ा है। तेरी मां होती तो मुफ्त में इतना नहीं देतीं।
जवाब में अंजु ने उसकी तरफ देखा और फिस्स से हंस पड़ी।
दिलो झोला लिए ढेर के पास पहुंचा। हंसुआ लिए अंजु भी वहां आ गई। गुड़िया अपनी अंगुलियों से खोदकर मीठे गाजर का थाह ले रही थी।
-ठीक से झोला पकड़ो। मैं रख देती हूं। अंजु ने कहा।
दिलो झोले का मुंह फैला कर खड़ा हो गया। अंजु झोले के खुले हुए मुंह में गोभी के फूल चुन-चुनकर डालने लगी।
यह वह क्षण था जब दोनों चार अंगुली की दूरी पर खड़े थे। दिलो को लगा कि वह एक स्वर्गिक क्षण को जी रहा है।
तीन मिनट लगे होंगे। झोला भर गया। गोभी के कुछ फूल रह भी गए।
-इसे कैसे ले जाओगे? अंजु ने पूछा।
-कैसे ले जाएंगे? रहने दो। नहीं ले जाएंगे।
-ले लो। ये चीज नहीं मिलेगी।
-जिस चीज की चाहत है, वो जब मिल ही नहीं रही है तो इसकी क्या बिसात।
दिलो की इस बात पर अंजु ने आंखें नचाकर उसे देखा और कहा-रुको, मैं झोला लाती हूं।
-गुड़िया को भेज दो न। तुम यही रहो। दिलो के स्वर में मनुहार था।
अंजु कुछ पल तक कुछ न बोली। दिलो भी चुप रहा। फिर उसने गुड़िया को हांक लगाई।
गुड़िया फुर्र से दौड़कर आ गई। उसके हाथ में एक गाजर था और बांह तक मिट्टी लगी हुई थी।
-जाओ, बरामदे पर एक झोला होगा। दौड़कर लेकर आओ।
गुड़िया फिर फुर्र हो गई।
दिलो ने पूछा-तुम्हारी पढ़ाई-लिखाई कैसी चल रही है?
-पार्ट थर्ड की परीक्षा होने वाली है।
-कॉलेज जाती हो कभी?
-यहां से कौन लड़की कॉलेज जाती है? नाम लिखा हुआ है। जब फॉर्म भरना होता है तब जाती हूं और फिर जब परीक्षा होती है, तब जाती हूं।
-किसके साथ? पिताजी के साथ?
अंजु ने एकबार फिर उसे गुर्राकर देखा। कहा- सोनम और हम एक ही क्लास में हैं। साथ ही चले जाते हैं।
-सोनम तुम्हारी पक्की सहेली है न?
अंजु कुछ न बोली। गुड़िया दौड़ी-दौड़ी आ रही थी। दिलो ने सोचा, बच्चों में कमाल का उत्साह होता है। एक भी काम धीरे से नहीं करते। दिनभर दौड़ते रहते हैं।
गुड़िया जो झोला लाई थी, अंजु अब उसमें गोभी के फूल डालने लगी थी। इस बार उसने उसे झोला पकड़ने को नहीं बोला। वह बस उसे निहार रहा था।
झोला पूरा भरा नहीं। आधे से थोड़ा अधिक भरा था।
अंजु ने पूछा- झोला भर दूं?
-नहीं-नहीं। सिर्फ तीन लोगों का हमारा परिवार है। सब सड़ जाएगा।
-अब चलो। उसने झोला नीचे रख दिया। फिर पूछा-चाय पियोगे?
-नहीं। तुम अकेली हो। अब मुझे निकल जाना चाहिए। गांव में कुछ लोगों के विचार बहुत ओछे हैं।
-तुम यह समझते हो?
