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अनुवाद की बदहाली का कारण सिर्फ कम मेहनताना नहीं, विशेषज्ञता की कमी भी

हिंदी में अनूदित साहित्य का विस्तार हुआ है. बड़े पैमाने पर विश्व साहित्य हिंदी में लगतार उपलब्ध हो रहा है. लेकिन अनुवाद का स्तर, उसके लिए मिलने वाला मेहनताना जैसे मुद्दे लगातार विवाद के विषय रहे हैं. स्वतंत्र मिश्र की यह ‘स्टोरी‘ इन्हीं कुछ पहलुओं के विश्लेषण का प्रयास करती है. एक …

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राग और विराग से बनी प्रभाष परम्परा

प्रभाष जोशी की 75 वीं जयंती पर यशस्वी पत्रकार प्रियदर्शन का यह आलेख उस परंपरा की बात करता है जिसने हिंदी पत्रकारिता में बहुत से ‘एकलव्यों’ को प्रेरित किया. उन्होंने जनसत्ता नामक एक अखबार की शुरुआत की जो अपने आप में एक परंपरा बन गई, सच्चाई और विवेक की परंपरा- …

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तात, बंधु, सखा, चिर सहचर

प्रभाष जोशी आज होते तो ७५ साल के होते. ओम थानवी का यह लेख ‘जनसत्ता’ और प्रभाष जोशी के संबंधों को लेकर ही नहीं पत्रकारिता की उस परंपरा की भी याद दिलाती है, जो बाजार के चमक-दमक के इस दौर में भी अपनी जिद पर कायम है. ‘जनसत्ता’ में आज …

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