Home / Featured / पूनम सोनछात्रा की दस कविताएँ

पूनम सोनछात्रा की दस कविताएँ

आज पढ़िए जानी मानी युवा कवयित्री पूनम सोनछात्रा की दस कविताएँ-
====================
 
#1 मूक संवाद
 
“ख़याल रखिए अपना”
 
ये उसे दुनिया का सबसे आसान
और घिसा-पिटा वाक्य मालूम होता है
 
जबकि मेरे लिए
ये मेरे प्रेम की अभिव्यक्ति का
एकमात्र साधन रहा है
 
“आख़िर कौन है, जो जीना चाहता है?
सच-सच कहो
क्या तुम जीना चाहती हो?
 
“हाँ “, मैं हाँ कहती हूँ
और वह ठहाका लगाकर हँस पड़ता है
 
हम एक निश्चित दूरी पर
अपने-अपने किरदारों को जी रहे हैं
 
हम दोनों ही अभिनय में पारंगत हैं
जिसके लिए हमने
मौन को
अपने सर्वश्रेष्ठ संवाद के रूप में चुना है
 
 
#2 ख़ालिस मर्द
 
ये अक्सर रात के तीसरे प्रहर प्रकट होते हैं
जब प्रेम और वासनाएँ
आपस में गड्डमड्ड हो जाती हैं
 
ये झुक कर चूम लेते हैं
आलता लगे पैरों को…बेहिचक
खोल देते हैं
एक क्लचर के सहारे बँधी
किसी काले समुद्र सी
अथाह केशराशि
 
ये घंटों ताकते हैं
अपने सामने उदास बैठे ताजमहल को
बिना पलकें झपकाएँ
 
ये रोक लेते हैं इच्छाओं का ज्वार
और चुपचाप
अपनी हथेलियों पर समेटते हैं
आँसुओं के गिरते हुए मोती
 
जाने कौन-सा पत्थर रखते हैं
अपने सीने पर
जब ये कहते हैं कि
“मुझे हर उस शख़्स से प्रेम है
जिसने कभी तुम्हें छुआ है”
 
ये जानते हैं कि इन्हें
इनका एक-एक क़दम
फूँक-फूँक कर रखना है
सीमाओं के अतिक्रमण की सज़ा
इनकी भावनाओं के साथ-साथ
इनके प्राणों पर भी घातक है
 
ये मर्द से ज़्यादा अपने अंदर की औरत होते हैं
ये ख़ालिस मर्द होते हैं
 
 
 
#3 अंतिम इच्छा
 
आत्ममुग्धता और आत्मप्रवंचना
के ठीक बीचोंबीच
अपने ही विचारों में खोये तुम
कभी-कभी मुझे बेहद स्वार्थी जान पड़ते हो
 
और अगले ही पल
यह भ्रम टूटता है
जब तुम्हारा हर विचार, हर बात, हर प्रतिक्रिया
मुझ पर आकर समाप्त होती है
 
“तुम ही तो मेरी समूची दुनिया हो”
क्या यह कहते हुए एक पल के लिए भी
तुम्हें यह ख़याल आता है कि
मैं तुम्हारी कोई नहीं लगती?
 
कितनी अजीब बात है न
कि मैं तुम्हारी कोई नहीं लगती
लेकिन जब तुम मुझे अपनी समूची दुनिया कहते हो
तो मेरे लिए विस्तार और सीमाओं की
सारी परिभाषाएँ बदल जाती हैं
 
सारी इच्छाएँ ख़त्म हो जाती हैं
और मुझे ‘टूटते तारे’ न देख पाने का भी अफ़सोस नहीं रहता
 
तुम्हारे उपस्थिति से मुझे
‘अनेक शब्दों के लिए एक शब्द’
की महत्ता समझ आती है
 
तुम्हारा होना
यह सुनिश्चित करता है
कि कोई पुकार अनसुनी नहीं रहेगी
 
तुमसे बात करते हुए
मुझे अक्सर ख़ुद से बात करने का भ्रम होता है
उसके बावजूद
हम इतने अकेले हैं कि
ये अकेलापन जो हमें जोड़े रखता है
मैं इसके खोने से डरती हूँ
मुझे विकल्पों की राजनीति से भय लगता है
 
मैं रूठती हूँ, झगड़ती हूँ
तुम्हारे सवालों से बचते हुए
किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचना नहीं चाहती
मुझे लगता है
यह समय यूँ ही बीतता रहे
और जब हम अलग हों
तो हम दोनों में से किसी को भी
कोई पश्चाताप न हो
 
