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तुझसे मैं मिलता रहूँगा ख़्वाब में

कल हरदिल अज़ीज़ शायर शहरयार का इंतकाल हो गया. उनकी स्मृति को प्रणाम. प्रस्तुत है उनसे बातचीत पर आधारित यह लेख, जो अभी तक अप्रकाशित था. त्रिपुरारि की यह बातचीत शहरयार के अंदाज़, उनकी शायरी के कुछ अनजान पहलुओं से हमें रूबरू करवाती है – मॉडरेटर ======================================================   वो सुबह बहुत हसीन …

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‘आज का व्यावसायिक हिंदी सिनेमा एक उत्पाद है’

हाल के दिनों में सिनेमा पर गंभीरता से लिखने वाले जिस युवा ने सबसे अधिक ध्यान खींचा है वह मिहिर पंड्या है. मिहिर पंड्या ने यह लेख ‘कथन’ पत्रिका द्वारा भूमंडलीकरण और सिनेमा विषय पर आयोजित परिचर्चा के लिए लिखा है. समकालीन सिनेमा को समझने के लिए मुझे एक ज़रूरी …

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सत्य दरबारियों का शगल है

हमारी पीढ़ी में सबसे अलग मुहावरे वाले कवि तुषार धवल की कुछ नई कविताएँ. तुषार की कविताओं में मुझे कभी-कभी अकविता की सी झलक दिखाई देती है, कभी अपने प्रिय कवि श्रीकांत वर्मा की आहट सुनाई देती है, लेकिन उनका स्वर एकदम समकालीन है. इन नई कविताओं को पढकर देखिये- …

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