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समीक्षा

मेरी हिम्मत देखना मेरी तबीयत देखना

अग्रज और बाज़ौक शायर पवनजी ने जब ‘पालतू बोहेमियन’ पर मुझे रुक्के में लिखकर भेजा और इस ताक़ीद के साथ लिखकर भेजा कि ग़ालिब का एक मिसरा तुमने बहर से बाहर लिख दिया है और कमबख़्त उसी को शीर्षक भी बना दिया। उनकी यह शायराना टिप्पणी सबसे अलग थी लेकिन जानकी …

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मार तमाम के दौर में ‘कहीं कुछ नहीं’

मैंने अपनी पीढ़ी के सबसे मौलिक कथाकार शशिभूषण द्विवेदी के कहानी संग्रह ‘कहीं कुछ नहीं’ की समीक्षा  ‘हंस’ पत्रिका में की है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह की समीक्षा हंस के नए अंक में प्रकाशित हुई है। जिन्होंने न पढ़ी हो उनके लिए- प्रभात रंजन सन 2000 के बाद …

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एक इतिहासकार की दास्तानगोई

हाल में ही युवा इतिहासकार, लेखक सदन झा की पुस्तक आई है ‘देवनागरी जगत की दृश्य संस्कृति’। पुस्तक का प्रकाशन रज़ा पुस्तकमाला के तहत राजकमल प्रकाशन से हुआ है। पुस्तक की समीक्षा पढ़िए। लेखक हैं राकेश मिश्र जो गुजरात सेंट्रल यूनिवर्सिटी में शोध छात्र हैं- मॉडरेटर ============================ हिंदी जगत में …

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मुड़ मुड़ के क्या देखते रहे मनोहर श्याम जोशी?

आमतौर पर ‘जानकी पुल’ पर अपनी किताबों के बारे में मैं कुछ नहीं लगाता लेकिन पंकज कौरव जी ने ‘पालतू बोहेमियन’ पर इतना अच्छा लिखा है कि इसको आप लोगों को पढ़वाने का लोभ हो आया- प्रभात रंजन ====================== ट्रेजेडी हमेशा ही वर्क करती आयी हैं और शायद आगे भी …

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जीवन जिसमें राग भी है और विराग भी, हर्ष और विषाद भी, आरोह और अवरोह भी

अनुकृति उपाध्याय के कहानी संग्रह ‘जापानी सराय’ को जिसने भी पढ़ा उसी ने उसको अलग पाया, उनकी कहानियों में एक ताज़गी पाई। कवयित्री स्मिता सिन्हा की यह समीक्षा पढ़िए- मॉडरेटर ================ कुछ कहानियां अपने कहे से कहीं कुछ ज़्यादा कह जाती हैं । कुछ कहानियां जो निचोड़ ले जाती हैं …

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हे मल्लिके! तुमने मेरे भीतर की स्त्री के विभिन्न रंगो को और गहन कर दिया

अभी हाल में ही प्रकाशित उपन्यास ‘चिड़िया उड़’ की लेखिका पूनम दुबे के यात्रा संस्मरण हम लोग पढ़ते रहे हैं। आज उन्होंने वरिष्ठ लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ के चर्चित उपन्यास ‘मल्लिका’ पर लिखा है। आपके लिए- मॉडरेटर =============================== मनीषा कुलश्रेष्ठ जी की किताब मल्लिका पर लिखते हुए मुझे क्लॉड मोनेट की …

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प्रेम और कुमाऊँनी समाज के प्रेम का उपन्यास ‘कसप’

साहित्यिक कृतियों पर जब ऐसे लोग लिखते हैं जिनकी पृष्ठभूमि अलग होती है तो उस कृति की व्याप्ति का भी पता चलता है और बनी बनाई शब्दावली से अलग हटकर पढ़ने में ताज़गी का भी अहसास होता है। मनोहर श्याम जोशी के उपन्यास ‘कसप’ पर चन्द्रमौलि सिंह की इस टिप्पणी …

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क्या मार्क्सवाद ने सचमुच हिंदी साहित्य का भारी नुक़सान कर दिया?

हिंदी पत्रकारिता में दक्षिणपंथ की सबसे बौद्धिक आवाज़ों में एक अनंत विजय की किताब ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ ऐसे दौर में प्रकाशित हुई है जब 2019 के लोकसभा चुनावों में वामपंथी दलों की बहुत बुरी हार हुई है, वामपंथ के दो सबसे पुराने गढ़ केरल और पश्चिम बंगाल लगभग ढह चुके …

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प्रवीण झा और उनकी किताब ‘कुली लाइंस’

‘कुली लाइंस’ पढ़ते हुए मैं कई बार भावुक हो गया। फ़ीजी, गुयाना, मौरिशस, सूरीनाम, नीदरलैंड, मलेशिया, दक्षिण अफ़्रीका, युगांडा, जमैका आदि देशों में जाने वाले गिरमिटिया जहाजियों की कहानी पढ़ते पढ़ते गले में काँटे सा कुछ अटकने लगता था। इसीलिए एक साँस में किताब नहीं पढ़ पाया। ठहर-ठहर कर पढ़ना …

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राष्ट्रवाद और सामंतवाद के मध्य पिसता किसान और ‘अवध का किसान विद्रोह’

राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित सुभाष चंद्र कुशवाहा की किताब ‘अवध का किसान विद्रोह’ पर यह टिप्पणी प्रवीण झा ने लिखी है। प्रवीण झा की पुस्तक ‘कूली लाइंस’ आजकल ख़ासी चर्चा में है- मॉडरेटर ======================= राष्ट्रवाद और सामंतवाद के मध्य पिसता किसान। सुभाष चंद्र कुशवाहा जी की पुस्तक ‘अवध का किसान …

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