-हां। दिलो ने देखा कि अंजु के चेहरे पर थोड़ा सा डर फैल गया है।
दिलो दोनों झोला लिए उसी रास्ते पर बढ़ गया, जिस रास्ते से वह आया था।
अंजु गुड़िया का हाथ पकड़कर आंगन के रास्ते आगे बढ़ गई।
झोला दोनों हैंडल में लटकाने के बाद जब वह साइकिल आगे बढ़ा रहा था, उसने उस ओर देखा जहां से कुछ देर पहले हंसी की आवाज आई थी। अंजु वहीं खड़ी थी और उसे ही निहार रही थी।
उसने एक नजर उसे देखा और साइकिल को आगे बढ़ा दिया। सड़क पर खड़े पंचो पर उसकी नजर पड़ चुकी थी।
-गोभी लेने आये थे? सड़क पर जब वह साइकिल पर बैठ रहा था, पंचो ने पूछा।
-हां।
-गजब स्वाद है। एकदम देसी है। बाजार में यह चीज मिलती कहां है।
-हां। पिताजी बाजार का गोभी खाते ही नहीं। दिलो ने मुसकुराते हुए कहा।
-होली तक रहोगे न?
-हां। होली तक हूं।
-तुम्हारी तो नौकरी भी लग गई? सुने हैं कि अफसर क्लास जैसा है। कहां लगी? पंचो ने पूछा।
-जी। होली के बाद चिट्टी आएगी। तब पता चलेगा।
-बेटा हो तो ऐसा। पंचो ने कहा। जवाब में दिलो मुस्कुराकर रह गया। फिर उसने साइकिल आगे बढ़ा दी।
उसका मन हर्षित था। लगता था कि अंदर कोई गीत गा रहा है। उसने पूरब की और देखा। सूरज पूरा का पूरा निकल आया था।
शाम का समय था। जोगिंदर नहर वाले खेत की मेड़ पर टहल रहा था। वह गेहूं के पौधे को देखने घर से निकला था। रहा था। गेहूं के बढ़ते पौधे को निहारते हुए उसकी आँखों में नेह उतर आया था-जैसे माँ अपने शिशु को निहार रहा हो!
मेड़ के चारों तरफ उसने सरसों बो रखा था। उसने गौर किया। सरसों के पत्ते खोंटे हुए थे। खेत में भी पैरों के निशान थे। यानी लड़कियों का कोई झुंड बथुआ खोंटने आई थीं और अगल-बगल किसी को न देखकर सरसों के पत्तों पर भी हाथ साफ कर गई थीं। लेकिन उसे इस बात पर तनिक भी गुस्सा नहीं आया। अगर उसे गुस्सा आता तो वह जरूर हवा में गालियां बुदबुदाने लगता। वह यह जानता था कि सर्दियों का मौसम साग-सब्जियों का मौसम होता है। सब्जियां तो लोग या तो उगा लेते हैं या हाट से खरीद लेते हैं। लेकिन बथुआ का साग गेहूं के खेत के भरोसे ही उगता है। उसे खुद भी बथुआ का साग बहुत अच्छा लगता है। खासकर लहसुन से छौंका हुआ। सरसों के साग की तो बात ही अलग है। जब उसमें हरी मिर्च और कड़ुआ का कच्चा तेल मिला दिया जाता है, भोजन स्वाद से लबालब भर उठता है! राजिंदर ने सोचा- इसलिए अंजु की मां अंजु को एक दिन छोड़कर एकदिन खेत की तरफ हो आने को कहती है। उसने सोचा- साग सबको अच्छा लगता है। अंजु और अंजु की मां को भी। देखता हूं कि जिस दिन दाल बनती है, उस दिन भी वे लोग साग बनाने से अपने आपको नहीं रोक पाते!
राजिंदर को लग रहा था कि सर्दियां असल में बथुआ और सरसों के स्वादिष्ट सागों का मौसम होता है। आह!
