Home / Featured / राज्यवर्धन की कविताएँ

राज्यवर्धन की कविताएँ

आज पढ़िए वरिष्ठ कवि राज्यवर्धन की कविताएँ। प्रचार-प्रसार से दूर रहने वाले इस कवि की कविताएँ पढ़िए-
=================================
 
(1) आठवाँ घोड़ा
———————-
सूरज का कोई भी घोड़ा
लोक के पक्ष में नहीं है
 
सातवाँ घोड़ा भी नहीं
 
घोड़साल के घोड़े
जुते हैं रथ में
निकाल दी गई है
जिनकी रीढ़ की हड्डियाँ
भूल चुके हैं-
हिनहिनाना
रथ में जुते घोड़े
 
अपंग सारथी
हाँक रहे हैं-घोड़ों को
मद में
बिना देखे
कि कौन जा रहे हैं-
कुचले
रथ के पहिये तले
 
अंगूठे के कद के
सहस्त्रों बौने दरबारी
लगे हैं-
सूरज के यशोगान में
 
देव संत गन्धर्व अप्सरा
यक्ष नाग और राक्षस भी
रत हैं-
चाटुकार्य में
-गन्धर्व गा रहे हैं
-अप्सराएँ नृत्य कर रही हैं
-निशाचर बनकर अनुचर
चलते हैं/ रथ के पीछे -पीछे
-नाग सजाते हैं रथ को
-यक्ष करते हैं रक्षा और
-संतों के हाथ जुड़े हैं स्तुति में
 
हिम ताप वर्षा
ऋतुओं के कालचक्र पर
नियंत्रण है –
सारथी का
 
सृष्टि के सारे संसाधनों पर कब्जा है-
सूर्य रथ में लगे लोंगों का
 
वे ही हैं –
“वीर भोग्या वसुंधरा”
 
सप्ताह के सातों दिन
सातों घोड़ों के नाम हैं
जो बनकर इंद्रधनुष
लुभाते हैं-
धरती के लोगों को
 
स्वर्ग का राजमार्ग है-
यह इंद्रधनुष
लेकिन यह राजपथ
नहीं है सुलभ
जन साधारण के लिए
 
वंचित जन
सदियों से भोग रहे हैं
रौरव नरक
पर नहीं करते हैं प्रतिरोध
क्योंकि धर्मशास्त्रों में बतया गया है-
“ये सब तुम्हारे पूर्वजन्मों का फल है ! “
 
प्रतीक्षा में हैं-लोग
सैकड़ों वर्षों से
कल्कि अवतार के अवतरित होने की
जो अधर्म का नाश कर
दिलायेगा मुक्ति
 
षड्यंत्र है यह-
सूर्य रथ में जुटे लोगों का
ऐसा दिन धरती पर
कभी नहीं आयेगा
 
अवतार की प्रतीक्षा में
तुम भोगते रहोगे-
नरक
और वे लूटते रहेंगे
स्वर्ग का आनंद
 
यदि धरती पर उतारना चाहते हो स्वर्ग
तो बनना होगा तुम्हें-
सूरज का आठवाँ घोडा!
 
क्योंकि
सूरज का कोई भी घोड़ा
लोक के पक्ष में नही हैं
सातवाँ घोड़ा भी नहीं!
💐💐
 
2.कबीर अब रात में नहीं रोता
———————————–
 
रचा जा रहा है
अधूरा सच
 
फैलाया जा रहा है-
स्वप्निल आकाश में
झुटपुटे शाम के वक्त
सुबह की लालिमा होने का भ्रम कि
सूरज तो बस उगने ही वाला है
 
छोड़ो अब ….
कौन जाए अलख जगाने
 
अंधकार में
सुखी हैं सब
मिट जाता है
सत्य असत्य
रूप अरूप का विभेद
 
विवेक भी अब जागृत नहीं होता
रहता है
जान बूझकर मौन
 
कबीर रात में
अब दुखी नहीं होता
दुनिया के बारे में सोचकर
 
सोता रहता है
रात के अंधकार में
अलसाया
सूरज उगने की प्रतीक्षा में।
💐💐
चोर सिपाही मन्त्री राजा के खेल
————————————-
बच्चे खेल रहे थे –
चोर सिपाही मन्त्री राजा के खेल
 
