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कविताएं सीत मिश्र की

आज कविताएं सीत मिश्र की. कविताओं में कच्चापन हो सकता है दिखाई दे मगर अनुभव सघन हैं.  सोंधापन है भाषा में, अच्छी कवयित्री बनने की सम्भावना पूरी है. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर  ============================================================ 1. प्रेम प्रेम की नई परिभाषा गढ़ी थी उसने साथ रहना, सोना, खाना-पीना प्रेम नहीं दैनिक जीवन …

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यह शिक्षा के नए पंथ में ढलने का दौर है!

दक्षिणपंथ की सरकार जब भी केंद्र में आती है तब वह शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन करने में लग जाती है. एक बार फिर ऐसी आशंका लग रही है. युवा शिक्षाशास्त्री कौशलेन्द्र प्रपन्न का एक सुचिंतित लेख- मॉडरेटर  ================================================================== शिक्षा समितिओं और आयोगों की सिफारिशों और नीतियों को समय समय पर …

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‘मम्मा की डायरी के बहाने’ एक अलग तरह का प्रोग्राम

सभी मम्माओं-पापाओं को यह सूचित किया जाता है कि आज शाम 6.30 बजे इण्डिया हैबिटेट सेंटर के कैजुरिना हॉल में अनु सिंह चौधरी की किताब ‘मम्मा की डायरी’ के बहाने कुछ पैरेंटिंग के अनुभवों को साझा करने-सुनने का मौका है. एक अलग तरह की दुनिया का यह अलग तरह का …

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मंटो के जीवन और लेखन पर बनी फिल्म ‘मुफ्तनोश’ के 60 साल

सैयद एस. तौहीद फिल्मों के बारे में एक से एक जानकारी खोज निकालते हैं. मंटो के जन्म के महीने में ‘मुफ्तनोश’ नामक एक फिल्म के बारे में उन्होंने लिखा है जिसमें मंटो के जीवन को आधार बनाया गया है. बहुत दिलचस्प. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर  ======================== ‘मुफ़्तनोशी की तेरह किस्मे‘ …

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भरम हैं रास्ते, चौराहे सत्य और नित्य हैं

कविताएं बहुत लिखी जा रही हैं- यह कहने का मतलब यह नहीं है कि अच्छी कविताएं नहीं लिखी जा रही हैं. आज भी ऐसी कविताएं लिखी जा रही हैं, नए कवि भी लिख रहे हैं, जिनमें कविता का मूल स्वभाव बचा हुआ है, झूठमूठ की बयानबाजी या नारेबाजी नहीं है. …

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“स्वतंत्रता” शब्द गुलामी से उपजता है!

आज सुबह एक अच्छी और सार्थक बातचीत पढ़ी. गीताश्री हमारे समय की एक महत्वपूर्ण कथाकार हैं, पत्रकार हैं. उनकी यह बातचीत ‘अर्य सन्देश’ नामक पत्रिका में छपी है. बिहार झारखण्ड मूल की स्त्री कथाकारों पर केन्द्रित पत्रिका के इस अंक का सुघड़ संपादन किया है राकेश बिहारी ने. बातचीत की …

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कविता एवं कला महोत्सव, शिमला में मिलते हैं !

साहित्य-कला उत्सवों के दौर में यह अपने तरह का पहला आयोजन है-कविता एवं कला महोत्सव, शिमला. लिटरेचर फेस्टिवल्स के दौर में बिना किसी प्रयोजन के यह आयोजन सहभागिता के आधार पर है. जून का महीना शिमला में पीक टूरिस्ट सीजन होता है, ऐसे में 13-14 जून को वहां रहने और …

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सेल्फी के जमाने में ‘बॉलीवुड सेल्फी’

जब से फिल्म समीक्षक पी.आर. एजेंसी के एजेंट्स की तरह फिल्मों की समीक्षा कम उनका प्रचार अधिक करने लगे हैं तब से सिनेमा के शैदाइयों के फिल्म विषयक लेखन की विश्वसनीयता बढ़ी है. मुझे दिलीप कुमार पर लार्ड मेघनाथ देसाई की किताब अधिक विश्वसनीय लगती है या राजेश खन्ना की …

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दुख उतना ही गहरा हुआ जितना गहरा था प्रेम!

कहने को मृत्यु को लेकर कुछ नोट्स हैं, लेकिन जिंदगी के राग से गहरे सराबोर. मनीषा पांडे के इस लेखन को कविता कहें, डायरी कहें, नोट्स कहें या सब कुछ. असल में हर विधा की छाया है और एक नई विधा का उत्स भी. कई बार मुझे पढ़ते हुए कहानी …

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पता नहीं क्यों इधर दु:स्वप्न झूठे नहीं हो रहे हैं!

दिल्ली-मुम्बई जैसे महानगरों में कला संस्कृति का कारोबार बढ़ता जा रहा है लेकिन कलाकारों-संस्कृतिकर्मियों की अड्डेबाजी की जगहें कम होती जा रही हैं. मुंबई में ऐसा ही एक ठिकाना था समोवार कैफे, जिसके बंद होने पर बड़ा ही मार्मिक लेख लिखा है लेखक ओमा शर्मा ने. अब कितने लेखक कलाकार रह …

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