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एक फिल्म रसिक की डायरी के कुछ अनुच्छेद

सिनेमा अन्ततः दृश्यों के माध्यम से कहानी कहने की कला है. अपनी पसंद के कुछ सिने-दृश्यों के माध्यम से युवा लेखिका सुदीप्ति ने एक अच्छा लेख लिखा है. एक बार फिर सिनेमा पर उनका एक पठनीय लेख- मॉडरेटर. ====== यह एक फिल्म समीक्षक की नहीं, फिल्म की एक रसिया की …

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स्वप्निल श्रीवास्तव की कविताएं

शोर-शराबे के दौर में स्वप्निल श्रीवास्तव चुपचाप कवि हैं, जिनके लिए कविता समाज में नैतिक होने का पैमाना है. उनकी कुछ सादगी भरी, गहरी कवितायेँ आज आपके लिए- मॉडरेटर.  एक ————– शुरूआत —— जिस दिन अर्जुन ने चिड़िया की आंख पर निशाना लगाया था उसी दिन हिंसा की शुरूआत हो …

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चित्रकथा में हिरोशिमा की त्रासदी

इधर एक मार्मिक चित्रकथा पढने को मिली. मार्मिक इसलिए क्योंकि आम तौर पर चित्रकथाओं में मनोरंजक कथाएं, महापुरुषों की जीवनियाँ आदि ही पढ़ते आये हैं. लेकिन यह एक ऐसी चित्रकथा है जो इतिहास की एक बहुत बड़ी त्रासदी की याद दिलाती है और फिर उदास कर देती है. ‘नीरव संध्या …

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कवि-आलोचक होना जोखिम उठाना है- अशोक वाजपेयी

अशोक वाजपेयी मूलतः कवि हैं लेकिन जितना व्यवस्थित गद्य-लेखन उन्होंने किया है उनके किसी समकालीन लेखक ने नहीं किया. वे आलोचना की दूसरी परंपरा के सबसे मजबूत स्तम्भ रहे हैं. उनके आलोचना कर्म पर बहुत अच्छी बातचीत की है सुनील मिश्र ने. एक पढने और सहेजने लायक बातचीत- मॉडरेटर  =================================================================== …

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उसने यथार्थ को जादुई बना दिया

स्पैनिश भाषा के महान लेखक गैब्रिएल गार्सिया मार्केज़ के मरने के बाद हिंदी में कई बहुत अच्छे लेख लिखे गए, उनके ऊपर कई पत्रिकाओं के अंक उनके ऊपर निकल रहे हैं. यही उनकी व्याप्ति थी, है. कुछ बहुत अच्छे लेखों में मुझे कवि, कथाकार, पत्रकार प्रियदर्शन का यह लेख भी …

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‘गायब होता देश’ पर मैत्रेयी पुष्पा की टिप्पणी

 अपने पहले उपन्यास ग्लोबल गांव के देवता के चर्चित और बहुप्रशंसित होने के बाद रणेन्द्र अपने दूसरे उपन्यास गायब होता देश के साथ पाठकों के रूबरू हैं. पेंगुइन बुक्स से प्रकाशित यह हिंदी उपन्यास अनेक ज्वलंत मुद्दों को अपने में समेटता है मसलन आदिवासी जमीन की लूट, मीडिया का घुटना …

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फिर तोड़ने की कोशिश हर ओर हो रही है

भरत तिवारी की जादुई तस्वीरों के हम सब प्रशंसक रहे हैं. उनकी गज़लों की रवानी से भी आप प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएंगे. समकालीन हालात को लेकर कुछ मौजू शेर. रविवार की सुबह आपके लिए- प्रभात रंजन  ================= मजबूत थी इमारत, कमज़ोर हो रही है फिर तोड़ने की कोशिश हर ओर …

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मैं तुम्हें छू लेना चाहता था, मार्केस!

युवा लेखक श्रीकांत दुबे पिछले दिनों मेक्सिको में थे. मार्केस के शहर मेक्सिको सिटी में. तब मार्केस जिन्दा थे. उनका यह संस्मरणात्मक लेख लैटिन अमेरिका में मार्केस की छवि को लेकर है, मार्केस से मिलने की उनकी अपनी आकांक्षा को लेकर है. पढ़ते हुए समझ में आ जाता है कि …

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कुछ चिनार के पत्ते, झेलम का पानी और मिट्टी…

हाल के वर्षों में जयश्री रॉय ने अपनी कहानियों के माध्यम से हिन्दी जगत में अपनी बेहतर पहचान बनाई है। अभी हाल में ही उनका उपन्यास आया है ‘इकबाल‘, जो कश्मीर की पृष्ठभूमि पर आधारित एक प्रेम-कहानी है। आधार प्रकाशन से प्रकाशित इस उपन्यास का एक अंश आपके लिए- जानकी …

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भारतीय समाज फ़ासीवाद के मुहाने पर खड़ा है

जब-जब कट्टरतावादी ताक़तें ज़ोर पकड़ती हैं सबसे पहले अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला होता है। अभी हाल में ही पुस्तक मेले के दौरान मैनेजर पाण्डेय के एक वक्तव्य पर फासीवादी ताकतों ने हंगामा किया उससे यह संकेत मिलता है कि आने वाले समय में हालात किस तरह के होने वाले …

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