
आज अमिता मिश्र की कविताएँ पढ़िए। हिंदी युवा कविता का सुपरिचित नाम अमिता मिश्र की द्वंद्व की कविताएँ हैं। स्त्री बनाम समाज, गाँव बनाम शहर के द्वंद्वों के साथ अस्तित्व के कुछ ज़रूरी सवालों से टकराती है उनकी कविताएँ। आप भी पढ़ सकते हैं-
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(1) अफवाहें
उनका हासिल क्या था
जिन्होंने स्त्री के खिलाफ
सदैव अफवाहों को चुना था
उनकी गढ़ी कथाओं को
समाज गौर से टकटकी लगाए सुन रहा था
उस कौम की आत्माएं मृत थी
और उनके शरीर जिंदा थे
उन्होंने पूरी उम्र कभी जरूरी सवाल नहीं उठाये
जो उड़ती खबरें सुनी
उन्हें सच माना
उनकी पड़ताल कभी नहीं की
कहते हैं कि अफ़वाह
जंगल के आग सी फैलती है
दादी बताती थी कि अफवाह ने किस तरह
उनकी मुहंबोली बहन को बिन ब्याहे
उनसे छीना था
वह घाव पूरी उम्र रह-रहकर उनमें छीजा था
कितनी ही बेटियां होती हैं रोज इन अफवाहों की शिकार
बहुत आसान है
एक स्त्री के खिलाफ
अफवाहों में शरीक हो जाना
लाल को पीला और पीले को बेरंग बताना
अफवाह में शामिल
वे शरीफ लोग भी हैं
जो अपनी छत पर चिड़ियों का पानी रखते हैं
वे भी जिनके घर छोटी बड़ी बेटियां रहती हैं
कहानी का नरेटर और प्रस्तुतीकरण करने में
वे तनिक भी नहीं झिझकते
मौका मिलते ही बांध लेते हैं पाल
और रेत में नौका चला देते हैं
ऊम्मीद के किनारे बैठे स्त्री सच ने
इतनी ठोकरे खाई
कि वह खोटा सिक्का बन चलन बाहर हो गया
सच्चाई को देख पाने की दूरबीन
उन्होंने छिपा दी थी।
(2) कभी गांव आकर देखो तो
गांवों को छोड़कर
रोज की रोजी रोटी कमाने की फिक्र में
वे सब चले गए
दूर – दराजों के शहर
वारिस चाचा के बेटे,सेवक बाबा के गुपाल
नन्हकू, अनूप,बिंदा सब चले गये
धीरे-धीरे शहर की ओर
गांवों से अलहदा होने का
उनमें आ गया था रूहानी ख्याल
गुजरे हुए दिन उन पर भारी बोझ थे
यूं तो कभी थका नहीं था ननकू
अपनी पीठ के बोझ से
पर घर के हालातों का बोझ
तोड़ बैठा था उसकी कमर
वह आज तक नहीं स्वीकार कर पाया था
बाबूजी का बिना इलाज के यूं चले जाना
दिन पर दिन बिगड़ते ही गये घर के हालात
बबलू बबिता की पढ़ाई का भार
छोटी बहन का भी करना है विवाह
मां दिख रही है आजकल असहाय
इतना सब वह कैसे सहन करे
खेतों में कभी सूखा, कभी बाढ़,
कभी जमीन का कटाव ,नहर का भराव ,
किसी साल चुग गयी टिड्डी खेत को
तो कभी पाला जर्जर कर देता फसल को
हम छोटी हैसियत के किसान
गांव में नंगे सिर देखते थे शीत बारिश घाम
हमारी दृष्टि सहलाती रहती थी फसल को
हम उसे तूफान ओलों से बचाते
अखुवाये अंकुर को शिशु सा पालते
हर वक्त खड़े रहे फसल पर
नेह की छतरी ताने
तैयार फसल
बिकती रही औने पौने दाम
आधे से ज्यादा फसल का पुख्ता दाम
खा जातें हैं बिचौलियों और लेनदार
सरकारी घोषणाओ का भोंपू बजता है
इन मरहूम बातों से मरहम नहीं लगता है
एक किसान की आत्महत्या
दूर बैठे लोगों के लिए
अखबारों और टी वी चैनलों पर
सरपट दौड़ने वाली सिर्फ खबर भर है।
पर हमारे लिए
वह है
पूरे परिवार का थक कर उजड़ जाना।
हमारी तकलीफें हमारा संघर्ष
कभी गांव आकर देखो तो
(3) सभ्यताएं
गूंथती बनती महकती सभ्यताएं
पृथ्वी का मन हैं
देश बदलती नया रचती सभ्यताएं
पृथ्वी के वस्त्र
ठहरी हुई मूर्तियों में
प्राण डालती सभ्यताएं
सजीविता के अनुपम उपहार
