मिहिर पांड्या सिनेमा पर जो लिखते बोलते हैं उससे उनकी उम्र की तरफ़ ध्यान नहीं जाता। हिंदी में इस विधा का उन्होंने पुनराविष्कार किया है। यह बात अलग से रेखांकित करनी पड़ती है कि वे 40 साल से कम उम्र के युवा हैं। 28 फ़रवरी को राजकमल प्रकाशन स्थापना दिवस …
Read More »भविष्य का समाज: सहजीविता के आयाम: जसिंता केरकेट्टा
जसिंता केरकेट्टा कवयित्री हैं, आदिवासी समाज की मुखर आवाज़ हैं। राजकमल स्थापना दिवस के आयोजन में 28 फ़रवरी को ‘भविष्य के स्वर’ के अंतर्गत उनका वक्तव्य सहजीविता के आयामों को लेकर था- मॉडरेटर ======================== क्यों महुए तोड़े नहीं जाते पेड़ से? ………………………………. माँ तुम सारी रात क्यों महुए के …
Read More »‘फैन कल्चर’ का दौर : भविष्य का आलोचक:मृत्युंजय
मृत्युंजय कवि हैं और कविता के हर रूप में सिद्धहस्त हैं। सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों तरह की आलोचना में समान महारत रखते हैं। बस कम लिखते हैं लेकिन ठोस लिखते हैं। जैसे राजकमल प्रकाशन स्थापना दिवस पर आयोजित ‘भविष्य के स्वर’ में पढ़ा गया उनका यह पर्चा समकालीन लेखन के …
Read More »कला ही ऐसा माध्यम है जो हमें अपने अंतःकरण की प्रस्तुति करने में समर्थ बनाता है: जिज्ञासा लाबरू
राजकमल स्थापना दिवस पर आयोजित ‘भविष्य के स्वर’ आयोजन में पहली बार जिज्ञासा लाबरू को सुना। हम हिंदी वाले बाहर की दुनिया के बारे में कितना कम जानते हैं। अगर उस दिन जिज्ञासा को नहीं देखा, सुना होता तो यह कहाँ पता चलता कि जिज्ञासा बहुत कम उम्र से बच्चों …
Read More »किस्सागोई : वाचिक परंपरा का नया दौर:हिमांशु बाजपेयी
राजकमल स्थापना दिवस पर आयोजित ‘भविष्य के स्वर’ में एक वक्तव्य प्रसिद्ध दास्तानगो हिमांशु बाजपेयी का भी था। हिंदुस्तानी की वाचिक परम्परा के वे चुनिंदा मिसालों में एक हैं। उनको सुनते हुए लुप्त होती लखनवी ज़ुबान की बारीकी को समझा जा सकता है। एक बार उनके दास्तान को सुनकर मनोहर …
Read More »पॉपुलर बनाम पॉपुलिस्ट: आख्यान की वापसी: चंदन पाण्डेय
कल राजकमल प्रकाशन का 73 वाँ स्थापना दिवस समारोह था। इस अवसर पर भविष्य के स्वर के अंतर्गत अलग अलग पृष्ठभूमियों, अलग अलग विधाओं के सात वक्ताओं को बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। किसी के वक्तव्य की किसी अन्य वक्ता के वक्तव्य से तुलना नहीं की जानी चाहिए …
Read More »प्रमोद द्विवेदी की कहानी ‘वन वे प्रेम कथा’
प्रमोद द्विवेदी पत्रकार हैं और ‘जनसत्ता’ अख़बार में फ़ीचर संपादक रहे हैं। उन्होंने कहानियाँ कम लिखी हैं लेकिन बहुत रसदार कहानियाँ लिखते हैं। भाषा, कहन, विषय सब आपको कहानी के साथ ले जाता है। मसलन यह कहानी पढ़िए- मॉडरेटर ====================================== सागर जिले से सैकड़ों किलोमीटर दूर इस आनंदनगरी में वन …
Read More »मुक्ति शाहदेव की कुछ कविताएँ
मुक्ति शाहदेव पेशे से अध्यापिका हैं। राँची में रहती हैं। उनका पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ है ‘आँगन की गोरैया’। कुछ कविताएँ उसी संग्रह से- मॉडरेटर ======================= प्रेयसी वसंत की मैं हूँ पलाश प्रेयसी वसंत की शोख़ चंचल उन्मुक्त। उदासी का मेरे आँगन है क्या काम? पल-पल प्रतिपल प्रतीक्षारत …
Read More »अनुकृति उपाध्याय का व्यंग्य ‘मेला देखन मैं गई’
‘जापानी सराय’ की लेखिका अनुकृति उपाध्याय ने इस बार व्यंग्य लिखा है। फागुन में साहित्य महोत्सवों की संस्कृति पर एक फगुआया हुआ व्यंग्य। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर ================= मेला देखन मैं गई भूतपूर्व अभिनेत्री सत्र शुरू होने के आधे घंटे बाद लहराती हुई आई थी और छद्म मासूमियत के साथ …
Read More »अभिषेक रामाशंकर की कहानी ‘लूट’
युवा लेखक अभिषेक रामाशंकर की कविताओं से तो मैं प्रभावित था, आज उनकी यह कहानी भी पढ़ी। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर ============================== — लूट— सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ था , पुरज़ोर सन्नाटा । दर्जनों गाड़ियां जल चुकी थीं , कई मोटरसाइकिलें , बसों और दुकानों को आग में झोंक …
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