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Prabhat Ranjan

दलाल की बीवी की आंखें

कुछ लेखक परम्परा निर्वाह करते हुए लिखते हैं, कुछ अपनी परम्परा बनाने के लिए. रवि बुले ऐसे ही लेखक हैं. उनका पहला उपन्यास ‘दलाल की बीवी’ शीर्षक से चौंकाऊ लग सकता है, मगर यह संकेत देता है कि भविष्य के उपन्यास किस तरह के हो सकते हैं. पढ़ते हुए मुझे …

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कुछ इज़रायली कविताएँ प्रभात रंजन के अनुवाद में

इजरायल के कुछ कवियों की कविताओं के मैंने अनुवाद किये थे. आज उनमें से कुछ ‘दैनिक हिंदुस्तान’ में प्रकाशित हुए हैं. उनमें से दो प्रसिद्ध हैं येहूदा अमीखाई और हिब्रू भाषा की महान कवयित्री दहलिया रविकोविच की कविताएं यहाँ प्रस्तुत हैं- प्रभात रंजन ============================ येहूदा अमीखाई की कविताएं   जर्मनी …

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मुखौटा इंसान की सबसे बड़ी ज़रूरत है

कुछ कवि ऐसे होते हैं जिनको न ईनाम-इकराम मिलते हैं, न कविगण उनको अपनी जमात का मानते हैं, लेकिन इससे उनकी कविताओं की धार कम नहीं होती है. मुझे लगता है कि हिंदी कविता में आज अगर कुछ ताजगी नजर आती है तो ऐसे कवियों की कविताओं में ही. त्रिपुरारि …

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प्रेमचंद का ख़त सज्जाद जहीर के नाम

प्रेमचंद का यह पत्र सज्जाद ज़हीर के नाम है जिसमें प्रगतिशील लेखक संघ की बातें हो रही हैं. इसे हिंदी में  हमारे लिए पेश किया है सैयद एस. तौहीद ने- मॉडरेटर  ——————————————- डियर सज्जाद,   तुम्हारा खत मिला। मैं एक दिन के लिए ज़रा गोरखपुर चला गया था और वहां …

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भारतीय दृष्टिकोण से विश्व सिनेमा का सौंदर्यशास्त्र

युवा लेखक प्रचण्ड प्रवीर ने विश्व सिनेमा पर यह श्रृंखला शुरू की है. विश्व सिनेमा को समझने-समझाने की कोशिश में. मुझे नहीं लगता कि इस तरह से विश्व सिनेमा के ऊपर हिंदी में कभी लिखा गया है. सिनेमा के अध्येताओं और उसके आस्वादकों के लिए समान रूप से महत्व का. …

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राकेश तिवारी की कहानी ‘अंजन बाबू हँसते क्यों हैं’

80-90 के दशक में जब दिल्ली विश्वविद्यालय में पढता था तो जिन कथाकारों की कहानियां पढने में आनंद आता था उनमें एक राकेश तिवारी थे. मध्यवर्गीय जीवन के छोटे-छोटे प्रसंगों को लेकर कई कमाल की कहानियां लिखी उन्होंने. बीच में अपने लेखन को लेकर खुद लापरवाह हो गए. अभी दो …

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साहित्यकरवा सब फ्रॉड है!

शीर्षक से कुछ और मत समझ लीजियेगा. असल में यह एक मारक व्यंग्य लेख है. संजीव कुमार को आलोचक, लेखक के कई रूपों में जानता रहा हूँ, लेकिन पिछले कुछ अरसे से उनके व्यंग्य लेखन का कायल हो गया हूँ. भाषा का खेल, रामपदारथ भाई जैसा किरदार. यह व्यंग्य का …

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गाँठ जीवन से जितनी जल्दी निकले उतना अच्छा

ब्रेस्ट कैंसर को लेकर हमने पहले भी कई कवितायेँ पढ़ी हैं, उन कविताओं को लेकर लम्बी-लम्बी बहसों की भी आपको याद होगी. आज कुछ कविताएं प्रसिद्ध रंगकर्मी, लेखिका विभा रानी की. कैंसर पर जीत हासिल करने के बाद उन्होंने यह ताजा कविताएं आपके लिए भेजी हैं. रोग का शोक नहीं …

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यह हिंदी प्रकाशन जगत में नए दौर की शुरुआत है!

वाणी प्रकाशन की स्थापना के 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं. इस मौके पर 26 जुलाई को वाणी फाउन्डेशन(न्यास) की स्थापना की घोषणा होगी. लेखन, चित्रांकन और अनुवाद के क्षेत्र में शोधवृत्तियों के साथ यह एक नई शुरुआत होगी जो हिंदी के किसी भी प्रकाशन गृह द्वारा की जाने वाली अपने …

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राहुल सिंह का ‘लंचबॉक्स’

युवा आलोचक राहुल सिंह कई विधाओं में अच्छी दखल रखते हैं, सिनेमा भी उनमें एक है. कुछ अरसे पहले आई फिल्म ‘लंचबॉक्स‘ पर उन्होंने कुछ ठहरकर जरूर लिखा है लेकिन बड़े विस्तार से और बड़ी बारीकी से लिखा है. फिल्म तब अच्छी लगी, अब पढ़ा तो उनका यह विश्लेषण एक …

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