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कुछ भी ठोस नहीं रहता, सब पिघलता जा रहा है

युवा मीडिया समीक्षक विनीत कुमार की पुस्तक ‘मंडी में मीडिया’ की यह समीक्षा मैंने लिखी है. आज ‘जनसत्ता’ में प्रकाशित हुई है- प्रभात रंजन ================================ जब युवा मीडिया विमर्शकार विनीत कुमार यह लिखते हैं कि ‘मेरे लिए मीडिया का मतलब इलेक्ट्रानिक मीडिया ही रहा है’, तो वास्तव में वे इस …

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अनामिका की कविता ‘ब्रेष्ट कैंसर और पवन करण की कविता ‘स्तन’

अनामिका की यह कविता और पवन करण की कविता ‘स्तन’ प्रस्तुत है जिसको लेकर शालिनी माथुर, दीप्ति वर्मा, उद्भ्रांत के पाठ आ चुके हैं और वाद-विवाद का सिलसिला चल पड़ा है- जानकी पुल. =====================================   ब्रेस्ट कैंसर (वबिता टोपो की उद्दाम जिजीविषा को निवेदित)दुनिया की सारी स्मृतियों कोदूध पिलाया मैंने,हाँ, बहा …

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मार्केस की कहानी ‘मंगलवार की दोपहर’

आज मार्केस की एक कहानी. कहानी का अनुवाद कवि नरेन्‍द्र जैन ने किया है- जानकी पुल  ============================================================ ट्रेन रेतीली चट्टानों की थरथराती सुरंग से प्रकट हुई और उसने बेहद लंबे और समतल केले के बागानों को पार करना शुरू कर दिया। हवा नम हो चुकी थी और उन्‍हें अब समुद्री हवा …

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