
आज पढ़िए नेपाली भाषा के कवि जनक कार्की की कविताएँ। नेपाली से उनका अनुवाद किया है अहमद साहिल ने-
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(विवेकशील मनुष्य)
पहले,
जब गिद्ध को गोश्त खाते हुए देखा मनुष्य ने
अनुसरण किया ‘मरा हुआ खाना’।
जब बाघ को बकरी खाते हुए देखा मनुष्य ने
अनुसरण किया ‘मार कर खाना’।
लेकिन
गिद्ध ने गिद्ध कभी नहीं खाया
न ही बाघ ने बाघ को कभी खाया।
अभी,
समझदार आदमी चेतन हो गया है
उनसे एक कदम आगे बढ़ कर।
आदमी को खा रहा है आदमी ।
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(चाह)
आज़ाद उड़े हुए
एक समूह पक्षी
पिंजरे के पक्षी को देख कर
ईर्ष्या कर रहे हैं
शायद हम लोगों की भी
उनके जैसी ही ज़िंदगी होती तो
गुलेल के निशाने से सुरक्षित
होते।
पिंजरे के पंछी मगर
आज़ाद उड़े हुए पंछियों के
जीवन की कल्पना कर रहे हैं ।
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( सम्बंध )
एक दिन वृक्ष ने पूछा –
“ऐ चिड़िया तुम्हें मैं आश्रय देता हूँ
तुम्हारी भूख मेरे ही फल से मिटती है
तुमने मुझे क्या दिया?”
चिड़िया ने कहा –
“तुम्हें छोड़ कर गए हुए पत्ते,शाखें,डालियां;
तुम्हारी ही छाँव तले बदसूरत बने बैठे हैं
मैं इन्हें इकट्ठा करती हूँ
पुनर्जीवन देती हूँ
तुम्हारे ही सीने में ला कर घोंसला बनाती हूँ।”
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