विजय मोहन सिंह नहीं रहे. यह सुनते ही सबसे पहले मन हिन्दू कॉलेज होस्टल के दिनों में वापस चला गया. मेरा दोस्त आनंद विजय उनका नाम लेता था, कहता था बड़े लेखक हैं. उसके पिता के साथ उन्होंने कभी महाराजा कॉलेज, आरा में अध्यापन किया था. विजय मोहन जी को …
Read More »हिंदी सिनेमा की नई ‘क्वीन’
कल घोषित सिनेमा के राष्ट्रीय पुरस्कारों में ‘क्वीन’ फिल्म के लिए कंगना रानावत को सर्वश्रेष्ठ नायिका का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है. प्रियदर्शन का यह लेख ‘क्वीन’ के बहाने सिनेमा की बदलती नायिकाओं को लेकर है. लेख पुराना है लेकिन आज एक बार फिर प्रासंगिक लगने लगा है. आप भी पढ़कर …
Read More »वक्त लिखता रहा चेहरे पर हर पल का हिसाब
लेखिका अनु सिंह चौधरी की की दूसरी किताब ‘मम्मा की डायरी’ हिंदी में अपने ढंग की पहली किताब है. रिश्तों को, जीवन को, समकालीन जद्दोजहद को समझने के लिहाज से एक मुकम्मल किताब. हिन्दयुग्म प्रकाशन से शीघ्र प्रकाश्य इस किताब की प्रीबुकिंग चालू है. फिलहाल इसका एक छोटा सा अंश, …
Read More »‘हमारे प्यार से इस शहर को कभी जुदा मत करना’
मेरे जानते यह रवीश कुमार की लिखी किताब ‘इश्क में शहर होना’ की सबसे अच्छी समीक्षा है. जब कोई विद्वान् किसी कृति को देखता है तो उसका पाठ उसे कलाकृति में बदल देता है. शिक्षाविद मनोज कुमार ने यही किया है. जरूर पढ़िए और अपनी राय दीजिए- मॉडरेटर =================================================== इश्क …
Read More »प्रियंका दुबे की कहानी ‘माय लेफ्ट फुट’
प्रियंका दुबे की पत्रकारिता से हम सब परिचित हैं. यहाँ आज आपके लिए उनकी एक छोटी सी कहानी, जिसके बारे में लेखिका का कहना है कि यह ‘शार्ट स्टोरी और स्टोरी के बीच का है कुछ शायद’. बहरहाल, यह एक मार्मिक कहानी है. एक फिल्म से अतीत के पन्ने जुड़ते …
Read More »हास्य रस और विश्व सिनेमा
प्रचण्ड प्रवीर बहुत दिनों से रस सिद्धांत के आधार पर विश्व सिनेमा का अध्ययन कर रहे हैं. इस बार हास्य रस के आधार पर उन्होंने विश्व सिनेमा पर एक दिलचस्प लेख लिखा है- मॉडरेटर =========================================================== इस लेखमाला में अब तक आपने पढ़ा: 1. हिन्दी फिल्मों का सौंदर्यशास्त्र – https://www.jankipul.com/2014/06/blog-post_7.html 2. …
Read More »आप याद आएंगे आलोक जैन!
शहरयार को अमिताभ बच्चन के साथ ज्ञानपीठ पुरस्कार देते आलोक जैन श्री आलोक प्रकाश जैन का जाना हिंदी सेवी व्यापारियों की उस आखिरी कड़ी का टूट जाना है जिसने हिंदी के उत्थान के लिए, उसकी बेहतर संभावनाओं के विकास के लिए आजीवन काम किया. वे साहू शांति प्रसाद जैन के …
Read More »मनीषा पांडे की नई कविताएं
समकालीन हिंदी कविता पर समसामयिकता का दबाव इतन अधिक हो गया है, विराट का बोझ इतना बढ़ गया है कि उसमें निजता का स्पेस विरल होता गया है. मनीषा पांडे की इस नई कविता श्रृंखला को पढ़ते हुए लगा कि और कहीं हो न हो कविता में इस उष्मा को बचाए …
Read More »‘लखनऊ बॉय’ विनोद मेहता का स्मरण
विनोद मेहता का जाना पत्रकारिता के एक मजबूत स्तम्भ का ढह जाना है. उस स्तम्भ का जिसके लिए पत्रकारिता एक मूल्य था, सामाजिक जिम्मेदारी थी. उनकी आत्मकथात्मक पुस्तक ‘लखनऊ बॉय’ के बहाने उनकी पत्रकारिता का बेहतर मूल्यांकन किया है जाने-माने लेखक प्रेमपाल शर्मा ने- मॉडरेटर ============================================================ 1941 में मौजूदा पाकिस्तान …
Read More »उमाशंकर चौधरी की कविताएं
उमा शंकर चैधरी की कविताएंः- उमाशंकर चौधरी की कविताओं का अपना स्वर है जो समकालीन कविता में उनको सबसे अलग बनाता है- उनकी कविताओं का राजनीतिक मुहावरा नितांत मौलिक है- उनका नया कविता संग्रह आया है भारतीय ज्ञानपीठ से- चूँकि सवाल कभी ख़त्म नहीं होते- उसी संग्रह से कुछ कविताएं- …
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