
कल यानी 28 मई को जाने-माने कवि-कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल का जन्मदिन था। वे 81 साल के हो गए। उन्होंने कुछ नई कविताएँ लिखीं। आप उन कविताओं को यहाँ पढ़ सकते हैं –-
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1
आशंका
जब लगा होगा मन मेरा
किसी काम में-
कोई टोक देगा!
जब मैं जा रहा होऊँगा मज़े-मज़े
अपने रास्ते
उमंग भरा-
कोई मुझे रोक देगा!!
आशंका खत्म नहीं होती,
पर नहीं खत्म होते रास्ते भी!
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2
हवा आती है
हवा आती है,
और दुलराती है टहनियों को
थोड़ा-सा!
पत्तियाँ जागती हैं चिड़ियों-सी
फूल उठते हैं कुनमुना
बच्चों से-
तैरती आती हैं आशाएँ!
कल्पनाएँ!
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3
चिड़ियाँ
आती हैं
जाती हैं
गाती हैं
रह-रह कर
उड़ जाती आती उड़ जातीं
मंद मंद तेज तेज जैसे हवा आती है-
बह-बह कर।
धूप हो शीत हो ताप हो
सब कुछ को सह-सह कर
वृक्षों से मित्रता निभाती
निभाती हैं भोर से
आती हैं जाती हैं गाती हैं
अपने हर शब्द को
बोल-बोल
कह कह कर।
इच्छा प्रतीक्षा बस इतनी:
कि दूर कहीं पास कहीं
उनमें से कोई
बोल पड़े उसी मिठास से
‘हम भी हैं हम भी हैं’
चह चह कर।
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4
प्रेम में हमने जोड़ा जोड़ा
प्रेम में हमने जोड़ा जोड़ा,
कितना कुछ तो जोड़ा।
जोड़े भँवरे झूला जोड़ा
तारे हमने जोड़े
जोड़ी लहरें फूल भी जोड़े-
कितना कुछ तो जोड़ा।
यह भी पड़ गया थोड़ा।
पर्वत जोड़े, नभ को जोड़ा,
बादल हमने जोड़े।
प्रेम में जोड़े मोर पपीहा,
चातक हमने जोड़ा।
जोड़ी हिरण-हिरणियाँ जोड़ी,
कितना कुछ तो जोड़ा।
जोड़ा, जाना: जाना, जोड़ा-
प्रेम में जितनी चीज़ें जोड़ो
वे भी कम पड़ जाएँ-
जोड़े जाएँ, जोड़े जाएँ:
प्रेम में बस हम जोड़े जाएँ।
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अद्भुत कविताएँ हैं, जिनमें जीवन छल-छल कर रहा है। पढ़ना शुरू करते ही ये कविताएँ पाठक को अपनी जीवन-लय में जोड़ती और साथ बहा ले जाती हैं।…हमारी पुरानी पीढ़ी के अति विशिष्ट कवियों में, जिनमें प्रकति के लिए गहरा अनुराग और नदी के पानियों सरीखी लयात्मकता दोनों ही बची हैं और अकसर एकमेक होकर आती हैं, उनमें प्रयाग जी का नाम सबसे प्रमुख, और संभवतः अव्वल है। ‘जानकीपुल’ में पढ़ने को मिली ये चारों कविताएँ इसकी गवाह है। इतनी सुरीली और खूबसूरत कविताएँ पढ़वाने के लिए प्रयाग जी के साथ-साथ ‘जानकीपुल’ और भाई प्रभात रंजन जी का आभार। – सस्नेह, प्रकाश मनु