विश्व की महान सभ्यताएं
आकाश के रास्ते उड़कर
समुद्र के रास्ते तैरकर
पहुंचती हैं दूर -दूर के देशों तक
वहां के रहवासियों की संगी साथी बनती हैं
सभ्यताओं की उपस्थिति
पृथ्वी का मुलायम होना है
सभ्यताओ में भेद उनकी सादगी है
उनका निर्माण
दुनियां को खूबसूरत बनाये रखने का मशविरा
समुंदर के झाग सी फेनिल सभ्यताए
बहुत सारे प्रश्नों, अकुलाहटों के जबाब हैं
किताबों की जिल्द के अंदर टंकित हैं
सभ्यताओं की कथायें
विद्वानों ने अक्षर -अक्षर में उकेरे हैं
इंसानी पशोपेश के दुर्लभ चित्र
जिनकी जानकारी गवाह है
कि जिंदगी खामोश पत्ते पर बैठकर
चलने वाली रसद भर नहीं है
दुनिया की निर्मिति हजारों वर्षों की कारीगरी है
जिसके हर पत्थर में सभ्यता की लिपि टंकित है
एक पत्थर वह है
जिसे अपनी सादगी से ठोंका था गांधी ने
एक पत्थर वह जिसे खिसकाया मंडेला ने
एक था खूबसूरत मां का बेटा
सिकन्दर महान
सभ्यताओं की जीवित कहानियां
पाठ्यपुस्तकों में बार-बार पढ़ाई जाती हैं
ये सभ्यताएं इन्सानी पैरो के हजारों वर्ष पुराने फॉसिल हैं
जो चिन्हित हैं पृथ्वी पर
उनकी ध्वनियाँ पृथ्वी की धमनियों में
रक्त की तरह बहती हैं।
(4) सबसे बुरी लडक़ी
न झेंपती हूं न शर्माती हूं
हर जगह आती जाती हूं
ऊंची आवाज में हंसती हूं
अपने लिखे गीत गाती हूं
बात-बात पर आंखें नम नहीं करती
हां मैं ऐसी ही हूं
मैं सबसे बुरी लड़की हूं।
समाज के रंग ढंग में न अटने वाली
ख्याबों को हथेली पर रखकर चलने वाली
हां मैं ऐसी ही हूं
मैं सबसे बुरी लड़की हूं।
पितृसत्ता मेरे चरित्र को जांचेगी
फिर तमगा देगी मुझे चरित्र हीन होने का
उसकी कुदाली स्त्रियों पर आक्रामक रुख
अख्तियार करती है
वो धमकायेगी
लाल पीले तेवर दिखाएगी
डरा कर चुप करा देगी
पर मैंने ठान लिया है
मैं उसके मोहरों से कदमताल नहीं मिलाउंगी।
मैं स्वयं ही कुलीना हूं
मेरी कुलीनता किसी का दाय नहीं है
जो मुझे हस्तांतरित की गयी हो
यह कुलीनता मैंने स्वयं हासिल की है
मैं कुलीन हूं
क्योंकि मैं आत्मनिर्भर हूं
मैं कुलीन हूं क्योंकि
मैं अपना और अपने बच्चे की परवरिश का
जिम्मा खुद उठाती हूं
मैं कुलीन हूं क्योंकि
मैं सही बात करना जानती हूं।
( 5)
प्रेम में अलग होना
वह जोड़ा प्रेम करता था
और फिर अलग हो गया
अब वे सिर्फ कभी-कभार
एक दूसरे को याद करते हैं
वे बातें
जिन्होंने उन्हें जोड़ा था
एक दूसरे के साथ
वे राहें भी
जिनकी वजह से वे अलग हुए
वे स्त्री और पुरुष
चाहते तो एक दूसरे के साथ रह सकते थे
किंतु परिस्थितियां बदलती रही
आ गया था उनके बीच मे कोई तीसरा
चौथा या फिर पांचवा ……!
यह उनके मन की उड़ान थी
या फिर एक दूसरे से रूठ जाने की कवायद
अथवा आधुनिक लहजे में फंसा सिकुड़ा प्रेम
जिसे हर वक्त धुला जा रहा था
बेरंग हो रही थी उसकी पृष्ठभूमि
वे साथ रह सकते थे
साथ रहने के लिए बची थी कुछ जरूरी वजहें
बच्चों की परवरिश, बुजर्गों की देखभाल
,परिवार का नाम
ऐसे कई दायित्व
जिन्हें ऊठाने की जिम्मेदारी
उन्हें समाज ने साथ-साथ सौंपी थी
पर उन्होंने
सही समय पर
अलग हो जाने का निर्णय लिया
अलग हुआ एकाकी परिवार
चल रहा है अपने पांव
परिवार में बच्चे भी हैं और बुजुर्ग भी
बस
प्रेम और विवाह के नाम पर पहनाई गई हथकड़ियां
टूट चुकी हैं
हाथ स्वतंत्र हैं
और मस्तिष्क ऊर्जावान।