पकड़ लिया- सिपाही चिल्लाया
राजा के सामने पेश करो
मंत्री का आदेश हुआ
 
राजा के सामने
चोर पेश हुआ
 
राजा ने सुनाई सजा
दस नरम दस गरम
 
सिपाही के
दस नरम दस गरम चपत खाकर
चोर बेहाल हुआ
 
देखता रहा –
बच्चों के इस खेल को
जिसे बचपन में
कभी हमने भी खेला था
 
तभी मन में
अचानक ख्याल आया कि
इस खेल में
चोर सिपाही मंत्री राजा सभी हैं
परन्तु प्रजा क्यों नहीं
 
यह प्रश्न मथता रहा
मथता रहा….
कई दिनों तक
 
इस यक्ष प्रश्न को
माँ पिताजी भाई बहन
नानी दादी चाची बुआ
सभी से पूछा
 
किसी का भी जवाब
सटीक नहीं लगा
और प्रश्न
करता रहा परेशान
 
परेशानी के दौर में
एक दिन सपने में आया
एक दानिशमंद
 
पूछना चाहता था-
उससे भी यही प्रश्न
मगर नहीं पूछा
 
देखकर मेरी ओर
वह मन्द मन्द मुस्कराया
और कहा-
जानना चाहते हो ना कि
इस खेल में प्रजा क्यों नहीं हैं
 
अरे! इस खेल में
‘चोर’ ही असल में
बेबस प्रजा है
 
राजा मंत्री और सिपाही ने
मिलकर चली है चाल
छिपाने को अपना अपराध
प्रजा को ही
चोर घोषित कर दिया है
और बेचारी प्रजा
न जाने कब से
इसकी सजा भुगतान रही है…..
और कह नहीं पा रही है कि
वह चोर नहीं है नहीं हैं।
💐💐
नदी आदमखोर हो गयी है
********************
 
दादी सुनाती थी-
किस्सा
लगातार बारिश होने पर
बाढ़ पहले भी आती थी
किसी -किसी साल
 
चढ़ता था पानी
बित्ता -बित्ता
जैसे कोई शिशु बढ़ता हो धीरे-धीरे
 
नहीं होती थी
जानमाल की हानि
 
समय रहते शरण लेते थे लोग
मचान पर
या चले जाते थे
गाँव के सबसे ऊँची दलान पर
 
नदी का क्रोध
जब होता था शांत
उतर जाता था पानी
आहिस्ता-आहिस्ता
जैसे चढ़ता था
कहती थी दादी-
जिस साल आती थी नदी में बाढ़
उस वर्ष फसल दुगनी होती थी
 
बाढ़ जितना लेती थी
उससे कहीं ज्यादा लौटा देती थी
 
अब कहती है माँ-
जब से नदी पर बना है बाँध
तब से नदी
सुंदरवन के बाघ की तरह
आदमखोर हो गई है
 
रात-बेरात
दबे पाँव
अचानक करती है भयानक हमला
खा जाती है-
जान माल को
दे जाती है टीस-
जीवन भर के लिए
अपनों से बिछुड़ने का।
💐💐
 
कालिदास मेघ से कह पाओगे….
**************************
तपती जेठ के बाद
आषाढ़ में
देह को जब छूती है
मानसूनी बयार
पहली बार
 
तब हर्षित हो जाता है-
दग्ध तन मन
 
धरती पर जब पड़ती है
बारिस की पहली बूंद
जुड़ा जाती है –
आत्मा
 
लेकिन डरता है मन
सावन भादो की
मूसलाधार बारिश को सोचकर
 
जनता हूँ-
बढ़ जायेगा कष्ट
बस्तियों में रहने वालों का
 
चरमरा जायेगी
महानगर की व्यवस्था
खुल जायेगी
नगर निगम की पोल
 
बस्तियों की संकरी गली में
बहने लगेगा-
सड़कों और नालियों का पानी
जल मल मिलकर हों जाएंगे एक
 
