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समीक्षा

इश्क ए हकीकी का सागर: बुल्ले शाह

प्रसिद्ध आलोचक माधव हाड़ा के संपादन में बुल्ले शाह की कविताओं का संचयन प्रकाशित हुआ है। राजपाल एंड संज प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक की समीक्षा लिखी है मोहम्मद हुसैन डायर ने। आप भी पढ़ सकते हैं- ====================== भक्ति आंदोलन ने देश और काल की सीमाएँ तोड़ी थी। यह आंदोलन …

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यह कथा नहीं, बल्कि जीवन है!

गरिमा श्रीवास्तव का उपन्यास ‘आउशवित्ज: एक प्रेम कथा’ को पढ़कर यह पत्र लिखा है प्रोफ़ेसर रामेश्वर राय ने। गरिमा जी का यह उपन्यास निस्संदेह इस साल प्रकाशित दो श्रेष्ठ उपन्यासों में एक है। उथल-पुथल दौर में प्रेम की हूक की यह कथा आपको विचलित भी कर देती है और आनंद …

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‘गोधूलि की इबारतें’ विभिन्न विधाओं का समुच्चय है

वरिष्ठ लेखक जयशंकर की किताब ‘गोधूलि की इबारतें’ कथेतर गद्य की एक अच्छी किताब है। आधार प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब पर यह टिप्पणी लिखी है युवा कवयित्री प्रिया वर्मा ने- ====================== बहुत बार, मन यात्रा करने का विचार करता है, अगर वह ऐसा नहीं कर पाता तो बीते समय …

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स्त्री के अंतर्मन की परतों को उघाड़ती कहानियाँ

विजयश्री तनवीर का कहानी संग्रह ‘सिस्टर लिसा की रान पर रुकी हुई रात’ प्रकाशित होने के साथ ही लगातार चर्चा में है। इसमें कोई संदेह नहीं कि विजयश्री की कहानियों का अपना मुहावरा है जो बहुत अलग है और ताज़ा है। हिंद युग्म से प्रकाशित उनके इस संग्रह पर युवा …

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      ऐ मेरे रहनुमा: पितृसत्ता के कितने रूप

    युवा लेखिका तसनीम खान की किताब ‘ऐ मेरे रहनुमा’ पर यह टिप्पणी लिखी है दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय गया की शोधार्थी अनु रंजनी। उनकी लिखी विस्तृत टिप्पणी पढ़िए- ==========================      ‘ऐ मेरे रहनुमा’ यह शीर्षक ऐसा भाव देता है जैसे अपने सबसे प्रिय व्यक्ति को संबोधित किया जा रहा …

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यह किताब तो अहसासों का गुलदस्ता है

देवी प्रसाद मिश्र की पुस्तक ‘मनुष्य होने के संस्मरण’ पर कवि यतीश कुमार की यह टिप्पणी पढ़िए. यह पुस्तक राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है- जानकी पुल ================================ दोहे और मुहावरों को अमरत्व प्राप्त है और अगर कहानियाँ इस ओर मुखर होकर अमरत्व चख लें तो मुहावरों में बदल जाते हैं। …

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मौत के साये में जीवन कथा

आशुतोष भारद्वाज की पुस्तक ‘मृत्यु कथा’ पर यह टिप्पणी लिखी है दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय की शोधार्थी अनु रंजनी ने। बस्तर में चल रहे संघर्ष को लेकर यह अपने ढंग की अकेली किताब है। हम दूर बैठे लोगों को वह जीवन बहुत करीब से दिखाती है जिसको हम नक्सल समस्या …

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शब्दों के बीच दालचीनी की ख़ुशबू बिखरी है!

आज पढ़िए चर्चित युवा कवयित्री अनामिका अनु के कविता संग्रह ‘इंजीकरी’ पर यतीश कुमार की यह टिप्पणी। और हां, इस बार अर्से बाद उन्होंने पद्य में नहीं गद्य में लिखा है- =================== कुछ रचनाएँ ऐसी होती हैं जो विषय विविधता के साथ शब्दों की कोमलता व अर्थ का विराट और …

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‘जौन एलिया का जिन’ नाटक की समीक्षा

हाल में ही इरशाद खान सिकंदर का नाटक आया है ‘जौन एलिया का जिन’। राजपाल एंड संज से प्रकाशित इस नाटक की विस्तृत समीक्षा लिखी है राजशेखर त्रिपाठी ने। आप भी पढ़िए- ========================== मैं जो हूं जॉन एलिया हूं जनाब इसका बेहद लिहाज़ कीजिएगा …………………………………….. मुझसे मिलने को आप आए …

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ये दिल है कि चोर दरवाज़ा : मुख्य दरवाज़े की प्रस्तावना और उपसंहार भी

इस साल एक उल्लेखनीय कथा संकलन आया है  ‘ये दिल है कि चोर दरवाजा‘। किंशुक गुप्ता द्वारा लिखी समलैंगिक रिश्तों की ये कहानियाँ हिंदी में अपने ढंग की अनूठी है और बहस की मांग करती है। फ़िलहाल वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह पर डॉक्टर भूपेन्द्र बिष्ट की यह टिप्पणी …

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