Home / Prabhat Ranjan (page 199)

Prabhat Ranjan

भालचंद्र नेमाड़े के उपन्यास ‘हिन्दू’ का एक अंश

आज मराठी के प्रसिद्ध लेखक भालचंद्र नेमाड़े को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है. उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘हिन्दू’ का एक अंश, जो संयोग से किसान-खेती-बाड़ी करने वालों की दुर्दशा को लेकर है- मॉडरेटर  =====================================================================    हरिजन की लाश किसान के खेत में रहस्यमय मृत्यु या कत्ल? खबर पढ़कर सुनाई …

Read More »

कुँवर नारायण की कहनियों में धंसते हुए

युवा लेखक मनोज कुमार पाण्डेय ने यह लेख लिखा है हिंदी के वरिष्ठ कवि-कथाकार कुंवर नारायण की कहानियों को पढ़ते हुए- मॉडरेटर  ===================== कुँवर नारायण अपनी कहानियों की इकलौती किताब ‘आकारों के आसपास’ की भूमिका में लिखते हैं कि, ‘कहानी कहते समय मैं पाठक को यह यकीन दिलाने की कोशिश …

Read More »

बापू! देश का अंतिम जन अपने अंत की ओर बढ़ रहा है!

महात्मा गाँधी की वतन वापसी के सौवें साल में उनके नाम यह मार्मिक पाती लिखी है दिल्ली विश्वविद्यालय के विद्यार्थी नंदलाल सुमित ने- मॉडरेटर  =================== प्यारे बापू,  आपके वतन वापसी का सौवां साल है यह. देश भर में उत्सव मनाया जा रहा है. आपकी खूब पूजा हुई है. लाखों टन …

Read More »

मीरांबाई की छवि और मीरां का जीवन

बड़ी चर्चा सुनी थी माधव हाड़ा की किताब ‘पंचरंग चोला पहर सखी री’ की. किसी ने लिखा कि मीरांबाई के जीवन पर इतनी अच्छी किताब अभी तक आई नहीं थी. किसी ने इसकी पठनीयता की तारीफ की. बहरहाल, मैंने भी किताब उठाई तो एक बैठक में ही पढ़ गया. यह …

Read More »

हृषीकेश सुलभ कथाकार हैं, क्रॉनिकल राइटर नहीं!

हृषीकेश सुलभ के छठे कहानी संग्रह ‘हलंत’ की कहानियों को पढ़ते हुए यह मैंने लिखा है- प्रभात रंजन  ==== ==== हृषीकेश सुलभ की कहानियों का छठा संग्रह ‘हलंत’ पढ़ते हुए बार बार इस बात का ध्यान आया कि संभवतः वे हिंदी के अकेले समकालीन कथाकार हैं जिनकी कहानियों का कंटेंट …

Read More »

नेताजी का सच और गुमनामी बाबा का मिथक!

गुमनामी बाबा नेताजी थे- इस बारे में सबसे पहले ‘गंगा’ नामक पत्रिका में पढ़ा था. बात 1985-86 की है. तब फैजाबाद में गुमनामी बाबा की मृत्यु हो गई थी और वहां के एक स्थानीय पत्रकार अशोक टंडन ने कमलेश्वर के संपादन में निकलने वाली पत्रिका ‘गंगा’ में धारावाहिक रूप से …

Read More »

‘कोर्ट’ : भारतीय सिनेमा का उजला चेहरा

सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म ‘कोर्ट’ हो और प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक मिहिर पंड्या की लेखनी हो तो कुछ कहने को नहीं रह जाता है, बस पढने को रह जाता है- मॉडरेटर  ==================================================== जब मुझसे साल दो हज़ार चौदह में देखी गई सर्वश्रेष्ठ हिन्दुस्तानी फ़िल्मों के नाम पूछे गए …

Read More »

क्या मीडिया समाज की नकारात्मक छवि बनाता है?

अभी हाल में ही वरिष्ठ पत्रकार राकेश तिवारी की किताब आई है- ‘पत्रकारिता की खुरदरी जमीन’. इस पुस्तक में उन्होंने बड़ा मौजू सवाल उठाया है कि आखिर मीडिया ऐसे समाचार ही क्यों प्रमुखता देता जिससे हमारे अंदर निराशा का भाव पैदा होता है, नकारात्मकता पैदा होती है. समाज में अच्छे …

Read More »

एक अनुशासनहीन फेंटेसी है ‘अँधेरे में’

पिछले साल मुक्तिबोध की मृत्यु की अर्ध-शताब्दी थी. इस मौके पर उनके ऊपर खूब कार्यक्रम हुए, थोक के भाव में उनकी रचनाओं को लेकर लेख सामने आये. लेकिन दुर्भाग्य से, किसी लेख में कोई नई बात नहीं दिखी. लगभग सारे लेखों को पढने के बाद यह कह सकता हूँ कि …

Read More »

गंभीर साहित्य सृजन में पैसा कहां है- सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रतिष्ठित पत्रिका ‘पाखी’ ने लोकप्रिय साहित्य को लेकर एक ऐतिहासिक आयोजन किया है जिसमें लोकप्रिय धारा के प्रसिद्ध लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक का इंटरव्यू प्रकाशित हुआ है. बातचीत विशी सिन्हा ने की है. सच बताऊँ तो हाल के बरसों में ऐसा इंटरव्यू मैंने किसी लेखक का नहीं पढ़ा. आप भी …

Read More »