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क्योंकि हमें डर लगता है, स्वाधीनता से…

अज्ञेय की जन्मशताब्दी वर्ष में आज उनकी कविता पर प्रसिद्ध आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल का लेख. यह लेख उन्होंने अज्ञेय पर सम्पादित एक पुस्तक के लिए लिखा था. आज के सन्दर्भों में इस लेख की प्रासंगिकता कुछ और बढ़ गई है.——————————————————————————- ‘वे तो फिर आयेंगे’  क्योंकि हमें डर लगता है, स्वाधीनता …

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मैकलुस्कीगंज: एक अनूठे गाँव की अनोखी कथा

हाल में ही पत्रकार-लेखक विकास कुमार झा के उपन्यास ‘मैकलुस्कीगंज’ को लंदन का इंदु शर्मा कथा सम्मान दिया गया है. उसी उपन्यास पर प्रस्तुत है विजय शर्मा जी का विचारोत्तेजक लेख- जानकी पुल.     तत्कालीन हिन्दी साहित्य के परिदृश्य पर नजर डालने पर हम पाते हैं कि उसमें ग्रामीण …

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हाशिया पन्ने में सौंदर्य भरता है

पूर्णिमा वर्मन अभिव्यक्ति-अनुभूति की संपादिका हैं. एक समर्थ और संवेदनशील कवयित्री भी हैं. स्त्री जीवन की पीड़ा, उनका दर्द उनकी कविताओं को सार्वभौम बनाता है. प्रस्तुत है तीन कविताएँ- हाशिया पन्ने में सौंदर्य भरता है/ नियंत्रित करता है उसके विस्तार को दिशाओं में/ वही गढ़ता है लिखे हुए का आकार  मेरा घर …

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