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पुस्तक अंश

जया जादवानी के उपन्यास ‘देह कुठरिया’ का एक अंश

वरिष्ठ लेखिका जया जादवानी का उपन्यास ‘देह कुठरिया’ प्रकाशित होने वाला है। सेतु प्रकाशन से प्रकाशित होने वाले इस उपन्यास का एक अंश पढ़िए- ===================================  ‘ओशो कम्यून’ से वापस आ गया है वह। फ़िर वही रुटीन। कुछ हफ़्ते ही गुज़रे होंगे कि एक दिन सुबह-सवेरे वह भैंस का दूध दुह …

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पुरखा पत्रकार का बाइस्कोप की भूमिका

‘पुरखा पत्रकार का बाइस्कोप’ नगेंद्रनाथ गुप्ता की आत्मकथा-संस्मरण पुस्तक है। नगेंद्रनाथ गुप्त पत्रकार थे और 19 वीं सदी के उत्तरार्ध में देश के अनेक महत्वपूर्ण घटनाक्रमों के वे साक्षी रहे। वे स्वामी विवेकानन्द का क्लासमेट, रवि बाबू के मित्र, केशब चन्द्र सेन के रिश्तेदार थे और उस दौरके अनेक महत्वपूर्ण लोगों …

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प्रियदर्शी ठाकुर ‘ख़याल’ के उपन्यास ‘सीगिरिया पुराण’ का अंश

प्रसिद्ध शायर प्रियदर्शी ठाकुर ‘ख़याल’ का दूसरा उपन्यास आया है ‘सीगिरिया पुराण’, जो प्राचीन श्रीलंका की पृष्ठभूमि में लिखा एक ऐतिहासिक उपन्यास है। भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित इस उपन्यास का एक अंश पढ़ते हैं- ========================== मदिरापान से उन्मत्त मिगार का एकालाप अनुराधापुर / सन् 478 ई.  धधकती हुई चिता जैसी …

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मीरां का कैननाइजेशन

मीरां के समय और समाज एकाग्र पुस्तक ‘पचरंग चोला पहर सखी री’ (2015) का प्रदीप त्रिखा द्वारा अनूदित अंग्रेज़ी संस्करण ‘मीरां वर्सेज़ मीरां’ वाणी बुक कंपनी, नयी दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। यहाँ इस पुस्तक के पाँचवें अध्याय ‘कैननाइजेशन’ का मूल हिन्दी पाठ दिया गया है। विद्वान आलोचक माधव हाड़ा …

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सुरेंद्र मोहन पाठक की आत्मकथा ‘निंदक नियरे राखिए’ का एक अंश