 
#4 अनुत्तरित प्रार्थना
 
‘परिवर्तन प्रकृति का नियम है’
यह पढ़ते-पढ़ाते वक़्त
मैंने पूरी शिद्दत के साथ अपने रिश्तों में की
स्थिरता की कामना
 
प्रकृति हर असहज कार्य भी पूरी सहजता के साथ करती है
 
परिवर्तन जैसे
हौले-हौले किसी पहाड़ की चोटी से फिसलते जाना
डूबना-उतरना
अपनी ही संवेदनाओं के समुद्र में
 
मैं कदली में कपूर और सीप में मोती सा ठहर जाना चाहती हूँ
 
एक तितली मेरे कंधे पर आकर बैठ गई
और वक़्त मुट्ठी में क़ैद परिंदे सा फड़फड़ाने लगा
 
मैं तितली के रंगों में खो गई हूँ
नीले आसमान पर गुलाबी धुआँ
रात के दो बजकर बीस मिनट पर कुछ इस तरह गुज़रता है कि
मुझे आसमान में हर तरफ़ तितलियों के अक्स नज़र आते हैं
धुएँ के उस पार
एक तारा अपनी सबसे मद्धम रोशनी के साथ टिमटिमाता है
और ठीक इसी समय वह मुझसे कहता है,
“इस पल को जी लो, इससे पहले कि
यह वक़्त भी बीत जाए”
 
रात के तीसरे प्रहर उसकी बातें राग मालकौश सी हैं
 
मुझे पलों में जीने की इच्छा
किसी मृत्यु कामना सी प्रतीत होती है
पूरी शिद्दत के साथ जिया गया एक पल
तमाम उम्र की बेचैनी और उनींदी आँखों का सबब बनता है
 
बीतते पलों को रोकने की कला को वास्तुकला से बदल दिया जाना चाहिए
 
गतिशीलता के देवता के समक्ष
मैं स्थिरता की प्रार्थना करती हूँ
 
वक़्त बीत रहा है…
 
 
 
#5 भ्रम
 
प्रेम की सबसे सहज शर्तों में से एक था
मेरा उसकी भाषा में अनुवाद
 
मैं एक कुएँ की तरफ़ टकटकी बाँधे देख रही हूँ
जबकि मेरी पीठ के पीछे
लहराते समुद्र की नमकीन लहरें
मेरी देह पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए विकल हैं
 
मैं संवादो की सीमा को लाँघ जाना चाहती हूँ
उत्तरों के प्रत्युत्तर
आमने-सामने लगे दर्पणों की तरह
अंतहीन प्रतिबिंबों का भ्रम पैदा करते हैं
 
मेरी कोशिश है
कि किसी तरह भी मासूमियत को बचा लिया जाए
 
मैं हौले-हौले
स्वयं में सिमटने की कला सीख रही हूँ
 
लेकिन उदास रात के आख़िरी बिंदु पर
मेरा सब्र टूटता है
और मैं एक ऐसे दरवाज़े पर दस्तक देती हूँ
जिसके पीछे एक अँधेरी घाटी है
मेरा प्रेमी मुझसे कहता है,
“मेरा हाथ पकड़ो..
इस अँधेरे के उस पार जगमगाता सूरज है”
 
मैं भ्रम में हूँ
कि जैसे जिये जा रहे ये पल महज़ एक स्वप्न हों
 
घाटी के उस पार
कहीं किसी धुंधली रौशनी में
दो रास्ते अलग-अलग दिशाओं में जाते हुए दिखाई देते हैं
 
यह कहना मुश्किल है
कि प्रेम और अवसाद
एक दूसरे के मित्र हैं अथवा शत्रु
 
 
#6 चिर प्रतीक्षित
 
रात्रि उतनी ही लंबी है
जितनी लंबी है तुम्हारी प्रतीक्षा
 
मैं आहटों का कारोबार करती हूँ
प्रत्येक आहट कल्पनाओं एवं स्मृतियों के नये द्वार खोलती है
जिसके बदले में
मैं आधी-अधूरी कविताएँ बुनती हूँ
 
मुझे सितारे टूटने का नहीं
जुगनुओं के खो जाने का भय है
 
आधी रात
चाँद, सितारों संग आँख-मिचौली खेल रहा है
जितने तुम स्मृतियों में दूर हो
कल्पनाओं में उतने ही पास दिखाई देते हो
 
