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बापू और बाबा साहेब- कितने दूर,कितने पास

विवेक शुक्ला जाने माने पत्रकार हैं। आज उनका यह लेख पढ़िए जो गांधी और बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के आपसी संबंधों को लेकर है। आज बाबा साहेब की जयंती पर विशेष-

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महात्मा गांधी और बाबा साहेब अंबेडकर के बीच 1932 के ‘कम्यूनल अवार्ड’ में दलितों को पृथक निर्वाचन का स्वतन्त्र राजनीतिक अधिकार मिलने के कारण मतभेद उभरे थे। लेकिन वक्त के गुजरने के साथ ही दोनों में एक-दूसरे को लेकर परस्पर आदर का भी पैदा हो गया था। उपर्युक्त अवार्ड  दलितों को पृथक निर्वाचन के रूप में प्रांतीय विधानसभाओं और केन्द्रीय एसेम्बली के लिए अपने नुमाइंदे चुनने का अधिकार देता था। बापू इस अवार्ड का विरोध कर रहे थे। उन्होंने इसके विरोध में 20सितम्बर, 1932 से आमरण अनशन चालू कर दिया। वे मानते थे कि इससे दलित हिन्दू समाज से अलग हो जायेंगे जिससे हिन्दू समाज दो फाड़ हो जाएगा। हालांकि बाबा साहेब अवार्ड के पक्ष में थे। पर अंत में बापू के अनशन के आगे सबको झुकना ही पड़ा।

गांधी जी और बाबा साहेब का विकास का मॉडल भी अलग था। जहां गांधी जी की स्पष्ट राय थी कि देश के गांवों का विकास किए बगैर भारत खुशहाल नहीं हो सकता, डा. अंबेडकर का मानना था कि विकास का रास्ता बड़े स्तर पर औद्योगिकरण से ही मुमकिन है। यानी दोनों कई सवालों पर अलग तरीके से सोच रहे थे।

बहरहाल, ये दोनों 1940 के दशक के बाद से राजधानी दिल्ली में रहने लगे थे। ये दिल्ली में पड़ोसी नहीं थे, पर ये एक-दूसरे से बहुत दूर भी नहीं रहते थे। गांधी जी 9 सितंबर, 1946 के बाद अलबुर्कर रोड ( अब तीस जनवरी मार्ग) पर स्थित बिड़ला हाउस ( अब गांधी स्मृति) में रहने लगे। इस दौरान बाबा साहेब पहले रहते थे 1, हार्डिंग लेन ( अब तिलक लेन) और फिर 22, पृथ्वीराज रोड पर। गांधी जी का बिड़ला हाउस से पहले आशियाना  मंदिर मार्ग पर स्थित वाल्मिकी मंदिर में रहा। यानी ये सब जगहें एक-दूसरे से करीब ही थीं। पर इन दोनों महान विभूतियों के बीच यहां पर कोई मुलाकात का कोई उदाहरण नहीं मिलता। कहा तो यहां तक जाता है कि बापू और बाबा साहेब में सिर्फ तीन-चार बार ही मुलाकातें हुईं। इनके बीच दिल्ली में कभी कोई बैठक हुई हो, इस तरह के प्रमाण नहीं मिलते। पर ये सोचना-समझना भी गलत होगा कि ये दोनों एक-दूसरे से मिलने से बचते होंगे। दोनों बहुत बड़े कद के नेता थे, इसलिए उनको लेकर हल्की बातें करना पाप के समान ही है।