घरों में घुस आयेगा-
बरसाती गन्दा पानी
आठ गुणा आठ के कमरे में
चौकी बन जायेगी
घर की सबसे ऊँची जगह
रख दिए जाएंगे जिसपर
घर के सारे माल असबाब
 
शरण लेंगे बच्चे उसी पर
जमेगी रसोई की व्यवस्था भी वही पर
 
उलीचना पड़ेगा
बार -बार
घरों में घुसा पानी
छोड़ देंगे उलीचना
थक हारकर पानी
 
बस्ती में हो जाएगी
अघोषित जलबंदी
 
खबरों की भूखी मीडिया को
शायद मिल जाए –
एकदिन की खुराक
कोसेंगे जी भर प्रशासन को
करेंगे उजागर
सरकार की नाकमियों को
बढ़ाने के लिए
अपनी टी.आर.पी और पाने को विज्ञापन
 
बारिश के पानी में
छपछपाते खेलते बच्चे
शायद बन जाये
अख़बार के पहले पन्ने पर समाचार
या पा जाए टेलीविज़न की बाइट में जगह
 
देखकर खबरें
शायद आ जाएँ
पेज थ्री की औरतें
बाँटनें को राहत सामग्री
 
लेकिन इससे होगा क्या
नहीं मिल पायेगी निजात
कठिनाइयों से
 
इसीलिए कालिदास तुमसे एक विनती है-
बनकर दूत
हमारी ओर से
मेघ से कह पाओगे कि
जाकर बरसे
गाँवों के सूखे खेतों में
 
महानगर की बस्तियों में हम
चाहकर भी
स्वागत नहीं कर सकते
हर्षित करने वाले काले मेघों का।
💐💐
 
वसंत में तुम जब आओगी
——————————–
 
एक चेहरा रख आया था
पार्क की बेंच पर
सोचा था-
वसंत में तुम जब आओगी
तो जी भर बतियाएंगे
 
चिड़ियों से कहेंगे-
संगीत सुनाने को
एवज में उसे
कोदो के कुछ दाने दे देंगे
 
फूलों से कहेंगें-
खिलने को
ताकि खुशबू की मादकता में
सराबोर हो हम नृत्य कर सके
बदले में गोबर के जैविक खाद को
बिखेर देंगे उनकी जड़ों में
 
सूरज को कहेंगे-
स्फटिक सा चमके
ताकि गुनगुने मौसम का
हम ले सके जी भरकर आनन्द
बदले में देंगे उसे
अंजुरी भरभरकर अरघ
 
महुआ से कहेंगें-
टपकने को
धरती पर टपके
अमृत फल चखेंगे
बदले में उसे
पीने को देंगे
उनके ही फलों से बने आसव को
ताकि मादकता को
और बिखेर सके
 
माघ के चाँद से कहेंगे
चांदनी बरसाने को
ताकि तुम्हारे जूड़ेे को
रात रानी के फूलों से सजा सकूँ
बदले में भर देंगें
उसके भी दामन को सितारे से
 
जनता हूँ-
तुम जब वसन्त में आओगी
तो इंद्रधनुष उतर आयेगा धरती पर
तुम्हारी गोद में
मेरा सिर होगा
तब स्वर्ग के लिए
कोई क्यों मरेगा!
💐💐
प्रेमपत्र
———
 
दुनिया की सबसे उत्कृष्ट रचना है-
प्रेमपत्र !
धरती पर सबसे ज्यादा जीवंत रचना है-
प्रेम पत्र !
 
