Home / Featured / यात्राओं का स्मरण : पृथ्वी गंधमयी तुम

यात्राओं का स्मरण : पृथ्वी गंधमयी तुम

वरिष्ठ लेखक-पत्रकार अनुराग चतुर्वेदी का यात्रा-संस्मरण प्रकाशित हुआ है ‘पृथ्वी गंधमयी तुम’राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब पर युवा शोधार्थी नीरज की यह टिप्पणी पढ़िए-

======================

अंग्रेज़ी की साहित्यिक विधा ट्रैवलॉग (travelogue) के लिए हिंदी में अनेक पदों का प्रयोग किया जाता रहा है। यात्रा-वृत्तांत, यात्रा-आख्यान, यात्रा-वृत्त, यात्रा-संस्मरण आदि। यद्यपि ये सभी पद एक नज़र में देखने पर एक से दिखलाई पड़ते हैं किंतु फिर भी से एक-समान नहीं हैं। इनके बीच मामूली-सा भेद है। यह अंतर ठीक वैसा ही है जैसा आकाश और आसमान के बीच है, जैसा पानी और जल के बीच है। उदाहरण के लिए यदि यात्रा-संस्मरण को ही लें, तो यह पद साहित्य की एक अन्य विधा- संस्मरण के क़रीब मालूम होता है। संस्मरण की यह विशेषता होती है की वह स्मृति पर आधारित होता है। संस्मरण अतीत और वर्तमान के बीच संवाद का एक माध्यम भी होता है। संस्मरण के मूल तत्व होते हैं- स्मृति, सम्बंधभाव, आत्मानुभव और स्वयं को खोजने-पहचानने की कोशिश। यात्रा-संस्मरण का एक अच्छा उदाहरण है, हाल ही में प्रकाशित अनुराग चतुर्वेदी जी की यात्रा-पुस्तक- ‘पृथ्वी गंधमयी तुम’। इस पुस्तक की विशेषता इसकी संस्मरणात्मकता है। दरअसल इस पुस्तक में शामिल यात्राएँ आज से काफ़ी पुरानी हैं। इसमें शामिल सबसे पुरानी यात्रा 1994 (जापान) की है जबकि सबसे नवीन यात्रा 2016(पूर्वोत्तर भारत) की है। यानी यह पुस्तक 22 वर्षों के दौरान की गयी यात्राओं को लेखक ने अपनी स्मृति के आधार पर फिर से हम सब तक पहुँचाया है। आज के दौर में जब अधिकांश लेखकों के मन-मस्तिष्क में जल्द-से-जल्द प्रकाशित और प्रसिद्धि पा जाने की भावना प्रबल रहती हो तब इस तरह की ठहराव लिए हुए पुस्तक का प्रकाशित होना सहज ही ध्यानाकर्षण का विषय बन जाता है। इस पुस्तक की बुनावट से यह बात तो स्पष्ट तौर पर ज़ाहिर हो जाती है कि लेखक किसी प्रकार की जल्दी में नहीं है। उसे बात को कहने, प्रकाशित होने और प्रसिद्धि आदि की कोई जल्दी नहीं है। अंतर्वस्तु के स्तर पर इस बात से बहुत फ़र्क़ पड़ता है कि पुस्तक लिखते हुए लेखक का उद्देश्य क्या रहा है।