अब वह घर लौट जाना चाहता था। पालतू पशु जो खेतों की और चरने आया था, उसे उसके चरवाहे लौटा ले गए थे। इसलिए फसल में मुंह मारने की आज की चिंता खत्म हो गई थी। वैसे अब इसकी चिंता बहुत रह नहीं गई है। एक तो पालतू पशुओं की संख्या में बेतहाशा गिरावट दर्ज की जा रही है। दूसरा, अब लोग समझने लगे हैं कि खेती करना कितना मुश्किल और खर्चीला हो गया है। उसने याद किया। बैल तो गांव में धनुकधारी को छोड़कर किसी के पास है भी नहीं। लोग सिर्फ दूध के वास्ते गाय या भैंस रखते हैं। वह भी सब नहीं रखते। जो रखते हैं, वे भी दोपहर को खेतों की और उसे टहलाने नहीं के बराबर ले जाते हैं। पशु नाद के पास ही बंधा रहता है और वहीं खा कर पागुर करता रहता है। राजिंदर ने सोचा- मनुष्यों की ही नहीं, अब पशुओं के जीवन मे भी परिवर्तन हुआ है। तभी उसे यह याद आ गया कि जब वह बच्चा था, शाम से पहले के समय को गोधूलि बेला कहा जाता था। यह पालतू पशुओं के खेत से चरकर बथान पर लौटने का समय होता था। जब अनगिनत गाय एक पंक्ति में घर की ओर लौट रही होती थीं तो उनके खुर से लगकर सड़क की मिट्टी का कुछ अंश हवा के संग उड़ने लगती थी। उसी उड़ती धूल के कारण उस समय को गोधूलि बेला कहा जाता था। यह शब्द अब अपने अर्थ में लुप्त हो गया है। कभी किसी के मुंह से नहीं सुनने को नहीं मिलता। राजिंदर ने सोचा- अब जब वो बात ही नहीं रही तो वह दृश्य कहां से जन्मेगा। दृश्य के गुम हो जाने से उस शब्द की याद भी धीरे-धीरे मिट जाती है।
राजिंदर ने फिर एक नजर गेहूं के पौधे की तरफ देखा। वे झूम रहे थे। दूसरी बार पटवन के बाद खाद डालने से गेहूं के पौधे का हरा और अधिक गाढ़ा हो गया था और अब वे झाड़ भी बांधने लगे थे। उसकी आंखों में संतोष की छाया लहराने लगी।
राजिंदर जब पुराने पुल के पास पहुंचा, उसे सामने से शंभु आता दिखा। उसे देखकर वह वहीं ठिठक गया। पुल के दाहिने पाए पर बैठ गया और कमर से तम्बाकू की डिब्बी निकालने लगा।
शंभु को वहां तक आने में डेढ़-दो मिनट का समय लगा होगा। जब वह पुल के पास आ गया, उसने राजिंदर से मुस्कुरा कर पूछा- क्या हाल-चाल है भाई?
-दुआ है। सब राजी-खुशी। अपना सुनाइए।
-बढ़िया है। पुरखों का आशीर्वाद है। उसने भी मुस्कुराते हुए ही जवाब दिया- खेत की ओर से आ रहे हो क्या?
-हां-हां। राजिंदर ने कहा-परसों खाद दिया था। कल ससुराल की तरफ निकलना पड़ गया था। लौटने में रात हो गई थी। सो यह देखने चले आए कि गेहूं का पीलापन गया कि नहीं।
-फसल कैसी है?
अच्छी है। अब संतोष है।
चलो, सब अच्छा होगा। मेहनत का फल हमेशा मीठा ही होता है।
-सो तो है।
तम्बाकू तैयार हो गया था। राजिंदर ने एक चुटकी शंभु की तरफ बढ़ा दिया। शेष को अपने होंठों के हवाले कर दिया। शंभु के मुंह में पहले से खैनी था। उसने उसे थूका। फिर हथेली के खैनी का एक छोटी टिकिया बनाकर उसे आहिस्ते से अपने निचले ओंठों के नीचे दबा दिया।
-चलो, देखते हैं कि तुम्हारी फसल की रंगत कैसी है।
-चलो।
दोनों साथ चलने लगे।
-ससुराल में कोई खास काम था क्या? चलते हुए शंभु ने पूछा।
खास ही समझ लो। राजिंदर ने कहा-अंजु के मामा की नजर में एक लड़का था। वहीं का था। आकर देख लेने और कुछ बात कर लेने की जिद्द कर रहे थे। इसलिए एक दिन के लिए दोनों-प्राणी चले गए।
-बात बनी?
