Recent Posts

कोई और न सही, अबूझमाड़ तो साक्षी होगा ही

कथाकार आशुतोष भारद्वाज की नक्सल डायरीविकास और सभ्यता की परिभाषाओं से दूर गाँवो-कस्बों के उन इलाकों के भय-हिंसा से हमें रूबरू कराता है जिसे सरकारी भाषा में नक्सल प्रभावित इलाके कहा जाता है. इस बार अबूझमाड़ – जानकी पुल. पहाड़ और जंगल के बीच अटके किसी कस्बे का बीच सितंबर। — …

Read More »

मैं स्वीकार करती हूँ शोक और उत्सव

आज प्रस्तुत हैं लैटिन अमेरिकन देश पेरू की कवयित्री ब्लांका वरेला की कविताएँ. लगभग सुर्रियल सी उसकी कविताओं के अक्तावियो पाज़ बड़े शैदाई थे. बेहद अलग संवेदना और अभिव्यक्ति वाली इस कवयित्री की कविताओं का मूल स्पैनिश से हिंदी अनुवाद किया है मीना ठाकुर ने. मीना ने पहले भी स्पैनिश …

Read More »

शैलेंद्र, राज कपूर, मैँ और साहिर

कल प्रसिद्ध फिल्म पत्रिका ‘माधुरी’ पर रविकांत का लेख जानकी पुल पर आया था. उसकी प्रतिक्रिया में उस पत्रिका के यशस्वी संपादक अरविन्द कुमार जी ने एक छोटी- सी टिप्पणी प्रेषित की है. यह टिप्पणी उपलब्ध करवाने के लिए हम लेखक मित्र दयानंद पांडेय के आभारी हैं. प्रस्तुत है वह …

Read More »