
ब्रजरतन जोशी संवेदनशील कवि हैं। लेखक हैं। राजस्थान साहित्य अकादमी की पत्रिका ‘मधुमती’ के संपादक हैं। आज उनकी दस कविताएँ पढ़िए-
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1
अबूझ जिंदगी
अबूझ जिंदगी
उखड़ी साँसें
कभी तीव्र
कभी मंद
चल रही हैं
अस्तित्त्व
बस पटरी -सा
जिस पर
चलते ही जाना है
जीवन को
जीवन तो सिर्फ
जीवन ही है
घट जाने दो उसे
अपनी तरह से
शेष को घटना नहीं
होकर मिट जाना है
जीवन ,आओ पूरी तरह
घट जाओ
अरे!कवि की ओर देखो
घट जाओ
कवि की
भाषा में भी।
2
पहल जीवन ने नहीं की
क्योंकि
जीवन तो प्रेमपगा
प्रतीक्षारत है
बस घटता ही जा रहा
अपने छन्द में
होकर आक्रामक
हम ही ने
की पहल
तोड़ दी सारी हदें
अंतरिक्ष के पार
रोता है कोई
देखकर
जीवन छोड़ रहा है
अपनी केंचुली
उसे तो बस
घटना है
प्रेमपगे
प्रतीक्षारत
बदलने
एक और जीवन में
जीवन की तरह ।
3
प्रेमपगे
प्रतीक्षारत
घटते जीवन
के लिए
भाषा का हर जतन
एक पड़ाव है
लक्ष्य नहीं
शब्द गंतव्य पथ
के धावक हैं
यह जानते हुए भी
कि हर गंतव्य
लक्ष्य नहीं
इसलिए भाषा
सराय है
ठहरते हैं जिसमें शब्द
यात्री की तरह
कविता में मिटती है
उनकी थकान
और तय
होती है
आगे की यात्रा
4
कवि सोचता है कि
मैं रचूंगा जीवन को
भाषा में
कविता की तरह
खेलूँगा भाषा से
कर लूँगा वश में
अर्थों
और व्यंजनाओं को
केवल कवि
नहीं खेलता
भाषा के साथ
भाषा भी खेलती है
कवि के साथ
घटाने जीवन को
जीवन तरह
कवि जागो
घट जाने दो जीवन को
अपनी
भाषा
और कविता में
5
कवि
तलाशते हैं पूर्वभव
का स्मरण
भूलकर यह कि जीवन
तो बस घट रहा है
तब से
अब तक
कुछ और तलाश की
अनथक कोशिशें
उलझा देंगी
कवि!तुम राह से
न भटको
घट जाने दो
जीवन को
जैसे चाहता है वह घटना
तुम आज अभी इस क्षण
को चुनो
शेष भूल जाओ
रम जाओ
अपनी भाषा के साथ
कविता में
जीवन वहीं घट रहा है।
6
अनुच्चरित शब्दों में ही
घटता है जीवन
उच्चरित होते ही उसका
घटना होने में
जाता है बदल
यह जो घट रहा है
अनेक आयामों में
उसे किसी एक
साँचे में ढालना
नहीं है संभव
शब्दों को
कहा नहीं जाता
सुनी जाती हैं
उनकी
अन्तर्ध्वनियाँ
व्यंजित होते हैं
कईं कईं अर्थ
जीवन का सत्त्व
अपनी तरह
घटने में है
कवि घट जाने दो
उसे अपनी लय में
7
राख केवल राख नहीं है
प्रमाण है
आग के होने का
और
नियति है
आग की
जीवन
आग और राख के
बीच की घटना है
जो घट रही है
निरंतर।
8
घटना जीवन का
अपनी तरह
नैसर्गिक घटना है
अपनी तरह घटने से
जीवन उपलब्ध
होता है
घटाने हमारे से
कुछ छूट जाता है
हमारी
इच्छाओं के चलते
कवि आधा और
कविता चौथाई
रह जाती है
भाषा वंचित रह जाती है
पूरी होने
की उपलब्धि से।
9
हम सशर्त स्वीकारते हैं
जीवन
जबकि घटना जीवन का
बेशर्त है
अभय का अभ्यारण्य
आतुर रहता है
स्वागत को
कवि उलझ जाता है
भाषा
शब्दों और प्रतीकों में
वह भूल जाता है
कि जीवन शर्तहीन है
बेशर्त जीवन ही है
मुक्ति का मार्ग
इसलिए घट जाने दो
जीवन को
मुक्ति में ।
10
जीवन
झील है
जिसकी कोई
चाल नही होती
जीवन तो बस
घट रहा है
भाषा में कविता
अस्तित्त्व में जीवन
ऐश्र्वर्य है हमारे
होने का
घट जाने दो
इस अबूझ
जीवन को
अपनी लय
अपने छन्द में।
ब्रजरतन जोशी की कविताओं में जीवन में कविता और कविता में जीवन को पा
लेने की पवित्र आकांक्षा है।वह जो अघटित है कविता के जीवन में उसे लेकर पुकारें हैं….अनुभव में घटित होने का इंतज़ार है।वह लय और छंद में घटित होने
की बैचेनी की आवाज़ है। ये प्रेम के संपूर्ण में कविता के संपूर्ण होने के उत्कट मन अभिव्यक्त करती कविताएं हैं।
थिर मन से लिखी कविताएँ, चिंतनशील. बहुत ही अच्छी कविताएँ.
कवि कितनी मासूमियत से स्वीकार लेता है कि *हम सशर्त स्वीकारते हैं जीवन जबकि घटना जीवन का बेशर्त है*। सवेदनशील कवि और ऊर्जावान संपादक ब्रजरत्न जोशी को बधाई और शुभकामनाएं।
बेहतरीन कविताएं। बधाई और शुभकामनायें
भाषा भी खेलती है कवि के साथ
आग और राख के बीच है जीवन
खूबसूरत सूत्र वाक्यों के साथ कसी हुई कविताएं।
भाई जोशी जी, ये कविताएं कवि डॉ. नंदकिशोर आचार्य जी की कविताओं और शिल्प की अत्यधिक अनुगूंज लिए हैं। आपकी अन्य कविताएं पढ़ना चाहूंगा।
Meditative poems.
Remain with the reader.