 गांधी जी 9 सितंबर 1947 को दिल्ली आने के बाद यहां पर भड़के सांप्रदायिक दंगों को शांत कराने में लगे हुए थे। वे दिन-रात दंगाग्रस्त इलाकों में आ-जा रहे थे। इस बीच, 15 अगस्त,1947 को देश स्वतंत्र होता है। फिर 29 अगस्त,1947 को डा. अंबेडकर के नेतृत्व में स्वतंत्र भारत का नया संविधान बनाने के लिए एक सात सदस्यीय कमेटी बना दी जाती है। बाबा साहेब देश के नए संविधान को तैयार करने के अहम कार्य में जुट जाते हैं। इसकी बैठकें मौजूदा संसद भवन में होती हैं। पर ये भी सत्य है कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु और सरदार पटेल तो संवैधानिक मामलों के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान सर गऊर जैनिंग्स को भी देश के संविधान को अंतिम रूप देने के लिए आमंत्रित करने पर विचार कर रहे थे। इसी सिलसिले में ये दोनों एक बार बापू से मिले। तब बापू ने उन्हें सलाह दी थी कि डा.अंबेडकर सरीखे विधि और संवैधानिक मामलों के उद्भट विद्वान की मौजूदगी में किसी विदेशी को देश के संविधान को तैयार करने की जिम्मेदारी देना उचित नहीं होगा। बापू की सलाह पर अमल करते हुए डा. अंबेडकर को संविधान सभा से जुड़ने का प्रस्ताव दिया गया। जिसे वे तुरंत स्वीकार कर लेते हैं। इससे स्पष्ट है कि गांधी जी सम्मान करते थे डा. अंबेडकर की विद्वता का। वहीं डा. अंबेडकर को भी पता चल गया होगा कि उन्हें इतनी अहम जिम्मेदारी गांधी जी की सलाह और सिफारिश पर ही मिली है।

 इस बीच, समय बीतता है और देश देखता है 30 जनवरी,1948 का काला स्याह दिन। उस दिन एक विक्षिप्त शख्स बापू की हत्या कर देता है। बापू की हत्या से देश बिलखने लगता है। “बापू की हत्या का समाचार सुनकर बाबा साहेब भी स्तब्ध हो जाते हैं। वे पांचेक मिनट तक सामान्य नहीं हो पाते। फिर कुछ संभलते हुए बाबा साहब कहते कि बापू का इतना हिंसक अंत नहीं होना चाहिए था”, ये जानकारी दलित चिंतक एस.आर.दारापुरी ‘डा. अंबेडकर की दिनचर्या’ किताब के हवाले से देते हैं। हालांकि वे इस बात की पुष्टि नहीं करते कि बाबा साहेब ने बापू की अंत्येष्टि में शिरकत की थी या नहीं।

 डा. भीमराव अंबेडकर का लुटियन दिल्ली के  22 पृथ्वीराज रोड के सरकारी बंगले से इस लिहाज से अलग तरह का  संबंध था क्योंकि इधर ही उन्होंने 15 अप्रैल 1948 को डा. सविता अंबेडकर से सादगी के साथ विवाह किया था। ये बंगला उन्हें नेहरुजी की कैबिनेट का सदस्य बनने के चलते आवंटित हुआ था। डा. सविता चिकित्सक थीं। वे महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थीं। उनका मुम्बई में क्लीनिक था जहां इलाज के दौरान बाबा साहेब से उनका परिचय हुआ था। 22 पृथ्वीराज रोड के सरकारी आवास में ही डा.भीमराव अंबेडकर के साथ उनके जीवनपर्यंत सहयोगी रहे नानक चंद रत्तू और सेवक सुदामा भी रहते थे। वे 28 सितंबर, 1951 तक पृथ्वीराज रोड के बंगले में रहे। अब 22 पृथ्वीराज रोड में तुर्की के भारत में राजदूत रहते हैं।

 खैर,22 पृथ्वीराज रोड के सरकारी आवास में ही डा.भीमराव अंबेडकर गांधी की मौत के दो महीने के बाद डा. सविता अंबेडकर जी से सादगी से विवाह कर लेते हैं। डा. सविता चिकित्सक थीं। वे महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थीं। उनका मुम्बई में क्लीनिक था जहां इलाज के दौरान बाबा साहेब से उनका परिचय हुआ था। 22 पृथ्वीराज रोड के सरकारी आवास में ही डा.भीमराव अंबेडकर के साथ उनके जीवनपर्यंत सहयोगी रहे नानक चंद रत्तू,देवी दयाल और सेवक सुदामा भी रहते हैं।