बहरहाल, इस पुस्तक में लेखक ने 22 वर्षों की अपनी यात्राओं को शामिल किया है, जिसमें- दुबई, नीदरलैंड, स्पेन, सूरीनाम, अमेरिका, जापान, चीन, हॉंगकॉंग, आस्ट्रेलिया, गुयाना, ब्रिटेन, दक्षिण अफ़्रीका और स्वदेश यानी भारत के अनेक हिस्सों के दिलचस्प संस्मरणों का ब्योरा दर्ज़ हैं। महत्त्वपूर्ण यह है कि पुस्तक में शामिल अनेक यात्रा-संस्मरण आज के समय-संदर्भ से काफ़ी पीछे के या पुरोगामी भी लगते हैं। लेखक ने जब यात्रा की थी और आज जब यह पुस्तक प्रकाशित हो रही है, इस बीच बहुत कुछ बदल गया है। किंतु इससे वे यात्राएँ और उनपर लिखा हुआ अप्रासंगिक साबित नहीं हो जाते! बल्कि उल्टा इनसे हमें आज के हमारे वर्तमान की निर्मिति के टूल मिलते हैं। अमेरिका, चीन और पूरी दुनिया में आ रहे तेज़ बदलावों को समझने में मदद मिलती है। स्वयं अनुराग चतुर्वेदी जी ने भी इस बात का उल्लेख पुस्तक की भूमिका में किया है- “पृथ्वी गंधमयी तुम यात्रा-संस्मरणों की पुस्तक है जिसमें तीन दशकों की यात्राओं को शामिल किया गया है। एक संस्मरण हांगकांग का है जहाँ मोबाइल क्रांति हो चुकी थी। जिस प्रकार का दृश्य हम आज भारत में हर शहर-क़स्बे में देख रहे हैं, वह बीस वर्ष पहले हांगकांग में दिखा था। ये बदले हुए विश्व की तस्वीर बताने वाले संस्मरण है। इनमें समाजशास्त्री नज़रिया है, तो बदल रहे आर्थिक परिदृश्य को समझने की कोशिश भी है। ये संस्मरण है, इसलिए इनमें इतिहास, साहित्य और व्यक्ति भी जगह-जगह दिखाई देते हैं।”

वर्ष 2003 की अपनी एम्स्टर्डम (नीदरलैण्ड) की यात्रा पर लिखते हुए अनुराग जी नीदरलैंड समाज के दूरदर्शी, समावेशी और संवेदनशील होने की बात को दिखाते हुए लिखते हैं कि किस प्रकार उन्होंने समलैंगिक सम्बन्धों को अपने यहाँ तब मान्यता दे दी थी, जब दुनिया भर के लोग और सरकारें इस विषय पर ठीक से बात भी करना पसंद नहीं करते थे। वे लिखते हैं, “ एम्स्टर्डम ने ‘यौन व्यवहार’ और ‘यौन सहनशीलता’ में क्रमशः हो रहे बदलावों को स्वीकार करने में साहस दिखाया है। दुनिया भर के ‘समलैंगिकों’ की राजधानी बन चुका है एम्स्टर्डम। देखिए एक बानगी: एम्स्टर्डम साल भर पुरुष समलैंगिकों और महिला समलैंगिक (गे और लेस्बियन) को आकर्षित करने की क्षमता रखता है, लेकिन साल में 4 मुख्य मौक़े ऐसे हैं जिन्हें दुनिया भर के गे और लेस्बियन भूल नहीं सकते। वे दुनिया के किसी भी कोने में हों, यहाँ आ ही जाते हैं। 30 अप्रैल: क्विन्स दे, 31 जुलाई से 3 अगस्त तक: गे परेड, नवंबर का पहला सप्ताहांत: लेदर प्राइड और तारीख़ तय नहीं: समलैंगिक परपीड़न फ़ैंटेसी।”