जब कोई प्रेम-पत्र रचता है
जब कोई प्रेम-पत्र पढ़ता है
लिखते -पढ़ते वक्त
तन-मन में
अदृश्य
परमाणु महाविस्फोट सा
बहुत कुछ घटित होता है
 
कान सुर्ख हो जाते हैं
पर्श्व में राग बसंत बजने लगता है
मन पक्षियों की तरह मुक्त हो
धीमी-धीमी उड़ान भरने लगता है
 
कभी-कभी तो आंखें सजल हो जाती हैं
कबीर का पाणि भींग जाता है
 
प्रेम पत्र बचा रहेगा
तो प्रेम भी बचा रहेगा
प्रेम बचा रहेगा तो
दुनिया भी बची रहेगी
 
दुनिया की नज़र से बचाकर
बचा रखे हैं मैंने
प्रेम -पत्र
 
प्रेम -पत्र दुनिया की सर्वोत्तम धरोहर है
जो चिर युवा बनाये रखता है
 
क्या आपके पास भी कोई प्रेम पत्र है!
💐💐
 
सिसकियाँ
——————–
सुन रहा हूँ-
सिसकियाँ
हजार प्रकाश वर्ष दूर
अतीत की उन गलियों से
जिस पथ पर
वसन्त में दो कदम
हम संग-संग चले थे
 
इस प्रदूषित समय में
रात-दिन कोलाहल में
अपने आकाशगंगा के
सैंकड़ों क्षुद्र ग्रहों से
नित्य टकराता हूँ
 
रोज खुद भी
धीरे -धीरे
रेडियोएक्टिव पदार्थ सा
न्यून होते जा रहा हूँ
 
ओ प्रिये!
आधी रात को जब भी सुनता हूँ
तुम्हारी सिसकियाँ
मैं देव पुरुष होने को
बेचैन हो जाता हूँ।
💐💐
 
छठ मइया तुम्हें सलामत रखें
***********************
 
एक दीप
हर दीपावली में
तुम्हारे नाम का
आज भी जला आती हूँ –
छत पर
 
रास्ता दिखाने
तुम्हारे हृदय तरंगों को
 
पता नहीं कब आ जाये
भूले भटके
 
आज भी तो हिचकी आई थी
खाते खाते
कहा माँ ने
कि कोई याद कर रहा होगा शायद
 
जानती हूँ –
तुम्हें छोड़कर
इस धरा पर
कौन करेगा याद
 
हो सके तो आना
छठ पर्व में
सभी प्रवासी तो लौटते हैं –
अपने अपने घर
 
प्रतीक्षा करूंगी
गांगा के कष्टहरणी घाट पर
जहाँ पहली बार तुम्हें देखते हुए
दिया था अरघ/सूरज को
शायद नहीं
दिया था अपने प्रेम को
और कबूला था – एक ‘सूप’ तुम्हारे नाम का
 
लेकिन सभी कबुलती
स्वीकार तो नहीं होती
शायद कुछ खोट रह गयी होगी
 
मेरे नसीब में बदा था
प्रतीक्षा करना
राधा की तरह
 
जर जर हो रहा है तन
लेकिन मन तो
आज भी अटका पड़ा है
उसी घाट पर
जहाँ हुई थी तुमसे
पहली मुलाकात
 
यदि तुम नहीं आओगे
तो इस साल भी
दे दूँगी अरध
तुम्हारे नाम का
 
और करूँगी दुआ कि
तुम जहाँ भी रहो
छठ मइया तुम्हें सलामत रखे !
 
💐💐
समानता
——————-
 
जन्म लेने दिया
अपने अंदर
एक स्त्री को
और बन गया सखी
अपनी प्रिया का
 
करने लगी है अब
वह साझा –
हर्ष विषाद
उपलब्धियाँ कमजोरियाँ
यहाँ तक कि छोटी- छोटी बातें
रसोई से सेज तक की
 
अपने हाथों से बनाकर
सुबह की चाय
भर देता हूँ उसे ओर खुद भी
प्यार की असमाप्त ऊर्जा से
ओर जुट जाते हैं हम
सुबह सुबह
घर की कामों में /जल्दी जल्दी
 
वह चढ़ा देती है –
चूल्हे पर कड़ाही
मैं ड़ाल देता हूँ
उसमें तेल
वह ड़ाल देती है –
पांचफोरन और मेरे पसंद की सब्जियाँ
मैं ड़ाल देता हूँ –
थोड़ी सी हल्दी
जीवन को रंगने के लिए
थोड़ा सा नमक
जीवन में स्वाद घोलने के लिए
और सीझने देता हूँ
सब्जी को
प्यार की मद्धिम आंच पर धीरे धीरे
 
