Home / Prabhat Ranjan (page 228)

Prabhat Ranjan

किस्सा पन्ना बाई और जगत ‘भ्रमर’ का!

‘पाखी’ में मेरी एक कहानी आई है। मुजफ्फरपुर के चतुर्भुज स्थान की गुमनाम गायिका पन्ना बाई से जुड़े किस्सों को लेकर। पिछले आठ साल से मैं चतुर्भुज स्थान की गायिकाओं, उस्तादों से जुड़े किस्सों के संकलन एक काम में लगा हुआ हूँ। यह किस्सा उस शृंखला की पहली कड़ी है। …

Read More »

कोई हो जा सकता है अंधा, लंगड़ा, बहरा, बेघर या पागल…

युवा कवि-लेखक हरेप्रकाश उपाध्याय को अपने उपन्यास ‘बखेड़ापुर’ के लिए भारतीय ज्ञानपीठ का लखटकिया नवलेखन पुरस्कार मिला है। उपन्यास में बिहार के सामाजिक ताने बाने के बिखरने की बड़ी जीवंत कहानी कही गई। हरेप्रकाश को जानकी पुल की तरफ से बधाई देते हुए उनके उपन्यास का एक रोचक अंश पढ़ते …

Read More »

आज किसने द्वार मेरा भूल से खटका दिया है

वे यश के लिय नहीं लिखती हैं, न ही आलोचकों के सर्टिफिकेट के लिए, न किसी पुरस्कार के लिए। साहित्य को स्वांतः सुखाय भी तो कहा जाता है। विमला तिवारी ‘विभोर’ के कविता संग्रह ‘जीवन जैसा मैंने देखा’ की कवितायें पढ़कर यह महसूस होता रहा साहित्य को क्यों साधना कहा …

Read More »

कुछ चिनार के पत्ते, झेलम का पानी और मिट्टी…

हाल के वर्षों में जयश्री रॉय ने अपनी कहानियों के माध्यम से हिन्दी जगत में अपनी बेहतर पहचान बनाई है। अभी हाल में ही उनका उपन्यास आया है ‘इकबाल‘, जो कश्मीर की पृष्ठभूमि पर आधारित एक प्रेम-कहानी है। आधार प्रकाशन से प्रकाशित इस उपन्यास का एक अंश आपके लिए- जानकी …

Read More »

अखिलेश के पुरस्कृत उपन्यास ‘निर्वासन’ का अंश

नब्बे के दशक के आखिरी वर्षों में लेखन शुरू करने वाले लेखकों के लिए अखिलेश बतौर लेखक-संपादक एक प्रतिमान की तरह रहे हैं। खुद मेरी आरंभिक रचनाओं पर अखिलेश का प्रभाव रहा है। उनकी पत्रिका ‘तद्भव’ में मेरी कई कहानियाँ उस दौर में प्रकाशित हुई। हालांकि अब अखिलेश से संवाद …

Read More »

रेणु तन्मयता से किसानी करने वाले लेखक हैं

आज ही के दिन 1921 में हिन्दी के युगांतकारी लेखक फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म हुआ था। आज उनको याद करते हुए, उनके लेखन, उनके विचारों उनकी जीवन दृष्टि पर कला की तरह किसानी जीवन को जीने वाले युवा लेखक गिरीन्द्रनाथ झा ने। आप भी पढ़िये- जानकी पुल। ====================================================== किसानी करते …

Read More »

शब्दकोश बनाना या छापना-छपवाना किसी विश्वविद्यालय का काम नहीं हो सकता

कल जनसत्ता संपादक ओम थानवी ने महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय द्वारा तैयार करवाए गए और भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित शब्दकोश पर एक सारगर्भित टिप्पणी की थी, जिसको हमने जानकी पुल पर भी साझा किया था।  वरिष्ठ कवि-आलोचक विष्णु खरे ने उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप यह लेख भेजा है। हालांकि इस …

Read More »

हिंदी के शब्दों का हिंदी में खुलासा

‘जनसत्ता’ संपादक, बेहतरीन गद्यकार ओम थानवी भाषा, भाषा प्रयोग को लेकर गंभीरता से लिखने वाले विचारकों में हैं। कई बार हिन्दी भाषा के प्रयोगों पर चर्चा करते हुए वे कट्टर लगने लगते हैं, कई बार बेहद जरूरी सवाल उठाते हैं। जैसे आज उन्होने अपने स्तम्भ ‘अनंतर’ में महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय …

Read More »

सपनों की चाबी किसी ईश्वर के हाथ नहीं होती

कमल जीत चौधरी की कवितायें मैंने देर से पढ़ी। इसका अफसोस है की क्यों देर से पढ़ी। इनकी कवितायें पढ़ते हुए कई बार मुझे अंग्रेजी के महान कवि आगा शाहिद अली की कविताओं की याद आई। कमल की की कविताओं के घर, आँगन, चाँद सब हिन्दी कविता के परिसर में …

Read More »

ये दिये रात की जरूरत थे’ उपन्यास का एक अंश

सुपरिचित कथाशिल्पी कविता का दूसरा उपन्यास ‘ये दिये रात की जरूरत थे’बहुरूपिया कलाकारों के जीवन–संघर्ष और उनके सांस्कृतिक–ऐतिहासिक महत्व को केंद्र में रख  कर लिखा गया है। यह उपन्यास जहां एक तरफ लगभग लुप्त हो चुकी इस कला–परंपरा को इसकी सामाजिक–आर्थिक परिणतियों के साथ एक प्रभावशाली कथारूप में सहेजने का …

Read More »