-कहां। लड़के का बाप आग मूत रहा था।
-क्यों, क्या हुआ? लड़का क्या कर रहा है? शंभु ने एक सांस में दो सवाल दाग दिया।
-अरे, लड़के को हाल ही में रेलवे में कोई छोटी सी नौकरी लगी है। दो भाई है। वही बड़ा है। छोटा अभी पढ़ रहा है। एक बहन थी, उसकी शादी हो गई। बाप का दो-चार बीघे की खेती है। लेकिन बड़े ही काइयां किस्म का आदमी है। लड़के का एक दाम फिक्स करके बैठा हुआ है। पंद्रह से नीचे उतर ही नहीं रहा था।
-कुछ और कोशिश करते। शंभु ने कहा। अब तक वे खेतों के पास आ गए थे। लेकिन वे नहर से नीचे नहीं उतरे। नहर पर घनी दूब थी। वे दोनों वहीं बैठ गए। शंभु ने कहा-सरकारी नौकरी वाले लड़के अब मिलते कहां हैं।
-बहुत कोशिश की। अंजु के बड़े मामा ने लड़के के बाप और मां को बहुत समझाया कि घर की लड़की है। सबकुछ देखा-सुना हुआ है ही। पैसे तो कहीं भी मिल जाएंगे। लेकिन लड़की ढंग की मिल जाएगी, इसकी क्या गारंटी है। लेकिन वे इस बात को समझने को तैयार न हुए। वे किसी भी शर्त पर पैसे से समझौता करने पर राजी नहीं हुए।
-बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया। शंभु के मुंह से निकला। फिर उसने राजिंदर से पूछा- तुमलोगों का क्या टारगेट है?
-दस तक में हम तैयार थे। लेकिन पंद्रह… यह तो हमारी औकात से बाहर की बात है। पैर उतना ही फैलाना चाहिए जितनी बड़ी चद्दर हो। नहीं तो बाद में बड़ी दिक्कत होती है।
-हां। और ऐसे घर में बेटी को कभी देना भी नहीं चाहिए जहां के लोग सिर्फ पैसे को पहचानते हो। खोजने से बहुत सारे अच्छे लड़के मिल जाएंगे।
-हां। और कौन सी अंजु की उम्र छत्तीस की हो गई है। अभी साल-दो साल शादी न भी होगी तो कोई बात नहीं। पर साल तक तो उसका बी ए ही पूरा होगा।
-और नहीं तो क्या। शंभु ने उसकी बात में सहमति दी। लेकिन फिर जैसे उसे कुछ याद आ गया। उसने कहा-लेकिन जवान बेटी के हाथ जितनी जल्दी पीले हो जाए उतना अच्छा। जुग-जमाना बहुत अच्छा रह नहीं गया है।
-यह तुम ठीक कहते हो। जिसके घर में बेटियां होती हैं, उसका चेहरा इसलिए उतरा नहीं रहता कि घर में बेटियां हैं। बल्कि इसलिए उतरा रहता है कि बेटियों की उम्र शादी की हो रही है और लड़के दिनों-दिन महंगे होते जा रहे हैं। कि बेटियां बड़ी हो रही है और समाज की नजरें लगातार ओछी होती जा रही है। एक बाप की चिंता का कारण बस यही होता है। वरना वह अपने बेटे से कम प्यार अपनी बेटी से नहीं करता है।
-सही कहे। नजरें लगातार ओछी होती जा रही है। जिसके कारण जवान बेटियों के मां-बाप की पेशानी पर बल पड़ जाते हैं। शंभु ने कहा- खैर छोड़ो इन बातों को। समाज का जो चेहरा है, उसे ही देखते हुए हमें अपनी बेहतरी के लिए कदम उठाने होंगे। कोई और लड़का है कि नहीं नजर में?
-एक है। राजिंदर ने बताया-यही बिसनपुर में। देखते हैं क्या होता है।
-देखो। पंचो कुछ कह रहा था। शंभु ने खेत की तरफ देखते हुए कहा।
-हां। उसे मैंने ही तुमसे बात करने के लिए कहा था। खुद की जमीन की बात करते हुए मुझे अजीब लगता है।
-पांच-सात तो हाथ में ही रहता है। शम्भू ने उसे बताया- पांच-सात के लिए दो-चार दिन इंतजार करना होगा। मनोज इंतजाम करके भेज देगा। तुम निश्चिंत होकर लड़का देखो।
-मनोज भी आने वाला है न?
-हां। उसके बच्चों की परीक्षा है। परीक्षा जैसे ही खत्म होगी, वह गाड़ी पकड़ लेगा।
शंभु ने उसे बताया और पूछा- यही सामने वाला खेत है न तुम्हारा? पंचो इसी खेत के बारे में कह रहा था न?