इसी तरह मिलजुलकर
बना लेते हैं हम
दाल,चावल,रोटियाँ
 
और निकल पड़ते हैं
अपने-अपने कामों पर
 
उसने भी जन्म लेने दिया है-
एक पुरुष अपने अंदर।
💐💐
प्रतीक्षा
……….
किसी सुबह
आप उठते है
और बारिश की गंध
महसूस करते हैं
 
वृक्ष के पत्ते
बहुत दिनों के बाद
खिलखिलाते हुए लगते है
 
नन्हीं दूब भी
हमारे कदमों का
हँसकर स्वागत करती है
 
आकाश में
बादल का एक टुकड़ा
बचपन का कोई गीत
सुना जाता है
और
आनंदविभोर हम
आगत की प्रतीक्षा करते हैं.
💐💐
 
नदी का शोकगीत
—————————
 
दिन सोने के थे
रात चांदी के
 
एक नदी अठखेलियाँ करती थी
हमदोनों पाट के बीच
 
कलकल छलछल करती
बहती थी मोहब्बत
 
समाना था समंदर में
जाकर बहुत दूर
हमसफ़र बनकर
 
अकस्मात विलुप्त हो गई नदी
महामारी के सुनामी में
 
जीवन
रेत ही रेत अछोर
 
एक मुट्ठी बालू में
हजार हजार सिसकियाँ हैं
दो खारा धार ढुलकते रहती हैं
समय के गाल पर
 
जीवन निर्जन वन
अंकपाश को बार बार तरसे अभ्यस्त तन
ओह!कितनी लम्बी हो गई है तुम्हारे बिन
हर सांस के क्षण।
💐💐
कोलकाता1995
**************
एक चौथाई सदी पहले आया था –
कोलकाता
‘जीवनानंद ‘ की ‘बनलता सेन’
और शरतचन्द्र की नायिकाओं से
भेटाने की ख्वाहिश लेकर
(पचास साल पहले हिंदी कविता-कहानियों में
ऐसी नायिकाएं कहाँ होती थी!)
 
एक दिन अचानक मिल गई बनलता सेन
‘शंकर ‘ के ‘चौरंगी’ में
इशारे से बुला रही थी
 
डर के मारे
घुस गया था सिम्फनी* में
 
पसीने से
तरबतर हो गया था
किसी तरह से नजर बचाकर निकला था
 
लगभग दौड़कर पहुँचा था-
के सी दास के रसगुल्ले की दुकान पर
गटागट पी गया
दो-तीन गिलास पानी
खाया था-
जल भरा संदेश**
 
अजीबोगरीब स्थिति में मिली
शरतचन्द्र की ‘राजलक्ष्मी’और ‘चंद्रमुखी’ भी
एक नहीं , दो नहीं
दस-बीस नहीं
सैकड़ों हजारों की संख्या में
जब सेंट्रल एवेन्यू से
‘जनसत्ता’ के दफ्तर
बी के पाल एवेन्यू जाने का
किसी ने बताया था शार्ट-कट रास्ता
जो गुजरती थी
एक संकरी गली से
 
सर चकरा गया था
उस गली में
देखकर-
औरतें हीं औरतें
मानो झुंड हो –
भेड़-बकरियों का
 
आजतक नही देखा था
कभी भी कहीं भी
एकसाथ इतनी औरतें
पहनावा भी अजीबोग़रीब सा था
…और चेहरा
मंदिर के बाहर
कूड़े पर फेंके गए
बासी कुचले फूलों सी थी
 
याद आ गई
कुप्रिन की ‘यामा दा पिट’
मंटो की कई कहानियां
 
याद आ गया –
मुंगेर का ‘श्रवण बाजार’
भागलपुर का ‘जोगसर’
मुजफ्फरपुर का ‘चतुर्भुज स्थान’
पर यहाँ तो संख्या अथाह थीं
जहाँ तक नज़र जाती थी
वहाँ तक औरतें हीं औरतें थी
पता नहीं किसने ऐसी जगहों को नाम दिया है-
‘रेड लाइट एरिया’
 
