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अंकिता आनंद की बाल कविताएं

इस कविता आच्छादित समय में ध्यान आया कि बाल कविताओं की विधा में किसी तरह का नवोन्मेष नहीं दिखाई देता है. बाल कविताएं अखबारों और पत्रिकाओं में फिलर की तरह बनकर रह गई हैं. ऐसे में अंकिता आनंद की इन कविताओं ने चौंका दिया. अंकिता जी की इन कविताओं में …

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‘रिमझिम’ की समीक्षा की समीक्षा

कुछ दिनों पहले जाने-माने चित्रकार और लेखक अखिलेश ने स्कूलों में पढ़ाई जा रही हिंदी को लेकर एक सुदीर्घ और सुचिंतित लेख लिखा था. उसका जवाब शिक्षाविद रविकांत ने दिया है. यह बहस जारी रहेगी- मॉडरेटर  ============== अखिलेश जी ने बहुत लंबा लेख लिखा है –”हम अपने बच्‍चों को कैसी …

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हिमालय को लेकर हिमालयी चिंता का दस्तावेज़

बचपन में रामधारी सिंह दिनकर की कविता पढ़ी थी ‘मेरे नगपति मेरे विशाल/ साकार दिव्य गौरव विराट’. हिमालय पर थी. बचपन से हिमालय की मन में एक छवि रही है कि वह हमारा रक्षक है. वही हिमालय बार-बार कहर बनकर टूट रहा है अपने बच्चों पर. अभी हाल में एक …

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अनु सिंह चौधरी की कहानी ‘नीला स्कार्फ’

स्त्री-लेखन की चर्चा में उन लेखिकाओं की चर्चा भी होनी चाहिए जिन्होंने स्त्री-लेखन के दशकों पुराने ‘क्लीशे’ को तोड़ा और स्त्री-लेखन की सर्वथा नई जमीन तैयार की. इस चर्चा में अनु सिंह चौधरी और उनकी कहानी ‘नीला स्कार्फ’ की चर्चा के बिना यह चर्चा अधूरी ही मानी जायेगी. अनु जी …

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गीताश्री की कहानी ‘लकीरें’

गीताश्री वय से वरिष्ठ हैं लेकिन उन्होंने कहानियां लिखना बहुत देर से शुरू किया. शुरू में ही कुछ ऐसी कहानियां लिख दीं कि ‘बोल्डनेस’ का विशेषण चिपक गया उनकी कहानियों के साथ. जबकि उनकी ज्यादातर कहानियां स्त्रियों के सशक्तिकरण की हैं, ग्रामीण, कस्बाई स्त्रियों के धाकड़ व्यक्तित्व की हैं, उनकी …

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वंदना राग की कहानी ‘स्टेला नौरिस और अपूर्व चौधुरी अभिनीत क्रिसमस कैरोल’

  समकालीन स्त्री कथाकारों में वंदना राग सबसे अंडररेटेड लेखिका हैं. जबकि उनकी उनकी कहानियों की भाषा, कथ्य, इंटेंसिटी, शैली सब न सिर्फ अपने समकालीन कथाकारों से भिन्न है बल्कि उन्होंने हिंदी में स्त्री-लेखन को सर्वथा नई जमीन दी है. उनमें वह ‘तथाकथित’ बोल्डनेस नहीं है दुर्भाग्य से जिसे हिंदी …

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गीताश्री की नायिकाएं बोल्ड हैं क्रूर नहीं

गीताश्री की कहानियों को पढ़े बिना समकालीन स्त्री विमर्श को समझना बहुत मुश्किल है. प्रचार-प्रसार, नारेबाजी से डोर उनकी कहानियां अपनी जमीन पर बहुत मजबूती से खड़ी दिखाई देती हैं. हाल में ही सामायिक प्रकाशन से उनका संग्रह आया है ‘स्वप्न, साजिश और स्त्री’. उसकी कहानियों पर कलावंती का यह …

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‘मेकिंग ए मर्डरर’ के बहाने कुछ सवाल

‘मेकिंग अ मर्डरर‘ डॉक्युमेंट्री सीरिज देखकर युवा पत्रकार-लेखक अमित मिश्र ने यह लेख लिखा है. अमेरिकी न्याय-व्यवस्था के ऊपर कई सवाल उठाता हुआ. अमित जी फिल्मों की गहरी समझ रखते हैं और एक पेशेवर की तरह समस्या की नब्ज पर उंगली रखना जानते हैं, किसी किस्सागो की तरह नैरेटिव लिखना …

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अमृत रंजन की ताज़ा कविताएं

स्कूल बॉय अमृत रंजन हिंदी का शायद सबसे कम उम्र का कवि है और वह अपनी इस जिम्मेदारी को समझता भी है. उसकी कविताओं में लगातार दार्शनिकता बढ़ रही है. जीवन-जगत को लेकर जो प्रश्नाकुलता थी उसकी जगह एक तरह का ठहराव दिखाई देने लगा है. पहल बार उसकी कवितायेँ मुझे …

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शब्दों के साधक की कृतित्व-कथा ‘शब्दवेध’

संयोग से हिंदी के पहले थिसॉरस ‘समान्तर कोश’ के प्रकाशन का यह 20 वां साल है. हमने अरविन्द कुमार जी को इसी के माध्यम से नए सिरे से जाना था. हाँ, यह जानता था कि वे मेरी प्रिय फिल्म पत्रिका ‘माधुरी’ के संपादक थे. हालाँकि वे जिस दौर में उस …

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