अनुराग जी यात्रा करते हुए वहाँ के स्थानीय समाज-संस्कृति पर तो नज़र रखते ही हैं; साथ ही वे सरकारों की दूरदर्शिता और सतत विकास जैसे गम्भीर विषयों पर उनकी नीतियों को भी रेखांकित करते हैं। उन्होंने क्रमशः दुबई और मेलबर्न(आस्ट्रेलिया) की यात्राओं(जो लगभग 2005 के आसपास की हैं) पर लिखते हुए यह उल्लिखित किया है कि किस प्रकार दुबई में जब विकास या प्रगति के नाम पर उपभोक्तावाद और आकर्षण को प्राथमिकता दी जा रही थी तब उसी समय आस्ट्रेलिया में पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास जैसे मुद्दे महत्त्वपूर्ण बने हुए थे। दुबई के विषय में लिखते हैं, “दुबई की सबसे बड़ी ख़ासियत यहाँ की ख़रीदारी है। बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर से लेकर सोने से लदा हुआ ‘गोल्ड सुख’। दुबई में बाज़ार को सुख कहा जाता है।…उपभोक्तावाद की चरमसीमा है दुबई की ये दुकानें। मेले में ख़रीदारी नहीं होती, लेकिन यहाँ मेला भी है, ख़रीदारी भी है और माहौल भी है। 2010 में दुबई उत्सव को आशा है कि वे एक करोड़ ख़रीददारों का जादुई आँकड़ा पार कर लेंगे…मधुकर जी हर मोड़ से परिचित थे। टू लेन से सिक्स लेन के बनने को याद करते हैं। अबूधाबी में भी निर्माण का जोर-शोर है।” इसी के साथ अनुराग जी मेलबर्न के सम्बंध में लिखते हैं, “मेलबर्न के उपनगरों में प्रत्येक रेलवे स्टेशन के बाहर कार पार्किंग के लिए विशेष जगह निर्धारित की गई है जहाँ नि:शुल्क पार्किंग होती है। सरकार और स्थानीय प्रशासन स्वयं चाहता है कि नागरिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करें और रेल-ट्राम से चलें। यूँ भी कार चलाने वाला ऑस्ट्रेलिया में बड़े डर-डर कर गाड़ी चलाता है।… ऑस्ट्रेलिया में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ प्रदान करना राज्य का कर्तव्य है।…ऑस्ट्रेलिया में जंगलों और वन्य जीवन की रक्षा मुस्तैदी से होती है। ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में यूकेलिप्टस बहुतायत में है। पहाड़ों पर घर तरतीब से बने हुए हैं। पहाड़ियों की रक्षा भी होती है और उनका सौंदर्य भी बचा रहता है।” यह वर्णन 2005 में की गयी यात्राओं का है। जबकि आज हम देख रहे हैं कि दुनिया भर के तमाम पर्यावरणविद् एवं वैज्ञानिक बता रहे हैं कि समावेशी और पर्यावरण हितैषी विकास का मॉडल ही हमारे अस्तित्व के लिए सही रास्ता है। सड़कों की दो लेन को छः-आठ लेन में बदलना समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं है, बल्कि इसके स्थान पर सार्वजनिक परिवहन को समावेशी और दुरुस्त करना ही हमारे भविष्य के लिए सही है। उपभोक्तावाद के स्थान पर अपनी ज़रूरत के अनुरूप ख़रीदारी करना ही पर्यावरण के लिए सही है।

किसी समाज और उसकी संस्कृति को जानने के लिए वहाँ के साहित्य, कला रूपों और मान्यताओं को क़रीब से देखा जाना चाहिए। अनुराग जी इस सम्बंध में अपनी अमेरिका यात्रा के हवाले से लिखते हैं, “जिस प्रेक्षाग्रह में हम नाटक देख रहे थे वह दो मंज़िला था। इसमें हज़ार से ज़्यादा दर्शक थे। ज़्यादातर कम उम्र के लड़के-लड़कियाँ। किसी भी देश में सांस्कृतिक चेतना का होना कितना ज़रूरी है, यह ‘ब्रॉड वे’ पहुँचकर जाना जा सकता है। नाटक का टिकट 20 (सन 2000 में) डॉलर था।… न्यूयॉर्क और वाशिंगटन डी.सी. दोनों ही सांस्कृतिक चेतना एवं सांस्कृतिक ऊर्जा के शहर है। वाशिंगटन डी.सी. में शेक्सपीयर के नाटक ऑल्ज़ वेल दैट एंड्स वेल को देखने से पहले दो बजे के शो को देखने पाँच सौ लोग हाज़िर थे और जब हम नाटक देकर बाहर निकले तो दूसरे शो के लिए भी भीड़ लगी हुई थी। बाहर एक स्वयंसेवक खड़ा था जिसने कहा कि आप सिर्फ़ मुस्कराकर टिकट माँगे, तो मुफ़्त में टिकट मिल जाएगा। मंच-सज्जा, अभिनय, नाटक देखने की तमीज़ देखते ही बनती थी।” इस प्रकार के वाक़यों से पता लगता है की अमेरिकी समाज में सांस्कृतिक और सामाजिक मुद्दों की कितनी कद्र की जाती है।

