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सच को झूठ और झूठ को सच बनाकर पेश करना है आसान

युवा पत्रकार विनीत उत्पल एक संवेदनशील कवि भी हैं. यकीं न हो तो उनकी कविताएँ पढ़ लीजिए- जानकी पुल. कुत्ते या आदमी  कुछ लोग कुत्ते बना दिए जाते हैं कुछ लोग कुत्ते बन जाते हैं कुछ लोग कुत्ते पैदा होते हैं कुत्ते बनने और बनाने का जो खेल है काफी …

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ज़िम्मेदारी की पत्रकारिता में बाज़ार बाद में आता है

‘जनसत्ता’ के संपादक ओम थानवी हमारे दौर के सबसे सजग और बौद्धिक संपादक है. उनके लिए पत्रकारिता ऐसा प्रोफेशन है जिसमें मिशन का भाव पीछे नहीं छूटता. पत्रकारिता को वे केवल व्यवसाय नहीं बल्कि सामाजिक ज़िम्मेदारी के तौर पर देखते हैं. आइये उनसे अनूप कुमार तिवारी की यह विचारोत्तेजक बातचीत …

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ऐसा नगर कि जिसमें कोई रास्ता न जाए

खलीलुर्रहमान आज़मी मशहूर शायर शहरयार के उस्तादों में थे. इस  जदीदियत के इस शायर के बारे में  शहरयार ने लिखा है कि १९५० के बाद की उर्दू गज़ल के वे इमाम थे. उनके मरने के ३२ साल बाद उनकी ग़ज़लों का संग्रह हिंदी में आया है और उसका संपादन खुद …

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