-हां। यहां दो बीघा है। दो बीघा घर के पास। चार-चार बीघा करके तीनों भाइयों में हिस्सा हुआ था।
-अब एक बार खैनी और दो। फिर घर की ओर चल देंगे। पछिया बढ़ गई है। लगता है रात तक कनकनी बढ़ जाएगी।
शंभु जब यह कह रहा था, वह खेत की और देख रहा था। उसकी आंखों की चमक बढ़ गई थी।
राजिंदर कमर से खैनी की डिब्बी निकालने लगा।
- सुबह के आठ बजे के लगभग जब दिलो दुबारा चाय पीकर कौशल के यहां निकल रहा था, पिता ने कहा-कहीं जा रहे हो?
वैसे ही। कौशल के यहां। दिलो ने जवाब दिया। पिता उससे बहुत कम सवाल करते थे। जरूरी होने पर ही। तब वह भी नाप-तौलकर ही शब्दों का प्रयोग करता था।
-शेविंग करा लेना। चौक तक चले जाना। पिता ने कहा।
-जी। ठीक है। उसने जवाब दिया और आगे बढ़ गया।
उसे इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि पिता ने शेविंग करा लेने की बात क्यों कही। कभी कहते तो नहीं थे। उसने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरी। बढ़ी हुई थी। उसने सोचा-बढ़ी हुई देख रहे होंगे, इसलिए टोक दिए होंगे।
लेकिन तभी उसे माई की याद आ गई। वे आज आंगन को गोबर से लीप रही थीं। जबकि आज तो कोई त्योहार भी नहीं था। आमतौर पर घर-आंगन को गोबर से त्योहार के दिनों में ही लीपा जाता है। माई घर के कुछ सामानों के लिए भी पिता को कह रहे थे कि जाकर छैला की दुकान से ले आए।
उसे इसमें भी कुछ खास नजर नहीं आया। सोचा, बड़े दिनों बाद आज धूप खिली है तो लीप रही होंगी।
कौशल दरवाजे पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे। उसे आते देखा तो मुस्कुराने लगे। बोले-देवदास लग रहे हो! बन-ठन कर रहा करो भाई। लगन का समय नजदीक आ रहा है। लड़कीवाले अच्छे लड़कों को ढिबरी लेकर ढूंढ रहे हैं। और तुम तो बड़े महंगे लड़के हो!
वह हो-होकर हंसने लगा। कौशल की यही जिंदादिली उसके मन को मोहता है। वह सोचता है कि यह उन्हें ईश्वर की ओर से दिया गया सर्वोत्तम उपहार है।
सामने की कुर्सी पर बैठते हुए उसने ऐसे ही पूछ लिया-कोई अच्छी खबर है?
-इसी आस में रोज सवेरे अखबार पलटता हूं कि कभी कोई अच्छी खबर टकरा जाएगी। लेकिन पता नहीं वो कहां खो गई है। कहकर कौशल ने ठहाका लगाया।
उसकी भी खिलखिलाहट निकल गई।
वे कुछ बात शुरू करते कि तभी काशी आ गया। वे बोलते हुए ही द्वार पर चढ़े थे-समाज हमारा फैसला कर देगा कि हम थाना जाएं?
-क्या हुआ काका? कौशल ने उससे पूछा-काहे अगिया-बेताल हो रहे हैं?
-क्या हुआ? अरे क्या नहीं हुआ! अब क्या बचा है। ठमक कर काशी कहने लगा- रात में बिकुआ ने सब करम कर दिया। अपनी मां को धक्का देकर गिरा दिया। मुझे मारने दौड़ा। भाई को माई लगाकर गाली दिया। और क्या करता।
-काहे। चढ़ा कर आया था?