अमेरिकी यात्रा पर लिखते हुए ही अनुराग जी ने एक सूक्ष्म लेकिन ज़रुरी अनुभव को भी पुस्तक में दर्ज किया है, जिससे अमेरिकी समाज की संरचना को समझने में मदद मिलती है। वे लिखते हैं, “अमेरिका में भारतीय पतियों को भी कई काम करने पड़ते हैं जो हिन्दुस्तान में रहते हुए क़तई नहीं करें। पहले तो उनकी माताएँ ही नहीं करने दें। अमेरिका के कार्य विभाजन में पतियों के ज़िम्मे बर्तन साफ़ करना ज़रूरी है, कई पति खाना भी बनाते हैं। लेकिन जीवन की गाड़ी दोनों चलाते हैं और जब तलाक़ की बात आती है तो पत्नी ही सबसे पहले घोषित कर देती है।” इस प्रसंग से न केवल अमेरिकी बल्कि भारतीय समाज और परिवार की संरचना का पता लगता है। परिवार में होने वाले श्रम विभाजन पर पिछले कई दशकों से काफ़ी बातें की जा रही है, जिसकी जड़ें इतिहास से जुड़ी हुई हैं। जिन्हें बदलना आसान तो नहीं है, किंतु असम्भव भी नहीं है। अमेरिका इसका उदाहरण है।

भारत के पड़ोसी देश चीन की यात्रा को लेकर लेखक के मन में कौतूहल और जिज्ञासा देखने को मिलती है। उसका कारण है चीनी समाज और राजनीति में होने वाले तेज़ बदलाव। जिन बदलावों के नतीजों को आज हम स्पष्ट रूप से देख पा रहे हैं, उनकी शुरुआत के समय लेखक ने चीन की यात्रा की थी। चीन के विषय में अनुराग जी लिखते हैं, “चीन सचमुच आज़ाद हो रहा है। आर्थिक संपन्नता का असर जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में दिखाई दे रहा था। नाजिंगल रोड सपनों को रोशनियों का मैनहटन है। 20 वर्ष पूर्व यह इलाक़ा आठ बजे बंद हो जाता था। बीस वर्षों में आया बदलाव यहाँ आकर समझा जा सकता है और यही नज़ारा पुडोंग पहुँचकर होता है। टीवी टावर के ऊपर से एक तरफ़ पुराना सुंदर शंघाई दिखाई देता है तो पुडोंग में उभर चुका आधुनिक व्यवसायिक क्षेत्र दिखाई देता है। शंघाई के ये दोनों रूप मोहित करते हैं दोनों का अपना रंग है, रूप है।…चीन में अब निजी संपत्ति रखने की अनुमति दे दी गई है। कम उम्र के लड़के-लड़कियाँ चर्च जाने लगे हैं। युवा पीढ़ी के लोग माओ को कोई बड़ा नेता नहीं मानते। माओ की पत्नी की भी निंदा करते हैं। साम्यवाद भले ही औपचारिक रूप से समाप्त नहीं हुआ हो पर लोगों के मन में वह मर चुका है। अब ज़्यादातर लोग किसी भी तरह पैसा बनाना चाहते हैं। पैसा बनाने की मशीन कहाँ है, यही चीन का यक्ष प्रश्न है।”