सुरेंद्र मोहन पाठक की आत्मकथा का तीसरा खंड ‘निंदक नियरे राखिए’ हाल में ही प्रकाशित हुआ है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक के एक अंश का आनंद लीजिए- ====================== यहाँ मैं पिछले साठ साल से चले आ रहे पुरानी दिल्ली के अनोखे संडे बुक बाजार का जिक्र करना चाहता हूँ जो भारत में तो अनोखा, बाकमाल है ही, मुमकिन है एशिया में—या दुनिया में भी—ऐसे बुक बाजार की कोई मिसाल न हो। शुरुआत में ये बुक बाजार जामा मस्जिद के करीब के—अब बन्द हो चुके—जगत सिनेमा से लेकर एडवर्ड पार्क—अब सुभाष पार्क—की नुक्कड़ तक, यानी दरियागंज, नेताजी सुभाष मार्ग के उस ओर के क्रॉसिंग के सिग्नल तक, सड़क की दोनों ओर लगता था, फिर फैलता, पसरता दाएँ घूमकर दिल्ली गेट तक, फिर और दाएँ घूमकर आसफ अली रोड पर डिलाइट सिनेमा तक पहुँच गया था। जब ऐसा हुआ था तो जगत सिनेमा वाला शुरुआती सेगमेंट बन्द हो गया था और बाजार की हदूद डिलाइट सिनेमा से लेकर सुभाष पार्क के चौराहे तक सड़क की एक ही तरफ—गोलचा सिनेमा की तरफ—कायम हो गई थीं। पुस्तक प्रेमियों में वो बाजार इतना पॉपुलर था—अब भी है—कि हर इतवार को, कोई भी मौसम हो, वहाँ मेले जैसा माहौल होता था। बरसात के मौसम में भी कितने ही ग्राहक और पटड़ी वाले बरसात बन्द होने का इन्तजार करते पाए जाते थे। केवल दो मर्तबा, छब्बीस जनवरी और पन्द्रह अगस्त को, वो बाजार बन्द होता था भले ही वो दोनों सरकारी त्योहार इतवार को न हों। छब्बीस जनवरी को उस रूट से परेड ने गुजरता होता था और पन्द्रह अगस्त को उधर से ही गुजरकर प्रधानमंत्री लाल किला पहुँचते थे, ध्वजारोहन की रस्म पूरी करते थे और किले की प्राचीर से कौम से मुखातिब होते थे। लिहाजा पहले ही बुक बाजार की हाकर्स यूनियन को खबर कर दी जाती थी कि उन दोनों सरकारी त्योहारों के पहले इतवार को बाजार नहीं लगेगा। चौदह अगस्त और पच्चीस जनवरी की शाम को तो सुभाष मार्ग की दुकानें, शोरूम्स जबरन बन्द करा दिए जाते थे और दुकानों के तालों को सील लगा दी जाती थी जो त्योहार गुजर जाने के बाद भी अगर उस रोज टूटी पाई जाती थी तो दुकान के मालिक के लिए वो सिक्योरिटी ब्रीच का गम्भीर मसला बन जाता था। उस बुक बाजार की मशहूरी से मुब्तला कई ऐसे हॉकर जिनका किताबों से कोई लेना-देना नहीं था, खासतौर से सर्दियों में गर्म कपड़ों की, जींस, टी-शर्ट्स वगैरह की रेहड़ियाँ लगाने लगे थे, लेकिन उनका वो हंगामा बावजूद पुलिस की शह के सुभाष पार्क के चौक और गोलचा सिनेमा तक भी सीमित रहता था। किताबों वाले उन रेहड़ियों से असुविधा तो महसूस करते थे लेकिन संडे बुक बाजार में रेहड़ी वालों की घुसपैठ पर उनकी पेश नहीं चलती थी। फिर ग्राहक भी ऐसे कमिटिड थे कि हर हाल में पहुँचते थे, दूर-दूर से आते थे, कारों पर आते थे पर पहुँचते थे। कई बार उस बुक बाजार पर क्लोजर का संकट आया—दो-तीन बार बन्द भी हुआ—क्योंकि कभी लोकल लीडर को वो चुभने लगा, कभी दरियागंज थाने का थानाध्यक्ष नाराज हो गया तो कभी वैसे ही उस बाजार को इलाके की हफ्तावरी जनरल न्यूसेंस करार दिया गया। जब पहली बार वो नौबत आई तो हाॅकरों ने उसका इतना तीव्र विरोध किया कि वो मीडिया की निगाह का भी मरकज बना और दिल्ली से प्रकाशित होने वाले तमाम अखबारों ने उस सिलसिले में लीड स्टोरीज़ छापीं। यहाँ तक कि खुशवन्त सिंह और अनिल धारकर जैसे नामचीन लेखकों और पत्रकारों ने उस बन्दी का प्रबल विरोध किया, बाकायदा उस बुक बाजार को आइकॉनिक बुक बाजार बताया जिसको बन्द किया जाना प्रशासन की नादानी थी और पुस्तक प्रेमियों का बड़ा नुकसान था। नतीजतन बाजार फिर चालू हो गया। लेकिन गौरतलब बात है कि वो संडे बाजार तब भी बन्द न हुआ जबकि ऐन सुभाष मार्ग पर प्रस्तावित मेट्रो रूट का महीनों टनल वर्क चालू रहा। तीन बार यूँ बाजार बन्द हुआ, बन्दी की कोई साफ वजह किसी की समझ में न आई लेकिन खुसर-पुसर यही रही कि किसी को—क्या पता किसको, जबकि सबको पता था—खटक रहा था। एक बार तो खुद उस निर्वाचन क्षेत्र का संसद सदस्य दखलअन्दाज हुआ तो वो बाजार खुला। आखिरी बार—हाल ही में सन् 2019 के उत्तरार्ध में ही सुप्रीम कोर्ट के हुक्म से बन्द हुआ तो किसी की पेश न चली। हाॅकरों की यूनियन ने भी तीव्र विरोध किया तो उन्हें कोई वैकल्पिक जगह दी जाने का आश्वासन मिला। वैकल्पिक जगह रामलीला मैदान था, जिसे हॉकरों की यूनियन ने रिजैक्ट कर दिया। अब वो बाजार आसफ अली रोड पर डिलाइट सिनेमा के सामने के महिला पार्क में लगता है और हॉकर्स उस नयी जगह से खुश हैं। उस बुक बाजार का मैं नियमित पैट्रन था, हर इतवार को मैं वहाँ जाता था और ढेर पुरानी, दुर्लभ, अनुपलब्ध पुस्तकें खरीदकर लाता था। एक बार को करतब हुआ। बल्कि चमत्कार हुआ। मुझे वहाँ पटड़ी पर से स्ट्रेंट मैगजीन के सौ साल—रिपीट, सौ साल—पुराने अंक मिले। और ये वो अंक थे जिनमें से हर एक में सर आर्थर कॉनन डायल के फिक्शन हीरो शरलॉक होम्ज की मूल कथा छपी थी। खुद बेचने वाले दुकानदार को उनके दुर्लभ होने की न कोई समझ थी न कद्र थी। सीरियल वाइज छब्बीस इशू मुझे पाँच-पाँच रुपये में मिले। यहाँ ये बात भी काबिलेजिक्र है कि उस बाजार के सारे ही हॉकर अल्पशिक्षा प्राप्त कबाड़िए नहीं हैं। पिछले दस-बारह सालों में मैंने देखा था कि कुछ हॉकर किताब की अहमियत को समझने लग गए थे और अपनी समझ को किसी खास किताब को रेयर बताकर बाकायदा कैश करते थे। मैंने एक बार खुद एडगर वॉलेस का एक नावल—ओरिजिनल कीमत 25 सैंट। तब के डॉलर रेट के मुताबिक दो रुपये—खरीदने की कोशिश की तो उसने अस्सी रुपये माँगे। वजह पूछी तो बोला, रेयर बुक थी। मैंने कहा, मेरे पास एडगर वालेस के ऐसे पन्द्रह नावल थे, वो चालीस-चालीस रुपये में ले ले। …