-भुच्च था। कहता है कि मेरा हिस्सा देकर अलग कर दो। समाज फैसला कर दे। नहीं तो मैं थाने में लिख कर दे दूंगा कि मुझे बेटे से जान का खतरा है।
-समाज से मिल लो। घर में ही हैं। कौशल ने कहा। उनका आशय अपने पिता से था।
काशी बड़बड़ाते हुए अंदर जाने लगा-कल का छौंकड़ा समाज से बाहर हो गया है। बांध कर दस लाठी दिया जाएगा तब होश ठिकाने आएंगे। साले को हिस्सा दे दूं। दो बीघा खेत है। एक बीघा अलग कर दूं। ताकि बेचकर पी ले।
काशी जब अंदर चला गया, कौशल ने कहा-जब बच्चा खैनी पर उतरता है तब ही गार्जियन को सजग हो जाना चाहिए। लेकिन देख रहा हूं कि भांग-गांजा तक आ जाने के बाद भी लोग कुछ नहीं कहते। कहते कब हैं, जब बात दारू और उसके बाद गाली-गलौज पर आ जाती है, तब। तब गार्जियन को समाज की याद आती है। समाज क्या करेगा। अब वैसा समाज बच कहां गया है जब सबको सबसे मतलब रहता था। अब तो सारे अपनी ही परेशानियों में आकंठ डूबे रहते हैं।
प्रत्युत्तर में दिलो ने कुछ भी नहीं कहा। वह इंदु के घर के बारे में बात करना चाहता था।
तभी मुसकी दो कप चाय लेती आई। दिलो ने पानी पीने की इच्छा जाहिर की। जब मुसकी पानी लेने चली गई, उसने कहा- इंदु का घर कभी भी गिर सकता है। उस दिन मैंने देखा था। वह एक पेड़ पर अटक कर बचा हुआ है।
-हां। इसलिए तो मैंने बात खोली थी। लेकिन देखो तो। ग्रुप में पचास से अधिक लोग हैं। लेकिन किसी ने इसमें रुचि न ली।
तभी मुसकी पानी का गिलास लेकर आ गई। पानी पीकर दिलो भी चाय पीने लगा।
कौशल ने बात आगे बढ़ाई- सामर्थ्य रहता तो अकेले सब कर देता। पड़ोस में कोई भूखा रहे तो अन्न कंठ के नीचे नहीं उतरता है। लेकिन स्थिति बहुत खराब है। दिसंबर से वेतन के लाले पड़े हुए हैं। मुसकी की मां का ऑपरेशन करवाना है। बच्चादानी का। लेकिन वेतन होली से पहले मिलेंगे नहीं।
-सरकार मास्टर को प्रत्येक महीने वेतन क्यों नहीं देती है? दिलो ने पूछा।
-अब यह बात तो सरकार ही जाने की क्यों नहीं देती है। हम तो तेरह साल से ऐसे ही चार-छह महीने पर पा रहे हैं। यह कहते हुए कौशल मुस्कुराने लगा।
यह मन की हंसी न थी। यह खुद पर हंसने की एक क्रिया थी। दिलो चुप रहा। गांव के स्कूल और उनमें कम वेतन पर काम कर रहे शिक्षकों की स्थिति से वह वाकिफ था।
कौशल ने पूछा-तुम कब जॉइन करोगे?
-मुझे लगता है कि होली के बाद चिट्ठी आएगी।
तब तक रह लो गांव में। एकबार नौकरी में लग गए तो छुट्टी वही होली-दिवाली। उसमें भी तुम्हारा जॉइनिंग दिल्ली-कोलकाता जैसे महानगर में होगा। बहुत सारा वक्त तो आने-जाने में ही निकल जायेगा।
दिलो ने कहा-शाम को कहीं बैठते हैं। गांव में जो लड़के हैं, सब मिलकर यह तय करते हैं कि इंदु के घर के लिए हम क्या कर सकते हैं। गरीब आदमी है। जाड़े में ठिठुर रहा है।
-जैसा तुम कहो। कौशल ने कहा-एक मैसेज छोड़ देते हैं कि पांच बजे थान पर आओ। देखते हैं कि कौन-कौन आता है।
-हम घर-घर जाकर चंदा मांगेंगे। जैसे मंदिर निर्माण के लिए मांगे थे और त्योहार में कुछ आयोजन के लिए मांगते हैं।
-यही करना पड़ेगा। लेकिन लोग उसी तरह से देंगे, इसमें मुझे शक है। धार्मिक कारणों में तो लोग डर से कुछ दे भी देते हैं। लेकिन देखते हैं। कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा। सिर्फ एक पोस्ट लिख देने से कुछ न होगा।
तभी अंदर से काशी लौट आया और वहां रुककर कहने लगा-तुमलोग भद्र आदमी हो। बिकुआ को समझाओ की वह क्यों अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहा है।
-काका, गांव के लड़के किसी भद्र आदमी के पास बैठता कहां है जो हम उन्हें समझाएं। कौशल ने उत्तर दिया।
-ऐसे समय में भद्र लोगों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। चौखट के पास से कौशल के पिता ने कहा।
कौशल ने उन्हें आश्वासन दिया-ठीक है। समझाएंगे।
काशी चला गया।
दिलो ने कहा-शेविंग करने चौक तक जाना है।
-चलो, मैं भी चलता हूं। कौशल कुर्सी से उठ गया। बोला-मैं अंदर से बाइक निकाल लाता हूं।
बारह बजे के लगभग जब दिलो घर लौटा, बैठकी में दो अपरिचित को बैठे हुए पाया। दोनों बने-ठने हुए थे। इसलिए उसने सोचा कि कोई मेहमान होंगे। वह आंगन चला गया। धूप अच्छी खिली थी। उसने सोचा, पहले स्नान ही कर लूं।
माई रसोई घर में थीं। उसने झांक कर देखा। लगता था कि आज वे कई तरह के व्यंजन बनाने के मूड में हैं। उसने धीमे स्वर में पूछा- कौन हैं ये?
-आ गए। माई ने सिर उठाया-मेरी मौसी के गांव के हैं।
-ओ।
-तुम नहा लो।
दिलो साबुन लेकर चापानल के पास चला गया। पहली बार बदन पर पानी डालते थोड़ी सी सिहरन तो हुई। लेकिन उसके बाद आनंद आने लगा।
चापानल की एक खाशियत पर उसने कई बार गौर किया है। गर्मी के दिनों में दस बार चला दो तो ठंडा-ठंडा पानी निकलने लगता है और सर्दियों में कुछ देर चलने के बाद हल्का गुनगुना पानी देने लगता है। उसने जी भर कर नहाया। नहाते समय वह यह सोच रहा था कि कल का क्या पता-सूरज उगे न उगे!
चार बजे के आसपास जब मेहमान निकलने लगे थे, पिता ने उसे बुलाया। वह चुपचाप आकर मेहमान के सामने बैठ गया। उसका स्वभाव बहुत बोलने की नहीं थी। नए लोगों और नई जगहों पर तो बिल्कुल भी नहीं। मेहमानों में से ही एक ने उससे नौकरी से संबंधित कई प्रश्न किये। जिसका जबाव उसने दे दिया। इसके बाद वे लोग चले गए। पिता उन्हें छोड़ने सड़क पर दूर तक गए थे।
बैठकी खाली होने के बाद दिलो ने कुछ देर आराम किया। आज खाने में कई तरह की सब्जियां थीं। दही के अलावे सेवइयां भी। खाना डट कर हो गया था। तभी से उसे आराम करने की इच्छा हो रही थी। पांच बजे उसे थान पर भी जाना था। कौशल ने सैलून से ही ग्रुप पर यह मैसेज छोड़ दिया था।
तभी दरवाजे के सामने एक बाइक आकर रुकी और उसने उससे पूछा कि कौशल किशोर का घर बतावेंगे। मैं फ्लिपकार्ट से हूं। उनका एक पैकेट है।
दिलो ने बाहर आकर उस लड़के को उनके घर तक जाने वाला रास्ता बता दिया-घर के ठीक सामने ट्रांसफार्मर है।
लड़का उधर बढ़ गया तो दिलो आकर बिछावन पर लेट गया।
- शीघ्र प्रकाश्य उपन्यास ‘कोयला ईंजन’ से
संपर्क :
मिथिलेश कुमार राय
ग्राम व पोस्ट- लालपुर, वाया- सुरपत गंज
जिला- सुपौल – 852137 (बिहार)
मोबाइल : 09546906392
ईमेल : mithileshray82@gmail.com
===============================
दुर्लभ किताबों के PDF के लिए जानकी पुल को telegram पर सब्सक्राइब करें
Thank you for your sharing. I am worried that I lack creative ideas. It is your article that makes me full of hope. Thank you. But, I have a question, can you help me?
It’s great that you are getting ideas from this article as
well as from our dialogue made here.
This piece of writing will assist the internet visitors for creating new blog or even a blog from start to end.
Thanks for the good writeup. It in truth was once a amusement account it.
Look complicated to more brought agreeable from you!
By the way, how could we keep up a correspondence?
Way cool! Some very valid points! I appreciate you penning this article and the rest of the website is very good.
Thanks , I’ve recently been searching for
information about this topic for a long time and
yours is the best I’ve found out so far.
However, what about the bottom line? Are you certain in regards
to the source?
Excellent post however I was wanting to know if you could write a litte
more on this subject? I’d be very grateful if you could elaborate a little bit more.
Kudos!
Я провёл просмотр в интернете больше, чем три
часа сегодня, но так и не нашёл
ни одной интересной статьи,
как ваша. Она вполне стоит того, чтобы
на неё потратить время. Лично я
считаю, если бы все владельцы вебсайтов
и блоггеры создавали такой хороший контент, как вы, сеть стал бы гораздо полезнее, чем когда-либо.
bookmarked!!, I really like your web site!
When someone writes an piece of writing he/she
keeps the thought of a user in his/her brain that how
a user can be aware of it. Thus that’s why this paragraph is great.
Thanks!
You actually make it seem so easy with your presentation but I find this matter to be actually something which I think I would never understand.
It seems too complex and very broad for me. I am looking forward for your next
post, I will try to get the hang of it!
First off I would like to say terrific blog!
I had a quick question in which I’d like to ask if you do not mind.
I was curious to find out how you center yourself and clear your mind prior to writing.
I have had trouble clearing my mind in getting my ideas out there.
I truly do enjoy writing however it just seems like the first 10 to 15 minutes are usually lost just trying to figure out how to begin. Any ideas or hints?
Kudos!
Definitely consider that that you stated. Your favorite reason seemed to be
at the net the easiest thing to understand of. I say to you, I certainly get annoyed
while people think about worries that they
just don’t understand about. You managed to hit the nail upon the top and defined out the entire thing without having side-effects ,
people can take a signal. Will likely be again to get more.
Thanks
What’s Taking place i’m new to this, I stumbled upon this I’ve discovered It absolutely helpful
and it has aided me out loads. I’m hoping to contribute & help other customers like
its helped me. Great job.
whoah this weblog is fantastic i really like studying your posts.
Keep up the good work! You already know, many persons are searching round
for this information, you can aid them greatly.
May I simply say what a comfort to uncover somebody
that genuinely understands what they are talking about on the net.
You definitely realize how to bring a problem to light and make
it important. More and more people really need to check this out and understand this side of the story.
I can’t believe you’re not more popular because you certainly possess the gift.
Thanks in favor of sharing such a nice thought, piece of writing is nice, thats
why i have read it completely
Hello to every one, it’s genuinely a pleasant for me
to visit this web site, it consists of useful Information.
Undeniably consider that which you stated.
Your favorite justification appeared to be on the net the easiest thing to bear
in mind of. I say to you, I certainly get irked whilst folks think about
issues that they just don’t recognise about. You controlled to hit the
nail upon the top and outlined out the entire thing with no need side effect , people can take
a signal. Will likely be again to get more. Thanks
Hi just wanted to give you a quick heads up and let
you know a few of the images aren’t loading correctly.
I’m not sure why but I think its a linking issue.
I’ve tried it in two different internet browsers and both show the same results.
Fantastic website you have here but I was curious if you knew of any user
discussion forums that cover the same topics talked about
in this article? I’d really like to be a part of group where I can get feedback from other experienced individuals
that share the same interest. If you have any recommendations, please let me know.
Thank you!
What’s up to every single one, it’s truly a good for me to go to see this web page, it consists of
important Information.
Howdy very nice website!! Man .. Beautiful .. Superb ..
I’ll bookmark your blog and take the feeds additionally?
I’m satisfied to seek out numerous useful information here in the
put up, we need work out extra techniques in this regard, thanks for sharing.
. . . . .
Nice answers in return of this query with real arguments and telling
all on the topic of that.
Hello to every single one, it’s really a good for me to pay a visit
this website, it contains useful Information.
I’m not that much of a online reader to be honest but your sites really
nice, keep it up! I’ll go ahead and bookmark your website to come back in the future.
Cheers