दक्षिण अफ़्रीका के जोहान्सबर्ग में हुए 2012 के विश्व हिंदी सम्मेलन के बहाने महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला जैसे आदर्श महापुरुषों को याद करते हुए आज के अफ्रीकी आदर्शों और युवा सोच पर लिखते हुए अनुराग जी लिखते हैं, “यूकाइले का आदर्श कोई राजनेता, अहिंसा का पुजारी या कोई क्रिकेट खिलाड़ी नहीं है। वह अश्वेत व्यवसायी, खानों का मालिक और बीस बिलियन अमेरिकी डॉलर संपत्ति के मालिक पेट्रिस योपे को अपना आदर्श मानता है और ख़ूब पैसा कमाकर फ़्रान्स में भी सुंदर दक्षिण फ़्रांस में जाना चाहता है। पेरिस उसका पसंदीदा शहर है। दक्षिण अफ़्रीका को रंगभेद शासित तंत्र से मुक्त हुए अभी दो दशक से ज़्यादा नहीं हुए हैं। यहाँ भी युवा राजनेताओं को भ्रष्ट मानते हैं। ज़्यादातर टेंडर नेता अपने रिश्तेदारों या अपने दोस्तों को देते हैं। पुस्तक टेंडर घोटाला इन दिनों चर्चा में है। छात्रों को मिलने वाली पुस्तकें अभी तक नहीं मिली है और यह चर्चा का विषय है। दक्षिण अफ़्रीका में स्वास्थ्य व्यवस्था बहुत चरमराई हुई है। लेकिन वहाँ समाज में समाज में समरसता बनाए रखने के लिए नोबल पुरस्कार विजेता डेसमंड टूटू की अध्यक्षता में बने कमीशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।…लेकिन नौवें विश्व हिंदी सम्मेलन के कुछ प्रतिनिधियों को दिन दहाड़े जब कार से उतार, कैमरा, धन, फ़ोन ले लिए गए तो पूरा सम्मेलन ही मानो दहशत में आ गया। मंडेला स्क्वायर पर जब एक श्वेत जोर-जोर से पार्किंग कराने वाले अश्वेत से झगड़ रहा था या हमें लौटते हुए जब ड्राइवर से अभद्रता सहनी पड़ी तो या तो पुलिस ही नहीं दिखी यह जो दिखी वह सामने नहीं आयी।” दक्षिण अफ़्रीका का यह हाल है सन 2012 का, जब उसे संप्रभु शासन के लगभग बीस साल भी बमुश्किल ही पूरे किए थे, लेकिन वहाँ फैली अराजकता और अव्यवस्था चिंताजनक थी। इस प्रकार, अनुराग चतुर्वेदी जी द्वारा वर्णित तमाम देशों की इन यात्राओं के आधार पर हम न केवल वर्णित देशों के इतिहास और उनकी विकास यात्रा से ही परिचित होते हैं बल्कि अपने व्यक्ति, समाज, देश के स्तर पर भी अपना मूल्यांकन करने में भी समर्थ होते हैं।

समीक्षीत पुस्तक-

पुस्तक- पृथ्वी गंधमयी तुम

लेखक- अनुराग चतुर्वेदी

प्रकाशक- राधाकृष्ण प्रकाशन

पृष्ठ- 142

मूल्य- ₹495 (Hard Bound)

समीक्षक

नीरज

शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय

Neerajkr520@gmail.com

9716632367

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

पुतिन की नफ़रत, एलेना का देशप्रेम

इस साल डाक्यूमेंट्री ‘20 डेज़ इन मारियुपोल’ को ऑस्कर दिया गया है। इसी बहाने रूसी …

10 comments

  1. This paragraph will assist the internet visitors for building up new blog or even a weblog from start to end.

  2. My brother recommended I might like this blog.
    He was totally right. This post truly made my day.
    You cann’t imagine just how much time I had spent
    for this information! Thanks!

  3. Wow, that’s what I was seeking for, what a material!

    present here at this website, thanks admin of this web page.

  4. This piece of writing presents clear idea for the new people of blogging, that genuinely how to
    do running a blog.

  5. You should take part in a contest for one of the greatest websites on the internet.
    I most certainly will highly recommend this site!

  6. I got this web site from my friend who shared with me regarding this site and now this time I am visiting this site and reading
    very informative content at this place.

  7. I don’t think the title of your article matches the content lol. Just kidding, mainly because I had some doubts after reading the article.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *