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अंतर्मन की ‘अंतरा’

हाल में ही एक काव्य-पुस्तक हाथ आई- ‘अंतरा’. कवि का नाम पढ़कर ध्यान ठहर गया- विश्वनाथ. श्री विश्वनाथ जी का कुछ साल पहले ही देहांत हुआ. राजपाल एंड सन्ज प्रकाशन के प्रकाशक के रूप में उनका नाम बरसों से जानता था. लेकिन यह कवितायेँ उनका एक अलग ही रूप लेकर …

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जलेस से कुछ सवाल

मार्क्सवादी आलोचक अरुण माहेश्वरी ने जनवादी लेखक संघ को लेकर कुछ बहसतलब सवाल उठाये हैं. पढ़िए और विचार कीजिए- मॉडरेटर  ====================== कुमकुम सिंह जी ने एक मैसेज भेजा है -अरुण जी, मैं यह जानना चाहूंगी कि देवीशंकर अवस्थी सम्मान (रेखा अवस्थी, कमलेश अवस्थी) श्रीलाल शुक्ल सम्मान, इफ्को (सीएमडी, यू.एस. अवस्थी) …

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‘पाप के दस्तावेज’ बनाम ‘पुण्य का साहित्य’

 ‘कादम्बिनी’ पत्रिका के दिसंबर अंक में गंभीर साहित्य बनाम लोकप्रिय साहित्य पर मेरा लेख प्रकाशित हुआ है. आपके लिए- प्रभात रंजन  =============================   हिंदी में सौभाग्य या दुर्भाग्य से गंभीरता को ही मूल्य मान लिया गया है. जबकि आरम्भ में यह मुद्रा थी. हिंदी गद्य के विकास में दोनों की …

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