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जमाने की रफ्तार के उजाले पर काले सोने की डस्ट चढ़ गई है

शंभु यादव एक कुलवक़्ती कवि हैं, यह बात दुनिया में कितने लोग जानते होंगे? मुझे तो इस पर भी शक़ है कि वे खुद इस बात को जानते होंगे। इस बात को जानने के लिए भी कविता से बाहर आना और अपनी उस मसरूफि़यत को थोड़ी दूरी से देखना ज़रूरी …

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क्या यह सचमुच एक आत्ममुग्ध युवा की व्यक्तिगत लड़ाई है?

ज्ञानपीठ-गौरव विवाद में मुझे यह सकारात्मक लग रहा है कि युवा लेखकों में इस प्रकरण के अनेक पहलुओं को लेकर बहस चल रही है. युवा लेखक श्रीकांत दुबे का यह लेख उसी बहस की अगली कड़ी है. श्रीकांत का कहानी संग्रह ‘पूर्वज’ हाल में ही भारतीय ज्ञानपीठ से आया है. …

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क्या संस्थाएं लेखन की मौलिकता और लेखक की अस्मिता से बड़ी हो गई हैं?

गौरव-ज्ञानपीठ प्रकरण में निर्णायक मंडल का मत एक महत्वपूर्ण पहलू है. क्या हिंदी के गणमान्य महज अपमानित होने के लिए निर्णायक बनते हैं या इसके पीछे कुछ और पहलू होते हैं. युवा लेखक विवेक मिश्र का यह लेख इस पूरे प्रकरण को एक अलग ‘एंगल’ से देखने का आग्रह करता …

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