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नज़्म

औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया

साहिर लुधियानवी का लिखा हुआ यह गीत यूँ तो 1958 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘साधना’ के लिए इस्तेमाल किया गया था। लेकिन ज़रा ग़ौर से सोचें तो समझ में आता है संदर्भ भले ही बदल गया हो, औरतों के प्रति ज़्यादातर मर्दों की सोच वहींं ठहरी हुई है। यही वजह …

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नज़ीर बनारसी की नज़्म ‘फ़िरक़ापरस्ती का चैलेन्ज’

आज के माहौल में नजीर बनारसी का यह कलाम याद आ गया- मॉडरेटर =================================== ताक़त हो किसी में तो मिटाए मिरी हस्ती डाइन है मिरा नाम लक़ब फ़िरक़ा-परस्ती मैं ने बड़ी चालाकी से इक काम किया है पहले ही मोहब्बत का गला घूँट दिया है मैं फ़ित्ने उठा देती हूँ …

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फ़िल्म डायरेक्टर विशाल भारद्वाज की कविता

विशाल भारद्वाज निर्देशित फ़िल्म ‘रंगून’ हाल में रिलीज़ हुई और बहुत चर्चा में है। जानकीपुल पर भी कई रिव्यू पढ़ा जा चुका है। लेकिन कम लोग जानते हैं कि विशाल कविताएँ भी लिखते हैं। जल्द ही उनकी कविताओं का संग्रह हमारे बीच होगा। फ़िलहाल पढ़ते हैं विशाल भारद्वाज की कविता, …

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या फ़िल्मी गाने रमता हूं, मैं अल्लाह-अल्लाह करता हूं

इन दिनों एक ओर हिंदी के हार्ट लैंड दिल्ली में जश्न-ए-रेख़्ता यानी उर्दू का फेस्टीवल चल रहा है। दूसरी ओर मुम्बई में एक यंग सा लड़का ‘हुसैन हैदरी’ अपने आप को हिंदुस्तानी मुसलमां होने की बात कहता है। सवाल ये है कि क्या हिंदुस्तानी मुस्लमां जैसी कोई चीज़ होती है? …

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