हाल में ही हिन्द पॉकेट बुक्स, पेंगुइन की ओर से नई पुस्तक ‘इंडियाज़ मोस्ट फीयरलेस 2‘ प्रकाशित हुई है जो आर्मी ऑपरेशंस पर आधारित है। लेखकद्वय हैं शिव अरूर/राहुल सिंह। प्रस्तुत है उसी किताब पर एक समीक्षात्मक टिप्पणी-
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एक गोली सीधी कॉर्पोरल ज्योति के सिर में लगी, ज़मीन पर गिरने तक भी उनकी मशीन गन से गोलियाँ बरसती रही और उनकी उंगली ट्रिगर पर दबी रही। प्रख्यात लेखकद्वय शिव अरूर और राहुल सिंह ने अपनी नई पुस्तक इंडियाज़ मोस्ट फ़ीयरलेंस 2 में यह खुलासा किया गया है।
हिन्द पॉकेट बुक्स, पेंगुइन रेंडम हाउस ने यह ऐतिहासिक पुस्तक प्रकाशित की है। पुस्तक में चश्मदीद कॉर्पोरल देवेंदर के हवाले से बताया गया है कि ‘मुझे वह पल अच्छी तरह याद है, जब ज्योति गिरा, तब भी उसकी एलएमजी से फायरिंग हो रही थी, मैं वह दृश्य कभी नहीं भूल सकता।’
लेखकों ने हमारे वीर सैनिकों की सहासिक घटनाओं की ऐसी बारीक व्याख्या की है कि कई बार पाठक रोमांच से भर जाता है तो कई बार खुद को किसी जंगल, पहाड़ी या सीमा के नजदीक दुश्मनों से घिरा महसूस करता है।
नायकों के कई रूपों से लेखकों ने हमारा परिचय कराया है। वैसे तो देश के लिए किसी भी तरह का काम करने वाला देशभक्त कहलाता है मगर देशभक्ति की जैसी मिसाल एक फौजी के जीवन में हमें देखने को मिलती है वह दुर्लभ ही है।
पुस्तक में एक जगह खुलासा किया गया है कि वह (मेजर मोहित) यही कहते रहे ‘मेरी इंजरी नार्मल है,’ उस दिन उनका पूरा ध्यान दो बातों की ओर लगा हुआ था, कि हमारे लोग हताहत न हों और आतंकवादी बचकर भागने न पाएँ। वो आख़िरी दम तक बस यही कहते रहे, ‘मैं ठीक हूँ, बाकियों को देखो।’ उन्होंने इस बात का पूरा ख्याल रखा कि उनसे पहले दस्ते का हरेक आदमी सुरक्षित जगह पर छिप सके।
स्पेशल फोर्स के लोग मेजर मोहित शर्मा को उनके मज़ाकिया स्वभाव के कारण भी ख़ासतौर पर याद करते हैं। नायक हज़ारी लाल ने याद करते हुए बताया कि 2009 के ऑपरेशन से कई महीने पहले उन्होंने किस तरह एक मेडिकल कोर्स पूरा किया था।
‘मोहित साब ने मुझसे पूछा कि क्या ग्रेडिंग आई है? मैंने कहा, “साब ग्रेडिंग तो बी है,” उन्होंने कहा, “बी तो ठीक है लेकिन अगर मुझे गोली लगी तो मुझे बचा लेगा न?”’
शिव अरूर और राहुल सिंह ने अपनी इस पुस्तक में एक अन्य वीर के बारे में खुलासा किया है कि लेफ्टिनेंट नवदीप ने अपना सिर कुछ इंच ऊपर उठा कर उस जगह का अच्छे से जायज़ा लेने की कोशिश की जहाँ आख़िरी आतंकवादी छुपा हुआ था, वह जानना चाहते थे कि आतंकवादी अभी तक उन पत्थरों के पीछे छिप कर ही गोलियाँ चला रहा है, या उसने अपनी जगह बदल ली है। उसी एक पल में एक गोली लेफ्टिनेंट नवदीप के बुलेटप्रूफ पटके के कोने को चीरते हुए उनके सिर में धंस गई। गोली लगते ही लेफ्टिनेंट नवदीप ने अपनी एके-47 राइफल के ट्रिगर पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए उस अंतिम आतंकवादी के चेहरे पर सीधे गोलियों की बौछार कर दी। पाँच मीटर के फासले पर दोनों एक साथ अपनी-अपनी पोज़िशन्स पर गिर पड़े। कुछ पल गुज़रने पर बंदूकें शांत हो गई, पहली गोली चलने के बाद अभी बस पाँच मिनट का समय ही गुज़रा था।
इंडियाज़ मोस्ट फ़ीयरलेंस 2 में हमारे कुछ वीर नायकों की व्यक्तिगत और सम्मानित तस्वीरें भी हैं। कुछ मरणोपरांत मिले सम्मान की आंसू भरी याद दिलाती तो कुछ अपने परिवार के बीच हंसती-मुस्कराती। आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर इस पुस्तक का प्रकाशन निस्संदेह एक ऐतिहासिक प्रयास है।