Home / Prabhat Ranjan (page 272)

Prabhat Ranjan

हमारी ज़ोहरा आपा

आज जोहरा सहगल ने अपने जीवन का शतक पूरा कर लिया. उनके जीवन और कला के सफर पर दिलनवाज ने एक नजर डाली है- जानकी पुल. ———————————————- कई सितारों को मैं जानता हूं  कहीं भी जाऊं मेरे साथ चलते हैं.. (शायरी के एक संस्करण से) उत्तरांचल के मुमताज़उल्लाह खान रोहिला पठान परिवार …

Read More »

क्या सचमुच लेखक की भूमिका भौंकते हुए कुत्ते सरीखी है?

साहित्यिक पत्रिका ‘तद्भव’ द्वारा लखनऊ में 21 व 22 अप्रैल को सेमिनार का आयोजन हुआ, जिसमें आदरणीय नामवर सिंह और श्री काशीनाथ सिंह के वक्तव्यों को लेकर बड़ा बवाल हुआ. नामवर जी ने कहा कि सत्ता के समक्ष साहित्यकार की हैसियत कांता यानी जोरू जैसी है तथा काशीनाथ जी ने …

Read More »

‘कहानी’ में न अंटने वाला कहानीकार उदय प्रकाश

संजीव कुमार हिंदी के गंभीर आलोचकों में गिने जाते हैं. हाल के वर्षों में जिन कुछ आलोचकों को मिलने के कारण देवीशंकर अवस्थी सम्मान की विश्वसनीयता बरकरार है, वे उनमें एक हैं. बहुत खुलेपन के साथ उन्होंने उदय प्रकाश की कहानियों, उनकी कथा-प्रविधि पर लिखा है. उदय प्रकाश को पढ़ने …

Read More »

इज़राइल नाम की दीवार के आगे ग्रास

गुंटर ग्रास की कविता और उसके लेकर उठे विवाद पर प्रसिद्ध पत्रकार-कवि-कथाकार प्रियदर्शन का एक सुविचारित लेख- जानकी पुल. नोबेल पुरस्कार प्राप्त लेखक गुंटर ग्रास की एक कविता ‘व्हाट मस्ट बी सेड’ ने इन दिनों जर्मनी से लेकर इज़राइल तक तूफ़ान मचा रखा है। इज़राइल ने तो सीधे-सीधे गुंटर ग्रास …

Read More »

कविता विद्रोही और बागी की अनिवार्य संगिनी रही है

युवा पत्रकार-कथाकार आशुतोष भारद्वाज छत्तीसगढ़ के जंगलों का सच लिख रहे हैं. हाल में ही अबूझमाड़ को लेकर इंडियन एक्सप्रेस में उनकी रपट काफी चर्चा में रही. यहां उनकी डायरी के कुछ अंश- जानकी पुल.  ———————————————– मार्च। कोई कथित नक्सली जब गिरफ्तार होता है, जिसके खिलाफ किसी हिंसा में संलग्नता …

Read More »

कबीरा कुँआ एक पानी भरे अनेक!

मोहन राणा हिंदी के आप्रवासी कवि हैं, लेकिन उनकी कविताओं में भारत आकुलता की कोई व्यग्रता नहीं है. उनमें कोई अतीत्मोह भी नहीं है. बल्कि वे अपनी कविताओं के माध्यम से एक ऐसा सार्वभौम रचते हैं, जिसमें रिक्तता है, समकालीन मनुष्य का खालीपन है, वह बेचैनी है जो आज के …

Read More »

उन्होंने कुछ बताया और कुछ बनाया

हाल में ही डॉ. दिनेश्वर प्रसाद  का निधन हो गया. यह नाम हो सकता है हिंदी की दुनिया का उतना जाना-माना नाम न रहा हो, किसी सत्ता-प्रतिष्ठान से न जुड़ा हो. लेकिन वे सच्चे हिंदी सेवी और एक ईमानदार प्राध्यापक थे. वे हिंदी के सत्ता-खोजी संसार में कुछ पाने नहीं …

Read More »

मीडियॉकर लोग साहित्य में हावी होते जा रहे हैं

मुंबई के सुदूर उपनगर में आने वाला नायगांव थोडा-बहुत चर्चा में इसलिए रहता है है कि वहां टीवी धारावाहिकों के सेट लगे हुए हैं। स्टेशन के चारों ओर पेड हैं और झाडियों में झींगुर भरी दुपहरी भी आराम नहीं करते। लेखक निलय उपाध्याय कहते हैं कि ये नमक के ढूहे …

Read More »

साहित्य को श्रद्धा नहीं उसमें निहित सामाजिक प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण बनाती है

दिनेश्वर प्रसाद का निधन हो गया. वे हिंदी के एक प्राध्यापक थे, लेकिन मठाधीश नहीं. साहित्यसेवी थे. रांची में रहते थे. बरसों से फादर कामिल बुल्के के कोश को अपडेट करते रहते थे. उनको याद करते हुए विनीत कुमार ने बहुत आत्मीय ढंग से लिखा है- जानकी पुल.—————————————————- पटना से …

Read More »

मैं अज्ञेय जी से अभिभूत नहीं हूं

वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘अपने-अपने अज्ञेय’ में १०० लेखकों के अज्ञेय से जुड़े संस्मरण हैं, जो अज्ञेय के व्यक्तित्व, उनके जीवन, उनके सरोकारों को समझने में मदद करते हैं. पुस्तक में अज्ञेय को लेकर आलोचनापरक लेख भी पर्याप्त हैं. दो खण्डों में प्रकाशित इस पुस्तक की बहुत …

Read More »