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तेलुगु उपन्यासकार केशव रेड्डी के उपन्यास ‘भू-देवता’ का अंश

केशव रेड्डी की  गिनती तेलुगु के प्रतिष्ठित उपन्यासकारों में होती है। 2019 में किसान के जीवन पर आधारित उपन्यास भू-देवता काफी चर्चित रहा था। संयोग से इस समय पूरे देश में किसान एक बार फिर चर्चा में हैं। देशभर में चल केंद्र सरकार के नए बिल पर किसान आन्दोलन अपने चरम पर है। भू-देवता  में केशव रेड्डी ने 70 साल पहले …

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नहर वाले खेत की हरियाली: मिथिलेश कुमार राय

मिथिलेश कुमार राय युवा लेखकों में जाना पहचाना नाम है। इनका उपन्यास ‘कोयला ईंजन’ शीघ्र प्रकाशित होने वाला है उसी का एक अंश पढ़िए- ======================== नहर वाले खेत की हरियाली प्रभात खबर के दीपावली विशेषांक-2020 में प्रकाशित लेखक के शीघ्र प्रकाश्य उपन्यास ‘कोयला ईंजन’ का एक अंश   गेहूं के …

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‘स्टूडेंट लाइफ़ के क़िस्से’ का एक अंश

हरमिंदर सिंह चहल को हम सब ‘समय पत्रिका’ के संपादक के रूप में जानते हैं। वे बहुत अच्छे लेखक भी हैं। उनका एक उपन्यास पहले प्रकाशित हो चुका है। अभी हाल में ही किंडल पर उनका ईबुक प्रकाशित हुआ है ‘स्टूडेंट लाइफ़ के क़िस्से’। उसका एक अंश पढ़िए- ======================== भविष्य …

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पुस्तक ‘ल्हासा नहीं…लवासा’ का एक अंश

प्रस्तुत है सचिन देव शर्मा की पुस्तक ‘ल्हासा नहीं… लवासा’ का अंश।सचिन देव शर्मा पेशे से एचआर प्रोफेशनल हैं और शौक से एक लेखक व यात्री। सचिन बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी, दिल्ली से एमबीए हैं और गुरुग्राम में एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत हैं। यात्रा, एचआर व अन्य विषयों …

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युवक क्या तुम शिक्षक बनोगे: शिक्षक-आंदोलन की चुनौतियाँ

आज शिक्षक दिवस है। आज पढ़ते हैं एक ऐसे अध्यापक की पुस्तक के अंश जिन्होंने उत्तर बिहार में नेपाल की सीमा के पास के क्षेत्रों में स्कूल-कॉलेजों में अध्यापन किया, स्कूल-कॉलेजों की स्थापना में सक्रिय भूमिका निभाई, शिक्षक आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की। शिक्षा के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन के …

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