चूंकि बाबा साहेब के कंधों पर देश के विधि मंत्री और संविधान सभा के प्रमुख के पद का दायित्व था, इसलिए उनका आम जन से मिलना-जुलना सिर्फ रविवार को ही संभव होने लगा। वे साप्ताहिक अवकाश के दिनों में राजधानी के करोल बाग के टैंक रोड और रैगरपुरा जैसे इलाकों में अपने परिचितों से मिलने जुलने के लिए जाना पसंद करते थे। यहां चमड़े का काम करने वाले दलितों की घनी बस्तियां थीं। बाबा साहेब का वे भी आदर करते थे,जो कांग्रेस से जुड़े नहीं थे। करोल बाग के असरदार जनसंघ नेता गोपाल कृष्ण रातावाल अपने समर्थकों के साथ बाबा साहेब से मिलने पृथ्वीराज रोड और 1951 के बाद 26 अलीपुर रोड जाते। कृष्ण रातावाल के पुत्र सुरेन्द्र पाल रातावल सन 1993 में मदन लाल खुराना के  नेतृत्व में बनी दिल्लीसरकार में मंत्री थे। बाबा साहेब सबको यही कहते कि दलितों को अधिक से अधिक संख्या में संसद और विधानसभाओं में पहुंचना है। ये महत्वपूर्ण नहीं है कि वे किस दल में हैं। बहरहाल, 27 सितंबर,1951 को डा. अंबेडकर ने नेहरु जी की कैबिनेट से अप्रत्याक्षित रूप से त्यागपत्र दे दिया। दोनों में हिन्दू कोड बिल पर गहरे मतभेद उभर आए थे। डा. अंबेडकर ने अपने इस्तीफे की जानकारी संसद में दिए अपने भाषण में दी। वे दिन में तीन-चार बजे अपने आवास वापस आए। तब उन्होंने रत्तू को अपने पास बुलाकर कहा कि वे चाहते हैं कि सरकारी आवास अगले दिन तक खाली कर दिया जाए। ये सुनते ही रत्तू जी की पेशानी से पसीना आने लगा। एक दिन में घर खाली करके नए घर में जाना कोई बच्चों का खेल नहीं था। इसी बीच, करोल बाग क्षेत्र से दर्जनों डा.अंबेडकर समर्थक 22 पृथ्वीराज रोड  पहुंचने लगे। सबको बाबा साहेब के इस्तीफे की खबर आकाशवाणी से  मिल चुकी थी।  करोल बाग से आने वालों की चाहत थी कि बाबा साहेब करोल बाग में शिफ्ट कर लें। वहां पर उनके लिए स्तरीय आवास की व्यवस्था हो जाएगी। उन्हें इस तरह का घर दिलवा दिया जाएगा जिसमें उनकी लाइब्रेयरी और मिलने-जुलने के लिए आने वालों के लिए पर्याप्त स्पेस हो। पर बाबा साहेब के चाहने वाले एक सज्जन ने उन्हें अपना 26 अलीपुर रोड का घर रहने के लिए देने का प्रस्ताव दिया।  बाबा साहेब को वो घर लोकेशन के लिहाज से सही लगा। इसलिए उन्होंने अगले ही दिन यानी 28 सितंबर,1951 को 26 अलीपुर रोड में शिफ्ट कर लिया। कैबिनेट से बाहर होने के बाद बाबा साहेब का वक्त अध्ययन और लेखन में गुजरने लगा। उन्होंने 26, अलीपुर रोड में रहते हुए ही ‘बुद्धा एंड हिज धम्मा’ नाम से अपनी अंतिम पुस्तक लिखी। डा॰ अंबेडकर ने इसमें महात्मा बुद्ध के विचारों की व्याख्या की है। यह डा॰ अंबेडकर द्वारा रचित अंतिम ग्रन्थ है। इधर रहते हुए उन्होंने कभी गांधी जी की आलोचना में कुछ नहीं लिखा। इधर ही डा.अंबेडकर की 6 दिसम्बर 1956 को मृत्यु हुई।

पुनशच:- अब 22 पृथ्वीराज रोड  में तुर्की के भारत में राजदूत रहते हैं।

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