कभी-कभी लगता है कि
प्रेम छुपाछुपी के खेल से अधिक कुछ भी नहीं है
 
 
 
#7 अबूझ पहेली
 
उसके पास
चाहने वालों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है
और मेरे पास
मीलों फैला सन्नाटा
 
ये भी उतना ही सच था जितना कि यह
कि हम दोनों एक-दूसरे के लिए नहीं बने हैं
 
ऐसे शख़्स का मेरे प्रेम में होना
मेरे लिए सदैव एक अबूझ पहेली रही
 
मेरी कल्पनाओं की उड़ान
उसके आसमान से परे थी
और उसका ठोस धरातल
मेरी मरीचिका से कोसो दूर
 
जो मुझे चाहिए
वह उसके पास नहीं
और जो उसे चाहिए
मैं उसे नहीं दे सकती
 
बावजूद इसके हम एक साथ है
इस सवाल का हल ढूँढते हुए
कि हम साथ क्यों हैं?
 
सरल प्रेम अपने – आप में
इस संसार का कठिनतम प्रश्न है
 
 
 
#8 बातों का प्रेम
 
अनेक स्तर थे प्रेम के
और उतने ही रूप
 
मैंने समय के साथ यह जाना कि
पति, परमेश्वर नहीं होता
वह एक साथी होता है
सबसे प्यारा, सबसे महत्वपूर्ण साथी
वरीयता के क्रम में
निश्चित रूप से सबसे ऊपर
 
लेकिन मैं ज़रा लालची रही
 
मुझे पति के साथ-साथ
उस प्रेमी की भी आवश्यकता महसूस हुई
जो मेरे जीवन में ज़िंदा रख सके ज़िंदगी
संँभाल सके मेरे बचपन को
ज़िम्मेदारियों की पथरीली पगडंडी पर
जो मुझे याद दिलाए
कि मैं अब भी बेहद ख़ूबसूरत हूँ
जो बिना थके रोज़ मुझे सुना सके
मीर और ग़ालिब की ग़ज़लें
उन उदास रातों में
जब मुझे नींद नहीं आती
वह अपनी गोद में मेरा सिर रख
गा सके एक मीठी लोरी
 
मुझे बातों का प्रेम चाहिए
और एक बातूनी प्रेमी
जिसकी बातें मेरे लिए सुकून हों
 
क्या तुम जानते हो
कि जिस रोज़
तुम मुझे बातों की जगह अपनी बाँहों में भर लेते हो
उस रोज़
मैं अपनी नींद और सुकून
दोनों गँवा बैठती हूँ
 
 
#9 सहज काम्य
 
मैं कह देती
केवल इतनी सी है बात
नहीं सहा जाता विछोह
कितने प्रश्नों के उत्तर अपने-आप मिल गए होते
 
मार्ग की सुंदरता मुझे भयभीत कर रही है
किन्तु कभी न मिल सकने वाली मंज़िल पर
मेरी अनवरत दृष्टि है
 
क्षणिक प्रलोभनों से ऊब गई हूँ
चमत्कार मुझे चकित नहीं करते
अपितु पीड़ा देते हैं
 
भाषा की कठिनता नहीं
भाषा की सहजता और सुंदरता कविता का काम्य है
 
जीवन इन दिनों
कविता जितना ही दुरूह हो चला है
 
 
 
#10उद्देश्य विहीन
 
चिड़िया के टूटे पंखों को सहेजते
मेरे रूखे हाथ
कभी किसी नाज़ुक फूल को नहीं सहलाते
 
सपनों से भरी इन उनींदी आँखों ने
जुगनुओं संग
जागते रहना चुना है
पूरे चाँद की रात में
तारे गिनना मेरा पसंदीदा शगल है
 
मैं अपने संशयों में ही ख़ुश हूँ
हर राही को किसी मंज़िल की तलाश हो
ऐसा ज़रूरी तो नहीं!
 
मुझे बेहया के फूल अच्छे लगते हैं
और राईमुनिया के जंगली फूल भी
क्या हुआ जो हाथ में लेते ही
वे ऐसे झड़ जाते हैं
जैसे कभी थे ही नहीं
 
सवाल ज़रूरत का नहीं
तबीयत का है
 
 
 
 
 
 
 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

अक्षि मंच पर सौ सौ बिम्ब की समीक्षा

‘अक्षि मंच पर सौ सौ बिम्ब’ अल्पना मिश्र का यह उपन्यास हाल ही (2023 ई.) …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *