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नज़्म

अब्दुल अहद साज़ की नज़्म ‘ज़ियारत’

चंद नाम ऐसे होते हैं, जिनके साथ RIP लिखते हुए हमारी उंगलियाँ काँप उठती हैं। 16 अक्टूबर 1950 को जन्मे, मुम्बई के मशहूर शायर अब्दुल अहद साज़ ऐसा ही एक नाम है, कल जिनका इंतकाल हो गया। ग़ज़ल और नज़्म की दुनिया का मोतबर नाम, जिसे महाराष्ट्र स्टेट उर्दू आकादमी अवार्ड से …

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‘patna blues’ उपन्यास के लेखक अब्दुल्ला खान की नज़्में

अब्दुल्ला खान इन दिनों अपने उपन्यास ‘patna blues’ के कारण चर्चा में हैं. वे पेशे से बैंकर हैं. मुंबई में टीवी के लिए स्क्रीनप्ले लिखते हैं, गाने लिखते हैं. आज उनकी कुछ नज़्में पढ़िए- मॉडरेटर ====== कुछ यादें माज़ी के दरीचे से कुछ यादें उतर आयीं हैं मेरे ख्यालों के …

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गुलजार साहब की ‘पाजी नज्में’

दिन भर हिंदी उर्दू की बहस देखता रहा, लेकिन शाम हुई तो गुलजार साहब याद आ गए. उनकी नज्मों की किताब आई है राजकमल प्रकाशन से ‘पाजी नज्में’. उसी संकलन से कुछ नज्में- मॉडरेटर ========================================== 1. ऐसा कोई शख़्स नज़र आ जाए जब… ऐसा कोई शख़्स नज़र आ जाए जब …

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युवा शायर #23 वर्षा गोरछिया की नज़्में

युवा शायर सीरीज में आज पेश है वर्षा गोरछिया की नज़्में – त्रिपुरारि ====================================================== नज़्म-1 तुम आओ एक रात कि पहन लूँ तुम्हें अपने तन पर लिबास की मानिंद तुम को सीने पे रख के सो जाऊँ आसमानी किताब की मानिंद और तिरे हर्फ़ जान-ए-जाँ ऐसे फिर मिरी रूह में …

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किसी को चाहते जाना क्या इंक़लाब नहीं?

आज पेश है ज़ीस्त की एक नज़्म, जिसका उनवान है ‘इंक़लाब’ – संपादक ======================================================= मुझसे इस वास्ते ख़फ़ा हैं हमसुख़न मेरे मैंने क्यों अपने क़लम से न लहू बरसाया मैंने क्यों नाज़ुक-ओ-नर्म-ओ-गुदाज़ गीत लिखे क्यों नहीं एक भी शोला कहीं पे भड़काया मैंने क्यों ये कहा कि अम्न भी हो सकता …

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जिस रोज़ बग़ावत कर देंगे, दुनिया में क़यामत कर देंगे

मज़दूर दिवस पर पेश हैं कुछ नज़्में – संंपादक ======================================================== मज़दूरों का गीत – असरार-उल-हक़ मजाज़  मेहनत से ये माना चूर हैं हम आराम से कोसों दूर हैं हम पर लड़ने पर मजबूर हैं हम मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम गो आफ़त ओ ग़म के मारे हैं हम ख़ाक नहीं …

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ये कैसा मुल्क है लोगों जहाँ पर जान सस्ती है

दिल्ली में किसान नंगे हो रहे हैं. यह अवाक कर देने वाली स्थिति है. किसान बचेंगे या नहीं, किसानी बचेगी या नहीं यह बड़ा सवाल है. ऐसा लग रहा है कि सरकारों को उनकी रत्ती भर परवाह नहीं है. आज बस त्रिपुरारि की यह नज़्म- मॉडरेटर ======================================================== किसान  ये ज़ाहिर …

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हम से नज़र मिलाइए होली का रोज़ है / तीर-ए-नज़र चलाइए होली का रोज़ है

जो लोग उर्दू-हिंदी लिटरेचर से तआल्लुक़ रखते हैं, उनके ज़ेहन में होली के ख़याल के साथ नज़ीर अकबराबादी की नज़्म ‘होली की बहारें’ ज़रूर आती होगी। मन गुनगुनाने लगता होगा, ‘जब फागुन रंग झमकते हों, तब देख बहारें होली की’। ये बहुत मशहूर नज़्म है। लेकिन इसके अलावे भी उर्दू …

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मैं टूटा तो तुम ने मुझ को गले लगाया

औरत को लेकर हर किसी का अपना एक नज़रिया होता है। होना भी चाहिए। यहाँ तक कि ख़ुद औरतों का भी। कोई किसी से इत्तिफ़ाक़ रखे या न रखे, ये अलग बात है। आज पूरी दुनिया #WomensDay मना रही है। यहाँ भी आप सुबह से कई पोस्ट पढ़ चुके हैं। …

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जहाँ फ़नकार को हर तरह की आज़ादी हो जहाँ हर एक को हासिल ख़ुशी बुनियादी हो

दिल्ली विश्वविद्यालय में विचारधाराओं की जंग के कारण माहौल बिगड़ रहा है, दूषित होता जा रहा है. इस माहौल में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र त्रिपुरारि ने एक नज़्म लिखी है- मुल्क– मॉडरेटर ==================================== हम ऐसे मुल्क में पैदा हुए हैं, ऐ लोगों जहाँ ईमान की क़ीमत लगाई जाती है …

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