(अ)सभ्यता की अंतहीन गली को
जब पार कर आया तो
तो किसी ने बताया कि यही है -सोनागाछी
एशिया की सबसे बड़ी ‘देह-मंडी’
 
ओह! किसी का भी तो चेहरा तो
शरतचन्द्र की ‘राजलक्ष्मी’ और ‘चंद्रमुखी’ से
नहीं मिल पा रहा था
और ना ही मिल पा रहा था-जीवनानंद की ‘बनलता सेन’ से
जिसकी कल्पना
कविता और उपन्यासों को पढ़ते वक्त
मन ने गढ़ा था।
*****
(*सिम्फनी: कोलकता के चौरंगी में संगीत के कैसेट की दुकान।
**जल भरा संदेश:संदेश (मिठाई) का एक प्रकार जिसके भीतर खजूर का तरल गुड़ भरा होता है।)
💐💐
 
पेड़
——–
जब हम
अपनी हवस में
विकास के प्रतिमान हासिल करने के लिए
हवा में घोल रहे होते है –
ज़हर
तब वह दिन में
नीलकंठ की तरह
चूस रहा होता है-
विष
ताकि हम बचे रह सकें-
जहरीली हवाओं से
 
इतना ही नही
सूरज के सहयोग से
पृथ्वी के सभी प्राणियों के लिए
वह उत्साह से बना रहा होता है-
भोजन
 
रात को वह
थककर चूर सो जाता है-
मजूर किसान
किरानी चपरासी अध्यापक और
दुनिया में हर नेक काम करने वाले
भले मानुषों के साथ
गहरी नींद में
 
तब सिर्फ
लूटेरे और षड्यंत्रकारी
पृथ्वी के विरूद्ध
साजिश कर रहे होते हैं-
पेड़ काटने की।
💐💐
परिचय
—————-
नाम- राज्यवर्द्धन
जन्म- 30 जून 1960(जमालपुर,बिहार)
रचनाएं प्रकाशित-
हिंदुस्तान के चर्चित पत्र पत्रिकाओं में फीचर्स,लेख,अग्रलेख,रिपोतार्ज, समीक्षाएं व कविताएं प्रकाशित।
सम्पादन-1..स्वर-एकादश’(समकालीन ग्यारह कवियोंके कविताओं का संग्रह)का संपादन,बोधि- प्रकाशन,जयपुर से2013 में प्रकाशित।
2.लगभग चार दशक पूर्व जमालपुर से प्रकाशित अनियमितकालीन पत्रिका ‘विचार’ के सम्पादक-मंडल में।
(7/8अंकों के बाद पत्रिका बंद)
स्तम्भ लेखन-1.जनसत्ता(कोलकाता संस्करण) में1995 से2010 तक चित्रकला पर स्तंभ -लेखन,
2 .नवभारत टाइम्स(पटना संस्करण) में कई वर्षों तक सांस्कृतिक संवाददाता ।
3.कविता संग्रह-कबीर अब रात में नहीं रोता(प्रकाशाधीन)
संस्थाएं-1प्रगतिशील लेखक संघ,जमालपुर(बिहार)इकाई के संस्थापक सदस्य व सचिव
2.सचिव-प्रगतिशील लेखक संघ,प.बंगाल इकाई(2006 से 2011 तक)
 
संपर्क-राज्यवर्द्धन,एकता हाईट्स,ब्लॉक-2/11ई,56-राजा एस.सी.मल्लिक रोड,कोलकाता-700032
e-mail:rajyabardhan123@gmail.com
Mobile no. 8777806852
=======================================

दुर्लभ किताबों के PDF के लिए जानकी पुल को telegram पर सब्सक्राइब करें

https://t.me/jankipul

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

पुतिन की नफ़रत, एलेना का देशप्रेम

इस साल डाक्यूमेंट्री ‘20 डेज़ इन मारियुपोल’ को ऑस्कर दिया गया है। इसी बहाने रूसी …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *