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मुक्तिबोध का अपूर्व आनंदमय पाठ

संजीव कुमार के व्यंग्य हम सब पढ़ते रहे हैं. वही जिसमें ‘खतावार’ के नाम से वे ख़त लिखते हैं. इस बार प्रसंग मुक्तिबोध की 50वीं पुण्यतिथि का है. यह देखिये, बौद्धिक व्यंग्य कितना मारक होता है- मॉडरेटर. ==================== दो शब्द कई महीने हो गए, ख़तावार ने कोई ख़त नहीं लिखा. …

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सोशल मीडिया की ताकत और सिनेमा

युवा लेखक मिहिर पंड्या फिल्मों पर बहुत तैयारी के साथ लिखते हैं. हमेशा कोशिश करते हैं कि कुछ नया कहा जाए. इसलिए उनका लिखा अलग से दिखाई देता है, अलग सा दिखाई देता है. मिसाल के लिए सोशल मीडिया और सिनेमा के रिश्तों को लेकर लिखे गए उनके इस आलेख …

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लड़की, लड़का, डेट… और घंटे भर का मार्क्सवाद!

हाल के वर्षों में हिंदी में कहानियों की एक शैली नीलेश मिश्र के लोकप्रिय रेडियो प्रोग्राम के लिए लिखने वालों ने भी विकसित की है. ऐसे ही एक लेखक क्षितिज रॉय की कहानियां हाल में पढ़ी. वे वे दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स के विद्यार्थी हैं, छोटी छोटी कहानियां लिखते हैं. …

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